गुरुवार, 19 जून 2014

भाजपा की त्रिमूर्ति

सुमित्रा महाजन के लोकसभा अध्यक्ष बनने और मोदी कैबिनेट में सात महिला मंत्रियों के शामिल होने के बाद ये बात साफ हो गई है कि भाजपा अपने महिला नेतृत्व को सशक्त बनाकर आगे की लड़ाई लड़ना चाहती है। महाजन के साथ ही सुषमा स्वराज, उमा भारती जैसी फायर ब्रांड नेत्रियां भी भाजपा का पथ प्रशस्त करने की तैयारी में है। भाजपा की इस त्रिमूर्ति की टक्कर आने वाले समय में क्षेत्रीय राजनीतिक की परिभाषा बदलने वाली तीन देवियों से हो सकती है। सुमित्रा, सुषमा और उमा ऐसे चेहरे होंगे, जो पार्टी की तरफ से मायावती, जयललिता और ममता बैनर्जी जैसी दूसरी पार्टियों की तेज तर्रार नेत्रियों की हर बात का जबाव देने के लिए इस्तेमाल किए जाएंगे।  
भारतीय राजनीति में महिला राजनेताओं का किरदार हमेशा से ही अहम रहा है। अगर ये कहा जाए कि भले ही संख्या में महिला नेता कम रही हैं, लेकिन वे हमेशा बहुसंख्यक पुरुष नेताओं पर सवा सेर ही साबित हुई हैं, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी इसके सटीक उदाहरण हैं, जिन्होंने अपनी क्षेत्रीय राजनीति के बल पर केंद्र में हमेशा अपने प्रभाव को बनाए रखा है। लेकिन अपने बल पर सत्ता में आई भाजपा अब इन तीन देवियों की काट के तौर पर अपनी त्रिमूर्ति को तैयार कर रही है। भाजपा की त्रिमूर्ति यानि सुषमा, उमा और सुमित्रा। हालांकि भाजपा के पास और भी तेज-तर्रार नेत्रियां हैं, जिनमें राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और स्मृति ईरानी का नाम भी सबसे ऊपर है। लेकिन राजघराने से संबंध रखने वाली वसुंधरा का प्रभाव जहां राजस्थान तक ही सीमित है, वहीं स्मृति ईरानी को भाजपा में आए अभी ज्यादा अरसा नहीं बीता है। जबकि सुषमा, सुमित्रा और उमा के पास संगठन और सत्ता का लंबा अनुभव है। आइए एक नज़र डालते हैं भाजपा की त्रिमूर्ति के राजनीतिक और सामाजिक जीवन पर।
अपराजिता बनीं हुई हैं महाजन



तीनों नेत्रियों में सुमित्रा महाजन सबसे वरिष्ठ हैं। पार्टी ने उनकी वरिष्ठता को देखते हुए ही उन्हें लोकसभा अध्यक्ष के पद से नवाज़ा है। सुमित्रा 1989 से अब तक कोई भी लोकसभा चुनाव नहीं हारीं हैं। 1989 तक इंदौर सीट कांग्रेस का सुरक्षित गढ़ हुआ करती थी। महाजन ने अपने पहले चुनाव में अपराजेय कहलाने वाले दिग्गज कांग्रेस नेता प्रकाशचंद्र सेठी को 1 लाख 11 हजार 614 मतों से हराया था। सेठी इंदिरा गांधी सरकार में देश के गृह मंत्री रह चुके थे।
12 अप्रैल, 1943 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के चिपलूण में एक साधारण से परिवार में जन्मी सुमित्रा महाजन 22 बरस की उम्र में बहू बनकर इंदौर आई थीं। उनके पति जयंत महाजन (अब दिंवगत) पेशे से वकील थे। खुद सुमित्रा महाजन भी वकील हैं। उनके दो बेटे मिलिंद और मंदार हैं। मिलिंद आईटी प्रोफेशनल के साथ व्यवसाय भी करते हैं, वहीं मंदार कमर्शियल पायलट हैं। महाजन के राजनीतिक सफर की शुरुआत विवाह के बाद ही हुई।
ताई (मराठी में बड़ी बहन को ताई कहते हैं) के नाम से मशहूर महाजन की दिनचर्या में कुछ चीजें ऐसी हैं, जो उनके शेड्यूल में हर दिन शामिल रहती है। ताई सुबह उठने के बाद यदि संभव होता है तो कुछ एक्सरसाइज करती है। दो गिलास शहद-पानी पीना ताई की दिनचर्या में शुमार है। नहाने के बाद सूर्य व तुलसी को अर्घ्य देना वे कभी नहीं भूलती। हर दिन घर से निकलने से पहले भगवान के मंदिर में 10 मिनट पूजन के लिए बैठती है। पूजन सामग्री की तैयारी बहू व अन्य सदस्य पहले से करके रखते हैं, ताकि उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो। पूजा के दौरान वे नियमित रूप से गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करती हैं। 72 वर्षीय सुमित्रा महाजन के वार्डरोब में साड़ियों का खास सेट हमेशा की तरह तैयार होता है। अब तक इसकी व्यवस्था उनकी बहू स्नेहल करती आई हैं। मौसम के हिसाब से बहू वार्डरोब को भी सेट कर देती है। गर्मी में कॉटन की साड़ी आगे और सिल्क की साड़ी पीछे कर दी जाती है। जबकि ठंड के मौसम में ठीक उनका वार्डरोब ठीक इसके उलट हो जाता है। मतलब सिल्क की साड़ियां आगे और कॉटन की पीछे। 1982 में इंदौर नगर निगम के पार्षद से अपना राजनीतिक सफर शुरु करने वाली सुमित्रा महाजन आज देश की लोकसभा स्पीकर हैं।
उनके बेटे मंदार महाजन कहते हैं कि ये हम सबके लिए गर्व का विषय है। जब बड़ी जिम्मेदारी मिलती है तो उसका अहसास साथ लेकर आती है। उन्होंने निरंतर अथक मेहनत की है। उसी का नतीज़ा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने लोकसभा अध्यक्ष के लिए उन्हें चुना। मंदार कहते हैं कि उन्हें बहुत बड़ी जबावदारी मिली है, लेकिन मां को लंबा अनुभव है। वे अच्छी तरह अपनी जिम्मेदारियां निभाना जानती हैं। लेकिन उनके बच्चे होने के कारण अब हमको भी और जिम्मेदारी से अपना दायित्व निभाना होगा।
सुमित्रा महाजन ने इस बार लोकसभा चुनाव जीतकर तीन-तीन इतिहास भी रचे हैं। महाजन इस बार चुनाव जीतकर देश की और साथ ही मध्यप्रदेश की पहली ऐसी महिला सांसद बन गई हैं, जिन्होंने लगातार 8 बार लोकसभा चुनाव जीता हो। महाजन ने इस बार मध्यप्रदेश में सर्वाधिक अंतर से जीत दर्ज की है। उन्होंने 4,66,901 मतों से कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल को हराया। उन्होंने इस मामले में भाजपा की दिग्गज नेता और विदिशा से उम्मीदवार सुषमा स्वराज को भी पीछे छोड़ दिया। महाजन ने इंदौर में भी अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज की है।
महाजन संगठन में कई अहम पदों पर रहने के साथ ही बाजपेयी सरकार में भी केंद्रीय राज्य मंत्री मानव संसाधन विकास, संचार और सूचना प्रोद्योगिकी मंत्री रह चुकीं हैं। इंदौर में भाजपा की गुटीय राजनीति के बावजूद सुमित्रा महाजन हमेशा अपने प्रतिद्वंदियों पर हावी रही हैं। सुमित्रा महाजन कभी अपने निकटतम प्रतिद्वंदी को 11 हजार 480 वोट (सत्यनारायण पटेल, वर्ष 2009) से हराती रही हैं तो कभीं 1 लाख 93 हजार 936 वोट (रामेश्वर पटेल, वर्ष 2004) से। 1989 तक इंदौर सीट कांग्रेस का सुरक्षित गढ़ हुआ करती थी। लेकिन ताई ने उसे भाजपा का अभेद किला बना दिया।
 प्रखर वक्ता के रूप में है सुषमा की पहचान

भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज मध्यप्रदेश की विदिशा सीट से कांग्रेस लक्ष्मण सिंह को 4 लाख से अधिक मतों से धूल चटाकर लोकसभा पहुंची हैं। लक्ष्मण सिंह कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के छोटे भाई हैं। दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। भाजपा में प्रखर वक्ता के रूप में जाने जानी वाली सुषमा स्वराज अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह चुकी हैं। भले ही अल्प समय के लिए, लेकिन सुषमा दिल्ली की मुख्यमंत्री भी बनीं। 1977 में केवल 25 वर्ष की उम्र में उन्हें हरियाणा में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। 27 वर्ष की उम्र में सुषमा हरियाणा की भाजपा अध्यक्ष बन गई थीं। 14 फरवरी 1953 को हरियाणा के अम्बाला कैंट में जन्मी सुषमा स्वराज ने चंडीगढ़ से कानून की डिग्री ली। 1973 में सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस शुरु करने के बाद सुषमा अपराधिक मामलों की जानी मानी वकील बन गईं। सुषमा के पति स्वराज कौशल भी जाने माने वकील हैं। उनकी एक बेटी बांसुरी भी है। जो फिलहाल राजनीति से दूर है। सुषमा का राजनीतिक करियर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ शुरु हुआ। अप्रैल 1990 में वे सांसद बनी और 1990-96 के दौरान वे राज्यसभा की सदस्य भी रहीं। 1996 में सुषमा 11वीं लोकसभा के लिए चुनी गई और अटलबिहारी बाजपेयी की तेरह दिनी सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री भी रहीं। 12वीं लोकसभा के लिए वे फिर दक्षिण दिल्ली से चुनी गईं और उन्हें पुनः उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय के अलावा दूरसंचार मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया। पिछले दो लोकसभा चुनाव से सुषमा मध्यप्रदेश से संसद पहुंच रही हैं। सुषमा ने मध्यप्रदेश की विदिशा संसदीय सीट से दूसरी बार जीत हासिल की है।
मध्यप्रदेश भाजपा के प्रवक्ता हितेश बाजपेयी कहते हैं कि ये हमारे लिए गर्व की बात है कि सुषमा जी हमारे प्रदेश से संसद में पहुंची है। उनकी छवि तो राष्ट्रीय नेता की है ही, लेकिन उनकी प्रोफाइल में मध्यप्रदेश का नाम जुड़ना हर प्रदेशवासी के लिए सौभाग्य की बात है
गंगा के बहाने यूपी में सक्रिय उमा

