शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

झांसे का एंबुश


नक्सलियों ने धोखेबाजी की एक और मिसाल कायम कर दी। सुकमा में हुए नक्सल हमले में नक्सलियों ने जवानों को फंसाने के लिए ग्रामीणों का भेष धारण किया, ताकि सीआरपीएफ के जवान उन्हें पहचान ना पाएं। इस तरह धोखे से नक्सली अपने नापाक मंसूबे में कामयाब भी हो गए और उनके एंबुश में फंसकर 14 जवान शहीद हो गए।
छत्तीसगढ़ में अत्यधिक नक्सल प्रभावित जिले सुकमा में पिछले 10 दिनों के भीतर ही एक ही स्थान पर नक्सलियों ने दूसरी बार हमला कर सीआरपीएफ के दो अफसरों समेत 14 जवानों को मौत के घाट उतार दिया। पड़ताल में यह बात सामने आ रही है कि नक्सलियों ने जवानों को झांसा देकर अपनी मांद में बुलाया था। छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों लगातार होते नक्सलियों के सरेंडर और गिरफ्तारी से उत्साहित जवान नक्सलियों के एंबुश का शिकार हो गए। घायल जवानों की मानें तो नक्सली ग्रामीणों की वेश भूषा में थे, जिसके कारण जवान मात खा गए। कहा यह भी जा रहा है कि नक्सलियों ने ग्रामीणों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया, जैसा कि वे हमेशा से करते रहे हैं।
अब पुलिस और गृह विभाग के आला अफसर कड़ियों को आपस में जोड़ रहे हैं तो ऐसा लग रहा है कि नक्सलियों ने फोर्स को झांसा दे कसलपाड़ के आसपास आने पर मजबूर किया था ताकि उन्हें एंबुश में फंसा सकें। पुलिस को अपनी तहकीकात में मिले सुरागों से पता चल रहा है कि नक्सलियों ने अपने मुखबिर के जरिए ऑपरेशन पर निकले जवानों और उनके अफसरों तक यह सूचना पहुंचाई थी कि कसलपाड़ गांव में नक्सलियों का जमावड़ा है। जवानों को भेजी गई सूचना में यह भी बताया गया था कि हाल ही में आईजी सीआरपीएफ के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों को कसलपाड़ गांव में ही जलाया या दफनाया गया है। इसी सूचना के आधार पर 237 जवानों का दल कसलपाड़ गांवो को घेरने पहुंचा था। फोर्स के पहुंचने के कुछ ही सेकेंड्स के भीतर नक्सलियों ने गांववालों को ढाल की तरह इस्तेमाल करते हुए लाइट मशीनगन से ताबडतोड़ फायरिंग शुरु कर दी। गांववालों को नक्सलियों की ह्यूमन शील्ड की तरह सामने पाकर जवान जबावी कार्यवाही करने में ठिठक गए और जवानों की मौत का आंकड़ा बढ़ गया।
घटना के बाद रायपुर पहुंचे केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राजभवन में मुख्यमंत्री रमन सिंह और आला अफसरों की बैठक लेने के बाद कहा कि इस घटना से व्यक्तिगत रूप से आहत हूं। नक्सली बौखलाए हुए हैं और उन्होंने कायराना हरकत की है। यह हमला केवल सरकार के लिए नहीं बल्कि देश और देश के समस्त शांतिप्रिय नागरिकों के लिए चुनौती है। 
सोमवार को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के चिंतागुफा के पास नक्सलियों ने इस साल की बड़ी वारदात को अंजाम दिया। नक्सलियों के इस हमले में सीआरपीएफ के दो अधिकारियों समेत 14 जवान शहीद हो गए। इसमें सीआरपीएफ की 223 बटालियन के डिप्टी कमांडेंट डीएस वर्मा निवासी कानपुर और असिस्टेंट कमांडेंट राजेश कपूरिया निवासी राजस्थान शामिल हैं। सीआरपीएफ ने 14 जवानों के शहीद होने और 15 के घायल होने की पुष्टि की है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नक्सली हमले को लेकर ट्विट किया है। नरेंद्र मोदी ने नक्सली हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ के जवानों को सलाम किया है। साथ ही उन्होंने गृहमंत्री राजनाथ सिंह और मुख्यमंत्री रमन सिंह को निगरानी का निर्देश दिया है।
मुख्यमंत्री रमन सिंह ने घटना के बाद दिल्ली दौरा रद्द कर रायपुर पहुंचने पर कहा कि नक्सलियों में इतना साहस नहीं है कि वे सुरक्षा बलों से आमने-सामने मुकाबला कर सकें, इसलिए उन्होंने कायरतापूर्ण तरीके से घात लगाकर हमला किया।
माना जा रहा है कि सूचना तंत्र की विफलता के कारण यह घटना हुई है। दूसरी तरफ घायल जवानों का दावा है कि हमले के दौरान जवाबी कार्रवाई में करीब 10 नक्सलियों के मारे जाने की सूचना है, लेकिन उनके शव बरामद नहीं हो पाए हैं। इसका एक कारण नक्सलियों व्दारा अपने साथियों के शवों को भागते वक्त साथ ले जाना बताया जा रहा है।
एडीजी नक्सल ऑपरेशन आरके विज ने बताया कि चिंतागुफा से दस किलोमीटर दूर कसलनार के पास नक्सलियों ने संयुक्त ऑपरेशन पर निकले जवानों को निशाना बनाया। एरिया डामिनेशन के लिए कोबरा की 206वीं बटालियन और सीआरपीएफ की 223वीं बटालियन के जवान सर्चिंग पर थे। नक्सलियों ने फाइरिंग से पहले ब्लॉस्ट किया। दोपहर लगभग दो बजे एंबुश लगाकर हमला किया। नक्सली हमले में 15 जवान घायल हुए हैं, जिनका इलाज रायपुर में किया जा रहा है। 29 नवम्बर को गोरगुड़ा, पोलमपल्ली, कांकेरलंका, पुसवाड़ा, तेमेलवाड़ा, चिंतागुफा, बुरकापाल, चितंलनार, भेज्जी के सीआरपीएफ, कोबरा व जिला पुलिस बल के जवान सर्चिग ऑपरेशन के लिए अलग-अलग जगहों से निकले थे। सर्चिग पार्टी को सोमवार शाम चिंतलनार पहुंचना था। कांकेरलंका व चिंतागुफा से निकली हुई पार्टी के साथ नक्सलियों की मुठभेड़ हुई है। मुठभेड़ में नक्सलियों ने घात लगाकर जवानों पर हमला बोल दिया। मंगलवार तक बुरकापाल, चिंतागुफा, कांकेरलंका व पुसवाड़ा की पार्टी वापस कैम्प तक नहीं पहुंची थी। जंगल में नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना पुलिस टीम के पास थी। इसे देखते हुए ही ऑपरेशन किया जा रहा था। बताया जा रहा है कि नक्सली भी सैकड़ों की संख्या में थे। ऑपरेशन के दौरान सीआरपीएफ के आईजी एचएस सिद्ध भी मौजूद थे। यह वारदात उसी स्थान पर हुई है, जहां पिछले महीने नक्सलियों ने एयरफोर्स के हेलिकॉप्टर पर गोलीबारी की थी। नक्सली दो दिसंबर से पीएलजीए सप्ताह मनाने की तैयारी में थे। इसे लेकर सुकमा और आसपास के इलाकों में नक्सलियों ने पर्चे भी फेंके थे। नक्सलियों के अभियान को देखते हुए पुलिस टीम ने जंगल में सर्चिंग ऑपरेशन चलाया था।
नक्सलियों ने दो दिन पहले चिंतागुफा के पास एक बड़ी मीटिंग की थी। इसमें सैकड़ों नक्सलियों के शामिल होने की खबर है। बताया जा रहा है कि नक्सलियों द्वारा जवानों को फंसाने के लिए सुनियोजित ढंग से एम्बुश बिछाई गई थी। इस नक्सली वारदात की रणनीति माओवादियों की सेंट्रल कमेटी के द्वारा बनाए जाने की खबरें आ रही हैं। सूत्रों के मुताबिक 29 नवम्बर को गादीरास के गोरली पहाड़ी क्षेत्र में सेंट्रल कमेटी के सदस्य पंकज, एलओएस सन्नी, आंध्र के एक लीडर जगदीश व देवा की मौजूदगी में नक्सलियों की बैठक हुई थी।
इन्हें फोर्स के सर्चिंग मूवमेंट की जानकारी थी। पिछले कुछ दिन से इस क्षेत्र में सीआरपीएफ के जवान ऑपरेशन में थे। सोमवार को जवान दक्षिण बस्तर की कमेटी के द्वारा बनाए गए एम्बुश में फंस गए। गौरतलब है कि पंकज लंबे समय तक सेंट्रल कमेटी के प्रवक्ता के रूप में सक्रिय रहा, वहीं आंध्र का नक्सली लीडर जगदीश दक्षिण बस्तर की 26 नंबर प्लाटून का कमांडर हैं।
सुकमा जिले की प्रमुख नक्सली घटनाएं
1 जून 2005-फंदीगुड़ा कोंटा- बारूदी सुरंग विस्फोट में सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडेंट समेत छह जवान शहीद।
6 फरवरी 2006-भेज्जी कोंटा- विस्फोट में नागा बटालियन के 10 जवान शहीद।
28 फरवरी 2006-दरभागुड़ा कोंटा- विस्फोट से ट्रक उड़ाया, 28 ग्रामीणों की मौत।
29 अप्रैल 2006- मनीकोंटा कोंटा- 13 ग्रामीणों की हत्या।
17 जुलाई 2006- एर्राबोर कोंटा - राहत शिविर पर नक्सली हमले में 29 ग्रामीणों की मौत।
10 जुलाई 2007-उपलमेटा कोंटा- मुठभेड़ में 24 जवान शहीद।
29 अगस्त 2007-दारमेटला कोंटा- मुठभेड़ में थानेदार समेत 12 जवान शहीद।
6 मई 2009-असीरगुड़ा कोंटा- बारूदी विस्फोट में 11 शहीद।
6 अप्रैल 2010-ताड़मेटला- सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद।
17 मई 2010-चिंगावरम- विस्फोट से यात्री बस उड़ाने से 36 की मौत।
21 अप्रैल 2012- कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन का अपहरण।
11 मार्च 2014 -टाहकवाड़ा- सीआरपीएफ के 16 जवान शहीद।
अब तक 1 हजार जवान शहीद
छत्तीसगढ़ गठन के बाद नक्सली हमले में एक हजार से ज्यादा जवान शहीद हुए हैं। इसमें 595 छत्तीसगढ़ पुलिस व सहायक बल और 405 केन्द्रीय बलों के जांबाज हैं। छत्तीसगढ़ के रहने वाले 368 (जिला पुलिस बल के 243 एवं छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल, एसटीएफ सहित 125) जवान शहीद हुए। वहीं 327 शहादत सीआरपीएफ के जवानों ने दी है। विशेष पुलिस अधिकारी भी पीछे नहीं रहे, इनकी संख्या भी 194 है। किसी एक घटना में सर्वाधिक सुरक्षाकर्मी ताड़मेटला की घटना में सीआरपीएफ के 75 एवं छत्तीसगढ़ पुलिस के एक जवान शहीद हुए। मार्च 2007 में रानीबोदली में विशेष पुलिस अधिकारी सहित 55 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे। पिछले करीब 14 वर्षों में 39 ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसमें 5 या उससे अधिक सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं। वर्ष 2007 में सबसे ज्यादा 200 सुरक्षाकर्मी मारे गए। वर्ष 2009 में 125 और वर्ष 2010 में 170 जवान शहीद हुए।
सूबे की बड़ी नक्सल घटनाएं
सितम्बर 2005 में गंगालूर रोड पर एंटी-लैंडमाइन वाहन के ब्लास्ट करने से 23 जवान शहीद हुए थे। जुलाई 2007 में एर्राबोर अंतर्गत उरपलमेटा एम्बुश में 23 सुरक्षाकर्मी मारे गए। अगस्त 2007 में दारमेटला में मुठभेड़ में थानेदार सहित 12 जवान शहीद हुए। 12 जुलाई 2009 को जिला राजनांदगांव में एम्बुश (ब्लास्ट के बाद हुई फायरिंग) में पुलिस अधीक्षक सहित 29 जवान शहीद हुए।
नारायणपुर के घौडाई क्षेत्र अंतर्गत कोशलनार में 27 सुरक्षाकर्मी एम्बुश में मारे गए थे। 6 अप्रैल 2010 को ताड़मेटला में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए। 11 मार्च 2014 को टाहकवाड़ा में सीआरपीएफ के 16 जवान शहीद हुए। नवंबर में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के हेलिकॉप्टर पर निशाना साधा था, जिसमें सीआरपीएफ के आईजी एचएस संधू सर्चिंग ऑपरेशन पर निकल रहे थे। इस हमले में संधू के गनमैन को नक्सलियों की गोली लगी थी और सात जवान घायल हो गए थे।

