मंगलवार, 2 जुलाई 2019

कहानी- कमला किन्नर

(यह मौलिक रचना है, कृपया बगैर अनुमति कॉपी-पेस्ट ना करें, सर्वाधिकार सुरक्षित)

आज कमला का मन सुबह से बैचेन था। रातभर भी वो ठीक से सो नहीं पाई। नूरबानों के शब्द अब भी उसके जेहन में घूम रहे थे। एक-एक शब्द दिल पर पत्थर की तरह पड़ रहा था। कमला सन्न रह गई थी, जब उसे अपने जैविक यानि असली माता-पिता का नाम पता चला। पिछले 20 सालों में कमला ने जबसे होश संभाला है, उसकी केवल एक ही इच्छा रही है कि वो अपने जन्मदाता का नाम और अपनी असली पहचान जान सके। शबनम आपा दुनिया से चली गईं, लेकिन हमेशा बोलती रहीं, बचुआ क्या करोगी, उन निर्मोही लोगों के बारे में जानकार। जिन्होंने एक पल भी तुम्हें खुद के पास रखना गंवारा नहीं समझा। क्यों जानना चाहती हो ऐसे लोगों के बारे में। हकीकत ये है कि हम ही तुम्हारी मां भी हैं और बाप भी।
लेकिन कमला जैसे जिद पर ही अड़ गई थी। ना सुबह की फेरी में शामिल होती, ना ही कहीं बधाई मांगने जाती थी। जब तक शबनम आपा थीं, कोई कमला पर उंगली नहीं उठा सका। लेकिन अब कुनबे की कमान नूरबानों के पास आ गई है। उसे अनुशासनहीनता बिलकुल भी पसंद नहीं है। उसने पहले तो कमला को समझाने की भरपूर कोशिश की। फिर उसका खाना-पानी बंद कर दिया। तीन दिन भूखी रहने के बाद भी जब कमला नहीं झुकी तो अंततः नूरबानों को ही झुकना पड़ा। उसने पूरे कुनबे को आंगन में इकट्ठा किया, फिर कमला को बुलवाया। सुन, आज मैं तुझे बताती हूं कि तेरा जन्म कहां हुआ था, और तेरे साथ ही ये पूरा कुनबा भी जानेगा कि तू किसकी संतान है। मैं इस कायदे को तेरे लिए तोड़ रही हूं। इस शहर के प्रतिष्ठित उद्योगपति घनश्याम दास तेरे पिता हैं और पिछले हफ्ते मानस भवन में आयोजित कार्यक्रम में जो हमारी स्थिति सुधारने पर लंबा-चौड़ा भाषण दे रही थीं ना सुनंदा दास, वो तेरी मां है। ये सुनकर जैसे कमला गश खाते-खाते बची। उसे नूरबानों की बातों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। पूरा कुनबा भी ये जानकर सन्न रह गया कि कमला घनश्याम दास की संतान है। इतने बड़े घराने से ताल्लुक रखती है और नारकीय जीवन जीने पर मजबूर है। नूरबानों बोलती रही, जब तेरा जन्म हुआ तो तेरे घर में कोहराम मच गया था। एक किन्नर ने जन्म लिया था सुनंदा दास की कोख से। घनश्यामदास के एक नौकर का फोन आया शबनम आपा के पास। वे रातों-रात तुझे ले आईं इस कुनबे में। तुने तो तेरी मां का दूध तक नहीं पिया है, बस उसने तुझे नौ महीनें अपनी कोख में रखा है, इससे ज्यादा कुछ नहीं किया तेरे लिए।
नहीं, मेरी मां को मेरे बारे में पता ही नहीं होगा। ये तो भी हो सकता है कि उन्हें झूठ कहा गया हो कि उन्हें मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ है। वे अनजान हों मेरे जन्म के बारे में, मेरे लिंग के बारे में, मेरी परवरिश के बारे में... रात भर कमला यही सोचकर करवट बदलती रही। एक-एक दुख उसकी आंखों के सामने घूमने लगा। जब वो छोटी थी, उसे स्कूल जाने का कितना मन होता था। लेकिन कभी उसे स्कूल नहीं भेजा गया। पैरों में घूंघरु बांधने में उसे चिढ़ होती थी, लेकिन मास्टरजी की छड़ी देखकर विरोध करने की हिम्मत ही नहीं कर पाई थी कभी। किन्नरों का ताली पीटना भी उसे कभी नहीं भाया, लेकिन अफ़सोस कि उसे वो सब करना पड़ा, जिसके लिए उसका कोमल मन कभी तैयार नहीं था। भद्दे मजाक, अनर्गल