भले ही उमा मायावती की तरह अपने नाम के आगे कुमारी नहीं लगाती हों, लेकिन हैं वो चिरकुमारी। कहने का मतलब ये कि उमा भारती ने शादी नहीं की है। उमा को जलसंसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्रालय दिया गया है। केवल छटी कक्षा तक पढ़ी उमा ने अपने प्रवचनों के जरिए साध्वी के रूप में पहचान बनाई। भाजपा नेता विजियाराजे सिंधिया उन्हें भाजपा की राजनीति में लेकर आईं। 1989 के लोकसभा चुनाव में उमा खजुराहो संसदीय सीट से सासंद चुनी गईं। 1991,1996 और 1998 उन्होंने ये सीट बरकरार रखी। 1999 में भोपाल सीट से सांसद चुनी गईं। उमा भारती ने राम मंदिर आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी। बाजपेयी सरकार में मानव संसाधन विकास, पर्यटन, युवा मामले और खेल, कोयला व खदान जैसे विभिन्न राज्य स्तरीय और कैबिनेट स्तर के विभागों में दायित्व निभाया। 2003 में उमा मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री भी बनी। लेकिन उमा लंबे वक्त तक मुख्यमंत्री नहीं रह पाईं। अगस्त 2004 में उन्होंने तब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, जब उनके खिलाफ 1994 के हुबली दंगों के संबंध में गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ। उमा का राजनीतिक सफर उतार चढ़ाव से भरपूर रहा। नंबवर 2004 को लालकृष्ण आडवाणी की आलोचना के कारण तो 2005 में शिवराज सिंह को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने से नाराज होकर दो बार पार्टी से बाहर हुईं। जून 2011 को उमा फिर भाजपा में लौटीं। मार्च 2012 को हुए उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में उमा ने चरखारी सीट से जीत हासिल की। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें झांसी से टिकट दिया और वे जीतकर लोकसभा पहुंची।
 दरअसल भाजपा में इन तीनों नेत्रियों के कद को राष्ट्रीय स्वीकार्यता देने की कवायद चल रही है। हरियाणा में जन्मी सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी और दो बार से मध्यप्रदेश से सासंद हैं। ठीक वैसे ही मध्यप्रदेश की उमा को उत्तर प्रदेश से कभी विधायक तो कभी सासंद बनवाया गया। लोकसभा अध्यक्ष बनने के बाद अब महाजन का कद तो राष्ट्रीय हो ही चुका है। इस पूरी कवायद के पीछे भाजपा का उद्देश्य अपनी तीनों नेताओं को पूरे देश में स्वीकार्य बनाना है। उमा उत्तर प्रदेश में जहां मायावती से दो-दो हाथ करने को तैयार हो रही हैं। वहीं विदेश मंत्री सुषमा बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ के मुद्दे पर ममता बैनर्जी को जबाव देने को तैयार हैं। रही बात सुमित्रा महाजन की, तो आसंदी के जरिए वे हर बात मनवाने का माद्दा भी रखती हैं और अधिकार भी। 

