मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

माउंट आबू में देश का पहला मेगा ग्रीन किचन


अपनी 80वीं वर्षगांठ मना रहे माउंट आबू स्थित प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की एक खासियत देश का पहला इको फ्रेंडली ग्रीन किचन है। जहां बगैर प्रदूषण फैलाए एक बार में चालीस हजार लोगों का खाना बनता है। इस ग्रीन किचन की खासियत यह भी है कि यहां थर्मिक फ्लूएंस इटिंग सिस्टम से खाना बनता है, जो देश में अपने आप में अनूठा है।
 

देश में स्थित बडे-बडे आध्यात्मिक संस्थानों में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु भोजन करते है। इन श्रद्धालुओं का भोजन बनाने के लिए मेगा किचन का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन देश का एक आध्यात्मिक संस्थान ऐसा भी है, जो अपने कैंपस में आने वाले हजारों फॉलोअर्स को भोजन तो प्रदान करता ही है, लेकिन पर्यावरण का भी खास ख्याल रखता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं माउंट आबू स्थित ब्रह्माकुमारीज़ की। जहां देश का पहला ग्रीन किचन है। 1996 से यहां सौर ऊर्जा से खाना बनाया जाता रहा है। 2012 से थर्मिक फ्लूएंस इटिंग सिस्टम का उपयोग भी होने लगा है, जिससे पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए एक समय में चालीस हजार लोगों का खाना एक साथ बनाया जाता है। यह देश का ऐसा पहला मेगा किचन है, जिसका तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं जाता है। 


ब्रह्माकुमारीज़ के मेगा किचन की एक विशेषता यह है कि यहां भोजन बनाने वाले लोग वेतनिक कर्मचारी नहीं होते हैं, बल्कि आश्रम में ही आस्था रखने वाले फॉलोअर्स होते हैं। जो देश के कोने-कोने से पहुंचकर निस्वार्थ भाव से अपने ही जैसे फॉलोअर्स की सेवा करने पहुंचते हैं। एक ही समय में यहां हजारों रोटियां पकाई जाती हैं, सैंडविच और पराठें तैयार किए जाते हैं। किचन का माहौल बेहद आध्यात्मिक होता है, ईश्वर की याद में खाना पकाया जाता है। साथ ही स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। यहां सैंकडों ट्रकों में भरकर सब्जी आती है, जिसे कोल्ड स्टोरेज में संरक्षित करके रख लिया जाता है। फिर मेनू के मुताबिक सब्जियों की कंटाई-छंटाई कर उन्हें पकाया जाता है।
यहां आने वाले सेलिब्रिटिज़ भी ब्रह्माकुमारिज़ के मेगा किचन को देखकर दंग रह जाते हैं। मेगा किचन के विहंगम दृश्य को देखकर राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन भी इसकी तारीफ किए बगैर नहीं रह पाए।

जब आप माउंट आबू आएं तो ब्रह्माकुमारिज़ जरूर आएं। एक आध्यात्मिक संस्थान किस तरह लाखों लोगों को जीवन जीने की कला सिखाने के साथ-साथ प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण करना भी सिखाता है, यह देखना आपके लिए  अद्भुत और बिरला अनुभव साबित होगा।

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

अध्यात्म के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान

-देश में कई आध्यात्मिक संस्थान हैं, जो अपने अनुयायियों को ईश्वर से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। लेकिन इन सबमें प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय अपने आप में अनूठा है। ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान अपने अनुयायियों ना केवल परमात्मा से तो जोड़ता है, बल्कि वर्षों से विश्व को पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दे रहा है। जब देश में किसी ने नहीं सोचा था कि आने वाले समय में पानी को बचाने की मुहिम भी चलानी पड़ेगी। वेस्टेज़ वॉटर को रिसाइकिल भी करना पड़ेगा। तब आबू रोड़ स्थित ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान ने इस दिशा में काम करना शुरु कर दिया था। आज से 12 वर्ष पूर्व संस्थान ने आबू रोड़ पर सीवेज वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट की शुरुआत की। जहां उस पानी को पुनः उपयोगी बनाया जाता है, जो शांतिवन में रहने वाले समर्पित भाई-बहनों और देश भर से आने वाले हजारों अनुयायियों के दैनिक कार्यों में इस्तेमाल होने के बाद सीवेज में चला जाता है। सीवेज प्लांट में प्रतिदिन 30 लाख लीटर पानी रिसाइकिल किया जा सकता है। 

ब्रह्माकुमारीज़ के सीवेज वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में पांच चरणों में पानी के शुद्धीकरण की प्रक्रिया की जाती है। सबसे पहले पानी शांतिवन स्थित अंडरग्राउंड टैंक में संग्रहित होता है। इस टैंक में ऑटोमेटिक पंप लगा हुआ है, जब टैंक भर जाता है, तब स्वचालित पंप पानी को ट्रीटमेंट प्लांट के टैंक में भेज देता है। यहां अलग-अलग क्षमता वाले टैंकों में एरियेटर पद्धति से पानी का शुद्धीकरण किया जाता है। अंत में पानी को क्लोरीन द्वारा भी साफ किया जाता है।


सीवेज वॉटर ट्रीटमेंट में रिसाइकिल होने के बाद पानी को भवन निर्माण कार्यों और बाग-बागीचों में इस्तेमाल किया जाता है। इससे हजारों लीटर पानी की रोजाना बचत होती है। साथ ही शांतिवन के अलावा ब्रह्माकुमारीज़ के अन्य कैम्पस भी हरियाली से आच्छादित रहते हैं। बहरहाल जब पूरी दुनिया पानी को लेकर हाहाकार कर रही है, ऐसे वक्त में प्रतिदिन हजारों लोगों का अपने परिसर में स्वागत करने के बाद भी ब्रह्माकुमारीज़ अपने वॉटर मैनेजमेंट के कारण अनूठी मिसाल पेश कर रही है।