जिस सार्वजनिक वितरण
प्रणाली ने छत्तीसगढ़ सरकार को 2011 से लगातार साल दर साल राष्ट्रीय स्तर के
पुरस्कार दिलवाए, वही योजना अब सरकार के गले ही हड्डी बनती नजर आ रही है। फिलहाल
तो राज्य सरकार के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि 56 लाख परिवारों के प्रदेश
में 70 लाख राशन कार्ड कैसे जारी कर दिए गए? दूसरी
तरफ राशन दुकान धारकों और खाद्य विभाग के कुछ अफसरों के कारनामों ने सरकार को
परेशानी में डाल दिया है। इस पूरे मसले में तीसरा ट्विस्ट भी आ गया है, वह है
राशनकार्ड फर्जीवाड़े में हो रही जगहंसाई के कारण बागी हुए खाद्य विभाग के
निरीक्षक राज्य सरकार को ही हड़काने में लग गए हैं।
नरेश बाफना
छत्तीसगढ़ पीडीएस संचालक संघ के अध्यक्ष हैं। इन दिनों बाफना छत्तीसगढ़ के खाद्य
विभाग के खिलाफ एक लड़ाई लड़ रहे हैं। लड़ाई है गरीबों को दिए जाने वाले राशन की
जमाखोरी और भ्रष्टाचार करने वाले राशन दुकानदारों और इन्हें प्रश्रय देने वाले
खाद्य विभाग के अफसरों पर कार्रवाई करवाने के प्रयासों की..बाफना ने छत्तीसगढ़ के
राज्यपाल को भी एक पत्र लिखा है और बताया है कि छत्तीसगढ़ में किस तरह सार्वजनिक वितरण
प्रणाली के तहत राशन दुकानदार और बरसों से एक ही जगह जमें कुछ खाद्य अधिकारी मिलकर
भ्रष्टाचार कर रहे हैं। बाफना के पास कई दस्तावेज हैं, जो ये इस मिलीभगत का स्पष्ट
संकेत देते हैं। बाफना की शिकायत से शुरुआत इसलिए क्योंकि मोटे तौर पर ये समझा जा
सके कि जब राजधानी रायपुर में सरकार की नाक के नीचे खाद्य अफसर और राशन दुकानदार
मिलकर इन कारनामों को अंजाम दे रहे हैं तो सुदूर बस्तर जैसे इलाकों का तो भगवान ही
मालिक है।
राजभवन को भेजी
शिकायत, जिसमें बाफना ने लोकायुक्त से जांच करवाने की मांग की है, का एक छोटा सा नमूना
देखें तो पता चलता है कि गरीबों का पेट भरने की नेकनीयत से शुरु की गई योजना को
खाद्य विभाग के कुछ अफसरों ने राजधानी रायपुर में ही मजाक बनाकर रख दिया है। रायपुर
शहर में आईडी क्रमांक 441001176 से 441001198 तक उचित मूल्य की दुकाने नियमों का
उल्लंघन कर आवंटित कर दी गईं। छत्तीसगढ़ लोकसेवा गांरटी अधिनियम 2011 के तहत खाद्य
विभाग में प्रदर्शित सूचना में स्पष्ट उल्लेख है कि राशन दुकान आवंटन करने की
प्रक्रिया के तहत प्रमुख समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रदर्शित करना जरूरी है।
लेकिन बाफना का दावा है कि ऐसा कोई विज्ञापन जारी ही नहीं किया गया। जब उन्होंने
सूचना के अधिकार के तहत इसकी जानकारी विभाग से मांगी तो उन्हें असंतोषजनक जवाब
दिया गया।
बाफना की दूसरी
शिकायत पर गौर करें तो सूबे के राशन दुकानदारों ने कोर पीडीएस योजना के बाद जमकर
अनाज की कालाबाजारी की। वर्ष 2012 में शुरु हुई योजना में कोर पीडीएस के तहत राशन
दुकानों में “अन्नपूर्णा एटीएम” लगाए गए
हैं, जिसमें उपभोक्ता अपने स्मार्ट राशन कार्ड के जरिए खुद राशन निकाल सकता है। इस
कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था के पीछे सरकार की मंशा पीडीएस में पारदर्शिता लाने की थी,