शनिवार, 14 जून 2014

झीरम हत्याकांड की जड़ खंगाल रही NIA

केंद्र में मोदी सरकार के आगाज़ के साथ ही भले ही देश के अच्छे दिन शुरु हो गए हों, लेकिन छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का समय कुछ ठीक नहीं चल रहा है। अब तक अजेय योद्धा के रूप में जाने जाते रहे जोगी का तिलस्म लोकसभा चुनाव में हार के बाद टूट चुका है। उनकी फीकी पड़ती चमक के बीच अब उनका भविष्य झीरम घाटी हत्याकांड की पड़ताल कर रही राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (NIA) की चार्जशीट पर निर्भर करेगा।
अब तक झीरम घाटी हमले को मात्र सुरक्षा में चूक मानते रहे मुख्यमंत्री रमन सिंह भी चाहते हैं कि 25 मई 2013 को झीरम घाटी में हुए कांग्रेस नेताओं के हत्याकांड की सूक्ष्मता से जांच की जाए, ताकि सच्चाई सामने आ सके। हत्याकांड की पहली बरसी पर रमन सिंह का बयान आया कि शुरु से ही इस मामले में कई आरोप प्रत्यारोप लगते रहे हैं। यदि ऐसा है तो सच निकलकर सामने आना चाहिए। छत्तीसगढ़ के लोगों के मन में यह बात है कि कहीं ये हमला साजिश तो नहीं। इसलिए मामले की अच्छे से जांच होना जरूरी है, तभी निष्कर्ष निकलेगा। रमन सिंह के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं। एक मायना तो ये भी है कि पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी शुरु से ही पूरे मामले में संदेह के दायरे में रहे हैं। खुद कांग्रेस नेताओं ने ही उनकी भूमिका पर शक जाहिर किया था। ऐसे में माना जा रहा है NIA जोगी को केंद्र में रखकर भी आगे की जांच कर रही है। शुरु से ही जोगी पर ही लोगों की उंगलियां क्यों उठ रही हैं, इसे जानने के लिए 25 मई 2013 के घटनाक्रम पर एक सरसरी नज़र डालना जरूरी है।
25 मई 2013 को दरभा ब्लाक की झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं के खून की होली खेली थी। नक्सलियों ने परिवर्तन यात्रा के तहत झीरम से गुजर रहे कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला कर 30 कांग्रेस नेताओं को मौत की नींद सुला दिया था। इसमें तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल से लेकर सलवा जूडूम महेंद्र कर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री वीसी शुक्ल समेत कई छोटे-बड़े कांग्रेस नेता शामिल थे। यहां याद रखने वाली बात ये भी है कि जिस वक्त प्रदेश में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा निकल रही थी। ठीक उसी वक्त मुख्यमंत्री रमन सिंह अपनी विकास यात्रा पर थे। अमूमन दोनों ही पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर जनसभा ले रहे थे। विकास यात्रा भी धुर नक्सल इलाकों से गुजरी थी, लेकिन रमन सिंह की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता होने के कारण कोई अप्रिय घटना नहीं घट पाई थी। वहीं कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि परिवर्तन यात्रा को कोई सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई थी। जिसका फायदा उठाते हुए नक्सलियों ने इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया था। हांलाकि इस हत्याकांड के तत्काल बाद कांग्रेस के ही एक बड़े नेता यानि अजीत जोगी पर साजिश का आरोप लगाया जाने लगा था। जोगी खुद सुकमा में हुई उस अंतिम सभा में मौजूद थे, जो हत्याकांड के पहले हुई थी। लेकिन जोगी उस सभा में हैलीकॉप्टर से गए और वापस रायपुर आए। जबकि शेष नेता सड़क मार्ग से दरभा की अगली सभा के लिए जाते वक्त नक्सल हमले का शिकार हो गए। तभी से जोगी शक के दायरे में आ गए। दरअसल जोगी को पुलिस के इंटेलिजेंस विभाग के दस्तावेज भी कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। जिनमें बार-बार पुलिस को ये सूचना दी जा रही थी कि जगदलपुर के दरभा, सुकमा के थाना दोरनापाल, तोंगपाल, दंतेवाड़ा में नक्सलियों का जमावड़ा बड़ी संख्या में हो रहा है। कहने का आशय ये कि सरकार से लेकर सबको पता था कि दरभा में नक्सली मौजूद हैं। 19 मार्च 2013 को पुलिस मुख्यालय से जारी एक पत्र में साफ उल्लेख किया गया था कि जगदलपुर के दरभा इलाके में 100 से 150 नक्सली मौजूद हैं। जो थाना बयानार या दरभा पर हमला कर सकते हैं। साथ ही सर्चिंग पर निकलने वाली पुलिस पार्टी पर एम्बुश लगाकर बड़ा हमला कर सकते हैं।10 अप्रैल 2013 को पुलिस मुख्यालय को इटेंलिजेंस की सूचना मिली थी कि कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा, पूर्व सलवा जूडुम नेता विक्रम मंडावी और अजय सिंह को मारने के लिए नक्सलियों ने तीन एक्शन टीम का गठन किया था। उनके सुरक्षा कर्मियों को भी विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए थे। 17 अप्रैल को फिर पुलिस के गोपनीय पत्र में चेताया गया था कि माओवादियों ने कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा और राजकुमार तामो को मारने के लिए स्माल एक्शन टीम बनाई है। जिसका दायित्व माओवादी मिलिट्री कंपनी नंबर 02 के पार्टी प्लाटून सदस्य राकेश को सौंपा गया है। इस तरह की कई सूचनाएं पुलिस को मिल रही थी। लेकिन इतनी सूचनाओं के बाद भी बस्तर यात्रा पर निकले कांग्रेस नेता मारे गए, केवल अजीत जोगी हत्याकांड के पहले ही रायपुर सुरक्षित पहुंच गए। इस मामले में जोगी समर्थक कोंटा विधायक कवासी लखमा पर भी कई आरोप लगे थे। लखमा को नक्सलियों ने बगैर कोई नुकसान पहुंचाए छोड़ दिया था, जबकि उनके साथ मौजूद नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल, महेंद्र कर्मा, वीसी शुक्ला समेत कई नेताओं को माओवादियों ने गोलियों से भून दिया था। कवासी लखमा को लेकर एक नहीं कई विवाद खड़े हो गए थे। कई कांग्रेस नेताओं का आरोप था कि कांग्रेस नेता अपना रूट बदलना चाहते थे, लेकिन कवासी इसी रूट से आगे बढ़ने को लेकर अड़ गए थे। परिवर्तन यात्रा के तयशुदा कार्यक्रम में आखिरी समय में जो बदलाव किया गया था, वो भी कई सवाल खड़े कर रहा है। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कांग्रेस विधायक कवासी लखमा के विधानसभा क्षेत्र कोंटा के तहत आने वाले सुकमा में 22 मई को सभा रखी गई थी। इस दिन केवल यही एक कार्यक्रम तय था। लेकिन बाद में मूल कार्यक्रम में दो बड़े बदलाव किए गए। पहला ये कि सुकमा की 22 मई को होने वाली सभा 25 मई को कर दी गई। दूसरा सुकमा के साथ ही एक और सभा दरभा में भी रख दी गई। उसी दिन नेताओं को सुकमा से दरभा जाते वक्त नक्सलियों ने अपना शिकार बनाया।इन्हीं कारणों से इस हत्याकांड को राजनीतिक षडयंत्र से जोड़कर देखा जाने लगा। चूंकि कवासी लखमा जोगी कैम्प के समर्थक हैं, इसलिए हत्याकांड के तार जोगी से जोड़े जाने लगे। घटना के दो दिन बाद यानि 27 मई 2013 को इसकी जांच NIA को सौंप दी गई थी।
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, जो कि झीरम घाटी नक्सल हमले के बाद अपने ही नेताओं के निशाने पर आ गए थे, तहलका से कहते हैं कि जो असत्य को हथियार बनाता है, वो कभी सफल नहीं होता। इतना जरूर है कि पूरे मामले की सूक्ष्म जांच होनी चाहिए। फिलहाल NIA नक्सलियों की भूमिका पर जांच कर रही है। उन्हें गिरफ्तार भी किया जा रहा है
झीरम घाटी हत्याकांड की पड़ताल कर रही नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी ने अभी किसी राजनेता को क्लीन चिट नहीं दी है। 8 माओवादियों को गिरफ्तार करने और 27 के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने के साथ NIA की जांच अभी जारी है। एनआईए ने पिछले एक साल में अब तक की अपनी इंवेस्टिगेशन के दौरान पाया है कि झीरम घाटी हत्याकांड में 100 माओवादी शामिल थे। इनमें नक्सलियों के शीर्षस्थ नेताओं के नाम भी शामिल है। लेकिन बावजूद इसके NIA अभी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है कि इस हद्यविदारक हत्याकांड में राजनीतिक संलिप्तता थी या नहीं। इस बिंदु पर NIA की अभी पड़ताल जारी है। हालांकि अभी तक झीरम घाटी के चश्मदीद गवाह कई कांग्रेस कार्यकर्ता अपनी गवाही की बाट जोह रहे हैं। उन्हीं में से वीसी शुक्ल के प्रवक्ता रहे दौलत रोहड़ा बताते हैं कि उन्हें 26 जून 2013 को NIA की तरफ से फोन आया था कि उनकी गवाही ली जानी है, लेकिन उसके बाद उन्हें बयान के लिए कोई बुलावा नहीं आया। जबकि दौलत हमले के वक्त वीसी शुक्ल के साथ उनके वाहन में ही मौजूद थे।
NIA के आईजी संजीव सिंह तहलका को कहते हैं हमारी जांच अभी जारी है। जिस दिन जांच समाप्त हो जाएगी, हम कोर्ट में चार्जशीट फाइल कर देंगे। जिस तरह की बातें हो रही हैं कि NIA ने गृहमंत्रालय को रिपोर्ट सौंप दी है। ऐसा कुछ नहीं है, ना हमने कोई रिपोर्ट सौंपी है, ना ही भविष्य में हमें कोई रिपोर्ट किसी को देना है। हम सीधे चार्जशीट फाइल करेंगे। फिलहाल हमने किसी स्थिति से इंकार नहीं किया है, अभी तो हमें कई बिंदुओं पर जांच करना शेष है। 
हमले में मारे गए बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा के पुत्र दीपक कर्मा और नंदकुमार पटेल के बेटे उमेश पटेल लगातार इस मामले को राजनीतिक हत्याकांड बता रहे हैं। दीपक कहते हैं कि उन्होंने इस संबंध में NIA को कुछ दस्तावेज भी सौंपे हैं। कर्मा घटना की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने रविवार को का कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से फोन पर बात कर मदद करने का आग्रह किया है। वहीं उमेश कहते हैं कि यदि उन्हें न्याय नहीं मिला तो वे न्यायालय की शरण में जाएंगे। लेकिन इसके पहले उन्हें NIA की जांच पूरी होने का इंतजार है।
दूसरी तरफ NIA ने हमले में शामिल नक्सलियों को पकड़ने का काम पुलिस अधीक्षकों को दिया है। इन्हें नक्सलियों के नाम, पते, पोजीशन समेत कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई हैं। नक्सलियों की गिरफ्तारी शुरु हो चुकी है। बस्तर जिले में झीरम घाटी हमले में शामिल दो नक्सलियों कोसा (38 वर्ष) और देवा कुड़यामी (35वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया गया है। इन दोनों को दरभा थाने की पुलिस ने चांदामेटा गांव से गिरफ्तार किया है। इसके अलावा पुलिस ने बीजापुर निवासी ज्योति उर्फ प्रमीला, तोंगापाल निवासी बंजामी सन्ना, आता मरकाम और मुक्का मरावी को भी गिरफ्तार कर लिया है। इन नक्सलियों को इस हत्याकांड के लिए कहां से निर्देश आए थे, ये जानने के लिए पुलिस की पूछताछ जारी है।
बहरहाल इस मामले में NIA ने जांच के अपने सारे विकल्प खुले रखे हैं। अब तक नक्सलियों की भूमिका की जांच कर रही NIA ने इस बात से इंकार नहीं किया है कि आगे की जांच में सूबे के राजनेताओं की संलग्नता पर भी पड़ताल की जाएगी। गौर करने लायक बात ये भी कि राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने यूपीए सरकार के कार्यकाल के आखिर तक चुप्पी साधे रखी थी, लेकिन केंद्र में भाजपा सरकार आते ही NIA का जिन्न बोतल से बाहर निकल आया है। हो सकता है कि NIA की आगे की जांच और फिर चार्जशीट में कई चौंकाने वाले खुलासे हों। जिससे छत्तीसगढ़ की राजनीति में भूचाल आ जाए।



