शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

झांसे का एंबुश


नक्सलियों ने धोखेबाजी की एक और मिसाल कायम कर दी। सुकमा में हुए नक्सल हमले में नक्सलियों ने जवानों को फंसाने के लिए ग्रामीणों का भेष धारण किया, ताकि सीआरपीएफ के जवान उन्हें पहचान ना पाएं। इस तरह धोखे से नक्सली अपने नापाक मंसूबे में कामयाब भी हो गए और उनके एंबुश में फंसकर 14 जवान शहीद हो गए।
छत्तीसगढ़ में अत्यधिक नक्सल प्रभावित जिले सुकमा में पिछले 10 दिनों के भीतर ही एक ही स्थान पर नक्सलियों ने दूसरी बार हमला कर सीआरपीएफ के दो अफसरों समेत 14 जवानों को मौत के घाट उतार दिया। पड़ताल में यह बात सामने आ रही है कि नक्सलियों ने जवानों को झांसा देकर अपनी मांद में बुलाया था। छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों लगातार होते नक्सलियों के सरेंडर और गिरफ्तारी से उत्साहित जवान नक्सलियों के एंबुश का शिकार हो गए। घायल जवानों की मानें तो नक्सली ग्रामीणों की वेश भूषा में थे, जिसके कारण जवान मात खा गए। कहा यह भी जा रहा है कि नक्सलियों ने ग्रामीणों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया, जैसा कि वे हमेशा से करते रहे हैं।
अब पुलिस और गृह विभाग के आला अफसर कड़ियों को आपस में जोड़ रहे हैं तो ऐसा लग रहा है कि नक्सलियों ने फोर्स को झांसा दे कसलपाड़ के आसपास आने पर मजबूर किया था ताकि उन्हें एंबुश में फंसा सकें। पुलिस को अपनी तहकीकात में मिले सुरागों से पता चल रहा है कि नक्सलियों ने अपने मुखबिर के जरिए ऑपरेशन पर निकले जवानों और उनके अफसरों तक यह सूचना पहुंचाई थी कि कसलपाड़ गांव में नक्सलियों का जमावड़ा है। जवानों को भेजी गई सूचना में यह भी बताया गया था कि हाल ही में आईजी सीआरपीएफ के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों को कसलपाड़ गांव में ही जलाया या दफनाया गया है। इसी सूचना के आधार पर 237 जवानों का दल कसलपाड़ गांवो को घेरने पहुंचा था। फोर्स के पहुंचने के कुछ ही सेकेंड्स के भीतर नक्सलियों ने गांववालों को ढाल की तरह इस्तेमाल करते हुए लाइट मशीनगन से ताबडतोड़ फायरिंग शुरु कर दी। गांववालों को नक्सलियों की ह्यूमन शील्ड की तरह सामने पाकर जवान जबावी कार्यवाही करने में ठिठक गए और जवानों की मौत का आंकड़ा बढ़ गया।
घटना के बाद रायपुर पहुंचे केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राजभवन में मुख्यमंत्री रमन सिंह और आला अफसरों की बैठक लेने के बाद कहा कि इस घटना से व्यक्तिगत रूप से आहत हूं। नक्सली बौखलाए हुए हैं और उन्होंने कायराना हरकत की है। यह हमला केवल सरकार के लिए नहीं बल्कि देश और देश के समस्त शांतिप्रिय नागरिकों के लिए चुनौती है। 
सोमवार को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के चिंतागुफा के पास नक्सलियों ने इस साल की बड़ी वारदात को अंजाम दिया। नक्सलियों के इस हमले में सीआरपीएफ के दो अधिकारियों समेत 14 जवान शहीद हो गए। इसमें सीआरपीएफ की 223 बटालियन के डिप्टी कमांडेंट डीएस वर्मा निवासी कानपुर और असिस्टेंट कमांडेंट राजेश कपूरिया निवासी राजस्थान शामिल हैं। सीआरपीएफ ने 14 जवानों के शहीद होने और 15 के घायल होने की पुष्टि की है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नक्सली हमले को लेकर ट्विट किया है। नरेंद्र मोदी ने नक्सली हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ के जवानों को सलाम किया है। साथ ही उन्होंने गृहमंत्री राजनाथ सिंह और मुख्यमंत्री रमन सिंह को निगरानी का निर्देश दिया है।
मुख्यमंत्री रमन सिंह ने घटना के बाद दिल्ली दौरा रद्द कर रायपुर पहुंचने पर कहा कि नक्सलियों में इतना साहस नहीं है कि वे सुरक्षा बलों से आमने-सामने मुकाबला कर सकें, इसलिए उन्होंने कायरतापूर्ण तरीके से घात लगाकर हमला किया।