लेकिन भ्रष्ट राशन दुकानदारों ने इसे भी भ्रष्टाचार का जरिया बना लिया। कैसे? इसे 29-11-2013 को खाद्य अफसरों द्वारा एक
राशनदुकान में हुई कार्रवाई से समझिए।
29 नंबवर 2013 को
रायपुर की चलो चले सामुदायिक विकास समिति की उचित मूल्य की दुकान जिसका आईडी
क्रमांक 441001116 है, पर खाद्य विभाग की एक जांच टीम ने छापामार कार्रवाई की। इस
दौरान दुकान में 145.82 क्विंटल चावल और 1.31 क्विंटल मटर दाल अधिक पाया गया। इतना
ही नहीं राशनदुकानों में 23 स्मार्ट राशन कार्ड भी पाए गए। नाम ना छापने की शर्त
पर अधिकारियों ने बताया कि ये स्मार्ट राशन कार्ड उन उपभोक्ताओं के नाम पर ही बनाए
गए थे, जिनके पास पुराने तरीके के राशनकार्ड थे, लेकिन राशव दुकानदार ने उन्हें नए
कार्ड ना देकर खुद ही रख लिए थे। उपभोक्ताओं को वो पुराने राशन कार्ड के आधार पर
ही राशन आवंटित कर रहा था, जबकि नए स्मार्ट राशनकार्ड से खुद राशन निकाल कर
कालाबाजारी कर रहा था। ठीक ऐसा ही 29 मार्च 2013 को कार्रवाई के दौरान एक अन्य
दुकान में भी पाया गया। छापा मारने वाली खाद्य निरीक्षक प्रतिभा राठिया अपने जांच
प्रतिवेदन में लिखती हैं कि जिला लिपिक प्राथमिक सहकारी उपभोक्ता भंडार की दुकान
(आईडी क्रमांक 441001136) में जांच के दौरान छह नग स्मार्ट कार्ड रखे पाए गए।
पूछताछ करने पर दुकानदार ने अफसरों को बताया कि जिन उपभोक्ताओं के नए राशनकार्ड
जारी हो गए हैं, उन्हें इसकी जानकारी ना देकर दुकानदार ने नए कार्ड अपने ही पास रख
लिए थे। जांच प्रतिवेदन में अफसर ने यह माना है कि पुराने स्मार्ट कार्ड
उपभोक्ताओं से लेकर खाद्य कार्यालय में जमा नहीं किया गया, बल्कि विक्रेता ने नए
राशनकार्ड अपने ही पास रखकर फर्जी एंट्री कर लाभ कमाने के उद्देश्य से कालाबाजारी
की गई है।
यहां सवाल ये भी
उठता है कि खुद खाद्य विभाग ने नए स्मार्ट राशनकार्ड बन जाने के बाद पुराने राशन
कार्ड जमा करवाने के लिए सख्ती क्यों नहीं बरती। क्यों राशनदुकानदारों की लापरवाही
को बर्दाश्त किया जाता रहा। लेकिन इस विषय पर खाद्य अफसरों ने चुप्पी साध रखी है।
रायपुर की जिला खाद्य
अधिकारी दयामणि मिंज कहती हैं कि “हम वही करते हैं,
जैसा हमे निर्देश होता है। खाद्य विभाग सारे काम सरकारी आदेशों के तहत ही करता है”।
खैर ये तो हुई
राजभवन पहुंची बाफना की शिकायतों की चर्चा। लेकिन इन शिकायतों से परे भी छत्तीसगढ़
में पीडीएस को लेकर जो कुछ चल रहा है, उसे पढ़कर आपके पैरों के नीचे की जमीन ही
खिसक जाएगी। चाणक्य के कहे इन शब्दों “The biggest sin for a King is the death of any of his
subjects due to hunger” को
अधिकृत रूप से अपना कर्मवाक्य बनाते हुए छत्तीसगढ़ खाद्य विभाग ने पिछले कुछ सालों
में ऐसा करिश्मा रच डाला कि यदि चाणक्य कहीं से देख पा रहे होंगे तो उन्हें अपने
कथन की नए सिरे से परिभाषा तय करना पड़ रही होगी। अपनी सार्वजनिक वितरण प्रणाली को
The model system of
India कहने वाले छत्तीसगढ़ में इन दिनों पीडीएस
को लेकर ही भूचाल आया हुआ है। भूचाल भी ऐसा, जिसका केंद्र तो रायपुर है, लेकिन
उसकी फ्रिक्वेंसी दिल्ली तक मापी जा रही है। इस पूरे मामले को समझने के लिए हमें उन