कचरे में मिली वर्दी और जूते, राजनाथ ने जताई नाराजगी
जिन जवानों ने नक्सलियों के एंबुश में फंसने के बाद भी मोर्चा लेते हुए शहीद हुए, उन शहीद जवानों की वर्दी अंबेडकर अस्पताल में कचरे के ढेर में मिली। पोस्टमार्टम के बाद वर्दी को कचरे के ढेर में फेंके जाने की बात का खुलासा होने के बाद इस पर काफी आपत्ति जताई जा रही है। कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता तो इन वर्दियों को कचरे के ढेर से उठाकर कांग्रेस भवन ले आए और सम्मानजनक तरीके से रखा। इस बीच पुलिस को इसकी जानकारी हुई तो वह वर्दी लेने कांग्रेस भवन पहुंची, लेकिन कांग्रेसियों ने इसे देने से इन्कार कर दिया। आखिरकार सीआरपीएफ के अफसरों के आने के बाद उन्हें वर्दी सौंपी गईं। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस मामले का संज्ञान लिया है। उन्होंने कहा कि जवानों की वर्दी के बारे में सूचना मिली है और इस बारे में उन्होंने छत्तीसगढ़ के सीएम से बात की है। राजनाथ से आश्वासन दिया कि जो भी इसके लिए दोषी होगा, उस पर कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद मुख्यमंत्री ने मामले की दंडाधिकारी जांच के आदेश दिए हैं। इस बीच केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के महानिदेशक आरसी तायल ने सोमवार को छत्तीसगढ़ के सुकमा में हुए नक्सली मुठभेड़ में 14 जवानों की शहादत की घटना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि फोर्स नक्सलियों की इस चुनौती को स्वीकार करती है।


मौत की दवा




देश में नकली दवा का कारोबार तेजी से फलफूल रहा है। सरकारी तंत्र के संरक्षण में पल रहे इस गोरखधंधे में लोगों
की जान से खेलने में भी परहेज नहीं किया जा रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण छत्तीसगढ़ का पेंडारी नसबंदी कांड है।
जिसे असल में नकली दवा कांड कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

