मंगलवार, 16 मार्च 2010

और लोग भी दुख पीते हैं...

किसी ने सच ही कहा है कि
तुम ही एक नहीं दुनिया में, और लोग भी दुख पीते हैं
जीवन तो है एक चुनौती, जीने वाले ही जीते हैं।

जी हां, कदम दर कदम चुनौती देते इस जीवन में वे ही लोग सफल हो पाते हैं। जो बैठकर दुख मनाने के बजाए जीवन की हर चुनौती को स्वीकार करते हैं। हर छोटी बड़ी बात में दुख मनाते लोग ये क्यों भूल जाते हैं कि दुनिया में हमसे भी दुखी लोग हैं, जो हर पल अभाव, भूख और गरीबी से मर-मरकर जी रहे हैं या अपमान से जिनका मन और शरीर दबा जा रहा है। यदि वे अपने आस पास ही नज़र घुमाएंगे तो उनसे कहीं ज्यादा दुखी लोग नज़र आ जाएंगे। कहने का आशय कि मुश्किल छोटी हो या बड़ी, मुसीबत चाहे किसी भी रूप में हो, उसे निकल ही जाना है, लेकिन सवाल ये है कि आप उसे किस रूप में सहन करते हैं, हंसते हुए या रोते हुए। सहना तो है ही। इसलिए क्यों न खुशी से जिएं। हर चुनौती का, हर मुसीबत का सामना डटकर करेंगे तो वो ज्यादा आसान लगेगी। बिलकुल पेपर टाइगर की तरह, जो है तो शेर लेकिन कागज का। अरे हम क्यों भूल जाते हैं कि ईश्वर ने एक विशेष लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमें इस संसार में भेजा है। जब हम एक मटका खरीदते समय उसे दर बार ठोक बजाकर देखते हैं, जो ईश्वर हमें बगैर ठोके बजाए किसी बड़े काम में कैसे लगाएगा। हमारे द्वारा किसी बड़े लक्ष्य की पूर्ति कैसे करेगा। तो दोस्तों, जब मुसीबत आए तो ईश्वर से मत कहो कि कितनी बड़ी मुसीबत आई है, बल्कि मुसीबत से कहो कि मेरे पास बड़ा जज्बा है, बड़ा ईश्वर है और आगे बढ़ते जाने का लक्ष्य है। फिर देखिए मुसीबत आपको मुरझाकर नहीं चमकाकर आगे निकल जाएगी। किसी ऐसे मायूस आदमी के पास, जो उसका स्वागत उसके अंदाज में करे क्योंकि मुस्कुराते हुए लोगों के पास मुसीबत ज्यादा दिन ठहर ही नहीं सकती। अरे भाई मुसीबत को मुस्कुराहट से कोफ्त जो होती है। समझ गए न।

रविवार, 14 मार्च 2010

जय राम जी की

दोस्तों,

लम्बे समय बाद अपने ब्लॉग पर लौटी हूं। लेकिन अब सतत जुड़ी रहूंगी। अपनी अभिव्यक्ति के लिए सबसे सशक्त माध्यम, जिसमें किसी दूसरे का हस्तक्षेप न हो। ऐसे ही इस माध्यम इस मंच के जरिए अपने अनुभव आप लोगों के साथ बांटने की इच्छा है। आशा है कि मुझे आप जैसे कई दोस्तों का सहयोग मिलेगा। इस वक्त जब मैं ये लाइनें लिख रही हूं, तब मुझे बचपन याद आ गया। हम अपने ननिहाल वालों को चिट्ठियां लिखा करते थे और उनके जवाब का इंतजार भी करते थे। आज लग रहा है कि इतने हाईटेक माध्यम के जरिए मैं फिर से उन्हीं खतों के ज़माने में पहुंच गई हूं।

प्रियंका।

सवाल नज़रिए का

सवाल नज़रिए का

जी हां, सवाल नज़रिए का है। जब-जब समाज के नज़रिए में बदलाव आता है। समाज में रहने वालों की सोच, उनका कृतित्व, उनका व्यक्तित्व सब बदल जाता है। इसे समझने के लिए प्रेम विवाह का उदाहरण काफी है। एक समय प्रेम विवाह को गलत माना जाता था। समाज के लोग प्रेम विवाह करने वालों को हिकारत की नज़र से देखते थे। लेकिन आज, आज समाज का नज़रिया बदला है। खुद माता पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे अपने मन मुताबिक जीवनसाथी चुनें और वे न केवल निसंकोच अपनी सहमति देते हैं बल्कि उनका विवाह भी कराते हैं। तो बात नज़रिए की है, उसमें आए बदलाव की है। देश, काल, परिस्थिति के अनुसार नज़रिए में बदलाव आता ही है। जो बात आज बुरी लग रही है, हो सकता है, आज से पांच साल बाद उसे अच्छा माना जाए। इसलिए हमें किसी एक आवरण में बंधकर रहने की जरूरत नहीं है। समय के साथ बदलिए, क्योंकि न बदलने वाले न तो समय के साथ कदमताल कर पाते हैं न ही खुशनुमा जीवन जी पाते हैं। परिवर्तन प्रकृति का अटल नियम है और सबसे ज्यादा जरूरी है कि हमारा नज़रिया समय के साथ बदले। इसलिए कभी मत भूलिए कि-
जो आज नज़र आता है, हो सकता है कल न हो
ये धरा, ये अंबर और ये जल न हो
इसलिए समय के साथ चलते जाना है
हर परिवर्तन सुधार का एक बहाना ।