केंद्र में मोदी सरकार के आगाज़ के साथ ही भले ही देश के अच्छे दिन
शुरु हो गए हों, लेकिन छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का समय कुछ ठीक
नहीं चल रहा है। अब तक अजेय योद्धा के रूप में जाने जाते रहे जोगी का तिलस्म लोकसभा
चुनाव में हार के बाद टूट चुका है। उनकी फीकी पड़ती चमक के बीच अब उनका भविष्य
झीरम घाटी हत्याकांड की पड़ताल कर रही राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (NIA) की चार्जशीट पर
निर्भर करेगा।
अब तक झीरम घाटी हमले को मात्र सुरक्षा में चूक मानते रहे मुख्यमंत्री
रमन सिंह भी चाहते हैं कि 25 मई 2013 को झीरम घाटी में हुए कांग्रेस नेताओं के
हत्याकांड की सूक्ष्मता से जांच की जाए, ताकि सच्चाई सामने आ सके। हत्याकांड की
पहली बरसी पर रमन सिंह का बयान आया कि ‘शुरु से ही इस मामले में कई आरोप प्रत्यारोप लगते
रहे हैं। यदि ऐसा है तो सच निकलकर सामने आना चाहिए। छत्तीसगढ़ के लोगों के मन में
यह बात है कि कहीं ये हमला साजिश तो नहीं। इसलिए मामले की अच्छे से जांच होना
जरूरी है, तभी निष्कर्ष निकलेगा’। रमन सिंह के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे
हैं। एक मायना तो ये भी है कि पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी शुरु से ही पूरे मामले
में संदेह के दायरे में रहे हैं। खुद कांग्रेस नेताओं ने ही उनकी भूमिका पर शक
जाहिर किया था। ऐसे में माना जा रहा है NIA जोगी को केंद्र में रखकर भी आगे की जांच कर रही
है। शुरु से ही जोगी पर ही लोगों की उंगलियां क्यों उठ रही हैं, इसे जानने के लिए
25 मई 2013 के घटनाक्रम पर एक सरसरी नज़र डालना जरूरी है।
25 मई 2013 को दरभा ब्लाक की झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस
नेताओं के खून की होली खेली थी। नक्सलियों ने परिवर्तन यात्रा के तहत झीरम से गुजर
रहे कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला कर 30 कांग्रेस नेताओं को मौत की नींद सुला
दिया था। इसमें तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल से लेकर सलवा जूडूम महेंद्र
कर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री वीसी शुक्ल समेत कई छोटे-बड़े कांग्रेस नेता शामिल
थे। यहां याद रखने वाली बात ये भी है कि जिस वक्त प्रदेश में कांग्रेस की परिवर्तन
यात्रा निकल रही थी। ठीक उसी वक्त मुख्यमंत्री रमन सिंह अपनी विकास
यात्रा पर थे। अमूमन दोनों ही पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर जनसभा ले रहे थे। विकास
यात्रा भी धुर नक्सल इलाकों से गुजरी थी, लेकिन रमन सिंह की सुरक्षा व्यवस्था
पुख्ता होने के कारण कोई अप्रिय घटना नहीं घट पाई थी। वहीं कांग्रेस नेताओं का
आरोप है कि परिवर्तन यात्रा को कोई सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई थी। जिसका फायदा
उठाते हुए नक्सलियों ने इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया था। हांलाकि इस
हत्याकांड के तत्काल बाद कांग्रेस के ही एक बड़े नेता यानि अजीत जोगी पर साजिश का
आरोप लगाया जाने लगा था। जोगी खुद सुकमा में हुई उस अंतिम सभा में मौजूद थे, जो
हत्याकांड के पहले हुई थी। लेकिन जोगी उस सभा में हैलीकॉप्टर से गए और वापस रायपुर
आए। जबकि शेष नेता सड़क मार्ग से दरभा की अगली सभा के लिए जाते वक्त नक्सल हमले का
शिकार हो गए। तभी से जोगी शक के दायरे में आ गए। दरअसल जोगी को पुलिस के
इंटेलिजेंस विभाग के दस्तावेज भी कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। जिनमें बार-बार पुलिस