बुधवार, 4 जून 2014

बहुत कठिन है डगर पनघट की...

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के कंधो पर दिल्ली के बूते राज्य की कई पुरानी मांगों को पूरा करने का भार आ गया है, जिनसे छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा जुड़ी हुई हैं। हो सकता है कि देश की अगली खनिज, खाद्य और कृषि नीतियां छत्तीसगढ़ को केंद्र में रखकर बनाई जाए। लेकिन इसका दारोमदार भी मुख्यमंत्री रमन सिंह पर ही है कि वे ना केवल केंद्र में भाजपा सरकार का फायदा उठाते हुए प्रदेश की लंबित मांगों को पूरा करवाएं बल्कि केंद्रीय नीतियों पर अपनी छाप भी छोड़ें।
छत्तीसगढ़ कोयला, डोलोमाइट और टिन अयस्क के उत्पादन में देश में पहले नंबर पर है। वहीं लौह अयस्क में दूसरे, बॉक्साइट में पांचवे और लाइमस्टोन में सातवें नंबर पर है। छत्तीसगढ़ सरकार पिछले कई सालों से केंद्र से कोयला, लौह अयस्क और बॉक्साइट जैसे मुख्य खनिजों की रायल्टी की दरें बढ़ाने की मांग कर रही है। 2013-14 में मुख्य खनिजों से राज्य को 3036 करोड़ रुपए और गौण खनिजों से 180 करोड़ रुपए की रायल्टी मिली है। यदि केंद्र सरकार मुख्य खनिजों की रायल्टी दरें बढ़ाती हैं तो राज्य के साथ-साथ दूसरे खनिज उत्पादक राज्यों के भी राजस्व में वृद्धि होगी। साथ ही इसका श्रेय भी छत्तीसगढ़ को मिलेगा। मुख्यमंत्री रमन सिंह खनिज रायल्टी बढ़ाने के साथ ही लंबे समय से एनएमडीसी से स्थानीय उद्योगों को लौह अयस्क की आपूर्ति के लिए स्पष्ट नीति बनाने की मांग भी करते रहे हैं। छत्तीसगढ़ में 90 से ज्यादा स्पंज आयरन उद्योग संचालित हो रहे हैं। राज्य सरकार की मांग रही है कि एनएमडीसी बैलाडीला से निकाले जा रहे लौह अयस्क की आपूर्ति में राज्य के उद्योगों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। लेकिन केंद्र ने कभी इस मांग पर गौर नहीं किया है। इसका कारण है कि सूबे के मिनी स्टील प्लांट बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं। अब मुख्यमंत्री को केंद्र में सत्तासीन अपनी ही पार्टी की सरकार की नीतियों में बदलाव लाने के सफल प्रयास करने होंगे, नहीं तो उनकी आलोचना होते देर नहीं लगेगी।
प्रदेश के खनिज सचिव सुबोध सिंह इन मुद्दों पर सकारात्मक परिणाम मिलने की आशा जता रहे हैं। वे कहते हैं कि हम लंबे समय से खनिजों की रायल्टी बढ़ाने की मांग कर रहे थे। अब लगता है कि राज्य की मांग पूरी हो जाएगी। अगर ऐसा होता है तो ये हमारी बड़ी उपलब्धि होगी। एनएमडीसी से स्थानीय उद्योगों को कच्चे माल की सही आपूर्ति हो सके, इसपर भी अब अच्छे परिणाम मिलने की उम्मीद है। केंद्रीय कैबिनेट में राज्य के सासंद विष्णुदेव साय केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री बनाए गए हैं। उनकी भी मदद हमें जरूर मिलेगी
राज्य बनने के बाद ये पहला मौका है, जब केंद्र और राज्य में एक साथ भाजपा की सरकार बनी है। जब वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बना था, तब केंद्र में भाजपा थी, लेकिन प्रदेश में कांग्रेस सत्तासीन थी। जब 2003 में प्रदेश में भाजपा का शासन आया तो 2004 के लोकसभा चुनाव में केंद्र में यूपीए-1 सत्ता में आ गई। 2008 में भी प्रदेश में भाजपा तो केंद्र में यूपीए-2 ने सरकार बनाई। कहने का मतलब पिछले 14 सालों में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच कभी सकारात्मक संतुलन बन ही नहीं पाया। इसका खामियाजा सूबे की जनता ने उठाया। कभी धान की कम कीमत तो कभी मौसम की मनमानी झेलते किसान अपने अच्छे दिनों की बाट जोहते रहे। अब मौका आया है कि धान की पैदावार करने वाले किसानों के दिन फिरें और उन्हें अपनी मेहनत का सही मुनाफा मिल सके। खुद प्रदेश भाजपा भी यही चाहती है। तभी तो 2013 विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भाजपा ने वादा किया था कि वो केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर धान का समर्थन मूल्य 2100 करवाएगी। जब रमन सिंह ने बतौर मुख्यमंत्री सत्ता की पारी तीसरी बार संभाली तो शपथ ग्रहण के मंच पर ही उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे अपने पत्र पर हस्ताक्षर किए। धान का समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए पीएम को लिखा गया रमन सिंह का ये पत्र उसी दिन दिल्ली रवाना किया गया। बाद में जब बार-बार उनसे समर्थन मूल्य की वृद्धि पर सवाल किए जाने लगे, तो वे केंद्र के पाले में गेंद डालकर खुद को बचाते रहे। अब जबकि केंद्र में भी भाजपा की सरकार बन गई है, तब मुख्यमंत्री रमन सिंह को हरसंभव कोशिश कर धान का समर्थन मूल्य बढ़वाना होगा क्योंकि अब वे केंद्र की उपेक्षा का राग नहीं अलाप पांएगे। छत्तीसगढ़ में धान ऐसा मुद्दा है, जिससे प्रदेश की 80 फीसदी जनता सीधा सरोकार रखती है।
छत्तीसगढ़ के पूर्व कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू तहलका को बताते हैं कि जब केंद्र की नई सरकार नीति निर्धारण के लिए बैठेगी, तब हम अपनी बात रखेंगे। हम तो चाहते हैं कि देश के 8 धान उत्पादक राज्यों, जिनमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है, सभी के किसानों को लाभकारी कीमतें मिले। ये सही है कि हमारी सरकार ने किसानों को प्रति क्विंटल धान पर 2100 रुपए न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने की पहल की थी। अब लाभकारी कीमतें 2100 प्रति क्विटंल से ज्यादा भी हो सकती हैं
