बुधवार, 24 जुलाई 2019

मुर्गी का अंडा और राजनीति

इस विषय पर मैं लिखना शुरु करें और आप पढ़ना, मैं आपको दो बातों से अवगत करवाना चाहती हूं कि मैं शुद्ध शाकाहारी परिवार से हूं। मेरे घर में लहसुन-प्याज भी नहीं आता। मांसाहार तो पूर्णतः वर्जित है, और तो और जिस अंडे पर मैं लिखना चाह रही हूं, उसकी दुकान के सामने से मुंह पर रुमाल रखकर निकलती हूं। दूसरी बात ये कि यह पोस्ट पूरी तरह गैरराजनीतिक है (हर पोस्ट की तरह)। चूंकि मैं भी एक मां हूं तो तीन-चार दिन तक लिखूं कि ना लिखूं की ऊहापोह से निकलकर आज जो मैं लिख रही हूं, पूरी जिम्मेदारी के साथ लिख रही हूं। छत्तीसगढ़ में आजकल ‘मुर्गी के अंडे’ की राजनीति चरम पर है। ऐसे विषयों को मुद्दा बनते देखकर लगता है कि राजनीति में केवल स्वार्थ का स्थान है, परमार्थ के लिए कोई जगह नहीं बची। विपक्ष को बस विरोध करना है, भले ही उस विरोध की कीमत जनमानस ही क्यों ना चुकाए। तो मामला ये है कि राज्य सरकार मध्यान्ह भोजन में बच्चों को अंडा देना चाहती है। इसका कई सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संगठनों द्वारा विरोध हो रहा है। लोग इसे धर्म से जोड़कर देख रहे हैं। लेकिन विरोध करने वाले ये नहीं समझ पा रहे कि ये जरूरी नहीं है कि हर बच्चा अंडा खाए ही। अंडा खाना ना खाना बच्चे की इच्छा पर छोड़ दिया जाए। लेकिन मैं एक बात स्पष्ट कर दूं कि छत्तीसगढ़ समेत कई राज्य कुपोषण की मार झेल रहे हैं। कागजों के आंकड़ों के इतर जमीनी हकीकत भयावह है। अंडे में विटामिन ए, बी, बी12, विटामिन डी और विटामिन ई भरपूर मात्रा में होता है। इसके अलावा फॉलेट, सेलेनियम और कई खनिज लवण इसमें पाए जाते हैं। इसमें कोलीन पाया जाता है, जिससे स्मरण शक्ति तो बढ़ती ही है, कार्यक्षमता भी बढ़ जाती है। अंडे के सेवन से आंखों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट रेटीना को मजबूत करता है। इसे खाने से पेट देर तक भरा रहता है। इससे बाल और नाखून भी मजबूत होते हैं। इसमें आयरन भी होता है, जो लाल रक्त कोशिकाओं के विकास के लिए जरूरी होता है। मैं अंडे का विज्ञापन नहीं कर रही हूं, बल्कि समझा रही हूं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए अंडा एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व का काम करेगा। अंडे के अतिरिक्त भी कई अन्य प्रकार के खाद्य पदार्थों में पोषक तत्व हैं, जिनसे यही सब फायदे हो सकते हैं। लेकिन अकेले अंडे में ही ये सब पोषण मौजूद होता है। सबसे जरूरी बात कि मध्यान्ह भोजन में अंडे परोसे जाने का विरोध वो लोग कर रहे हैं, जिनके बच्चे शायद ही सरकारी स्कूलों में पढ़ते होंगे। मतलब ये अंडा उनके बच्चों को तो नहीं खाना है। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले 95 फीसदी बच्चे गरीब, वंचित, शोषित परिवारों के होते हैं। हम ये तो पता नहीं कर रहे कि उनकी मंशा क्या है, उनकी जरूरत क्या है, बस अपना विरोध थोप रहे हैं। तो जो स्कूलों में अंडा देने का विरोध कर रहे हैं, क्या अपने स्तर पर इन बच्चों का पोषण ठीक करने के लिए पहल भी करेंगे कि फिर केवल राज्य सरकार का मुंह ताकेंगे।
मेरा सात साल का बच्चा है, मैं उसे अंडा नहीं देती, क्योंकि मैं शाकाहारी हूं और मुझे पता है कि अंडे के अतिरिक्त वही पोषण मैं उसे कैसे दे सकती हूं। मैं उसे सही पोषक तत्व देने के लिए आर्थिक रूप से सक्षम भी हूं। लेकिन यदि किसी गरीब के बच्चे को मुफ्त में पोषण मिल रहा हो तो उसका विरोध कितना उचित है। रही बात इसे मांसाहार या शाकाहार से जोड़ने की, तो ये उन बच्चों के परिवारों को तय करने दीजिए कि उन्हें क्या चाहिए। मेरा केवल इतना ही निवेदन है कि बच्चों के विषय पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। यदि करना ही है तो केवल समस्या पर नहीं समाधान पर भी बात होनी चाहिए। केवल हल्ला करने का मकसद करने की इस राजनीति में कुपोषण से बर्बाद होते बच्चों की हाय भी आपको ही लगेगी। ये मत भूलिएगा। #प्रियंकाकौशल

1 टिप्पणी:

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

निर्धन बच्चों व पालकों के हित में सार्थक आलेख हेतु आप बधाई की पात्र हैं