आंकड़ों पर ध्यान देना होगा, जिनके बल पर पहले तो राज्य सरकार ढेर सारे पुरस्कार
ले आई, फिर विधानसभा चुनाव की नैया भी पार कर ली, लेकिन जब उसने इन आंकडों के झंझट
से मुक्ति पानी चाही, तो उसकी सारी कलई खुल गई।
चूंकि ये पूरा खेल
ही आंकड़ों का है, इसलिए हम इसे वर्ष 2011 में हुई जनगणना के अंतिम आकंडों से
समझना शुरु करते हैं। जनगणना के मुताबिक छत्तीसगढ़ की कुल आबादी 2 करोड़ 55 लाख,
45 हजार 198 है। जनगणना के आंकड़ो अनुसार ही प्रदेश में 56 लाख
पचास हजार 724 परिवार रहते हैं। वर्ष 2011 में ही प्रदेश में संचालित दस हजार 882
राशन दुकानों से करीब 34 लाख 31 हजार परिवारों को केवल एक व दो रुपए किलो की दर से
हर माह 35 किलो चावल व दो किलो निशुल्क नमक दिया जा रहा था। तब तक फिर भी सब ठीक
था, बावजूद इसके की केंद्र सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार के बीच गरीबों के आंकड़ों को
लेकर हमेशा से ही मतभेद ही रहा। केंद्र सरकार जहां छत्तीसगढ़ की कुल आबादी में से
42.52 फीसदी लोगों को गरीब मानती रही, वहीं छत्तीसगढ़ सरकार 68 फीसदी परिवारों को
गरीब मानकर उन्हें सस्ता खाद्यान्न उपलब्ध करवाती रही। यहां तक फिर भी सब
निर्विरोध चल रहा था, लेकिन कहानी में असल पेंच आया 2012 में, जब राज्य सरकार ने
छत्तीसगढ़ खाद्य एवं पोषण सुरक्षा अधिनियम लागू किया। उसके बाद 2012 से अक्टूबर
2013 तक धडल्ले से खाद्य सुरक्षा के नाम पर लोगों के राशन कार्ड बनाए गए। इतने
बनाए गए कि छत्तीसगढ़ में बसने वाले कुल 56 लाख परिवारों के 70 लाख राशन कार्ड बना
दिए गए। ये हम नहीं कह रहे, ये खुद प्रदेश के खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहिले ने
छत्तीसगढ़ विधानसभा के मानसून सत्र में एक सवाल के जवाब में कहा है। खाद्य मंत्री
ये भी मान रहे हैं कि इनमें से लाखों राशन कार्ड फर्जी थे। यही कारण है कि जून
2014 में यानि सरकार के सत्ता में आने के बाद राशन कार्ड जांच अभियान शुरु किया
गया। जिसमें अब तक तकरीबन 12 लाख राशन कार्ड निरस्त किए जा चुके हैं। अभी भी चार
लाख राशन कार्डों का सत्यापन होना बाकी है यानि फर्जी राशन कार्ड की संख्या और बढ़
सकती है।
बहुजन समाज पार्टी
के विधाय केशवचंद्रा के सवाल के जवाब में खाद्य मंत्री पून्नूलाल मोहिले ने सदन
में बताया कि छत्तीसगढ़ खाद्य एवं पोषण सुरक्षा अधिनियम 2012 के तहत वर्ष 2013 में
48.15 लाख प्राथमिकता राशन कार्ड, 17.02 लाख अंत्योदय राशन कार्ड, 4.29 लाख
सामान्य राशन कार्ड और 9 हजार 358 निशक्तजन राशनकार्ड जारी किए गए थे। जून 2014
में शुरु किए गए राशन कार्ड जांच अभियान में 13 जुलाई 2014 तक 48.94 लाख राशन
कार्डधारक परिवार पात्र पाए गए हैं।
फर्जी राशनकार्ड के
रूप में कांग्रेस को भी सरकार के खिलाफ एक नया हथियार मिल चुका है। मरवाही के
विधायक अमित जोगी का आरोप लगाते हैं कि “वर्ष 2012 में
मुख्यमंत्री रमन सिंह ने नई दिल्ली में योजना आयोग सामने एक प्रेजेंटेशन दिया था,
उस समय प्रदेश में 34 लाख बीपीएल परिवार थे, लेकिन ऐन चुनाव के वक्त बीपीएल
