सुमित्रा महाजन के लोकसभा अध्यक्ष
बनने और मोदी कैबिनेट में सात महिला मंत्रियों के शामिल होने के बाद ये बात साफ हो
गई है कि भाजपा अपने महिला नेतृत्व को सशक्त बनाकर आगे की लड़ाई लड़ना चाहती है।
महाजन के साथ ही सुषमा स्वराज, उमा भारती जैसी फायर ब्रांड नेत्रियां भी भाजपा का
पथ प्रशस्त करने की तैयारी में है। भाजपा की इस त्रिमूर्ति की टक्कर आने वाले समय
में क्षेत्रीय राजनीतिक की परिभाषा बदलने वाली तीन देवियों से हो सकती है।
सुमित्रा, सुषमा और उमा ऐसे चेहरे होंगे, जो पार्टी की तरफ से मायावती, जयललिता और
ममता बैनर्जी जैसी दूसरी पार्टियों की तेज तर्रार नेत्रियों की हर बात का जबाव
देने के लिए इस्तेमाल किए जाएंगे।
भारतीय राजनीति में महिला राजनेताओं
का किरदार हमेशा से ही अहम रहा है। अगर ये कहा जाए कि भले ही संख्या में महिला
नेता कम रही हैं, लेकिन वे हमेशा बहुसंख्यक पुरुष नेताओं पर सवा सेर ही साबित हुई
हैं, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती,
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी
इसके सटीक उदाहरण हैं, जिन्होंने अपनी क्षेत्रीय राजनीति के बल पर केंद्र में
हमेशा अपने प्रभाव को बनाए रखा है। लेकिन अपने बल पर सत्ता में आई भाजपा अब इन तीन
देवियों की काट के तौर पर अपनी त्रिमूर्ति को तैयार कर रही है। भाजपा की
त्रिमूर्ति यानि सुषमा, उमा और सुमित्रा। हालांकि भाजपा के पास और भी तेज-तर्रार
नेत्रियां हैं, जिनमें राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और स्मृति
ईरानी का नाम भी सबसे ऊपर है। लेकिन राजघराने से संबंध रखने वाली वसुंधरा का
प्रभाव जहां राजस्थान तक ही सीमित है, वहीं स्मृति ईरानी को भाजपा में आए अभी
ज्यादा अरसा नहीं बीता है। जबकि सुषमा, सुमित्रा और उमा के पास संगठन और सत्ता का
लंबा अनुभव है। आइए एक नज़र डालते हैं भाजपा की त्रिमूर्ति के राजनीतिक और सामाजिक
जीवन पर।
अपराजिता बनीं हुई हैं महाजन
तीनों नेत्रियों में सुमित्रा महाजन
सबसे वरिष्ठ हैं। पार्टी ने उनकी वरिष्ठता को देखते हुए ही उन्हें लोकसभा अध्यक्ष
के पद से नवाज़ा है। सुमित्रा 1989 से अब तक कोई भी
लोकसभा चुनाव नहीं हारीं हैं। 1989 तक इंदौर सीट
कांग्रेस का सुरक्षित गढ़ हुआ करती थी। महाजन ने अपने पहले चुनाव में अपराजेय
कहलाने वाले दिग्गज कांग्रेस नेता प्रकाशचंद्र सेठी को 1 लाख 11 हजार 614 मतों से
हराया था। सेठी इंदिरा गांधी सरकार में देश के गृह मंत्री रह चुके थे।
12 अप्रैल, 1943 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के चिपलूण में एक साधारण
से परिवार में जन्मी सुमित्रा महाजन 22 बरस की उम्र में बहू
बनकर इंदौर आई थीं। उनके पति जयंत महाजन (अब दिंवगत) पेशे से वकील थे। खुद
सुमित्रा महाजन भी वकील हैं। उनके दो बेटे मिलिंद और मंदार हैं। मिलिंद आईटी प्रोफेशनल के साथ व्यवसाय भी करते हैं, वहीं मंदार कमर्शियल पायलट हैं। महाजन के राजनीतिक सफर की शुरुआत विवाह के बाद ही हुई।
“ताई” (मराठी में बड़ी बहन को ताई कहते हैं) के नाम
से मशहूर महाजन की दिनचर्या में कुछ चीजें ऐसी हैं, जो उनके
शेड्यूल में हर दिन शामिल रहती है। ताई सुबह उठने के बाद यदि संभव होता है तो कुछ
एक्सरसाइज करती है। दो गिलास शहद-पानी पीना ताई की दिनचर्या में शुमार है। नहाने
के बाद सूर्य व तुलसी को अर्घ्य देना वे कभी नहीं भूलती। हर दिन घर से निकलने से
पहले भगवान के मंदिर में 10 मिनट पूजन के लिए बैठती है। पूजन
सामग्री की तैयारी बहू व अन्य सदस्य पहले से करके रखते हैं, ताकि
उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो। पूजा के दौरान वे नियमित रूप से ‘गणपति अथर्वशीर्ष’ का पाठ करती हैं। 72 वर्षीय सुमित्रा महाजन के वार्डरोब में