को ये सूचना दी जा रही थी कि जगदलपुर के दरभा, सुकमा के थाना दोरनापाल, तोंगपाल,
दंतेवाड़ा में नक्सलियों का जमावड़ा बड़ी संख्या में हो रहा है। कहने का आशय ये कि
सरकार से लेकर सबको पता था कि दरभा में नक्सली मौजूद हैं। 19 मार्च 2013 को पुलिस
मुख्यालय से जारी एक पत्र में साफ उल्लेख किया गया था कि जगदलपुर के दरभा इलाके
में 100 से 150 नक्सली मौजूद हैं। जो थाना बयानार या दरभा पर हमला कर सकते हैं।
साथ ही सर्चिंग पर निकलने वाली पुलिस पार्टी पर एम्बुश लगाकर बड़ा हमला कर सकते
हैं।10 अप्रैल 2013 को पुलिस मुख्यालय को इटेंलिजेंस की सूचना मिली थी कि कांग्रेस
नेता महेंद्र कर्मा, पूर्व सलवा जूडुम नेता विक्रम मंडावी और अजय सिंह को मारने के
लिए नक्सलियों ने तीन एक्शन टीम का गठन किया था। उनके सुरक्षा कर्मियों को भी
विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए थे। 17 अप्रैल को फिर पुलिस के गोपनीय पत्र
में चेताया गया था कि माओवादियों ने कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा और राजकुमार तामो
को मारने के लिए स्माल एक्शन टीम बनाई है। जिसका दायित्व माओवादी मिलिट्री कंपनी
नंबर 02 के पार्टी प्लाटून सदस्य राकेश को सौंपा गया है। इस तरह की कई
सूचनाएं पुलिस को मिल रही थी। लेकिन इतनी सूचनाओं के बाद भी बस्तर यात्रा पर निकले
कांग्रेस नेता मारे गए, केवल अजीत जोगी हत्याकांड के पहले ही रायपुर सुरक्षित
पहुंच गए। इस मामले में जोगी समर्थक कोंटा विधायक कवासी लखमा पर भी कई आरोप लगे
थे। लखमा को नक्सलियों ने बगैर कोई नुकसान पहुंचाए छोड़ दिया था, जबकि उनके साथ
मौजूद नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल, महेंद्र कर्मा, वीसी शुक्ला समेत कई
नेताओं को माओवादियों ने गोलियों से भून दिया था। कवासी लखमा को लेकर एक नहीं कई
विवाद खड़े हो गए थे। कई कांग्रेस नेताओं का आरोप था कि कांग्रेस नेता अपना रूट
बदलना चाहते थे, लेकिन कवासी इसी रूट से आगे बढ़ने को लेकर अड़ गए थे। परिवर्तन
यात्रा के तयशुदा कार्यक्रम में आखिरी समय में जो बदलाव किया गया था, वो भी कई
सवाल खड़े कर रहा है। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कांग्रेस विधायक कवासी लखमा
के विधानसभा क्षेत्र कोंटा के तहत आने वाले सुकमा में 22 मई को सभा रखी गई थी। इस
दिन केवल यही एक कार्यक्रम तय था। लेकिन बाद में मूल कार्यक्रम में दो बड़े बदलाव
किए गए। पहला ये कि सुकमा की 22 मई को होने वाली सभा 25 मई को कर दी गई। दूसरा
सुकमा के साथ ही एक और सभा दरभा में भी रख दी गई। उसी दिन नेताओं को सुकमा से दरभा
जाते वक्त नक्सलियों ने अपना शिकार बनाया।इन्हीं कारणों से इस हत्याकांड को
राजनीतिक षडयंत्र से जोड़कर देखा जाने लगा। चूंकि कवासी लखमा जोगी कैम्प के समर्थक
हैं, इसलिए हत्याकांड के तार जोगी से जोड़े जाने लगे। घटना के दो दिन बाद यानि 27
मई 2013 को इसकी जांच NIA को सौंप दी गई थी।
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, जो कि झीरम घाटी नक्सल
हमले के बाद अपने ही नेताओं के निशाने पर आ गए थे, तहलका से कहते हैं कि ‘जो असत्य को हथियार
बनाता है, वो कभी सफल नहीं होता। इतना जरूर है कि पूरे मामले की सूक्ष्म जांच होनी
चाहिए। फिलहाल NIA नक्सलियों की भूमिका पर जांच कर रही है। उन्हें गिरफ्तार भी किया जा
रहा है’।
झीरम घाटी हत्याकांड की पड़ताल कर रही नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी ने
अभी किसी राजनेता को क्लीन चिट नहीं दी है। 8 माओवादियों को
गिरफ्तार करने और 27 के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने के साथ NIA की जांच अभी जारी