बिलासपुर से लगे घुटकू के मदनलाल सूर्यवंशी पिता मथुरा प्रसाद सूर्यवंशी ने 23 नंबवर को सामान्य सर्दी-जुकाम की
शिकायत पर गनियारी (बिलासपुर) के एक डॉक्टर से दवा ली थी। दवा खाते ही उसके पेट में तेज दर्द होने लगा।
चेहरे, पैरों में सूजन गई और सांस लेने में तकलीफ होने लगी। युवक के परिजन उसे लेकर बिलासपुर पहुंचे और
मंगला नाका चौक में एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया। एक दिन बाद ही सुबह उसकी मौत हो गई। अस्पताल
प्रबंधन ने इसकी सूचना सिविल लाइन थाने में दी। मदन की मौत के ठीक एक दिन पहले ही एक वृद्ध की भी इसी
दवा के साइड इफेक्ट से मौत हो गई थी। ये दोनों मौतें तब हुईं, जब छत्तीसगढ़ में सरकारी नसबंदी शिविर में
ऑपरेशन करवाने के बाद 18 महिलाएं सिप्रोसिन 500 समेत छह अन्य अमानक दवा खाने से मौत की नींद सो चुकी
थीं। इसके बाद आनन फानन में छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेशभर में सिप्रोसिन की 33 लाख टेबलेट जब्त
की, जिनमें से 13 लाख टेबलेट अकेले सरकारी स्टॉक की है।
नकली दवाओं के कारोबार के संबंध में राष्ट्रीय संगठन एसोचैम के अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में इन दिनों
नकली दवा के कारोबार में काफी बढ़ोतरी देखी जा रही है। अध्ययन के अनुसार इस समय देश में 25 प्रतिशत दवाएं
नकली होती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी के क्षेत्र की नकली दवाइयां बनाने वालों के खास जगह
माने जाते हैं।
ऐसोचैम की इस रिपोर्ट के मुताबिक, छत्तीसगढ़ राज्य भी नकली दवाओं की कारोबार से अछूता नहीं हैं। राजधानी बनने
के बाद यहां दवा कारोबार भी खूब फल-फूल रहा है। एसोचैम की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि नकली दवाओं की
तेजी से बढ़ोतरी के पीछे मुख्य कारण अपर्याप्त नियामक, दवा निरीक्षकों की कमी और गुणवत्ता जांचने की प्रयोगशालाओं
का अभाव है।
यह तथ्य सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से भी साबित हो चुका है। आरटीआई कार्यकर्ता उचित शर्मा को
प्रदेश में नसबंदी कांड के बाद सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
छत्तीसगढ़ के खाद्य एवं औषधि विभाग के अधिकारियों ने पिछले दस साल में अमानक दवा बनाने वाली कंपनियों के
खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। प्रदेश में 43 कंपनियों की दवाएं अमानक पाई गईं, इसमें छत्तीसगढ़ की भी एक
दर्जन कंपनियां हैं। अमानक दवाओं के कई मामले कोर्ट में चल रहे हैं। जिन मामलों में विभाग ने कार्रवाई की है, वह
महज खानापूर्ति नजर आ रही है।
खाद्य एवं औषधि विभाग ने प्रदेश से बाहर की दवा कंपनियों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं की। विभाग ने सिर्फ
संबंधित प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को यह सूचना दे दी कि छत्तीसगढ़ में इस कंपनी की दवा अमानक पाई गई है। इन
कंपनियों की दवाओं की प्रदेश में बिक्री प्रतिबंधित नहीं की गई। वहीं छत्तीसगढ़ की दवा निर्माता कंपनियों के खिलाफ
एक से दो महीने तक औषधि निर्माण निलंबित किया गया। प्रदेश की दवा निर्माता कंपनियों में सबसे ज्यादा गड़बड़ी
महावर फार्मा की दवाओं में मिली और इसके निर्माण पर सबसे ज्यादा बार रोक लगाई गई। इसके बाद दूसरे नंबर पर
बिलासपुर की दवा कंपनी कार्वो फार्मा का लाइसेंस निलंबित किया गया। आरटीआई कार्यकर्ता उचित शर्मा ने बताया कि
प्रदेश की दवा कंपनियों के खिलाफ सिर्फ दिखावे की कार्रवाई की जा रही है। नकली दवा मिलने के बाद भी खाद्य एवं
औषधि विभाग ने एक भी कंपनी को बंद नहीं किया।
हद तो तब हो गई, जब विभाग ने अमानक दवा कंपनियों को अच्छे काम के लिए सम्मानित भी किया गया। इसका
प्रत्यक्ष उदाहरण बिलासपुर के कार्वो फार्मा को दिया गया गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेस (जीएमपी) प्रमाणपत्र है। कार्वो
फार्मा की दवाएं अमानक पाई गईं थी। इसकी टेबलेट कोलकाता की लैब में फेल हो गई थी। इसके बाद भी तत्कालीन
(अब निलंबित) सहायक औषधि नियंत्रक हेमंत श्रीवास्तव ने इसे गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेस (जीएमपी) प्रमाणपत्र
जारी किया। कार्वो फार्मा की दवाओं के अमानक होने का मामला कोर्ट में भी चल रहा है। स्वास्थ्य विभाग से मिली
जानकारी के अनुसार, महावर फार्मा से बिलासपुर की कविता फार्मा ने डेढ़ लाख सेप्रोसिन की खरीदी की और स्वास्थ्य
विभाग में तीन लाख सेप्रोसिन की सप्लाई कर दी। इसकी जांच विभाग की ओर से नहीं की जा रही है। इस पूरी दवा
की खरीदी सीएमओ रहे अमर ठाकुर के कार्यकाल में हुई थी। श्री ठाकुर ने स्थानीय खरीदी में कविता फार्मा से दवा की
खरीदी की। अब जबकि नकली दवाओं और छत्तीसगढ़ खाद्य एवं औषधि विभाग का गठजोड़ खुलकर सामने आ गया है
तो विभाग के अफसर किसी भी तरह की बात करने से बच रहे हैं। ड्रग कंट्रोलर रविकांत गुप्ता कहते हैं ‘मैं मीडिया के
सवालों का जवाब दूंगा, तो जांच कब करूंगा’।
अब तो प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने भी दवाइयों में जहर होने की पुष्टि की है। साथ ही उन्होंने माना कि
दवाइयां 'सब स्टैंटर्ड' और 'पॉइजनस' थी। उन्होंने सिप्रोसिन 500एमजी में चूहामार दवा मिलने की पुष्टि की है।
इन सबके बीच नकली दवाओं के मामले में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाईकोर्ट ने नसबंदी मामले में प्रतिबंधित दवाइयों
को वापस मंगाने का निर्देश दिया है। अधिवक्ता अधिवक्ता सतीश वर्मा ने तहलका को बताया कि हाईकोर्ट की खंडपीठ ने
राज्य सरकार को स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा कि सरकार ऐसे लोगों को चिन्हित करे जिन्होंने प्रतिबंधित
दवाओं का पहले या बाद में, कभी सेवन किया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को ऐसे प्रभावित लोगों की सम्पूर्ण और
नियमित जांच कराने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि गांव-गांव में जहां कहीं भी प्रतिबंधित दवाओं
का वितरण किया गया है वहां से इन दवाइयों को तत्काल वापस मंगाया जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य विधिक
सहायता प्राधिकरण को भी निर्देश दिया है कि गांवों में शिविर लगाकर और दूसरे प्रचार-प्रसार माध्यमों से आमजनों में
जागरूकता फैलाई जाए ताकि लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें। नसबंदी मामले में कांग्रेस नेता मणिशंकर पाण्डेय
ने बिलासपुर हाईकोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर की थी। हालांकि राज्य सरकार ने विस्तृत जवाब के लिए समय मांग
लिया है। इसी तरह केंद्र सरकार ने भी जवाब के लिए समय की मांग की है जबकि एम सी आई ने कहा है कि उनकी
आचरण समिति बिलासपुर पहुंचकर मामले की जांच-पड़ताल करेगी। हाईकोर्ट में जस्टिस टी पी शर्मा और जस्टिस इन्दर
सिंह ओबेवेजा की पीठ ने मामले को सुनने के बाद राज्य सरकार को निर्देश दिया कि प्राथमिक तौर पर सरकार ऐसे
लोगों को चिन्हित करे जिन्होंने जाने-अनजाने प्रतिबंधित दवाओं का पहले या बाद में, कभी सेवन कर लिया है। कोर्ट
ने ऐसे लोगों की सम्पूर्ण और नियमित जांच के लिए भी सरकार को निर्देश दिया है। युगल पीठ ने यह भी कहा है कि
जिस किसी भी गांव में, जहां कहीं भी प्रतिबंधित दवाओं का वितरण किया गया है वहां से उन्हें वापस मंगा लिया
जाए। मामले में अगली सुनवाई आगामी 22 दिसंबर को होनी है।
नसबंदी कांड या यूं कहें कि जहरीली दवा कांड के बाद बिलासपुर पहुंचे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी आरोप
लगाया कि महिलाओं की मौत के लिए नकली दवा जिम्मेदार है। राहुल ने कहा कि 'सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं ले
रही है। जबकि सीधे तौर पर सरकार, स्वास्थ्य मंत्री और नकली दवा जिम्मेदार है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह
स्वास्थ्य सेवा दें और अस्पतालों को बेहतर ढंग से चलाए, लेकिन सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं ले रही है। भागने की
कोशिश हो रही है। बात को दबाने की कोशिश हो रही है।''
जब राहुल गांधी बिलासपुर में यह बयान दे रहे थे, तभी राज्य के प्रमुख सचिव स्वास्थ्य डॉ आलोक शुक्ला आंशका
जता रहे थे कि नसबंदी के बाद महिलाओं को दी गई सिप्रोसिन 500 टेबलेट में जिंक फॉस्फेट मौजूद था, जो चूहे
मारने की दवा में इस्तेमाल होता है। शुक्ला ने सार्वजनिक रूप से कहा कि जिन दवाओं को जब्त किया गया है, उनकी
जांच बिलासपुर के साइंस कॉलेज में कराई गई। इसमें जिंक फॉस्फेट मिले होने की पुष्टि हो रही है। छापे के दौरान भी
फैक्ट्री मंन जिंक फॉस्फेट मिला है। इससे ऐसा लगता है कि सिप्रोसिन बनाते समय उसमें जिंक फास्फेट मिला दी गई
होगी।
डॉ. शुक्ला का कहना था कि यह प्रारंभिक जांच में तथ्य मिले हैं। अब उन्हीं दवाओं को दिल्ली और कोलकाता की लैब
में जांच के लिए भेजा गया है। वहां से रिपोर्ट आने के बाद यह बात प्रमाणित हो जाएगी। हालांकि कोलकाता लैब से
रिपोर्ट आने के बाद उसे अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव अपनी बात
पर अब तक कायम हैं। प्रमुख सचिव की स्वीकारोक्ति से यह बात भी स्पष्ट हो रही है कि मौतों के पीछे घटिया दवाई
ही मुख्य वजह है। ऑपरेशन से मौतों का कोई सीधा वास्ता नहीं है। दवाइयों की सप्लाई में ही सारा खेल होने की बात
प्रमाणित होती दिख रही है। शुक्ला ने यह भी कहा कि 'दवा दुकानों में छापेमारी शुरू कर दी गई है, ताकि घटिया दवा
जब्त की जा सके। इन दवाओं में जो लक्षण मिले हैं, वे चूहामार की तरह ही है।'
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नेता अजित जोगी कहते हैं कि ‘राज्य के सरकारी अस्पताल नकली और
बेकार दवाओं से भरे पड़े हैं। जोगी ने आज जारी बयान में कहा कि इस वजह से सरकारी अस्पतालों में आए गरीबों के
सामने इन दवाओं के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता’।
राज्य सरकार की भद्द पिटने के बाद पुलिस ने सिप्रोसिन बनाने वाली महावार फार्मा के संचालक रमेश महावर और
उसके पुत्र को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। महावर अपनी दवाओं की जांच मुंबई के वी. केयर लैब से कराने
का दावा करता रहा है। कंपनी में मिले रैपर में सिप्रोसिन टेबलेट का प्रमोटर मुंबई की इसी लैब को बताया गया है।
लेकिन जांच के लिए मुंबई गई पुलिस टीम को वी केयर लैब नाम की कई लैबोरेटरी ही नहीं मिली।
एक तरफ पुलिस अपनी तहकीकात में लगी है, वहीं दूसरी तरफ महावर फार्मा के अधिकारी नकली दवाओं के सबूत
मिटाने में जुटे हुए हैं। यही कारण है कि कभी तालाबों से तो कभी जंगलों से नकली दवाएं जब्त की जा रही हैं।
बिलासपुर के सरोपी तालाब में महावर फार्मा की प्रतिबंधित दवा फेंकी हुई मिली हैं। जब कुछ लोग नहाने गए तो
उन्होंने देखा कि तालाब में बड़ी संख्या में दवाइयों के रैपर पड़े मिले। तालाब के तट पर भी जली हुई दवाओं की राख
पड़ी थी। इसके साथ ही सूचना मिली कि बनसांकरा के जंगल में भी भारी मात्रा में एक्सपायरी दवाएं पड़ी हैं। बता दें
कि यह वही महावर फार्मा है, जिसने नसबंदी शिविर में इस्तेमाल की गई दवा बनाई थी और इन दवाओं के इस्तेमाल
से नसबंदी कराने वाली 14 महिलाओं समेत अब तक कुल 19 लोगों की मौत हो चुकी है।
लोगों ने दवा मिलने की जानकारी बीएमओ डॉ. जीएस सोम को दी। उन्होंने तत्काल वहां पहुंचकर तालाब में तैर रही
दवाओं को बाहर निकलवाया। बीएमओ डॉ. सोम का कहना है कि सिमगा में बड़े पैमाने पर प्रतिबंधित दवाइयों का
मिलना गंभीर विषय है।
अधजले रैपर की जांच से यह पता चला कि ये महावर फार्मा की डाइक्लोवान प्लस है। साथ ही प्रतिबंधित दवा ब्रूफेन
और नींद की दवा टेग्रीटाल भी बरामद की गई। यहां बताते चलं कि बिलासपुर के तखतपुर ब्लॉक के पेंडारी के नेमीचंद
अस्पताल में 8 नवंबर को सरकारी नसबंदी ऑपरेशन शिविर लगा था। इसके दूसरे दिन से महिलाओं की मौत का
सिलसिला शुरू हो गया। नसबंदी करवाने वाली 14 महिलाओं की मौत हो गई। जांच में यह बात सामने आई थी कि
सिप्रोसिन-500 दवा में चूहामार जहर मिला था।
मुख्यमंत्री रमन सिंह ने खुद माना है कि "सिमगा के पास तालाब में और जंगलों में मिली नकली दवाओं के जखीरे
और पेंडारी नसबंदी कांड में उपयोग की गई दवाओं में समानता है। ये वही फर्जी दवाएं हैं। सरकार इसकी पूरी जांच
कराएगी।''

इन कंपनियों की दवा अमानक
कार्वो फार्मा, महावर फार्मा, हिंदुस्तान फार्मास्यूटिकल्स, राठी लबॉरटरीज, संकेत फार्मा, मार्टिन एंड ग्राउन
फार्मास्यूटिकल्स, सुप्रा ड्रग्स, जेनरिक फार्मास्यूटिकल्स, एस रोस रोबिन्ज, रिडली लाईफा साइंसेज, ओजोन
फार्मास्यूटिकल्स, चिफमेड फार्मास्यूटिकल्स, अल्मेट हेल्थ केयर, ब्लीट्ज फार्मास्यूटिकल्स, एकुम ड्रग्स एंड
फार्मास्यूटिकल्स, एरियोन हेल्थ केयर, काबरा ड्रग्स, आपटिमा हेल्थ केयर, वनगार्ड लबॉरटरीज, निकेम ड्रग्स, जय
केमिकल, गुजरात फार्मास्यूटिकल, पी एंड पी फार्मास्यूटिकल्स, नोडिसिस फार्मा, मेडिमर्क ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स,
एलीकेम फार्मास्यूटिकल्स और डॉक्ट फार्मास्यूटिकल्स हैं।