बातें, दुख, पीड़ा, उलाहना से भरे संसार में भगवान ने उसे क्यों भेज दिया, ये सवाल हमेशा उसके दिल में उठता रहा। जब कोई नया बच्चा उनके कुनबे में आता तो उसे वो प्यार कभी नहीं मिलता, जिसका वो हकदार था। क्यों किन्नर इंसानों में नहीं गिने जाते? हमें कभी माता-पिता का प्यार क्यों नहीं मिलता? समाज हमें सम्मान क्यों नहीं दे सकता? क्यों हमें अपना भविष्य चुनने की आजादी नहीं दी जाती, क्यों हम अपने भाई, बहनों, चाचा, चाची, बुआ, ताऊ के साथ नहीं रह सकते? ऐसे अनगिनत सवाल उसे जीने नहीं देते। लेकिन अब नहीं, वो अपने माता-पिता से पूछना चाहती थी कि क्यों उसे वो सब नहीं मिला, जो उसके भाई-बहनों को दिया गया।
सुबह होते ही कमला घनश्याम दास के घर पहुंच गई। वहां कोई विवाह समारोह चल रहा है शायद। कमला को देखकर सब समझते हैं कि कोई किन्नर बधाई मांगने आया है। कमला की मां सुनंदा सामने से गहनों से लकदक चली आ रही है। कमला को देखकर सुनंदा कहती है कि अरे अभी से आ गए, बेटी तो विदा हो जाने देते। चलो आ ही गए तो बन्ना-बन्नी ही गा दो। तुम्हें झोली भर-भरकर दूंगी, मेरी लाड़ली बेटी की शादी है आज।
कितने बच्चे हैं आपके? सहसा कमला ने पूछा। मेरे तीन बच्चे हैं, एक तो ये बेटी है, जिसकी शादी हो रही है। दो बेटे हैं, एक डॉक्टर है, दूसरा पिता के बिजनेस में हाथ बंटाता है। सुनंदा ने कहा। कोई और संतान? कमला ने फिर पूछा। सुनंदा इस सवाल से थोड़ी असहज हो गई। क्या मतलब है तुम्हारा, उसने पूछा। कमला ने कहा कि कोई बच्चा जन्म लेते ही मर गया हो या फिर...? सुनंदा को याद आया, बोली हां, मेरा एक बच्चा और होता, लेकिन वो तुम्हारी ही तरह किन्नर था, ये समाज उसकी परवरिश की अनुमति नहीं देता। इसलिए हमनें उसी रात उसे किन्नरों को सौंप दिया था। सुनंदा ने इतनी सहजता से सब कुछ कह दिया, जैसे एक मरे हुए बच्चे को जनकर उसे कचरे के ढेर में फेंक देना कोई बड़ी घटना ना हो। यह ठीक वैसा ही तो था, कि बच्चा तृतीय लिंग का हुआ तो उसे उन अनजान लोगों को सौंप दिया गया, जिनके बारे में आप कुछ नहीं जानते। अपने बच्चे की कोमल सूरत देखकर भी मां की ममता नहीं जागी होगी क्या? उसे नौ माह अपने पेट रखने पर भी मेरी मां का मुझसे कोई नाता नहीं जुड़ा? उफ्फ़ मैं क्यों जानना चाहती थी अपने अतीत के बारे में, अपनी जड़ों के बारे में। ये तो मेरे लिए कितना पीड़ादायक है। मैं इसे मां मानूं कि नहीं? मेरे मानने या ना मानने से हो भी क्या जाएगा। ये तो खुद ही उस बच्चे से कोई नाता नहीं रखना चाहती, जिसका कसूर केवल इतना है कि वह ना तो स्त्री है, ना ही पुरुष। इसने एक बार भी नहीं सोचा कि इसमें उस बच्चे का क्या दोष है। उसे तृतीय लिंग होने की इतनी बड़ी सजा क्यों दी गई, जन्म लेते ही नरक में क्यों भेज दिया गया? ऐसे अनगिनत अनुत्तरित प्रश्नों के साथ कमला वापस अपने कुनबे में लौट गई, सदा-सर्वदा के लिए। सुनंदा पीछे से आवाद देती रह गई, अरे नाच-गा के तो जाओ, बधाई तो ले जाओ...अरे मेरी बेटी को और हमें आशीर्वाद तो दे जाओ।


प्रियंका कौशल
9303144657

1 टिप्पणी:

ydahrackliff ने कहा…

The Borgata Hotel Casino & Spa - Dr. MD
Borgata Hotel 강원도 출장안마 Casino & 삼척 출장안마 Spa · The rooms have 충청남도 출장마사지 a 사천 출장샵 sitting area · The bathroom is sleek and clean, with marble bathrooms 포천 출장샵 and marble bathrooms and