बुधवार, 29 जनवरी 2020

बस्तर में नक्सलवाद के अलावा नारियल, कोको, लीची, अन्नानास, कॉफ़ी, कालीमिर्च भी है...


जब भी बस्तर की बात होती है नक्सलवाद से शुरू होकर नक्सलवाद पर ही खत्म हो जाती है। कुछ गिने-चुने दर्शनीय/धार्मिक स्थलों पर भी चर्चा हो जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बस्तर सकारात्मक संभावनाओं वाला क्षेत्र है। यहां नित-नए प्रयोग हो रहे हैं। यहां के बाशिंदे बस्तर की तस्वीर बदलने के लिए नई इबारत लिख रहे हैं। यहां कई स्थान ऐसे भी हैं, जिन्हें देखने के लिए हम प्रदेश के तक बाहर जाते हैं।

आईये, आज आपको ऐसे स्थान के बारे में बताते हैं,जिसके बारे में जानने के बाद वहां जहां जाए बिना आप रह नहीं पाएंगे।
रायपुर से जगदलपुर तो आपमें से कई लोग कई बार गए होंगे। लेकिन क्या कभी आप जगदलपुर जाते वक़्त कोंडागांव में रुके हैं। नहीं रुके, तो इस बार जरूर रुकियेगा। अपने हस्तशिल्प के लिए विश्वभर में ख्यात कोंडागांव में नारियल विकास बोर्ड का एक फार्म भी है। जहां प्रतिवर्ष 2 लाख नारियल की पैदावार होती है। यहां आकर लगता है कि आप दक्षिण भारत के किसी इलाके में हैं, क्योंकि यहां का क्लाइमेट बिल्कुल वैसा ही है। फार्म के पास में ही नारंगी नदी बह रही है। इस फार्म में साढ़े छह हजार नारियल के पेड़ लगे हैं। जल्द ही यहां नारियल तेल निकालने की यूनिट भी लगने वाली है। इस फार्म में केवल नारियल ही नहीं। कोको, लीची, कॉफ़ी, सिंदूर, नींबू, अन्नानास, दालचीनी, कालीमिर्च की भी बड़ी पैदावार हो रही है।

यहां पैदा हो रहा कोको आंध्रप्रदेश में बिकने जाता है। कोको से चॉकलेट बनाई जाती है। किसान यहां से 7 रुपये की दर से नारियल का पौधा खरीद भी सकते हैं। यहां होने वाला नारियल ऑक्शन के जरिये बेचा जाता है। आम लोग भी यहां से बेहद सस्ती दर से नारियल खरीद सकते हैं। केंद्र सरकार का ये उपक्रम राज्य प्रशासन की निगरानी में चलाया जा रहा है। यहां होने वाले नारियल और फ़ल उत्कृष्ट क्वालिटी के हैं और नज़ारे तो अनमोल हैं।

हमारे लिए भी कोई रजिस्टर बनाओ सरकार ताकि हमारी भी गिनती हो सके


बिना किसी अभिवादन के इस पत्र को शुरु करने की हमारी धृष्टता को क्षमा करते हुए हमारी भी सुनो सरकार।  माना कि हमारा नाम किसी रजिस्टर में दर्ज नहीं है। हम जिंदा भी हैं या नहीं, ये किसी को पता नहीं है। हमारा आधार कार्ड, मतदाता परिचय पत्र या किसी भी देश का नागरिक होने का कोई भी प्रमाण पत्र हमारे पास नहीं है। कहने को तो हम भी इंसान हैं, लेकिन हमारा कोई मानवाधिकार भी नहीं है। हम मानव तस्करी के शिकार लोग हैं। हमें तो ना हमारे परिजन, ना ही इस देश की पुलिस ढूंढ पाई है। हम आजाद तो होना चाहते हैं, लेकिन रिहाई की कोई उम्मीद हमें नज़र नहीं आती। हम इस देश के वो अदृश्य लोग हैं, जो जिंदा होते हुए भी दिखाई नहीं देते। इस देश के होते हुए भी अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सकते। हमारी बीच में कई छोटे अबोध बच्चे ऐसे भी हैं, जो जरूरत पड़ने पर अपने मां-बाप के बारे में भी कुछ नहीं बता पाएंगे। सरकार हम स्वतंत्र भारत के ऐसे गण हैं, जिनके लिए कोई तंत्र काम नहीं करता।