राज्य के सामने दूसरी बड़ी चुनौती नक्सलवाद है। इस मुद्दे पर भी केंद्र और राज्य सरकार में हमेशा तलवार खिंची रही हैं। हर हमले के बाद सरकारें अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने से बचती रही हैं, लेकिन अब केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार को गंभीरता के साथ मिल बैठकर इसका हल निकालना होगा। खुद देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह का गृह जिला चंदौली (उत्तर प्रदेश) नक्सल प्रभावित क्षेत्र घोषित है। ग्राम भभौरा (यूपी) में जहां राजनाथ सिंह का बचपन बीता है, वो भी नक्सल प्रभावित इलाके में आता है। मुख्यमंत्री रमन सिंह राजनाथ सिंह के करीबी भी माने जाते हैं। इसका राजनाथ सिंह से नजदीकी का फायदा उन्हें मिल सकता है। छत्तीसगढ़ के सामने आंध्रप्रदेश सबसे अच्छे उदाहरण के तौर पर मौजूद है। जब केंद्र और आंध्रप्रदेश, दोनों स्थानों पर कांग्रेस की सरकार काबिज थी, तब आंध्रप्रदेश ने नक्सलवाद को कुचल कर रख दिया था। नक्सलवाद को जड़ से मिटाने के लिए छत्तीसगढ़ में 2006 में जिस तरह के प्रयास किए गए थे, अब वैसे ही प्रयास दोबारा शुरु करने का वक्त है। छत्तीसगढ़ ने पंजाब में आतंकवाद खत्म करने वाले डीजीपी केपीएस गिल को 2006 में छत्तीसगढ़ सरकार का एडवाइजर बनाकर लाया गया था। हालांकि उस वक्त राज्य सरकार कोई विशेष परिणाम हासिल नहीं कर पाई थी। अब खुद केंद्र ने नक्सलवाद पर कड़ा रुख अख्तियार करने का संकेत दे दिया है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने के तीन दिन पहले ही नई दिल्ली में नक्सलवाद को लेकर गृहमंत्रालय के आला अफसरों की बैठक बुलाई गई। इस बैठक में नक्सल प्रभावित राज्यों के पुलिस अफसरों को भी बुलाया गया था। बैठक में शामिल होने के बाद छत्तीसगढ़ लौटे एक अफसर ने नाम ना छापने की शर्त पर तहलका को बताया कि नक्सलवाद को लेकर केंद्रीय गृहमंत्रालय ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है। लेकिन इतनी जल्दबाजी में सख्ती लागू करना ठीक नहीं है। नक्सलवादियों से आतंकवदियों की तरह व्यवहार नहीं किया जा सकता। पहले नक्सलियों की रणनीति समझने की जरूरत है। वे केवल जंगलों में नहीं, बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सक्रिय हैं। ऐसे में उनपर आक्रमण कर किसी नतीजें पर नहीं पहुंचा जा सकता। पुलिस मुख्यालय के अफसरों के मुताबिक केंद्र अब केवल कार्रवाई नहीं बल्कि परिणाम चाहता है। रमन सिंह के ये अच्छा मौका हो सकता है, जब केंद्र सरकार खुद आगे होकर नक्सलवाद के सफाए को लेकर उत्सुक है। ऐसे में राज्य सरकार एक ब्ल्यू प्रिंट तैयार कर केंद्र की हरसंभव मदद ले सकती है।
एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा प्रदेश की लंबित रेल परियोजनाओं का भी है। देश को विश्वस्तरीय लौह अयस्क की आपूर्ति करने वाला बस्तर तो रेल सुविधाओं के लिहाज़ से सबसे बदतर हालत में है। 2012-13 के रेल बजट में रेल मंत्रालय ने दक्षिण बस्तर इलाक में नई रेल लाईन बिछाने के लिए सर्वे कराने का प्रस्ताव रखा था। सर्वे में किंरदुल-सुकमा-मलकानगिरी-बीजापुर लाईन और महाराष्ट्र सीमा से भोपालपट्टनम लाईन शामिल है। लेकिन इस पर काम शुरु नहीं हो पाया। जबकि किरंदुल बैलाडीला प्रक्षेत्र में एनएमडीसी की लौह अयस्क की खदानें है। कंपनी यहा से सालाना 3 करोड़ 20 लाख टन लौह अयस्क का खनन करती है। किंरदुल विशाखापट्टम से रेल लाईन के जरिए जुड़ा हुआ है। इस इलाके में नए रेल मार्ग बनने से एनएमडीसी समेत अन्य कंपनियों को खनिज पदार्थों के परिवहन की सुविधा मिल सकेगी। साथ ही यात्री रेल सुविधाओं का भी विस्तार होगा। बरसों से छत्तीसगढ़ को कोई नई रेल लाइन भी नहीं मिली है। उसपर दल्लीराजहरा-जगदलपुर रेललाइन की मांग पिछले 3 दशक से हर चुनाव में होती रही है। पूरे बस्तर में दंतेवाड़ा से बीजापुर होकर महाराष्ट्र, सुकमा-कोंटा के रास्ते आंध्रप्रदेश जैसे मार्गों पर नई रेल लाइन बिछाने की मांग भी बरसों पुरानी है। मेट्रो और मोनो रेल का वादा भी राज्य सरकार को याद रखना पड़ेगा, जो भाजपा पूरे चुनाव के दौरान अलापती रही है।
इस बारे में प्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अफसर सुबोध सिंह, जो कि मुख्यमंत्री के सचिव भी हैं, तहलका से कहते हैं कि हम जल्द ही प्रधानमंत्री और रेल मंत्री से मिलकर अपनी मांगो रखेंगे। आगामी रेल बजट में भी राज्य सरकार अपनी मांगे मनवाने की पूरी कोशिश करेगी। हमने अभी से इसके लिए प्रयास शुरु कर दिए हैं
मुख्यमंत्री रमन सिंह की चुनौतियां यहीं खत्म नहीं हो जाती। उन्हें अपने उस वादे को भी याद रखना होगा, जो उनकी पार्टी के घोषणा पत्र में था छत्तीसगढ़ को भारत की कृषि राजधानी बनाने के लिए 12वीं पंचवर्षीय योजना में विशेष पहल की जाएगी। साथ ही उनकी पार्टी ने चुनावी वादों में छत्तीसगढ़ को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने का संकल्प लिया था। इसमें भी राज्य सरकार को पूरी ईमानदारी से पहल करनी होगी। आंध्र प्रदेश और ओडीसा सरकार से जल रहे पोलावरम बांध के विवाद में भी अब राज्य सरकार को केंद्र सरकार से पूरी मदद लेने की कोशिश करनी होगी। पोलावरम बांध के निर्माण से इंद्रावती नदी के किनारे कई गांवों के डूब जाने का खतरा मंडरा रहा है। खाद्य सुरक्षा कानून के मामले में पूरे देश की प्रशंसा बटोर चुके रमन सिंह को अब मोदी सरकार के साथ मिलकर बेहतर प्रदर्शन करना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात करें तो वे सस्ता अनाज मुहैया करवाने को बड़ी उपलब्धि नहीं मानते, लेकिन रमन सिंह ने सस्ता चावल देकर ही जनता का मन जीता है। उन्हें केंद्र सरकार को भरोसे में रखकर अपनी इस योजना निरंतर चलाए रखना होगा।
भाजपा पर चुटकी लेते हुए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल कहते हैं कि अब तो राज्य सरकार के पास कोई बहाना नहीं है। उसे अपना हर वादा पूरा करना चाहिए। रमन सिंह जिन मुद्दों पर केंद्र की यूपीए सरकार पर मांग कर रहे थे, उन्हें अब भाजपा सरकार से उन मसलों को पूरा करवाना ही चाहिए। हम इन मुद्दों पर विस्तृत आंदोलन की भूमिका बना रहे हैं
छत्तीसगढ़ सरकार के सामने ऐसे कार्यों की फेहरिस्त तो बहुत लंबी है, जो केंद्र की मदद से राज्य की तस्वीर बदल सकते हैं। लेकिन कुछ मसले ऐसे हैं, जिन पर तात्कालिक प्रयास करने की जरूरत है। दरअसल यही वे मुद्दे हैं, जिनके सहारे भाजपा अब तक छत्तीसगढ़ के सिंहासन पर सत्तारूढ़ होती रही है। राज्य सरकार को एक और बात ध्यान में रखनी होगी कि अब चाल कोई भी चले, लेकिन पासा केवल और केवल उसी के पाले में रहने वाला है।