परिवारों की संख्या एकाएक 70 लाख हो गई। ये गंभीर प्रश्न है, इसका जवाब सरकार को देना
ही होगा”।
जबकि मुख्यमंत्री
रमन सिंह ने राशनकार्ड निरस्तीकरण को लेकर कहा है कि “गरीबों के राशन पर अपात्र लोगों का कोई अधिकार
नहीं बनता। यदि पात्रता रखने वाले किसी राशनकार्ड धारक का कार्ड निरस्त हो गया है,
तो कलेक्टर के माध्यम से उसकी पूरी सुनवाई होगी। रमन सिंह ये भी कहते हैं कि राज्य
में गरीबों के लिए सस्ते राशन की व्यवस्था कभी बंद नहीं होगा। वे याद दिलाना नहीं
भूलते कि छत्तीसगढ़ देश का पहला ऐसा राज्य है, जिसने अपने यहां के गरीबों और
जरूरतमंद परिवारों के लिए देश का पहला खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा कानून बनाकर
उन्हें भरपेट भोजन के लिए पर्याप्त अनाज हासिल करने का कानूनी अधिकार दिया है। यह
अधिकार उनसे कोई नहीं छीन सकता”।
प्रदेश में निरस्त
किए गए 12 लाख 1942 राशन कार्डों में से अधिकांश राशन कार्ड खाद्य सुरक्षा कानून
बनने के बाद बनाए गए थे। इन पर अक्टूबर 2013 से खाद्यान्न वितरण शुरु हुआ था। जून
2014 तक यानि नौ माह में इन कार्डों के जरिए अपात्र लोगों ने भी चार लाख 5 हजार
655 क्विंटल खाद्यान्न और 2403882 लीटर केरोसीन हजम कर लिया। निरस्त राशनकार्डों
में 60 फीसदी प्राथमिकता वाले कार्ड (प्रतिमाह 25 किलो चावल, दस किलो गेंहू,
शक्कर, दाल इत्यादी मिलता है), 30 फीसदी अंत्योदय वाले (हर माह दो रुपए की दर 35
किलो चावल) और केवल दस फीसदी सामान्य कार्ड (हर माह पांच किलो गेहूं और दस किलो
चावल) थे।
बहरहाल, अब तक सरकार
को लोकप्रिय बना रहा पीडीएस अब सरकार के लिए किसी आफत से कम साबित नहीं हो रहा है।
राजपरिवारों के भी
बीपीएल राशन कार्ड
खैरागढ़ राजपरिवार के
सदस्य भी पिछले एक साल से गरीबी रेखा के राशन कार्ड पर खाद्यन्न उठाते रहे हैं। खैरागढ़
में भाजपा मंडल अध्यक्ष व राजपरिवार वार्ड की पार्षद भी गरीबी रेखा की श्रेणी में
है। भाजपा मंडल अध्यक्ष विकेश गुप्ता की पत्नी रेखा गुप्ता के नाम भूरा राशन कार्ड
है। वहीं राजफैमिली वार्ड की भाजपा पार्षद
देवयानी सिंह पति किशोर सिंह के नाम भी बीपीएल श्रेणी का नील राशन कार्ड है।
आशा लाल अवनिंद्र
सिंह राशन कार्ड क्रमांक 42010030400750
किशोर विजय करण सिंह
राशन कार्ड क्रमांक 42010303040128
गिरिश सिंह राशन
कार्ड क्रमांक 42010303040130
देवयानी किशोर राशन
कार्ड क्रमांक 42010303040127
सूर्यदमन सिंह राशन
कार्ड क्रमांक 42010303040332
स्मृति नीलांबर राशन
कार्ड क्रमांक 42010031600141
रेखा विकेश गुप्ता
राशन कार्ड क्रमांक 42010303110278
विधायकों-पूर्व
मंत्रियों ने भी खाया गरीबों का राशन
छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री लीलाराम भोजवानी का नाम भूरा राशनकार्ड
रखने वालों की सूची में शामिल है। इस कार्ड पर 15 किलो राशन व केरोसिन मिलता है।
उनकी तीन बहुओं के नाम भी बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाला) और
एपील (मध्यमवर्ग वाला) कार्ड बने हुए हैं। सरकारी नियम के मुताबिक आयकर और
संपत्तिकर के दायरे में आने वाले 1000 वर्गफीट से अधिक के जमीन मालिक भूरा राशन