साड़ियों का खास सेट हमेशा की तरह तैयार होता है। अब तक इसकी व्यवस्था उनकी बहू
स्नेहल करती आई हैं। मौसम के हिसाब से बहू वार्डरोब को भी सेट कर देती है। गर्मी
में कॉटन की साड़ी आगे और सिल्क की साड़ी पीछे कर दी जाती है। जबकि ठंड के मौसम में
ठीक उनका वार्डरोब ठीक इसके उलट हो जाता है। मतलब सिल्क की साड़ियां आगे और कॉटन
की पीछे। 1982 में इंदौर नगर निगम के पार्षद से अपना राजनीतिक सफर शुरु करने वाली
सुमित्रा महाजन आज देश की लोकसभा स्पीकर हैं।
उनके
बेटे मंदार महाजन कहते हैं कि “ये हम सबके लिए गर्व का विषय है। जब
बड़ी जिम्मेदारी मिलती है तो उसका अहसास साथ लेकर आती है। उन्होंने निरंतर अथक
मेहनत की है। उसी का नतीज़ा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और भाजपा के शीर्ष
नेतृत्व ने लोकसभा अध्यक्ष के लिए उन्हें चुना। मंदार कहते हैं कि उन्हें बहुत
बड़ी जबावदारी मिली है, लेकिन मां को लंबा अनुभव है। वे अच्छी तरह अपनी
जिम्मेदारियां निभाना जानती हैं। लेकिन उनके बच्चे होने के कारण अब हमको भी और
जिम्मेदारी से अपना दायित्व निभाना होगा।”
सुमित्रा
महाजन ने इस बार लोकसभा चुनाव जीतकर तीन-तीन इतिहास भी रचे हैं। महाजन इस बार
चुनाव जीतकर देश की और साथ ही मध्यप्रदेश की पहली ऐसी महिला सांसद बन गई हैं,
जिन्होंने लगातार 8 बार लोकसभा चुनाव जीता हो। महाजन ने इस बार मध्यप्रदेश में
सर्वाधिक अंतर से जीत दर्ज की है। उन्होंने 4,66,901 मतों से कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल को हराया।
उन्होंने इस मामले में भाजपा की दिग्गज नेता और विदिशा से उम्मीदवार सुषमा स्वराज
को भी पीछे छोड़ दिया। महाजन ने इंदौर में भी अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज की है।
महाजन संगठन में कई अहम पदों पर रहने के साथ ही
बाजपेयी सरकार में भी केंद्रीय राज्य मंत्री मानव संसाधन विकास, संचार और सूचना
प्रोद्योगिकी मंत्री रह चुकीं हैं। इंदौर में भाजपा की गुटीय राजनीति के बावजूद
सुमित्रा महाजन हमेशा अपने प्रतिद्वंदियों पर हावी रही हैं। सुमित्रा महाजन कभी
अपने निकटतम प्रतिद्वंदी को 11 हजार 480 वोट (सत्यनारायण पटेल, वर्ष 2009) से
हराती रही हैं तो कभीं 1 लाख 93 हजार 936 वोट (रामेश्वर पटेल, वर्ष 2004) से। 1989
तक इंदौर सीट कांग्रेस का सुरक्षित गढ़ हुआ करती थी। लेकिन “ताई” ने उसे भाजपा का
अभेद किला बना दिया।
भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज मध्यप्रदेश की
विदिशा सीट से कांग्रेस लक्ष्मण सिंह को 4 लाख से अधिक मतों से धूल चटाकर लोकसभा
पहुंची हैं। लक्ष्मण सिंह कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के छोटे भाई हैं। दिग्विजय
सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। भाजपा में प्रखर वक्ता के रूप में
जाने जानी वाली सुषमा स्वराज अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह
चुकी हैं। भले ही अल्प समय के लिए, लेकिन सुषमा दिल्ली की मुख्यमंत्री भी बनीं। 1977
में केवल 25 वर्ष की उम्र में उन्हें हरियाणा में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। 27
वर्ष की उम्र में सुषमा हरियाणा की भाजपा अध्यक्ष बन गई थीं। 14 फरवरी 1953 को हरियाणा
के अम्बाला कैंट में जन्मी सुषमा स्वराज ने चंडीगढ़ से कानून की डिग्री ली। 1973
में सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस शुरु करने के बाद सुषमा अपराधिक मामलों की जानी
मानी वकील बन गईं। सुषमा के पति स्वराज कौशल भी जाने माने वकील हैं। उनकी एक बेटी
बांसुरी भी है। जो फिलहाल राजनीति से दूर है। सुषमा का राजनीतिक करियर अखिल भारतीय
