सोमवार, 23 जून 2008

नही तो विस्फोटक होगी स्थिति

एक ब्रितानी संस्था एक्शन ऐड ने दावा किया है की भारत में नवजात बच्चियों की जानबूझकर अनदेखी की जाती है और उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, संस्था का कहना है की भारत में कन्या भ्रूण हत्या का प्रतिशत बही बता ही जा रहा है, संस्था की रिपोर्ट विस्फोटक खुलासा करती है की देश के संपन्न मने जाने वाले राज्य पंजाब में प्रति दस लड़कों के अनुपात में केवल आठ लड़कियाँ हीं हैं, आधुनिकभारत में भी क्शिषित दंपत्ति लड़कों की चाहत रखतें हैं और व्रत-उपवास रखतें हैं, एक्शन ऐड का कहना है की यदि जल्द ही भारतीय लोगों की मानसिकता में बदलाव नहीं हुआ तो स्थिति विस्फोटक हो जायगी, सनद रहे की हरियाणा में आज लड़कों को शादी के लिए लड़कियाँ नहीं मिल रहीं हैं, इसके चलते वे बंगाल जाकर शादी रचाने को मजबूर हैं, और तो और अभी हाल ही में हरियाणा में फर्जी दुल्हन सप्लाई करने वाला गिरोह पकडाया है, जो वहां के लड़कों और उनके परिजनों को सुंदर लड़कियां दिखाकर विवाह का झांसा देतें हैं, मुहमांगी कीमत लेकर उनकी शादी करते थे और उनकी तथाकथित पत्नी उनका सामान लेकर चंपत हो जतिन थीं. ब्रितानी संस्था ने खुलासा किया है की प्रति १००० लड़कों कस अनुपात में ९५० लड़कियां होनी चाहिए, जबकि भारत कस पञ्च शहरों में किए गए सर्वे के अधर पर यहाँ प्रति १००० लड़कों पर केवल ८०० लड़कियां मिलीं. २००१ की जनगणना के बाद लड़के और लड़कियों के अनुपात में गजब का अन्तर आया है, इतना ही नही पिछ्के २० सालों में करीब १ करोर लड़कियों को गर्भ में मर दिया गया, भारत जैसे देश में, जहाँ की संस्कृति संवेदनशील maनी जाती है, उसमे बेटियों के लिए संवेदनशीलता क्यों नही है, इस दिशा में न तो सरकार कुछ खास कर नही पा रही है, भले ही अल्ट्रा साउंड तकनीक से भ्रूण जाँच पर प्रतिबन्ध हो, लेकिन सभी जानते हैं की गली-गली में खुल रहे क्लिनिक लोगों को यह सुविधा उपलब्ध करा रहें हैं, इन पर अंकुश लगने के लिए सरकार को केवल कड़े कदम ही नही उठाने होंगें बल्कि कुछ रचनात्मक और प्रोत्साहनात्मक योजनायें भी चलानी होगीं जैसे मध्य प्रदेश सरकार ने किया है, लाडली लक्ष्मी और मुक्यमंत्री कन्यादान योजना दो ऐसीही योजनायें हैं, जो अधिकारों से वंचित लड़कियों को उनके पैरों पर खड़े होना सिखाती है, नही तो वो दिन दूर नही जब इस देश के लड़कों को कुंवारा ही रहना होगा, और गिनी चुनी बची लड़कियां अपने भाग्य पर इत्रएँगी
प्रियंका kaushal

शनिवार, 21 जून 2008

हो गई पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए

कवि दुष्यंत कुमार ये पंक्तियाँ आज के हालातों में कहीं अधिक प्रासंगिक हैं लगती की
' हो गई पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए, सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है की सूरत बदलनी चाहिए, मेरे सीने में न सही, तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, मगर जलानी चाहिए '
आज देश भ्रष्टाचार की आग में धधक रहा है, महंगाई आसमान छू रही है, सभी जानते हैं की वित्तमंत्री पी चिदम्बरम और प्रदंमंत्री मनमोहन सिंघ के प्रयासों के बाद भी महंगाई क्यों दिन दुनी रात चौगुनी बढ़ रही है,
देश के जमाखोरों ने अनअज, खाद, बीजों का स्टॉक भर लिया है, दम बढाकर वे इसकी कालाबाजारी करना चअहतं है, लेकिन सब जानते हुए भी पुलिस-प्रशन या सरकार kade kadam क्यों नही उठा रही है। अभी हल ही में महाराष्ट्र में सरकार के छापों में जमाखोरों के पास कई क्विंटल अनाज जप्त किया गया था, जो उन्होंने कालाबाजारी करने के लिए जमा कर रखा था।
दरअसल हम केवल सरकारी तंत्र को दोषी नही ठहरा सकते, क्योंकि हम प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में रहतें हैं, यहाँ सत्तारूढ़ सरकार से अधिक शक्तिशाली प्रजा यानि जनता होती है, लेकिन हिंदुस्तान की भोली या यूँ कहें उदासीन जनता को अपने अधिकारों से कुछ अधिक लेना-देना नही है, तभी तो वो भूखी मारती रहती है और उसके हिस्से की मलाई कोई और ही नागल जाता है। यहाँ सामाजिक संग्शन भी हैं मगर किसी काम के नही,
तभी तो किसी ने धिक् ही कहा है की
इन्सान में हैवान यहाँ भी हैं, वहां भी,
अल्लाह निगेबन इधर भी है, उधर भी,
खूंखार दरिंदों के फकत नाम अलग हैं, शरून में बियाबान यहाँ भी हैं, वहां भी।

बुधवार, 18 जून 2008

सभी को सलाम.

सभी ' ब्लोगियों ' को प्रियंका का सलाम, नमस्ते और गुड मोर्निंग।