माना जा रहा है कि सूचना तंत्र की विफलता के कारण यह घटना हुई है। दूसरी तरफ घायल जवानों का दावा है कि हमले के दौरान जवाबी कार्रवाई में करीब 10 नक्सलियों के मारे जाने की सूचना है, लेकिन उनके शव बरामद नहीं हो पाए हैं। इसका एक कारण नक्सलियों व्दारा अपने साथियों के शवों को भागते वक्त साथ ले जाना बताया जा रहा है।
एडीजी नक्सल ऑपरेशन आरके विज ने बताया कि चिंतागुफा से दस किलोमीटर दूर कसलनार के पास नक्सलियों ने संयुक्त ऑपरेशन पर निकले जवानों को निशाना बनाया। एरिया डामिनेशन के लिए कोबरा की 206वीं बटालियन और सीआरपीएफ की 223वीं बटालियन के जवान सर्चिंग पर थे। नक्सलियों ने फाइरिंग से पहले ब्लॉस्ट किया। दोपहर लगभग दो बजे एंबुश लगाकर हमला किया। नक्सली हमले में 15 जवान घायल हुए हैं, जिनका इलाज रायपुर में किया जा रहा है। 29 नवम्बर को गोरगुड़ा, पोलमपल्ली, कांकेरलंका, पुसवाड़ा, तेमेलवाड़ा, चिंतागुफा, बुरकापाल, चितंलनार, भेज्जी के सीआरपीएफ, कोबरा व जिला पुलिस बल के जवान सर्चिग ऑपरेशन के लिए अलग-अलग जगहों से निकले थे। सर्चिग पार्टी को सोमवार शाम चिंतलनार पहुंचना था। कांकेरलंका व चिंतागुफा से निकली हुई पार्टी के साथ नक्सलियों की मुठभेड़ हुई है। मुठभेड़ में नक्सलियों ने घात लगाकर जवानों पर हमला बोल दिया। मंगलवार तक बुरकापाल, चिंतागुफा, कांकेरलंका व पुसवाड़ा की पार्टी वापस कैम्प तक नहीं पहुंची थी। जंगल में नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना पुलिस टीम के पास थी। इसे देखते हुए ही ऑपरेशन किया जा रहा था। बताया जा रहा है कि नक्सली भी सैकड़ों की संख्या में थे। ऑपरेशन के दौरान सीआरपीएफ के आईजी एचएस सिद्ध भी मौजूद थे। यह वारदात उसी स्थान पर हुई है, जहां पिछले महीने नक्सलियों ने एयरफोर्स के हेलिकॉप्टर पर गोलीबारी की थी। नक्सली दो दिसंबर से पीएलजीए सप्ताह मनाने की तैयारी में थे। इसे लेकर सुकमा और आसपास के इलाकों में नक्सलियों ने पर्चे भी फेंके थे। नक्सलियों के अभियान को देखते हुए पुलिस टीम ने जंगल में सर्चिंग ऑपरेशन चलाया था।
नक्सलियों ने दो दिन पहले चिंतागुफा के पास एक बड़ी मीटिंग की थी। इसमें सैकड़ों नक्सलियों के शामिल होने की खबर है। बताया जा रहा है कि नक्सलियों द्वारा जवानों को फंसाने के लिए सुनियोजित ढंग से एम्बुश बिछाई गई थी। इस नक्सली वारदात की रणनीति माओवादियों की सेंट्रल कमेटी के द्वारा बनाए जाने की खबरें आ रही हैं। सूत्रों के मुताबिक 29 नवम्बर को गादीरास के गोरली पहाड़ी क्षेत्र में सेंट्रल कमेटी के सदस्य पंकज, एलओएस सन्नी, आंध्र के एक लीडर जगदीश व देवा की मौजूदगी में नक्सलियों की बैठक हुई थी।
इन्हें फोर्स के सर्चिंग मूवमेंट की जानकारी थी। पिछले कुछ दिन से इस क्षेत्र में सीआरपीएफ के जवान ऑपरेशन में थे। सोमवार को जवान दक्षिण बस्तर की कमेटी के द्वारा बनाए गए एम्बुश में फंस गए। गौरतलब है कि पंकज लंबे समय तक सेंट्रल कमेटी के प्रवक्ता के रूप में सक्रिय रहा, वहीं आंध्र का नक्सली लीडर जगदीश दक्षिण बस्तर की 26 नंबर प्लाटून का कमांडर हैं।
सुकमा जिले की प्रमुख नक्सली घटनाएं
1 जून 2005-फंदीगुड़ा कोंटा- बारूदी सुरंग विस्फोट में सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडेंट समेत छह जवान शहीद।
6 फरवरी 2006-भेज्जी कोंटा- विस्फोट में नागा बटालियन के 10 जवान शहीद।
28 फरवरी 2006-दरभागुड़ा कोंटा- विस्फोट से ट्रक उड़ाया, 28 ग्रामीणों की मौत।
29 अप्रैल 2006- मनीकोंटा कोंटा- 13 ग्रामीणों की हत्या।
17 जुलाई 2006- एर्राबोर कोंटा - राहत शिविर पर नक्सली हमले में 29 ग्रामीणों की मौत।
10 जुलाई 2007-उपलमेटा कोंटा- मुठभेड़ में 24 जवान शहीद।
29 अगस्त 2007-दारमेटला कोंटा- मुठभेड़ में थानेदार समेत 12 जवान शहीद।
6 मई 2009-असीरगुड़ा कोंटा- बारूदी विस्फोट में 11 शहीद।
6 अप्रैल 2010-ताड़मेटला- सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद।
17 मई 2010-चिंगावरम- विस्फोट से यात्री बस उड़ाने से 36 की मौत।