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भारत में बिकने वाली हर पांचवीं दवा नकली
भारत में नकली दवाओं का कारोबार काफी पुराना है। केंद्र सरकार ने इसके खतरे को देखते हुए नकली दवाओं के बारे
में बताने पर इनाम का ऐलान किया है। 'विसल ब्लोअर' पॉलिसी के तहत सरकार नकली दवाओं का कंसाइनमंट
पकड़वाने वालों को कंसाइनमंट की कीमत का 20 फीसदी इनाम के तौर पर देगी। इनाम की रकम 25 लाख रुपये तक
हो सकती है।
- भारत में फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री 85 हजार करोड़ रुपये की है। इसमें 35 हजार करोड़ रुपये के फार्मा प्रडक्ट्स को
एक्सपोर्ट किया जाता है।
- हेल्थ मिनिस्ट्री का अनुमान है कि भारत में बेचे जाने वाली करीब 5 फीसदी दवाएं नकली और 3 फीसदी मिलावटी
होती हैं । देशभर में नकली दवा उद्योग के सही-सही साइज का पता लगाने के लिए करीब 5 करोड़ रुपये खर्च कर एक
सर्वे भी कराया जा रहा है।
- साउथ ईस्ट एशिया की बात करें तो 30 फीसदी से अधिक दवाएं नकली होती हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के 2001
के आंकड़ों के मुताबिक भारत में बनने वाली 35 पर्सेन्ट दवाएं नकली होती हैं। इसके पांचवें हिस्से में गलत या
नुकसानदायक तत्व मिलाए जाते हैं।
- एक्सपर्ट्स के मुताबिक भारत में बिकने वाली हर पांचवीं दवा नकली होती है।

सरकार की तैयारी
- नकली दवाओं का कारोबार रोकने के लिए सरकार ने 23 स्टेट और 6 सेंट्रल टेस्टिंग लैबोरेटरियों के मॉडर्नाइजेशन का
काम शुरू कर दिया है।
- लैब के स्टाफ और ड्रग्स इंस्पेक्टरों को री-ओरिएंटेशन ट्रेनिंग भी दी जा रही है। इसके लिए वर्ल्ड बैंक कैपेसिटी
बिल्डिंग इन फूड ऐंड ड्रग्स रेग्युलेशन प्रोग्राम के तहत 400 करोड़ रुपये दे रहा है।

सजा का डर नहीं
- नकली दवाओं के कारोबार पर लगाम लगाने के लिए हाल ही में ड्रग्स और कॉस्मेटिक्स ऐक्ट में सुधार किया गया
है। इसमें शामिल होने वाले लोगों के लिए अधिकतम सजा बढ़ाकर उम्रकैद कर दी गई है।
- इसके अलावा जुर्माने की रकम को बढ़ाकर दस लाख रुपये कर दिया गया है। इससे जुड़े कुछ अपराधों को
गैरजमानती कैटिगरी में रखा गया है।

क्यों ना हो डेथ पेनल्टी का प्रपोजल?
- 2003 में आर. ए. मशालकर कमिटी ने नकली दवाओं के कारोबार से जुड़े लोगों के लिए डेथ पेनल्टी की सिफारिश
की थी। दिसंबर 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी कैबिनेट ने इस पर सहमति भी दे दी थी, लेकिन यह प्रस्ताव संसद
में पास नहीं हो सका।

नकली दवाओं के कारोबार में सालाना 25 फीसदी वृद्धि
- एसोचैम ने अनुमान लगाया है कि नकली दवाओं के कारोबार में हर साल 25 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है।
-ऑर्गनाइजेशन फॉर इकॉनमिक को-ऑपरेशन ऐंड डिवेलपमेंट के ताजा आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में 75 फीसदी
नकली दवाओं का ओरिजिन भारत से ही होता है।

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अनिता झा करेंगी न्यायिक जांच
सरकार ने घटनाओं की न्यायिक जांच के लिए एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन कर दिया है। सेवा निवृत्त जिला
एवं सत्र न्यायाधीश अनिता झा जांच करेंगी। तीन महीने के भीतर रिपोर्ट देंगी। इस जांच आयोग पर भी कई सवाल
उठाए जा रहे हैं। जस्टिस अनिता झा को ही चार साल पहले हुए मीना खलको एनकाउंटर की जांच का जिम्मा सौंपा
गया था। जिसकी रिपोर्ट अब तक नहीं आई है। पुलिस पर आरोप है कि उसने मीना खलको नामक एक आदिवासी
युवती को नक्सली बताकर मार गिराया था। पुलिस पर यह भी आरोप लगा था कि मीना की मौत के पहले उसके साथ
बलात्कर किया गया था। अब तक इस मामले की रिपोर्ट पूरी नहीं हो पाई है। 

“सरकारी मौत”



छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य अमले को दिए जा रहे टारगेट का खामियाजा आम आदमी को अपनी जान देकर चुकाना पड़ रहा है। बिलासपुर के पेंडारी में हुए दर्दनाक हादसे के पीछे भी नसबंदी का टारगेट तो था ही, साथ ही नकली दवाओं का बहुत बड़ा गोरखधंधा भी 14 मौतों का कारण बना। पहले बात टारगेट की, पेंडारी की पूरी घटना को जानने के पहले आपको बताते चलें कि ऑपरेशन के लक्ष्य का स्वास्थ्य विभाग में इतना हौव्वा खड़ा किया जाता है कि राह चलते लोगों की नसबंदियां करवाई जा रही हैं। ऐसी ही घटना 27 नंवबर 2013 को छत्तीसगढ़ के सुदूर दंतेवाड़ा में हुई थी। जब दंतेश्वरी मंदिर के बाहर बैठकर भीख मांग दो भिखारियों की जबरिया नसबंदी कर दी गई थी। खून और त्वचा की जांच के बहाने प्रहलाद भतरा और रामू नामक दो भिखारियों की नीतीश नाम के एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता नसबंदी करवा दी थी। दोनों दंतेश्वरी मंदिर के बाहर बैठकर भीख मांग रहे थे। इन दोनों मजदूरों को नसबंदी के बाद प्रोत्साहन राशि के रूप में 1100-1100 रुपए भी दिए गए थे। यही है छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सेवाओं की असली हकीकत।
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य विभाग का वर्ष 2013-14 का बजट 2 हजार 701 करोड़ रुपए आवंटित किया गया है। इतने बड़े बजट के सूबे के लोगों को तो छोड़िए खुद स्वास्थ्य विभाग का स्वास्थ्य सुधर नहीं पा रहा है। यह बात और भी गंभीर हो जाती है क्योंकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री खुद भी डॉक्टर हैं। पिछले चार साल में छग में छह बड़े हादसे हो चुके हैं, जो सरकारी स्वास्थ्य शिविरों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहे हैं। खुद स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल भी सवालों के घेरे में हैं, क्योंकि पिछली सरकार में भी स्वास्थ्य विभाग उन्हीं के पास था। खुद मुख्यमंत्री पर अपने स्वास्थ्य मंत्री को अभयदान देने के आरोप लगते रहे हैं।
बहरहाल ताजा मामला बिलासपुर के गांव पेंडारी का है। जहां परिवार नियोजन का टारगेट पूरा करने के चक्कर में सरकारी नवीन जिला अस्पताल के सर्जन ने अपने सहयोगी के साथ मिलकर शिविर में 6 घंटे के भीतर 83 महिलाओं की नसबंदी कर दी। ऑपरेशन के बाद से ही महिलाओं की मौत का सिलसिला शुरु हो गया । फिलहाल 14 महिलाओं की मौत की पुष्टि हो चुकी है। इसके साथ ही 18 महिलाएं जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रही है और 50 से अधिक बीमार हो गईं हैं। घटना के बाद आनन-फानन में स्वास्थ्य विभाग के अमले ने दवा, इंजेक्शन, लेप्रोस्कोप समेत अन्य उपकरणों को जब्त कर लिया है।
स्वास्थ्य विभाग ने सरकारी शिविर को एक निजी अस्पताल (नेमीचंद जैन अस्पताल) में आयोजित किया था। यहां पर लेप्रोस्कोपी से महिलाओं की नसबंदी की जानी थी। शिविर में नवीन जिला अस्पताल के सर्जन डॉ. आरके गुप्ता की ही ड्यूटी लगी थी, जो अपने एक सहयोगी के साथ शिविर स्थल पर पहुंचे थे। इसके अलावा शेष स्टॉफ बीएमओ तखतपुर ने उपलब्ध कराया था। यहां पर 9 नंवबर यानि शनिवार को सुबह 11 बजे के बाद महिलाओं की नसबंदी शुरू हुई। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो डॉक्टर आर के गुप्ता ने बगैर रुके 6 घंटे के भीतर ही 83 महिलाओं की नसबंदी कर दी। जबकि इतनी नसबंदियों में दो दिन लगना था। नसबंदी के बाद सभी महिलाओं को एंटीबयोटिक टेबलेट सिप्रोफ्लाक्सिन व दर्द निवारक ब्रूफेन नामक दवा दी गई थी। इसका सभी महिलाओं ने सेवन किया था। महिलाओं की मौत होने के बाद आनन-फानन में दवाओं की जांच की गई तो कोई भी दवा एक्सपायरी नहीं पाई गई। प्रथम दृष्टतया जांच में लेप्रोस्कोप से संक्रमण होने की बात कही जा रही है।
महिलाओं की मौत का आंकड़ा बढ़ते ही स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल को लेकर बिलासपुर पहुंचे मुख्यमंत्री रमन सिंह का बयान आया कि दोषी पाए गए किसी अधिकारी कर्मचारी को बख्शा नहीं जाएगा। सरकार मृतकों के परिजनों और मरीजों के प्रति संवेदनशील है। पूरे मामले में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल चुप्पी साधे हुए हैं।
घटना के बाद मुख्यमंत्री ने संचालक स्वास्थ्य सेवाएं छत्तीसगढ़ डॉ कमलप्रीत सिं को हटा दिया गया है। परिवार कल्याण कार्यक्रम के राज्य समन्वयक डॉ. केसी ओराम, बिलासपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एससी भांगे, तखतपुर के खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रमोद तिवारी और एक सरकारी सर्जन डॉ. आरके गुप्ता को निलंबित कर दिया है। साथ ही आर के गुप्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए हैं।  स्वास्थ्य विभाग ने प्रत्येक मृतक महिला के परिवार के लिए चार लाख रुपए की सहायता देने का निर्णय लिया है। गंभीर रुप से मरीजों को नि:शुल्क इलाज के साथ-साथ प्रति मरीज 50-50 हजार रुपए की सहायता देने का ऐलान किया है। एक तरफ राज्य सरकार दोषी चिकित्सक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा रही है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस नेता भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव कार्यकर्ताओं के हुजूम के साथ मुख्यमंत्री रमन सिंह और स्वास्थ्य मंत्री को घटना का दोषी मानते हुए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल का कहना है कि ऑपरेशन के बाद हुई मौत की नैतिक जिम्मेदारी राज्य सरकार की बनती है। इसलिए मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए
पेंडारी में महिलाओं की नसबंदी करने वाले चिकित्सक डॉ आर के गुप्ता को इसी 26 जनवरी को 50 हजार ऑपरेशन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए पुरस्कृत किया गया था। नौ महिलाओं की मौत के बाद भी डॉ गुप्ता अपने ऑपरेशन में कोई गलती नहीं मान रहे हैं। उनका दावा है कि महिलाओं की तबीयत दवाईयों के कारण खराब हुई है।
दर्दनाक हादसे के बाद मुख्यमंत्री रमन सिंह ने घटना की समीक्षा करने के लिए कैबिनेट की बैठक बुलाई और स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल समेत सभी मंत्रियों को अपने-अपने विभागों की परफार्मेंस रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए हैं। सरकार के सभी मंत्री अपना लेखा-जोखा 30 नंबवर तक मुख्यमंत्री के पास जमा करवाएंगे। मुख्य सचिव विवेक ढांड की अध्यक्षता में एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति भी बना दी है, जो मंत्रियों के विभागों की फ्लैगशिप योजनाओं की नियमित मॉनीटरिंग।
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कब कितने कांड
22 से 30 सितंबर 2011 को बालोद नेत्रकांड में जिला चिकित्सालय में आयोजित शिविर में 300 लोगों के ऑपरेशन हुए। टारगेट पूरा करने के दबाव में चिकित्सकों ने पंद्रह बाय पंद्रह के छोटे से कमरे में रखी तीन ऑपरेशन टेबल पर छह घंटे में मोतियाबिंद के 93 ऑपरेशन कर दिए गए। संक्रमण ने 52 मरीजों की आंखें छीन लीं। 4 मरीजों को जान भी चली गई।
कवर्धा नेत्रकांड में कवर्धा के जिला चिकित्सालय में 21 से 29 सितंबर 2011 के मध्य आयोजित शिविर में ऑपरेशन के बाद फैले संक्रमण से 20 मरीजों की आंखों की रोशनी चली गई। दो मरीजों को जान गंवानी पड़ी।  
बागबहरा नेत्रकांड में महासमुंद जिले का बागबाहरा। बागबाहरा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 9-10 दिसंबर 2012 को 145 मरीजों का ऑपरेशन हुआ। 12 मरीज संक्रमण के शिकार हो गए।
दुर्ग नेत्रकांड में जिला चिकित्सालय में 11 अप्रैल 2012 को हुए मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद संक्रमण से 3 मरीजों की आंखें खराब हो गई थीं, जबकि 12 मरीजों को संक्रमण हो गया था। जांच में पता चला कि शिविर में इस्तेमाल की गई दवाएं घटिया थीं।
7 जुलाई 2012 को हुए बहुचर्चित गर्भाशय कांड बिलासपुर, रायपुर समेत कई जिले। गर्भाशय कांड ने प्रदेश को चौंका दिया था कि डॉक्टर्स राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की रकम हड़पने के लिए महिलाओं के गर्भाशय निकाल दिए थे। अकेले बिलासपुर में ही 31 नर्सिंग होम में छह महीने के दौरान 722 महिलाओं के गर्भाशय निकाल लिए गए थे। दुर्ग नसबंदी कांड- तारीख 12 जनवरी 2013। स्थान दुर्ग। जनसंख्या नियंत्रण पखवाड़े के दौरान छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में टारगेट पूरा करने के चक्कर में महिलाओं को दूषित इंजेक्शन लगाने का मामला सामने आया था। इससे नसबंदी के बाद महिलाओं के पेट में घाव हो गये थे।
और अब पेंडारी नसबंदी कांड में बिलासपुर के तखतपुर का ग्राम पेंडारी। पेंडारी में आयोजित नसबंदी शिविर में ऑपरेशन के बाद दो दिन के भीतर 9 महिलाओं की मौत हो चुकी है और 56 गंभीर रूप से बीमार हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल खुद बिलासपुर से विधायक हैं। अमर अग्रवाल पिछली सरकार में भी सूबे के स्वास्थ्य मंत्री थे। उपरोक्त सारे कांड उन्हीं के कार्यकाल में अंजाम दिए गए हैं।
जांच टीम के आने के पहले ही जलाई दवाएं
बिलासपुर के पेंडारी में जिस नैमीचंद जैन अस्पताल में महिलाओं के लिए नसबंदी शिविर लगाया गया था। जांच टीम के वहां पहुंचने से पहले ही कुछ अज्ञात लोगों ने सील तोड़कर अस्पताल में रखी दवाएं व कुछ दस्तावेज जला दिए। इस घटना ने कई बड़े संदेहों को जन्म दे दिया है। दवाओं को जलाने को नकली या गुणवत्ताहीन दवाओं से जोड़ककर देखा जा रहा है। नसबंदी शिविर में जो दवाएं उपयोग में लाई गई थीं, उनमें एट्रोपिन और डाईजोपॉम दवा-नंदनी मेडिकल्स इंदौर, फोर्टविन पेंट्राजेस्टिक इंजेक्शन-मैग्मा लेबोरेट्ररिज़ प्राइवेट लिमिटेड गुजरात और सिप्रोबीन बूफ्रिन टैबलेट-जीन लेबोरेट्री नागपुर द्वारा सप्लाई की गई थीं। बिलासपुर के पेंड्रा में भी नसबंदी शिविर के बाद महिलाओं की हालत बिगड़ने पर दवाओं को कचरे में फेंकने का मामला सामने आया है।
इस बारे में बिलासपुर के कलेक्टर सिद्धार्थ कोमल परदेशी का कहना है कि उन्हें इंजेक्शन और दवाएं जलाने की कोई जानकारी नहीं है। परदेशी का कहना है कि नेमीचंद अस्पताल का ऑपरेशन थियेटर सोमवार की रात को ही सील कर दिया गया था
पेड्रा और जगदलपुर में भी बिगड़ी 23 महिलाएं की हालत
बिलासपुर के पेंडारी में अभी मौतों का सिलसिला थमा भी नहीं है, उधर पेंड्रा (बिलासपुर) और जगदलपुर (बस्तर) में भी नसबंदी शिविर में ऑपरेशन करवाने वाली महिलाओं की हालत गंभीर हो गई है। पेंड्रा की 16 महिलाओं को बिलासपुर रेफर किया गया है। यहां सोमवार यानि 10 नंवबर को 52 महिलाओं का नसबंदी ऑपरेशन किया गया था। वहीं जगदलपुर के महारानी अस्पताल में 7 महिलाओं को अत्यधिक ब्लीडिंग की वजह से केजुअल्टी वार्ड में भर्ती कराया गया है। बस्तर के सीएमओ देंवेद्र नाग ने इस बात की पुष्टि की है कि नसबंदी शिविर में ब्लीडिंग की शिकायत आई है। बिलासपुर के पेंडारी के बाद पेंड्रा और जगदलपुर में भी महिलाओं की बिगड़ती हालत ने इस्तेमाल की गई दवाइओं और इंजेक्शन पर भी सवालिया निशान लगा दिए हैं।
संरक्षित बैगा जनजाति की भी नसबंदी
सोमवार को पेंड्रा में लगे नसबंदी शिविर में संरक्षित बैगा जनजाति की दो महिलाओं की भी नसबंदी कर दी गई। जबकि इन जनजातियों घटती जनसंख्या के चलते इनकी नसबंदी करने पर रोक लगाई गई है। इस जनजाति के लोग राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहलाते हैं क्योंकि इन्हें सरंक्षित करने के साथ ही राष्ट्रपति ने इन्हें गोद लिया हुआ है। मरवाही के धनौली गांव की रहने वाली चैती बाई और मंगली बाई दोनों की हालत ऑपरेशन के बाद खराब होने पर यह बात उजागर हुई। इसमें से चैतीबाई की भी इलाज के दौरान मौत हो गई।


गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

ना आना इस देश लाड़ो



16 फरवरी 2014 को छत्तीसगढ़ के एक आदिवासी जिले कांकेर के बागोड गांव के एक घर में हडकंप मच हुआ था। परिवार के लोग बैचेनी से पूरे गांव में किसी को ढूंढ रहे थे। दरअसल इस घर की नौ वर्षीय बेटी सुनीता (बदला हुआ नाम) दिन भर से लापता थी। जब रात 10 बजे तक बालिका का कोई पता नहीं चल पाया तो परिजन गांवोंवालों के साथ घर लौट आए और तय किया गया कि लड़की को दूसरे दिन अलसुबह फिर से खोजा जाएगा। लेकिन तभी गांव के ही एक युवक ने लड़की के भाईयों को रात में ही लड़की को ढूंढने के लिए मनाया। वह युवक और लड़की के भाई जब गांव से लगे जंगल में पहुंचे तो उन्हें सुनीता मिल भी गई लेकिन जिंदा नहीं मुर्दा।
कांकेर के बागोड़ गांव की सुनीता के साथ क्या हुआ, ये जानने से पहले यहां यह बताना जरूरी है कि छत्तीसगढ़ जैसा छोटा सा प्रदेश भी अब लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं रहा। चौंकाने वाले आंकड़े ये हैं कि प्रदेश में पिछले साल की तुलना में 33 फीसदी बलात्कार के मामले बढ़ गए हैं। वर्ष 2012 में बलात्कार के जहां 1034 मामले थे, वहीं 2013 में यह बढ़कर 1380 पहुंच गए। यही नहीं, 30 अप्रैल, 2014 तक प्रदेश में बलात्कार के 430 मामले दर्ज हुए हैं।। राजधानी रायपुर में पिछले एक सप्ताह में बलात्कार के तीन मामले सामने आए हैं। सभी मामलों में किशोर लड़कियों को निशाना बनाया गया है। छत्तीसगढ़ पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में नाबालिगों के साथ बड़े पैमाने पर बलात्कार की घटनाएं सामने आ रही हैं। प्रदेश में रोजाना दो नाबालिगों के साथ बलात्कार हो रहा है। पुलिस के आंकड़ों को मानें तो प्रदेश में बलात्कार के शिकार में 50 फीसदी नाबालिग बच्चियां हैं। वर्ष 2013 में बलात्कार के 1380 मामलों में 658 केस नाबालिगों के साथ हुए बलात्कार के दर्ज हुए हैं। गैंगरेप के मामले में भी छत्तीसगढ़ पीछे नहीं है। पिछले साल गैंगरेप के सात मामले दर्ज किए गए, जिसमें एक से अधिक आरोपियों ने नाबालिग के साथ मिलकर बलात्कार किया है।
कांकेर की सुनीता भी ऐसे ही एक दर्दनाक और शर्मनाक हादसे की शिकार हो गई। 9 साल की बालिका के हत्या की गुत्थी को कांकेर पुलिस ने 24 घंटे के भीतर सुलझाते हुए गांव के 18 वर्षीय युवक चंद्रशेखर नेताम को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस की पूछताछ में आरोपी ने स्वीकार किया कि बलात्कार के प्रयास में असफल होने के कारण ही भाग रही बालिका को पत्थर से मारकर नृशंस हत्या कर शव को गांव के बाहर पत्थर के खोह में डालकर गांव वापस लौट गया था। जब परिजन बालिका को खोज रह थे, तब वह ना केवल भी खोजने वालों के साथ था, बल्कि सुनीता के भाईयों के साथ मिलकर शव को भी उसी ने ढूंढा था। सुनीता हमेशा की तरह गांव में घूम रही थी, तभी आरोपी चंद्रशेखर नेताम उसे बहला फुसला के जंगल की ओर ले गया और दुस्कर्म का दो बार प्रयास किया जो कि मृतका के विरोध के चलते असफल होने के कारण आरोपी ने एक पत्थर से सुनीता के छाती, पेट और चेहरे को कुचल दिया और लाश का पत्थर के बीच डालकर गांव वापस आ गया और घरवालों के साथ सुनीता को ढूंढने का नाटक करने लगा।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो द्वारा 2011 में हुए आपराधिक घटनाओं पर जारी रिकार्ड के मुताबिक छत्तीसगढ़ में बलात्कार की 1053 घटनाएं हुईं। इससे 14 से 18 आयु वर्ग की बालिकाएं सर्वाधिक प्रभावित हैं। 344 मामलों में 14 से 18 आयु वर्ग की बालिकाओं के साथ बलात्कार किया गया। वहीं 18 से 30 आयु वर्ग में 377 महिलाएं अनाचार की शिकार बनीं। जांजगीर-चांपा जिले की समाजसेवी महिला संस्था ने अधिवक्ता मीना शास्त्री, जेके शास्त्री के जरिए हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई है। इसमें देश में पिछले कुछ सालों में बलात्कार के लगातार बढ़ते मामलों पर चिंता जाहिर करते हुए कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के मामलों की जांच और विचारण को लेकर सभी हाईकोर्ट सहित अन्य पक्षों को दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसमें किसी का भी पालन नहीं किया जा रहा है। इसकी वजह से मामलों की संख्या बढऩे के साथ ही जांच और विचारण की कार्रवाई भी नियमानुसार नहीं हो रही है। छत्तीसगढ़ भी बलात्कार के मामलों से अछूता नहीं है।  याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरमीत सिंह और साक्षी मामले में सुनवाई करते हुए जांच और विचारण ((इनवेस्टिगेशन एंड ट्रायल))को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए थे कि बलात्कार के मामलों की जांच महिला पुलिस अफसर द्वारा ही कराई जानी चाहिए। इसी तरह मामलों का ट्रायल हमेशा बंद कमरे में ही होना चाहिए। मामलों की सुनवाई महिला जज द्वारा ही कराई जानी चाहिए। याचिका में कहा गया है कि वकीलों को भी सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों की जानकारी नहीं है, इसे देखते हुए स्टेट बार कौंसिल को भी पक्षकार बनाया गया है।
छत्तीसगढ़ में बढ़ते बलात्कार के मामलों पर राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष लता उसेंडी कहती हैं कि यह काफी गंभीर विषय है। जागरूकता के अभाव में लोग अपराध की तरफ बढ़ते हैं। आयोग ऐसे मामलों में संज्ञान ले रहा है। हम जल्द ही इस पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कदम उठाएंगे।