है। एनआईए ने पिछले एक साल में अब तक की अपनी इंवेस्टिगेशन के दौरान पाया है कि
झीरम घाटी हत्याकांड में 100 माओवादी शामिल थे। इनमें नक्सलियों के शीर्षस्थ
नेताओं के नाम भी शामिल है। लेकिन बावजूद इसके NIA अभी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है कि इस
हद्यविदारक हत्याकांड में राजनीतिक संलिप्तता थी या नहीं। इस बिंदु पर NIA की अभी पड़ताल जारी
है। हालांकि अभी तक झीरम घाटी के चश्मदीद गवाह कई कांग्रेस कार्यकर्ता अपनी गवाही
की बाट जोह रहे हैं। उन्हीं में से वीसी शुक्ल के प्रवक्ता रहे दौलत रोहड़ा बताते
हैं कि उन्हें 26 जून 2013 को NIA की तरफ से फोन आया था कि उनकी गवाही ली जानी है,
लेकिन उसके बाद उन्हें बयान के लिए कोई बुलावा नहीं आया। जबकि दौलत हमले के वक्त
वीसी शुक्ल के साथ उनके वाहन में ही मौजूद थे।
NIA के आईजी संजीव सिंह तहलका को कहते हैं ‘हमारी जांच अभी जारी है। जिस दिन जांच
समाप्त हो जाएगी, हम कोर्ट में चार्जशीट फाइल कर देंगे। जिस तरह की बातें हो रही
हैं कि NIA ने
गृहमंत्रालय को रिपोर्ट सौंप दी है। ऐसा कुछ नहीं है, ना हमने कोई रिपोर्ट सौंपी
है, ना ही भविष्य में हमें कोई रिपोर्ट किसी को देना है। हम सीधे चार्जशीट फाइल
करेंगे। फिलहाल हमने किसी स्थिति से इंकार नहीं किया है, अभी तो हमें कई बिंदुओं
पर जांच करना शेष है’।
हमले में मारे गए बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा के पुत्र दीपक कर्मा और
नंदकुमार पटेल के बेटे उमेश पटेल लगातार इस मामले को राजनीतिक हत्याकांड बता रहे
हैं। दीपक कहते हैं कि उन्होंने इस संबंध में NIA को कुछ दस्तावेज भी सौंपे हैं। कर्मा
घटना की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने रविवार को का कांग्रेस
उपाध्यक्ष राहुल गांधी से फोन पर बात कर मदद करने का आग्रह किया है। वहीं उमेश
कहते हैं कि यदि उन्हें न्याय नहीं मिला तो वे न्यायालय की शरण में जाएंगे। लेकिन
इसके पहले उन्हें NIA की जांच पूरी होने का इंतजार है।
दूसरी तरफ NIA ने हमले में शामिल नक्सलियों को पकड़ने का काम
पुलिस अधीक्षकों को दिया है। इन्हें नक्सलियों के नाम, पते, पोजीशन समेत कई
महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई हैं। नक्सलियों की गिरफ्तारी शुरु हो चुकी है। बस्तर
जिले में झीरम घाटी हमले में शामिल दो नक्सलियों कोसा (38 वर्ष) और देवा कुड़यामी
(35वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया गया है। इन दोनों को दरभा थाने की पुलिस ने
चांदामेटा गांव से गिरफ्तार किया है। इसके अलावा पुलिस ने बीजापुर निवासी ज्योति
उर्फ प्रमीला, तोंगापाल निवासी बंजामी सन्ना, आता मरकाम और मुक्का मरावी को भी
गिरफ्तार कर लिया है। इन नक्सलियों को इस हत्याकांड के लिए कहां से निर्देश आए थे,
ये जानने के लिए पुलिस की पूछताछ जारी है।
बहरहाल इस मामले में NIA ने जांच के अपने सारे विकल्प खुले रखे हैं। अब
तक नक्सलियों की भूमिका की जांच कर रही NIA ने इस बात से इंकार नहीं किया है कि आगे की जांच
में सूबे के राजनेताओं की संलग्नता पर भी पड़ताल की जाएगी। गौर करने लायक बात ये
भी कि राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने यूपीए सरकार
के कार्यकाल के आखिर तक चुप्पी साधे रखी थी, लेकिन केंद्र में भाजपा सरकार आते ही NIA का जिन्न बोतल से
बाहर निकल आया है। हो सकता है कि NIA की आगे की जांच और फिर चार्जशीट में कई चौंकाने
वाले खुलासे हों। जिससे छत्तीसगढ़ की राजनीति में भूचाल आ जाए।
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