सोमवार, 2 जून 2014

Dantewada Tribals Say No To Polluting Mine

NMDC’s plan for a new iron ore mine gets clearance from the Centre but runs into protesting locals in the Maoist-hit region. Priyanka Kaushal reports.
On 18 may, 2,500 tribals gathered outside the Kirandul project office of the State-owned National Mineral Development Corporation (NMDC) in the Maoist-hit Dantewada district of Chhattisgarh. Holding placards, the tribals from 55 villages, including women, were protesting against the iron ore mining projects in the region, which, they allege, are endangering their lives by causing rampant pollution.
In the eye of the storm are the NMDC’s iron ore mines near Kirandul and Bacheli villages. According to the tribals, the mines have led to the contamination of their water sources, so much so that “the water has turned red”. Not only is the polluted water killing livestock, many villagers have also contracted serious ailments because of drinking it.
“We will not tolerate this anymore,” says Ramesh Samu, who led the protest. “The mining corporation has fooled us by promising jobs. Our children are dying because of the polluted water. Our fields are becoming barren and the cattle are dying, too. The mining must stop.”
Besides demanding safe water supply and compensation for the damage they have suffered, the villagers are also asking for employment opportunities, healthcare and education. Moreover, they are opposing a double-track railway line being laid from Koraput in neighbouring Odisha to Bailadila in Dantewada district. The protesters claim that the railway line would add to their woes by facilitating more mining projects.
Though the tribals have been opposing mining projects in the region for a long time, things came to a head when the NMDC was given the forest clearance to start iron ore mining in Bailadila Deposit 13. This decision was taken in a meeting of the Forest Advisory Committee (FAC) of the Union environment ministry on 29-30 April. Earlier, the NMDC had permission for mining in four (two near Kirandul, and two near Bacheli) of the total 14 iron ore mines in the area. According to an NMDC official, Deposit 13 has 300 million tonnes of iron ore.
Chief Minister Raman Singh had written to the FAC, requesting clearance for the new mine as it would provide ore to the sponge iron and steel industries in the state. He had argued that it would boost steel production and provide employment opportunities in the Maoist-hit region. Currently, the NMDC mines provide only half of the ore required by these industries.
On the flip side, however, is the impact of mining on the tribal population. Despite the check dams constructed by the NMDC to reduce water pollution, the Shankini and Dankini rivers, which flow through the area and are the villagers’ main source of water, have turned into reddish marshes. Nearly 35,000 hectares surrounding the mines have been adversely affected and the forest cover has been lost.
VK Satpathi, NMDC’s director of production, told TEHELKA, “We are doing everything that we can. It’s the government’s job to provide employment, health and education, not ours. Yet we are providing facilities to the local community as part of our corporate social responsibility activities.”
According to official figures, Chhattisgarh accounts for a fifth of India’s coal and iron ore reserves. The Bailadila hills in Dantewada are considered to have the best iron ore deposits in the country. Together, the 14 mines in the hills are reported to have 1.2 billion tonnes of iron ore deposits. The NMDC extracts around 60,000 tonnes of iron ore every year from its mines in Dantewada and has been operating in the region since 1960.
With the tribals living in the region seeing the NMDC’s mining projects near Bacheli and Kirandul villages as a nuisance, attempts to extend the mining activities are bound to face stiff opposition. The government has a tough task ahead: to address the tribals’ concerns while removing the roadblocks to the state’s industrialisation, without letting the Maoists take advantage of the situation.

Still Looking For Clues

With the BJP in power at the Centre, the chances of unravelling the conspiracy behind the Darbha massacre look brighter
A year after a convoy of Congress leaders was ambushed in Chhattisgarh, Chief Minister Raman Singh has demanded an inquiry by the National Investigation Agency (NIA) into the political conspiracy surrounding the massacre. Twenty-seven people, including senior Congress leader VC Shukla, state Congress president Nandkumar Patel and his son, and Salwa Judum founder Mahendra Karma were killed in the attack. The only leader to escape the attack was former chief minister Ajit Jogi, who has been accused of being involved in the attack by his own partymen.
“From the beginning, charges of political conspiracy have been levelled. It is time for the truth to come out. The matter must be investigated properly, till we come to a conclusion,” Singh said.
Following the attack, the state intelligence revealed that they had prior intimation of an attack in Darbha. A letter dated 19 March 2013 released from the police station in Darbha said that around 100-150 Maoists are expected to gather and attack police stations in Byanar or Darbha. Another letter dated 10 April 2013 mentioned that the Maoists had formed three small teams to kill Mahendra Karma and former Salwa Judum leaders Ajay Singh and Vikram Mandavi. Their security personnel were also instructed to take special caution. That Jogi and other Congress leaders were not warned is hardly likely. In this case, charges have also been leveled against Konta MLA Lakhma Kwasi, who is a Jogi supporter.
Though present at Darbha, Kwasi was not harmed in the attack. Many Congress leaders now say that they had advised a change in the route but Kwasi insisted on getting to Darbha via the Jeeram valley, where the ambush took place. People now also question the changes made at the last moment to the itinerary. As per schedule, the meeting at Sukma, which was to be held on 22 May, was postponed to 25 May, and other meeting was added on the same day at Darbha. With these inexplicable changes, the talk of a political conspiracy theory gained currency. Two days later, on 27 May 2013, the investigation was handed over to the NIA.
Jogi says, “Those who use lies as weapons will never succeed. The whole episode should be investigated thoroughly.”
The NIA claims that it has not given a clean chit to any politician. It has arrested eight people and issued arrest warrants against 27 Maoists. The agency has concluded that nearly 100 Maoists were involved in the ambush, but has not been able to conclude whether politicians were involved. This is being seen as an indication of sorts that under new bosses, the agency may extend its investigation to another level. Several eyewitnesses are waiting for their testimonies to be recorded. One of them, Daulat Rohra, who was VC Shukla’s spokesperson, told TEHELKA that he received a phone call from the NIA on 26 June with regards to recording his statement, but has not received any intimation since. Daulat was with Shukla at the time of attack in his vehicle.
NIA Inspector General Sanjeev Singh says, “Our investigation is still ongoing. When the investigation is over, we will file a chargesheet in the court. At the moment, we have not ruled out any situation. We still have to examine several points.”
On the other hand, the NIA has asked police superintendents to catch the Maoists involved in the attack. It has handed over the names, addresses and other vital information regarding those involved in the attack. Two Maoists in Bastar — Kosa, 38, and Deva Kudyami, 35 — have been arrested. The police arrested these two from Darbha Chandameta village. Apart from the duo, the police has also arrested Jyoti alias Pramila, Banjami Sanna, Aata Markam and Mukka Maravi. The NIA is trying to determine where the instructions to kill Congress leaders came from. All options are open before NIA. If links of arrested Naxalites can be traced back to some political person, then Chhattisgarh politics will not be the same again.