विद्यार्थी परिषद के साथ शुरु हुआ। अप्रैल 1990 में वे सांसद बनी और 1990-96 के
दौरान वे राज्यसभा की सदस्य भी रहीं। 1996 में सुषमा 11वीं लोकसभा के लिए चुनी गई
और अटलबिहारी बाजपेयी की तेरह दिनी सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री भी रहीं। 12वीं
लोकसभा के लिए वे फिर दक्षिण दिल्ली से चुनी गईं और उन्हें पुनः उन्हें सूचना
प्रसारण मंत्रालय के अलावा दूरसंचार मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया। पिछले
दो लोकसभा चुनाव से सुषमा मध्यप्रदेश से संसद पहुंच रही हैं। सुषमा ने मध्यप्रदेश
की विदिशा संसदीय सीट से दूसरी बार जीत हासिल की है।
मध्यप्रदेश भाजपा के प्रवक्ता हितेश बाजपेयी कहते
हैं कि “ये हमारे लिए गर्व की बात है कि सुषमा जी हमारे प्रदेश से
संसद में पहुंची है। उनकी छवि तो राष्ट्रीय नेता की है ही, लेकिन उनकी प्रोफाइल
में मध्यप्रदेश का नाम जुड़ना हर प्रदेशवासी के लिए सौभाग्य की बात है”।
गंगा के बहाने यूपी में सक्रिय उमा
भले ही उमा मायावती की तरह अपने नाम के आगे
कुमारी नहीं लगाती हों, लेकिन हैं वो चिरकुमारी। कहने का मतलब ये कि उमा भारती ने शादी
नहीं की है। उमा को जलसंसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्रालय दिया गया है। केवल
छटी कक्षा तक पढ़ी उमा ने अपने प्रवचनों के जरिए साध्वी के रूप में पहचान बनाई।
भाजपा नेता विजियाराजे सिंधिया उन्हें भाजपा की राजनीति में लेकर आईं। 1989 के
लोकसभा चुनाव में उमा खजुराहो संसदीय सीट से सासंद चुनी गईं। 1991,1996 और 1998
उन्होंने ये सीट बरकरार रखी। 1999 में भोपाल सीट से सांसद चुनी गईं। उमा भारती ने
राम मंदिर आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी। बाजपेयी सरकार में मानव संसाधन
विकास, पर्यटन, युवा मामले और खेल, कोयला व खदान जैसे विभिन्न राज्य स्तरीय और
कैबिनेट स्तर के विभागों में दायित्व निभाया। 2003 में उमा मध्यप्रदेश की
मुख्यमंत्री भी बनी। लेकिन उमा लंबे वक्त तक मुख्यमंत्री नहीं रह पाईं। अगस्त 2004
में उन्होंने तब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, जब उनके खिलाफ 1994 के हुबली
दंगों के संबंध में गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ। उमा का राजनीतिक सफर उतार चढ़ाव से
भरपूर रहा। नंबवर 2004 को लालकृष्ण आडवाणी की आलोचना के कारण तो 2005 में शिवराज
सिंह को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने से नाराज होकर दो बार पार्टी से बाहर
हुईं। जून 2011 को उमा फिर भाजपा में लौटीं। मार्च 2012 को हुए उत्तर प्रदेश में
हुए विधानसभा चुनावों में उमा ने चरखारी सीट से जीत हासिल की। लोकसभा चुनाव में
भाजपा ने उन्हें झांसी से टिकट दिया और वे जीतकर लोकसभा पहुंची।
दरअसल भाजपा में इन तीनों
नेत्रियों के कद को राष्ट्रीय स्वीकार्यता देने की कवायद चल रही है। हरियाणा में
जन्मी सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी और दो बार से मध्यप्रदेश से सासंद
हैं। ठीक वैसे ही मध्यप्रदेश की उमा को उत्तर प्रदेश से कभी विधायक तो कभी सासंद
बनवाया गया। लोकसभा अध्यक्ष बनने के बाद अब महाजन का कद तो राष्ट्रीय हो ही चुका
है। इस पूरी कवायद के पीछे भाजपा का उद्देश्य अपनी तीनों नेताओं को पूरे देश में
स्वीकार्य बनाना है। उमा उत्तर प्रदेश में जहां मायावती से दो-दो हाथ करने को
तैयार हो रही हैं। वहीं विदेश मंत्री सुषमा बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ के
मुद्दे पर ममता बैनर्जी को जबाव देने को तैयार हैं। रही बात सुमित्रा महाजन की, तो
आसंदी के जरिए वे हर बात मनवाने का माद्दा भी रखती हैं और अधिकार भी।