21 अप्रैल 2012- कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन का अपहरण।
11 मार्च 2014 -टाहकवाड़ा- सीआरपीएफ के 16 जवान शहीद।
अब तक 1 हजार जवान शहीद
छत्तीसगढ़ गठन के बाद नक्सली हमले में एक हजार से ज्यादा जवान शहीद हुए हैं। इसमें 595 छत्तीसगढ़ पुलिस व सहायक बल और 405 केन्द्रीय बलों के जांबाज हैं। छत्तीसगढ़ के रहने वाले 368 (जिला पुलिस बल के 243 एवं छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल, एसटीएफ सहित 125) जवान शहीद हुए। वहीं 327 शहादत सीआरपीएफ के जवानों ने दी है। विशेष पुलिस अधिकारी भी पीछे नहीं रहे, इनकी संख्या भी 194 है। किसी एक घटना में सर्वाधिक सुरक्षाकर्मी ताड़मेटला की घटना में सीआरपीएफ के 75 एवं छत्तीसगढ़ पुलिस के एक जवान शहीद हुए। मार्च 2007 में रानीबोदली में विशेष पुलिस अधिकारी सहित 55 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे। पिछले करीब 14 वर्षों में 39 ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसमें 5 या उससे अधिक सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं। वर्ष 2007 में सबसे ज्यादा 200 सुरक्षाकर्मी मारे गए। वर्ष 2009 में 125 और वर्ष 2010 में 170 जवान शहीद हुए।
सूबे की बड़ी नक्सल घटनाएं
सितम्बर 2005 में गंगालूर रोड पर एंटी-लैंडमाइन वाहन के ब्लास्ट करने से 23 जवान शहीद हुए थे। जुलाई 2007 में एर्राबोर अंतर्गत उरपलमेटा एम्बुश में 23 सुरक्षाकर्मी मारे गए। अगस्त 2007 में दारमेटला में मुठभेड़ में थानेदार सहित 12 जवान शहीद हुए। 12 जुलाई 2009 को जिला राजनांदगांव में एम्बुश (ब्लास्ट के बाद हुई फायरिंग) में पुलिस अधीक्षक सहित 29 जवान शहीद हुए।
नारायणपुर के घौडाई क्षेत्र अंतर्गत कोशलनार में 27 सुरक्षाकर्मी एम्बुश में मारे गए थे। 6 अप्रैल 2010 को ताड़मेटला में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए। 11 मार्च 2014 को टाहकवाड़ा में सीआरपीएफ के 16 जवान शहीद हुए। नवंबर में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के हेलिकॉप्टर पर निशाना साधा था, जिसमें सीआरपीएफ के आईजी एचएस संधू सर्चिंग ऑपरेशन पर निकल रहे थे। इस हमले में संधू के गनमैन को नक्सलियों की गोली लगी थी और सात जवान घायल हो गए थे।

कचरे में मिली वर्दी और जूते, राजनाथ ने जताई नाराजगी
जिन जवानों ने नक्सलियों के एंबुश में फंसने के बाद भी मोर्चा लेते हुए शहीद हुए, उन शहीद जवानों की वर्दी अंबेडकर अस्पताल में कचरे के ढेर में मिली। पोस्टमार्टम के बाद वर्दी को कचरे के ढेर में फेंके जाने की बात का खुलासा होने के बाद इस पर काफी आपत्ति जताई जा रही है। कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता तो इन वर्दियों को कचरे के ढेर से उठाकर कांग्रेस भवन ले आए और सम्मानजनक तरीके से रखा। इस बीच पुलिस को इसकी जानकारी हुई तो वह वर्दी लेने कांग्रेस भवन पहुंची, लेकिन कांग्रेसियों ने इसे देने से इन्कार कर दिया। आखिरकार सीआरपीएफ के अफसरों के आने के बाद उन्हें वर्दी सौंपी गईं। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस मामले का संज्ञान लिया है। उन्होंने कहा कि जवानों की वर्दी के बारे में सूचना मिली है और इस बारे में उन्होंने छत्तीसगढ़ के सीएम से बात की है। राजनाथ से आश्वासन दिया कि जो भी इसके लिए दोषी होगा, उस पर कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद मुख्यमंत्री ने मामले की दंडाधिकारी जांच के आदेश दिए हैं। इस बीच केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के महानिदेशक आरसी तायल ने सोमवार को छत्तीसगढ़ के सुकमा में हुए नक्सली मुठभेड़ में 14 जवानों की शहादत की घटना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि फोर्स नक्सलियों की इस चुनौती को स्वीकार करती है।


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