राजधानी रायपुर में एक दिन में तीन शिकायतें
राजधानी में 31 अगस्त 2014 को एक साथ तीन बलात्कार के मामले सामने आए। उरला इलाके में एक ढाई साल की बच्ची से बलात्कार की कोशिश की गई। स्थानीय लोगों ने आरोपी को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। स्टेशन रोड लोधीपारा निवासी हरिकृष्ण मिश्रा उर्फ छोटू ने एक महिला के साथ बलात्कार किया। महिला में अपनी शिकायत में कहा कि हरिकृष्ण ने उसके साथ 31 दिसम्बर 2013 की रात चाकू की नोंक पर बलात्कार किया। आरोपी अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। वहीं, तेलीबांधा में रिश्तेदार ने ही युवती की आबरू लूट ली। जलविहार कॉलोनी में रहने वाले नरेंद्र सोनी ने युवती को बंधक बनाकर कई दिनों तक बलात्कार किया।
आदिवासी जिलों में दर्ज नहीं हो रहे मामले
पुलिस मुख्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार आदिवासी जिलों में बलात्कार के मामले थानों तक कम पहुंच रहे हैं। पीड़िता या तो ग्रामीणों के दबाव में या सामाजिक कारणों से थानों में शिकायत नहीं कर रही हैं। सीआईडी के एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि थानों में बलात्कार की शिकायतें जागरूकता के कारण बढ़ रही हैं। पहले ये शिकायतें थाने नहीं पहुंच रही थीं। यह पुलिस और प्रशासन के लिए अच्छा संकेत है। पुलिस मुख्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, बस्तर के आदिवासी जिले बीजापुर में 6, दंतेवाड़ा में 9, नारायणपुर में 10, सुकमा में 8 और कोंडागांव में 19 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई।
सबसे ज्यादा शिकार नाबालिग
चौंकाने वाले आंकड़े ये हैं कि प्रदेश में पिछले साल की तुलना में 33 फीसदी बलात्कार के मामले बढ़ गए हैं। वर्ष 2012 में बलात्कार के जहां 1034 मामले थेवहीं 2013 में यह बढ़कर 1380 पहुंच गए। यही नहीं, 30 अप्रैल, 2014 तक प्रदेश में बलात्कार के 430 मामले दर्ज हुए हैं।। राजधानी रायपुर में पिछले एक सप्ताह में बलात्कार के तीन मामले सामने आए हैं। सभी मामलों में किशोर लड़कियों को निशाना बनाया गया है। छत्तीसगढ़ पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में नाबालिगों के साथ बड़े पैमाने पर बलात्कार की घटनाएं सामने आ रही हैं। प्रदेश में रोजाना दो नाबालिगों के साथ बलात्कार हो रहा है। पुलिस के आंकड़ों को मानें तो प्रदेश में बलात्कार के शिकार में 50 फीसदी नाबालिग बच्चियां हैं। वर्ष 2013 में बलात्कार के 1380 मामलों में 658 केस नाबालिगों के साथ हुए बलात्कार के दर्ज हुए हैं। गैंगरेप के मामले में भी छत्तीसगढ़ पीछे नहीं है। पिछले साल गैंगरेप के सात मामले दर्ज किए गएजिसमें एक से अधिक आरोपियों ने नाबालिग के साथ मिलकर बलात्कार किया है।
पोक्सो में दर्ज होता है मामला
नाबालिग के साथ हो रहे बलात्कार के मामले में पुलिस पोक्सो एक्ट लगा रही है। इसमें अलग-अलग 47 धाराओं को एक साथ जोड़ा गया है। यही नहींमुकदमा कायम नहीं करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवाई का प्रावधान है। इसमें पुलिस अधिकारी को जेल की सजा हो सकती है।
थाने नहीं पहुंच पाते सैकड़ों मामले
बलात्कार और अन्य अपराध के सैकड़ों मामले थाने ही नहीं पहुंच पाते हैं। एनसीआरबी के अनुसार छत्तीसगढ़ में एक साल में 318619 शिकायतों में से मौखिक शिकायतें 133272 हैं। इसमें पीड़ित थाने नहीं पहुंचे हैं। थाने में लिखित शिकायतें 84930 दर्ज की गई हैं। इसके साथ ही पुलिस कंट्रोल रूम में 100 नंबर डायल करके 62567 मामलों की शिकायत दर्ज कराई गई है। पुलिस ने स्वविवेक के आधार पर भी 37850 मामले दर्ज किए हैं।
शौचालय का नहीं होना भी कारण
हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सभी प्रदेशों से यह जानकारी मांगी है कि खुले में शौच करने जा रही कितनी महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ है। दरअसलइस जानकारी का इस्तेमाल निर्मल भारत अभियान में भी किया जाएगा। बताया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में 40 फीसदी घरों में अब भी शौचालय नहीं है।
डीजीपी एएन उपाध्याय का कहना है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग खुले में शौच करने जा रही महिलाओं के साथ हो रही बलात्कार की घटना से चिंतित है। इसको देखते हुए पुलिस मुख्यालय से यह जानकारी मांगी गई है कि प्रदेश में कितनी महिलाओं के साथ खुले में शौच करने जाते समय बलात्कार हुआ है। इसके लिए सभी जिलों के एसपी को पत्र भेजा गया है।
जशपुर के एसपी जितेंद्र मीणा ने बताया कि संपूर्ण स्वच्छता अभियान के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भी यह जानकारी एकत्र की जा रही है। रायगढ़ एसपी राहुल भगत ने बताया कि पिछले दिनों एक रिपोर्ट में सामने आया कि बलात्कार का एक बड़ा कारण महिलाओं का शौच के लिए घरों से बाहर जाना है। इसको देखते हुए सभी थानों से जानकारी मांगी गई है।
ढाई लाख घरों में पक्का शौचालय बनाने का लक्ष्य
राज्य सरकार ने निर्मल भारत अभियान के तहत छत्तीसगढ़ में चालू वित्तीय वर्ष में दो लाख 42 हजार घरों में पक्के और स्वच्छ शौचालयों के निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया है। इनमें से 75 हजार शौचालय इंदिरा आवास योजना के तहत मकान बनाने वाले परिवारों के यहां बनाए जाएंगे। वर्ष 2013-14 की निर्मल भारत अभियान की कार्ययोजना में एक लाख 15 हजार 875 बीपीएल परिवारों और एक लाख 30 हजार 698 एपीएल परिवारों में शौचालय निर्माण का लक्ष्य रखा गया है।

राज्य में अब तक कुल 19.37 लाख शौचालयों का निर्माण किया जा चुका है। इसमें स्कूलों में कुल 51 हजार 832 शौचालय बनाए गए हैं। अभियान के तहत शौचालय निर्माण के लिए प्रत्येक आवेदक परिवार को दस हजार रुपए की सहायता शासन द्वारा दी जा रही है। इसमें से साढ़े चार हजार रुपए मनरेगा के तहत और 900 रुपए स्वयं आवेदक का अंशदान होता है।

फैक्ट फाइल
वर्ष-बलात्कार
वर्ष 2011 में छग में 1053 बलात्कार के मामले
वर्ष 2013 में छत्तीसगढ़ में 1380 बलात्कार के मामले
वर्ष 2012 में छत्तीसगढ़ में 1034 बलात्कार के मामले
वर्ष 2013 में राजधानी रायपुर में 85 बलात्कार के मामले दर्ज
वर्ष 2012 में राजधानी रायपुर में 64 बलात्कार के मामले दर्ज
सबसे ज्यादा बलात्कार इन जिलों में
रायपुर-139
दुर्ग-106
बिलासपुर-96
रायगढ़- 90
जशपुर-88
बलरामपुर-84
(वर्ष 2013 के पुलिस रिकॉर्ड से प्राप्त जानकारी के अनुसार)