कार्ड की पात्रता नहीं रखते। जाहिर है भोजवानी पूर्व मंत्री तो रहे ही हैं, पिछली
सरकार में राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष भी रहे हैं। भोजवानी का
राजनांदगांव जिले में इंदिरानगर में आलीशान मकान है, फिर भी उनके पास भूरा राशन
कार्ड है। राशनकार्ड की सूची पर गौर फरमाएं तो वार्ड 36 के निवासी के रूप में
लीलाराम भोजवानी पिता स्व. मोटूमल भोजवानी का नाम राशन दुकान क्रमांक 421001033
में 43 वें नंबर पर शामिल है। उनका राशन कार्ड नंबर 72010013601036 है। भोजवानी की
तीन बहुओं के नाम भी बीपीएल कार्ड पर एक रुपए किलों में चावल-गेंहू लेने का मामला
सामने आया है।
इस बारे में लीलाराम भोजवानी कहते हैं कि मुझे नहीं मालूम यह कैसे और
किसने बनवाया। मैं जानता हूं कि यह नियम के विपरीत है, लेकिन मैंने कार्ड नहीं
बनवाया।
जिला खाद्य अधिकारी आर एल खरे कहते हैं कि लीलाराम भोजवानी के नाम
भूरा राशनकार्ड बनना गलत है। इस मामले में जांच की जा रही है।
पूर्व मंत्री के घर तीन-तीन बीपीएल कार्ड पाए जाने के बाद राज्य शासन
ने आनन फानन में खाद्य विभाग के सहायक खाद्य अधिकारी सुशील तिवारी को निंलबित कर
दिया है।
केवल भाजपा नेताओं के बीपीएल कार्ड बने हैं, ऐसा भी नहीं है, खैरागढ़
के कांग्रेस विधायक गिरवर जंघेल की पत्नी चम्पा जंघेल के अलावा उनके परिवार के
अन्य सदस्यों के नाम पर भी राशन कार्ड बनाए गए हैं। विधायक की मां गौरी जंघेल, भाभी
फूलकैना और बड़े भाई की बहू प्रियंका, मीनाक्षी, रेखा व शीतला जंघेल के नाम पर भी भूरे रंग के राशन कार्ड जारी किए गए हैं।
राजनांदगांव के छुईखदान
विकासखंड की ग्राम पंचायत अतरिया की सरपंच विनीता पति भानुप्रकाश के नाम पर भी
भूरा राशन कार्ड बनाया गया है। छुईखदान जनपद उपाध्यक्ष योगेश जंघेल के परिवार के
सदस्यों के नाम पर भी राशन कार्ड बने हैं। इनमें जनपद उपाध्यक्ष जंघेल की पत्नी
कविता जंघेल व उनकी की मां अमृता जंघेल के नाम से भूरा राशन कार्ड बनाया गया है।
छुईखदान जनपद अध्यक्ष
सवाना बाई जंघेल के परिवार के नाम से भी राशन कार्ड बनाए गए हैं। इनमें जनपद
अध्यक्ष सवाना बाई जंघेल की बहू तारकेश्वरी व तीजबाई के नाम से नीला राशन कार्ड
जारी हुए हैं। छुईखदान जनपद पंचायत के सदस्य रामकुमार पटेल के परिवार के नाम चार
चार राशन कार्ड जारी हुए हैं। वे कांग्रेस से जुड़े हैं। जनपद सदस्य रामकुमार पटेल
की भाई बहू गंगाबाई के नाम से नीला राशन कार्ड जारी हुआ है। गंगाबाई के पति
चंद्रशेखर मुरई ग्राम पंचायत के सरपंच हैं। जनपद सदस्य रामकुमार की भाई बहू
भुनेश्वरी व सरोज के नाम से भी नीला व जियन पति बालाराम के नाम से भूरा राशन कार्ड
बनाया गया है। गंडई भाजपा मंडल के महामंत्री अनिल अग्रवाल की माता विजयारानी के
नाम से भूरा राशन कार्ड जारी किया गया है। वहीं पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष रावल कोचर
की पत्नी के नाम से भी भूरा राशन कार्ड बनाया गया है। उनके नाम से एक नहीं, बल्कि
दो-दो राशन कार्ड जारी किए गए हैं। गंडई नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष अश्वनी