हमने सुना है कि अभी-अभी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आकंडे आए हैं। रिपोर्ट कहती है कि 2018 में मानव तस्करी के महज 2 हजार 367 मामले दर्ज हुए हैं। लेकिन साहब हम तो यहां अनगिनत हैं। रोज देश के कोने-कोने से लाकर खपाए जा रहे हैं।

हमने ये भी सुना है कि एनसीआरबी के मुताबिक देश में अपहरण की घटनाएं 10.3 फीसदी बढ़ी हैं। 2018 में अपहरण के 1,05,734 केस दर्ज हुए हैं, जबकि 2017 में इनकी संख्या 95, 893 थी। इसके एक वर्ष पहले यानि 2016 में यह आंकडा 88,008 था।

2018 में 24,665 पुरुषों और 80,871 महिलाओं के अपहरण के मामले दर्ज किए गए थे। इनमें 15,250 लड़के और 48,106 लडकियां थीं। जबकि व्यस्क लोगों का आंकड़ा 42,180 था।

वर्ष 2018 में अपह्त हुए लोगों में से 22,755 पुरुषों और 69,382 महिलाओं को सकुशल बरादम कर लिया गया था। यानि 91,709 लोगों को जिंदा बरामद किया गया था, जबकि 428 मरने के बाद मिले थे।

साहब, हम आपको बताना चाहते हैं कि अपहरण केवल फिरौती मांगने के लिए नहीं किये जाते। मानव तस्कर भी कई बार अपहरण के जरिये लोगों को अपना शिकार बनाते हैं।

केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देश में वर्ष 2014 से 2019 तक यानि की छह वर्षों में 3 लाख 18 हजार 748 बच्चे गुम हुए हैं। एनसीआरबी कहता है कि देश में हर आठवें मिनट में एक बच्चा गायब हो रहा है। तो इन तीन लाख 18 हजार 748 गुम बच्चों में अकेले मध्यप्रदेश के 52 हजार 272, छत्तीसगढ़ के 12 हजार 963 और राजस्थान के 6175 बच्चे लापता हैं। 

मध्यप्रदेश में जहां मंडला, डिंडोरी, खंडवा, सिवनी, हरदा, बालाघाट और बैतूल जैसे इलाकों से बच्चियां तेजी से गायब हो रही हैं। जनवरी से नवंबर 2019 में मध्यप्रदेश से 7891 बच्चियां गुमशुदा हुई हैं। वहीं छत्तीसगढ़ में भी रायगढ़, जशपुर, सरगुजा, बस्तर से तेजी से बच्चियां तस्करों का शिकार हो रही हैं। दोनों ही प्रदेशों के ये आदिवासी बहुल इलाके हैं। वैसे देश का कोई भी प्रदेश इससे बचा नहीं है। झारखंड, पं बंगाल, ओडिशा, उत्तर-पूर्व के राज्य, पंजाब, हरियाणा समेत सभी राज्यों में मानव तस्करों के नेटवर्क काम करता है।

सरकार, हम ये भी बताना चाहते हैं कि मानव तस्कर कभी हमें बंधुआ मजदूरी के लिए तो कभी भिक्षावृत्ति के लिए शिकार बनाते हैं। कभी हम वेश्यावृत्ति के धंधे में ढकेले जाते हैं तो कभी हमारे अंगों की तस्करी करने के लिए हमें फंसाया जाता है।

ये भी सच है कि कई बार हम गरीबी और बेरोजगारी के कारण मानव तस्करों के शिकार बन जाते हैं। लेकिन हममें से कई लोग, खासकर बच्चे और लड़कियां अगवा कर, चुराकर या बहला-फुसलाकर उठाए जाते हैं।

हमारे लिए यूं तो 1956 में ही कानून बन गया था, लेकिन वह इतना लचर और पुराना है कि उसमें मानव तस्करी की विस्तृत व्याख्या तक नहीं पाई जाती। फिर मानव तस्करों ने कई बार अपने पैंतरे भी बदले हैं। लेकिन पुलिसिंग उन्हीं पुराने तरीकों से ही हो रही है। फिर उसपर से पुलिस, प्रशासन और समाज भी इस दावानल से हमें निकालने के लिए कोई रुचि नहीं दिखाता। लेकिन हम यहां से निकलना चाहते हैं सरकार। अगर आप तक हमारी बात पहुंचे तो जरूर हमारी भी रिहाई के लिए कोशिश करना। हमारे लिए भी कोई रजिस्टर बनाना ताकि हमारी भी गिनती हो सके। 


प्रार्थी
मानव तस्करी के शिकार
अनगिनत अभागे लोग