अनेक समुदायों का बैंड "बस्तर बैंड"




बस्तर बैंड की खासियत ये है कि इसमें कई समुदाय के लोग जुड़े हैं। वैसे तो बस्तर में मुख्यतः गोंड जनजाति के लोग निवास करते हैं। लेकिन गोंड जनजाति भी कई उप-जातियों में विभाजित है। इनमें घोटुल मुरिया, राजा मुरिया, दंडामी माडिया (बायसन हार्न माडिया (भैंस के सींग सर पर लगाने वाले)), धुरवा, परजा, दोरला, मुंडा, मिरगान, कोईतूर शामिल हैं। बस्तर में महरा और लोहरा भी रहते हैं, जिन्हें आदिवासी नहीं माना गया है, लेकिन इनकी संस्कृति ठीक वैसी है, जैसी आदिवासियों की। एक चीज है, जो इन सभी को जोड़े रखती है और सभी में समानता का भाव पैदा करती है, वो है इनका नृत्य और संगीत। वाद्य परंपरा के कारण सभी समुदाय आपस में जुडे हुए दिखाई देते हैं। बस्तर में लिंगादेव की गाथा सुनाई जाती है, जिनमें बस्तर के 18 वाद्य यंत्रों का उल्लेख किया गया है। दरअसल लिंगादेव को नृत्य और संगीत का देवता माना गया है। हालांकि पूरे बस्तर में करीब 45 वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। बस्तर के आदिवासियों के बीच हजारों देवी-देवता पूजे जाते हैं। इन सभी देवताओं के लिए संगीत की अलग-अलग धुन का प्रयोग किया जाता है। नगाड़ा, देवमोहिरी (विशेष प्रकार की शहनाई), तुड़मुड़ी, मुंडा बाजा, पराए, तिरदुड़ी, बिरिया ढोल, किरकिचा, जलाजल, वेरोटी (विशेष प्रकार की बांसुरी) ऐसे अनेक वाद्य यंत्र हैं, जिनका संगीत आपको रोमांचित कर देता है। इन जनजातिय वाद्य यंत्रों की स्वर लहरियो में ठेठ लोक संस्कृति की खुशबू महसूस की जा सकती है। बस्तर बैंड की खासयित है कि एक ही मंच पर कई समुदाय और उनके वाद्य यंत्रों के संगीत का लुत्फ उठाया जा सकता है। जबकि ये बस्तर में भी संभव नहीं है, क्योंकि एक वक्त और एक जगह पर आप केवल किसी एक ही समुदाय के वाद्य यंत्र को सुन सकते हैं। जबकि बस्तर बैंड इस संगीत परंपरा को सहेजने से भी एक आगे बढ़कर बस्तरिया संगीत का फ्यूजन तैयार कर दर्शकों के सामने परोसने का काम भी कर रहा है।