ताम्रकार की पत्नी सुनीता ताम्रकार के नाम से भी दो-दो राशन कार्ड जारी हुए हैं,
एक नीला राशनकार्ड व दूसरा भूरा राशन कार्ड। उल्लेखनीय है कि सुनीता
ताम्रकार भी नगर पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं। राजनांदगांव जिला पंचायत सदस्य शशिदेवी
जंघेल के नाम से भी नीला राशन कार्ड बनाए गए हैं। शशि देवी जंघेल भाजपा से जुड़ी
हैं।
खैरागढ़ विधायक गिरवर
जंघेल का कहना है कि “हमारे परिवार के सदस्यों के नाम से राशन कार्ड कैसे
बना, इसकी मुझे जानकारी नहीं है। राशन कार्ड के लिए हमने न
तो हस्ताक्षर किए हैं और न ही फोटो दिए हैं। हमारे पास राशन कार्ड भी नहीं है और न
ही राशन कार्ड से अब तक राशन लिया गया है”।
दूसरी तरफ विपक्ष ने राशन के नाम पर हुए करोड़ों के घोटाले को बिहार के चारा
घोटाले से भी बड़ा घोटाला करार दिया और सीबीआई से जांच कराने की मांग की।
मरवाही के विधायक अमित जोगी कहते हैं कि सी. रंगराजन कमेटी की रिपोर्ट के
अनुसार छत्तीसगढ़ में महज 27 लाख 6 हजार 300 गरीब परिवार हैं, जो बीपीएल हैं। मगर सरकार ने 71
लाख राशनकार्ड बनाए। जोगी आगे कहते हैं कि दरअसल केंद्र की मोदी सरकार ने
सी. रंगराजन कमेटी को मान लिया है। पिछले आठ माह में 67 लाख परिवारों को 35 रुपए किलो चावल दिए गए, जिस पर 625 करोड़ रुपए खर्च हुए।
इसमें केंद्र सरकार ने 78 फीसदी राशि लगाई, जिसमें 27 लाख गरीब परिवार शामिल हैं। बावजूद इसके 2 हजार 2
हजार 731 करोड़ रुपए का चावल किसको मिला?
यह जांच का विषय है।
नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने कहते हैं, “राशनकार्ड के नाम पर सरकार जनता के साथ धोखा कर रही है। अब तक हजारों राशनकार्ड
निरस्त किए जा चुके हैं। सवाल ये उठता है कि साल 2012-13 में 46 लाख परिवारों के
राशनकार्ड बने, साल 2013-14 में 56 लाख परिवार और चुनाव के दौरान 70
लाख परिवार तक कैसे पहुंच गए”।
सरकार भी इस मुद्दे पर चुप नहीं है। किन
कारणों से राशनकार्ड निरस्त किए जा रहे हैं, इस पर खाद्यमंत्री पुन्नूलाल मोहले सिलसिलेवार जानकारी देते हैं। वे बताते हैं कि कुल 11 लाख 96 हजार 374 राशन कार्ड प्राथमिक रूप से अपात्र पाए गए हैं। लेकिन इसमें
कोई फर्जीवाड़ा नहीं है। दरअसल इसमें जांच के दौरान 2 लाख 9 हजार 500 बताए गए पते में नहीं मिले, जबकि 24 हजार 340 लोगों ने
राशनकार्ड सरेंडर किया। 12 हजार 342 राशन कार्ड डुप्लिकेट बनाए गए, जबकि 18 हजार 741 सरकारी
कर्मचारियों के नाम राशनकार्ड बने। उन्होंने कहा, सभी गरीबों
का राशनकार्ड निरस्त नहीं कर रहे हैं, जो अपात्र
पाए गए हैं, केवल उनका कार्ड ही निरस्त किया जा रहा
है।
फर्जी राशनकार्ड को लेकर
सरकार और खाद्य विभाग के बीच भी तनातनी का दौर जारी है। फर्जीवाड़े के लिए दोषी
ठहराए जाने और कार्रवाई के खिलाफ खाद्य अफसरों ने 19 अगस्त से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर
जाने की नोटिस थमा दी है। इस बीच निलंबित खाद्य निरीक्षकों और सहायक खाद्य
निरीक्षकों की बहाली के संकेत मिलने लगे हैं। राज्य सरकार खाद्य विभाग के अफसरों
