सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

अंधविश्वास फैलाते चर्च!





छत्तीसगढ़ का पिछड़ा और वनवासी इलाका है जशपुर। झारखंड और ओडिसा दोनों ही राज्यों की सीमाएं जशपुर से लगी हुई हैं। यहां पहाड़ी कोरवा, बिरहोर, नगेशिया उरांव इत्यादि वनवासियों का संरक्षित जनजातियां निवास करती हैं। लीची, आलू, आम जैसे खाद्य पदार्थ यहां बहुतायात में होते हैं। लेकिन इनकी पैदावार का कोई खास फायदा यहां के वनवासियों को नहीं मिलता, यही कारण है कि यहां गरीबी, अशिक्षा, पलायन, मानव तस्करी जैसी समस्याओं से अमूमन हर वनवासी ग्रस्त है। उनकी इन्हीं परेशानी का फायदा यहां काम कर रही मिशनरीज़ उठाती हैं। धर्मांतरण यहां जोरों पर है। लेकिन इस बार मेरी जशपुर यात्रा में एक नया तथ्य सामने आया। वह यह कि चर्च यहां अंधविश्वास भी फैला रहे हैं। आमतौर पर उन्मुक्त जीवन जीने वाले वनवासी शुभ-अशुभ के फेर में नहीं पड़ते। उनका जीवन प्रकृति की लय के साथ निर्बाध चलने वाला है, उनके विचारों या मन में कभी किसी भी तरह का भय नहीं रहा। लेकिन स्थानीय चर्च वनवासियों के मन में अब अच्छी-बुरी आत्माओं के नाम से एक नया डर पैदा करने में सफल हो रही है। जशपुर के बगीचा ब्लॉक के पंडरीपानी गांव में घुसते ही आपको दो रंग के मकान दिखाई देते हैं। यहां के अधिकांश मकानों की पुताई काले रंग से की गई है। पूछने पर पता चला कि इन मकानों को बुरी आत्माओं की नजर से बचाने के लिए काले रंग से पोता गया है। यह चौंकाने वाली बात थी। मैंने फिर पूछा कि वनवासी कब से इस तरह की बातों में यकीन करने लगे, वे तो जंगलों में उन्मुक्त जीवन जीने के आदी हैं। मुझे अपना बस्तर का एक अनुभव भी याद आया, जब मैंने एक बार एक वनवासी बंधु से पूछा कि उन्हें रात में जंगलों में डर नहीं लगता। उसका जबाव था कि हम प्रकृति की संतान हैं, हमें किसी का डर नहीं। हमारी जीवनशैली में किसी भी प्रकार के भय का कोई स्थान ही नहीं है। बस्तर के उस वनवासी बंधु की बात से बिलकुल उलट जशपुर में नजर आ रहा है। मेरे साथ मौजूद स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि दरअसल  इस क्षेत्र में उरांव जनजाति के अधिकांश वनवासियों का धर्मांतरण हो चुका है, वे सभी ईसाई मतावलंबी हो चुके हैं। वे सभी अपने घरों को काले रंग से ही पोतते है, ताकि बुरी शक्तियां उनके घर से दूर रहें। अन्य वनवासी जो चर्च नहीं जाते, वे सामान्य रंगों से घर की पुताई करते हैं। आप कल्पना कीजिए की पंडरीपानी गांव...काले रंग के मकानों से भरा पड़ा है, तो वो कैसा दिखाई देता होगा। यह एक तरह से वनवासी बंधुओं के जीवन के रंग छीन लेने जैसा है। कहां तो वे प्राकृतिक रंगों से घरों की दीवारों को सजाते संवारते रहे हैं, और कहां.. वे काले रंग के घरों में कैद होकर रह गए हैं। जब हमने स्थानीय चर्च से बात करना चाही तो उन्होंने इस पर कुछ भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। 



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