ऐसे ही बस्तर के गोंडी जनजाति के सबसे अहम मुंडा समुदाय के बाबूलाल बघेल और साहदुर नाग बस्तर बैंड से जुड़े हुए हैं। कमर में पटकू लपेटे हुए (घुटने के ऊपर लुंगीनुमा परिधान पहने हुए), सिर पर पागा बांधे हुए बाबूलाल बघेल बताते हैं कि कभी किसी जमाने में हमारे पूर्वज कढू और बेताल राजा अन्नम देव के साथ बस्तर पहुंचे थे। कढ़ू और बेताल के परिवार ही पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ते हुए आज मुंडा समुदाय के रूप में बस्तर में मौजूद हैं। बघेल और नाग मुंडा बाजा बजाते हैं। बगैर इनके वाद्य यंत्र के बस्तर के मशहूर दशहरे की शुरुआत नहीं हो सकती है। इसका कारण है कि जगदलपुर के राजा अन्नमदेव के जमाने से ही मुंडा समुदाय को बस्तर दशहरे का स्वागत अपने वाद्य यंत्र को बजाकर करने का दायित्व सौंपा गया था। जो परंपरा आज भी अनवरत जारी है। मुंडा बाजा की खासियत ये है कि इस पर बकरे की खाल को बाल सहित चढ़ाया जाता है। जगदलपुर के पोटानार गांव में रहने वाले बाबूलाल बघेल बताते हैं कि हमारी कई पीढ़ी पहले हमारे वाद्य यंत्र को मेढंक की चमड़ी लगाकर तैयार किया गया था, लेकिन उसका आकार बेहद छोटा था। समय के साथ वाद्य यंत्र का आकार बढ़ा तो इसे बकरे की चमड़ी लगाकर तैयार किया जाने लगा। चार एकड़ जमीन पर धान बोकर जीवन यापन करने वाले बघेल बस्तर बैंड के साथ 2008 में जुड़े थे। बैंड के संयोजक अनूप पांडे जब वाद्य यंत्रों को खोजते हुए उनके गांव पहुंचे तो उन्हें अपने दल में शामिल होने का न्यौता दिया। तब से आज तक वे बस्तर बैंड से जुड़कर दर्जनों प्रस्तुतियां दे चुके हैं।
इन अपने उन्मुक्त जीवन को अब ये समुदाय पहले की तरह नहीं जी पा रहे हैं। इसका कारण है बस्तर में व्याप्त नक्सल समस्या। बाबूलाल बघेल बताते हैं कि अब हम खुलकर अपनी संस्कृति को नहीं सहेज पा रहे हैं। कुछ दशक पहले तक हम खुलकर नाचते, गाते और अपने उत्सव मनाते थे। लेकिन अब बंदूकों के साए में जीना बेहद मुश्किल हो गया है। हम पर दोनों तरफ से बंदूकें तनी हुई हैं। इकट्ठा होना भी संदेह की नजरों से देखा जाता है। यही कारण कि हमारे बच्चे वो परिवेश नहीं पा रहे हैं, जो हमें मिला था। अब तो बस डर के साए में जीवन कट रहा है। लेकिन एक परिवर्तन हमें खलता है, वो ये कि हमारे बच्चे अब पांरपरिक परिधान नहीं पहनना चाहते हैं, उन्हें शर्ट पेंट चाहिए।
मुंडा समुदाय के ही साहदुर नाग बताते हैं कि पहले हमारे समुदाय का जीवन यापन घर घर जाकर धान मांगकर होता था। राजा ने हमें खेती का काम नहीं सौंपकर घर घर जाकर बाजा बजाने का काम सौंपा था। वही हमारी पंरपरा थी। लेकिन अब समय के साथ हम कमाने और खेती करने लगे हैं। मैं मनिहारी (सौंदर्य प्रसाधन बेचने) का काम करता हूं। जगदलपुर के बाजार से सामान लाकर गांव में लगने वाले साप्ताहिक हाट में सामान बेचता हूं। बचे हुए समय में बस्तर बैंड के साथ प्रस्तुति देता हूं। हम जगदलपुर के आसपास रहने वाले लोग हल्बी बोली बोलते हैं, जबकि बैंड के अधिकांश सदस्य गोंडी बोली बोलते हैं। लेकिन साथ काम करते करते ना केवल एक दूसरे के नृत्य संगीत को सीख रहे हैं, बल्कि एक दूसरे की बोली भी समझने लगे हैं। किसी भी कार्यक्रम के पहले एक हफ्ता जमकर रिहर्सल करते हैं। कई बार रिहर्सल का मौका नहीं भी मिल पाता है। जब मिलता है तो मिलजुल कर कोई नई धुन या संगीत बनाने का मौका मिल जाता है।
घोटुल मुरिया समुदाय के नवेल कोर्राम और दशरूराम कोर्राम भी बस्तर बैंड से जुड़े हुए हैं। जिला नारायणपुर के गांव रेमावंड के रहने वाले नवेल ओर दशरूराम  पराए बजाते हैं। पराए एक प्रकार का ढोल होता है, जिसके दोनों तरफ बैल के चमड़ा लगाया जाता है। पराए ना केवल एक वाद्य यंत्र है, बल्कि घोटुल मारिया समुदाय की पूज्य और अनिवार्य वस्तु भी है। पराए का महत्व इसी बात से पता चलता है कि यदि शादी करने वाले युवक के घर पराए ना हो तो, उसे दंड स्वरूप 120 रुपए भरने होते हैं। रिश्ता तय होने के पहले वर पक्ष से पूछा जाता है कि उनके घर में पराए है कि नहीं। ये बाजार में नहीं बिकता, बल्कि हर परिवार अपने लिए पराए को खुद बनाता है। शिवना नामक पेड़ की बकायदा पूजा करके पराए के लिए लकड़ी काटी जाती है। बदलते जमाने का असर दशरूराम की पोशाक में देखा जा सकता है। शर्ट पेंट पहने हुए दशरूराम बताते हैं कि उनके पास 15 एकड़ जमीन है। जिसपर वे धान की खेती करते हैं। दशरूराम के पास सिरहा की जिम्मेदारी भी है। सिरहा मतलब जिसके सिर देवी आती हो। दशरूराम बताते हैं कि उनके पिता भी सिरहा थे। उनकी मृत्यु के बाद अचानक मुझ पर भी देवी आने लगी। अब हर रोज शाम चार बजे दशरूराम के घर बैठक होती है। जिसमें वो लोगों की समस्याओं का समाधान भी करता है और बीमारियों का आर्युवैदिक उपचार भी।
नवेल कोर्राम विशुद्ध रूप से आदिवासी संस्कृति को अपनाए हुए हैं। उघारे बदन, पटकू और पागा पहनने वाले नवेल भी दशरूराम के साथ 2007 में ही बस्तर बैंड से जुड़ गया था। मुख्यतः खेती किसानी करके अपना परिवार पालने वाले नवेल के पास छह गाय भी हैं। लेकिन बस्तर में दूध नहीं बेचा जाता। इसलिए नवेल गाय के दूध का उपयोग घरवालों के लिए ही करता है। नवेल भी पराए बजाता है। नवेल के मुताबिक जब घोटुल मुरिया समुदाय में कोई शादी होती है तो सभी गांववाले मिलकर घोटुल में पराए की थाप पर नाचते हैं। ये शादी के लिए अनिवार्य रसम है। घोटुल इस समुदाय की परंपरा का अभिन्न अंग है। घोटुल मतलब गांव के बीचों बीच बनी एक झोपड़ी, जिसपर पूरे गांव का अधिकार होता है। गांव की हर बैठक, सभा, नाच-गाना, समारोह इसी घोटुल में आयोजित किए जाते हैं। अपने गांव से पहली बार निकलकर दूसरे लोगों के सामने प्रस्तुति देने का अनुभव कैसा रहा, ये पूछने पर नवेल की आंखों में चमक आ जाती है। वह कहता है कि शब्दों में उन अनुभव को बता पाना मुश्किल है क्योंकि कभी सोचा नहीं था कि कहीं बाहर भी हम अपनी संस्कृति का प्रदर्शन कर पाएंगे। नवेल दुखी हैं कि अब घोटुल परंपरा खत्म होने लगी है। माओवादी भी घोटुल को पसंद नहीं करते। इसलिए अब युवक युवती घोटुल में रात नहीं बिताते। लगता है धीरे धीरे हमारी संस्कृति खत्म होती जा रही है।
महरा समुदाय, जिनके वाद्य यंत्र देवमोहिरी (विशेष प्रकार की शहनाई) के बगैर बस्तर में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। चाहे शादी हो या देवी देवताओं की पूजा। जैसा कि नाम से जाहिर है देवमोहिरी यानि देवताओं को मोहित करने वाली। ऐसे ही महरा समुदाय के श्रीनाथ नाग और अनंत राम चाल्की भी बस्तर बैंड के सदस्य हैं। नए जमाने का प्रभाव श्रीनाथ और अनंतराम पर भी पड़ा है। श्रीनाथ जहां नानगुर जिला जगदलपुर के निवासी हैं. वहीं अनंतराम कैकागढ़, जिला जगदलपुर में रहते हैं। श्रीनाथ मजदूरी करके जीवनयापन करते हैं। साल के चार महीने उनका काम केवल देवमोहिरी बजाने का है। दरअसल चार महीने शादियों का सीजन होने से उनके पास भरपूर काम होता है, बाकी दिनों वे खेतों में मजदूरी करके अपना घर चलाते हैं। 2007 में बैंड की शुरुआत के वक्त से ही श्रीनाथ समूह से जुड़े हुए हैं। अब तक वे 50 से भी ज्यादा प्रस्तुति दे चुके हैं। वे बताते हैं कि गांव से निकलकर दूसरे शहरों और राज्यों में प्रदर्शन करने से उन्हें जो मिला, उसे बयान नहीं किया जा सकता। दर्शक और श्रोता तो सम्मान देते ही हैं, गांव में भी हमारा सम्मान बढ़ गया है। अनूप पांडे ने इन्हें भी इनके गांव से खोज निकाला, पहले तो ग्रुप से जुड़ने में श्रीनाथ ने आनाकानी की। लेकिन जब एक बार जुड़े तो अभी तक हर प्रस्तुति के लिए पहुंच ही जाते हैं। वे बताते हैं कि ये बैंड एक ऐसी कंपनी की तरह है, जिसका मुनाफा सबमें बांट दिया जाता है। बैंड के साथ रहते हुए रोज का खाना तो मिलता ही है। हर शो का भी भुगतान होता है। श्रीनाथ बताते हैं कि एक कार्यक्रम में उन्होंने पंथी और करमा नृत्य देखा था, जो मध्यप्रदेश के मंडला जिले में किया जाता है। छत्तीसगढ़ के भी कुछ हिस्सों में ये नृत्य किए जाते हैं। उन्हें पंथी और कर्मा बेहद पंसद आया था। वे कहते हैं कि जैसे हमें दूसरे के पारंपरिक नृत्य पसंद आए, वैसे ही हमारे भी कई कद्रदान अब देशभर में मौजूद हैं।
अनंतराम चाल्की ऑटो चलाते हैं। बैंड में जुड़ने के पहले वे शादी ब्याह में देवमोहिरी बजाया करते थे। लेकिन अब बस्तर बैंड के साथ परफार्म करते हैं। अनंतराम कहते हैं कि बैंड से जुड़कर मैने सही ढंग से बजाना भी सीखा। मैने कभी नहीं सोचा था कि देशभर में घूमूंगा। ये मेरे लिए अनमोल अनुभव है। घर चलाने लायक तो हम कमा ही लेते हैं, लेकिन अपनी संस्कृति का संरक्षण और उसका विस्तार ऐसे भी हो सकता है। ये जानकर खुशी होती है। हम तो पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी विरासत को आगे बढ़ा ही रहे थे। ये मौखिक और वाचिक परंपरा है, जिसे कहीं लिखा नहीं गया, लेकिन वो हर पीढ़ी में हस्तातंरित होती रही है। लेकिन दुनिया भर के सामने अपनी पंरपरा को रखना सुखद अनुभव है।
दन्नामी माडिया समुदाय के होंगी (माया) सोरी और बुधराम सोरी भी बस्तर बैंड का अभिन्न हिस्सा है। बुधराम बिरिया ढोल बजाते हैं। इस बिरिया ढोल के बगैर भी दन्नामी माडिया समुदाय में ना तो शादी ब्याह संपन्न होता है ना ही अंतिम संस्कार। इसे समुदाय के लोग खुद ही बनाते हैं। इसकी खासियत ये है कि इस ढोल के एक तरफ बैल का चमड़ा होता है तो दूसरी तरफ बकरे का। जब इस ढोल को बनाने के लिए शिवना पेड़ की लड़की काटी जाती है, तब बकायदा पूजा करके पेड़ को नारियल चढ़ाया जाता है। बिरिया ढोल जब शादी के मौके पर बजता है तो अलग धुन होती है, लेकिन जब किसी के अंतिम संस्कार के वक्त बजता तो है तो अलग धुन निकाली जाती है। इसकी आवाज इतनी तेज होती है कि आसपास के 30-35 गांव तक सुनाई देती है। धुन सुनकर दूसरे गांव के लोग अंदाजा लगा लेते हैं कि किसी की शादी हो रही है या किसी का अंतिम संस्कार संपन्न किया जा रहा है। बुधराम को वर्ष 2010 में उस्ताद बिस्मिल्ला खान संगीत पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। बुधराम भी किसान है।
होंगी (माया) सोरी दंतेवाड़ा के जरीपारा गांव में रहती है। होंगी तिरदुड़ी बजाती है। तिरदुड़ी लोहे से बना हुआ एक वाद्य यंत्र है। होंगी की एक ओर जिम्मेवाही है गीत गाने की। होंगी बताती हैं कि उनके माता पिता जोगी और देवालान सोरी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने गौर नृत्य (आदिवासियों द्वारा किया जाने वाला एक नृत्य) प्रस्तुत किया था। इसके लिए वे विशेष रूप से दिल्ली बुलाए गए थे। होंगी महुआ बीनकर अपना घर चलाती हैं। अभी महुआ बीनने का ही मौसम चल रहा है, लेकिन बैंड से लगाव के कारण वे प्रस्तुति देने निकली हुई हैं।
धुर्वा समुदाय के भगतसिंह नाग नेतीनार जिला बस्तर के रहने वाले हैं। वे वेरोटी (बांसुरी) बजाते हैं। अभी 12वीं की पढ़ाई कर रहे भगतसिंह को राजस्थानी नृत्य संगीत से भी बेहद लगाव है। वे एक पढ़े लिखे आदिवासी परिवार से हैं। भगतसिंह के बड़े भाई सहायक शिक्षक हैं और भाभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं। भगतसिंह बस्तर के उन युवाओं में से हैं, जिन्हें बाहरी दुनिया आकर्षित भी करती है और वे दुनिया के गुणा भाग को समझते भी हैं। भगत सिंह बतात हैं कि कई बार अपने ग्रुप की प्रस्तुति के वक्त आयोजिक कार्यक्रमों में उन्होंने राजस्थानी लोकसंगीत भी देखा और सुना है। जो उन्हें बेहद पंसद आया। भगतसिंह कहते हैं कि दूसरे राज्यों की लोक संस्कृति देखकर अच्छा लगता है। वेरोटी यानि बांसुरी के बारे में भगत बताते हैं कि इसे मढ़ई मेलों के वक्त बजाया जाता है। शादी ब्याह में भी इसे बजाया जाना शुभ माना जाता है। 2011 में वे बैंड से जुड़े हैं। नए लोगों से मिलना, मान सम्मान पाना उन्हें रोमांचित करता है। इसलिए वे बैंड से जुड़े रहना चाहते हैं। वे किरकिचा (लोहे से बना वाद्य यंत्र) और जलाजल (घुंघरूओं से बना बाजा) भी बजाते हैं। हम सब मिलकर 150 स 200 धुने तैयार कर चुके हैं। इसे आप जनजातिय संगीत का फ्यूजन मान सकते हैं। जब हम मिलकर प्रैक्टिस करते हैं तो कई बार नई धुने तैयार हो जाती हैं। ये मिलकर रिहर्सल करने का वक्त निकाल ही लेते हैं। जबकि सब अलग अलग गांवों, जिलों में रहते हैं। अलग अलग समुदायों से हैं। लेकिन जब इकट्ठे होते हैं तो लगता है कि बस्तर के सारे गुलाब एक ही गुलदस्ते में महक रहे हैं।
जब 45 वाद्य यंत्र एक साथ स्वर लहरी छोड़ते हैं तो माहौल नशीला सा लगने लगता है। वैसे भी बस्तर के वाद्य यंत्रों की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वे श्रोता को झूमने पर मजबूर कर देते हैं। नगाड़ा, देवमोहिरी और तुड़मुड़ी को एक साथ बजाने की पंरपरा हैं। जब ये तीनों वाद्य यंत्र बजते हैं, तो ये शौर्य रस का आभास पैदा करते हैं। इन्हें सुनते वक्त ऐसा लगता है जैसे वीर रणभूमि की तरफ प्रस्थान कर रहे हैं। लेकिन जब यही तीनों वाद्य यंत्र पराए, तिरदुड़ी, बिरिया ढोल, किरकिचा और जलाजल के साथ बजते हैं तो समा सुरमयी हो जाता है। ताड़ी और सल्फी (दोनों देशी शराब का प्रकार हैं) की मादकता इन वाद्य यंत्रों में उतर आती है। आदिवासी इलाकों में घर में बनाई जाने वाली शराब का अलग महत्व है। मदिरा आदिवासी संस्कृति का अभिन्न अंग है....इसका सुरुर जनजातीय वाद्य यंत्रों की स्वर लहरियों में महसूस किया जा सकता है। बस्तर बैंड के सदस्यों की तैयार धुनें केवल नृत्य, मौज मस्ती भर के लिए नहीं, बल्कि देवी और देवताओं की अराधना के लिए भी होती हैं। ये धुनें अपनी कथा वाचक परंपरा को भी आगे बढ़ाती हैं। पराए और बिरिया ढोल की थाप पर थिरकते हुए आदिवासी युवक युवती आपको भी थिरकने को मजबूर कर देते हैं। माओपारा (वनभैंसे को मारने की नृत्य नाटिका) हो या लोरी चंदा की प्रेम कहानी, आल्हा उदल की शौर्य गाथा हो या लिंगादेव की गाथा हो, हर गाथा और गीत के साथ बजते वाद्य यंत्र करिश्माई माहौल पैदा करने का माद्दा रखते हैं। यही बस्तर के वाद्य यंत्रों की विशेषता है।