को दोषी मानते हुए उन पर कार्रवाई कर रही है।इसी कड़ी में मुख्यमंत्री के विधानसभा
क्षेत्र राजनांदगांव में खाद्य निरीक्षक कमल नारायण साहू के खिलाफ एफआईआर कर
गिरफ्तार कर लिया गया है। वहीं रायपुर, महासमुंद व बालोद में
खाद्य अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया। इतना ही नहीं, रायपुर
और बलौदाबाजार में ट्रांसपोर्टर की गलती के लिए खाद्य अफसरों पर कार्रवाई की गई
है। इससे नाराज खाद्य नागरिक आपूर्ति कार्यपालिक कर्मचारी संघ ने 19 अगस्त से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की नोटिस दे दिया है। खाद्य नागरिक
आपूर्ति कार्यपालिक कर्मचारी का आरोप है कि नियमानुसार राशनाकार्ड के लिए
हितग्राहियों की पहचान करने और राशनकार्ड जारी करने की जिम्मेदारी नगरीय निकायों
की है। ऐसे में कार्ड में हुए फर्जीवाड़े के लिए खाद्य अफसरों को जिम्मेदार ठहराना
लगत है। खाद्य अफसरों के विरोध का सरकार पर असर भी दिखने लगा है। सूत्रों के
अनुसार निलंबित खाद्य अफसरों की बहाली के संकेत जिलों से मिलने लगे हैं। बताया
जाता है कि निलंबित अफसरों की फाइल संबंधित कलेक्टरों ने मंगाई है। अगर ऐसा होता
है तो ये मान लिया जाएगा कि सरकार ने खाद्य निरीक्षकों को क्लीन चिट दे दी है यानि
फर्जीवाड़े का केंद्र कहीं ओर है।
बहरहाल, खाद्य नागरिक
आपूर्ति कार्यपालिक कर्मचारी संघ के प्रांताध्यक्ष रामस्वरूप यदु और कार्यवाहक
अध्यक्ष संजय दुबे ने एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्य के खाद्य संचालक आर. प्रसन्ना से
मुलाकात कर खाद्य निरीक्षकों पर हो रही कार्रवाही का विरोध किया है।
रामस्वरूप यदु कहते हैं
कि “नियमानुसार
राशनकार्ड के लिए स्थानीय निकाय पात्र परिवारों की पहचान करता है और वहीं
राशनकार्ड भी जारी करता है। ऐसे में गलत या बोगस राशनकार्ड के लिए खाद्य विभाग को
जिम्मेदार ठहराना गलत है। पहले तो राज्य सरकार ने थोक में कार्ड बनवाए, अब उन्हें
फर्जी बताकर निरस्त किया जा रहा है। इसमें निरीक्षकों की क्या गलती है। हम तो केवल
अपना काम कर रहे हैं”।
बॉक्स
सबसे ज्यादा अपात्र
महासमुंद में
प्रदेश के 27 जिलों
में राशन कार्ड सत्यापन का काम चल रहा है। अब तक निरस्त हुए राशन कार्ड में सबसे
ज्यादा आंकडा महासमुंद जिले का है। फर्जी राशनकार्ड के मामले में रायपुर 8वें नंबर
पर हैं। वहीं सुदूर बस्तर के सुकमा जिले में सबसे कम फर्जी राशनकार्ड पाए गए हैं। मुख्यमंत्री
का विधानसभा क्षेत्र राजनांदगांव फर्जी राशनकार्ड बनवाने के मामले में तीसरे नंबर
पर है। राजनांदगांव में ही रहने वाले पूर्व मंत्री लीलाराम भोजवानी के पूरे परिवार
का राशनकार्ड बनने का मामला भी सामने आया है। स्वयं भोजवानी, उनके बेटे और उनकी
बहू के नाम अलग अलग गरीबी रेखा वाले राशन कार्ड ना केवल बनाए गए, बल्कि उन पर राशन
भी उठाया जा रहा था। हालांकि भोजवानी ने ऐसे किसी भी प्रकार के राशन कार्ड बनवाने
से इंकार किया है। वे कहते हैं कि उन्हें नहीं पता कि उनके राशन कार्ड कैसे बन गए।
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