शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

मौत की दवा




देश में नकली दवा का कारोबार तेजी से फलफूल रहा है। सरकारी तंत्र के संरक्षण में पल रहे इस गोरखधंधे में लोगों
की जान से खेलने में भी परहेज नहीं किया जा रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण छत्तीसगढ़ का पेंडारी नसबंदी कांड है।
जिसे असल में नकली दवा कांड कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

बिलासपुर से लगे घुटकू के मदनलाल सूर्यवंशी पिता मथुरा प्रसाद सूर्यवंशी ने 23 नंबवर को सामान्य सर्दी-जुकाम की
शिकायत पर गनियारी (बिलासपुर) के एक डॉक्टर से दवा ली थी। दवा खाते ही उसके पेट में तेज दर्द होने लगा।
चेहरे, पैरों में सूजन गई और सांस लेने में तकलीफ होने लगी। युवक के परिजन उसे लेकर बिलासपुर पहुंचे और
मंगला नाका चौक में एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया। एक दिन बाद ही सुबह उसकी मौत हो गई। अस्पताल
प्रबंधन ने इसकी सूचना सिविल लाइन थाने में दी। मदन की मौत के ठीक एक दिन पहले ही एक वृद्ध की भी इसी
दवा के साइड इफेक्ट से मौत हो गई थी। ये दोनों मौतें तब हुईं, जब छत्तीसगढ़ में सरकारी नसबंदी शिविर में
ऑपरेशन करवाने के बाद 18 महिलाएं सिप्रोसिन 500 समेत छह अन्य अमानक दवा खाने से मौत की नींद सो चुकी
थीं। इसके बाद आनन फानन में छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेशभर में सिप्रोसिन की 33 लाख टेबलेट जब्त
की, जिनमें से 13 लाख टेबलेट अकेले सरकारी स्टॉक की है।
नकली दवाओं के कारोबार के संबंध में राष्ट्रीय संगठन एसोचैम के अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में इन दिनों
नकली दवा के कारोबार में काफी बढ़ोतरी देखी जा रही है। अध्ययन के अनुसार इस समय देश में 25 प्रतिशत दवाएं
नकली होती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी के क्षेत्र की नकली दवाइयां बनाने वालों के खास जगह
माने जाते हैं।
ऐसोचैम की इस रिपोर्ट के मुताबिक, छत्तीसगढ़ राज्य भी नकली दवाओं की कारोबार से अछूता नहीं हैं। राजधानी बनने
के बाद यहां दवा कारोबार भी खूब फल-फूल रहा है। एसोचैम की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि नकली दवाओं की
तेजी से बढ़ोतरी के पीछे मुख्य कारण अपर्याप्त नियामक, दवा निरीक्षकों की कमी और गुणवत्ता जांचने की प्रयोगशालाओं
का अभाव है।
यह तथ्य सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से भी साबित हो चुका है। आरटीआई कार्यकर्ता उचित शर्मा को
प्रदेश में नसबंदी कांड के बाद सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
छत्तीसगढ़ के खाद्य एवं औषधि विभाग के अधिकारियों ने पिछले दस साल में अमानक दवा बनाने वाली कंपनियों के
खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। प्रदेश में 43 कंपनियों की दवाएं अमानक पाई गईं, इसमें छत्तीसगढ़ की भी एक
दर्जन कंपनियां हैं। अमानक दवाओं के कई मामले कोर्ट में चल रहे हैं। जिन मामलों में विभाग ने कार्रवाई की है, वह
महज खानापूर्ति नजर आ रही है।
खाद्य एवं औषधि विभाग ने प्रदेश से बाहर की दवा कंपनियों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं की। विभाग ने सिर्फ
संबंधित प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को यह सूचना दे दी कि छत्तीसगढ़ में इस कंपनी की दवा अमानक पाई गई है। इन
कंपनियों की दवाओं की प्रदेश में बिक्री प्रतिबंधित नहीं की गई। वहीं छत्तीसगढ़ की दवा निर्माता कंपनियों के खिलाफ
एक से दो महीने तक औषधि निर्माण निलंबित किया गया। प्रदेश की दवा निर्माता कंपनियों में सबसे ज्यादा गड़बड़ी
महावर फार्मा की दवाओं में मिली और इसके निर्माण पर सबसे ज्यादा बार रोक लगाई गई। इसके बाद दूसरे नंबर पर
बिलासपुर की दवा कंपनी कार्वो फार्मा का लाइसेंस निलंबित किया गया। आरटीआई कार्यकर्ता उचित शर्मा ने बताया कि
प्रदेश की दवा कंपनियों के खिलाफ सिर्फ दिखावे की कार्रवाई की जा रही है। नकली दवा मिलने के बाद भी खाद्य एवं
औषधि विभाग ने एक भी कंपनी को बंद नहीं किया।
हद तो तब हो गई, जब विभाग ने अमानक दवा कंपनियों को अच्छे काम के लिए सम्मानित भी किया गया। इसका
प्रत्यक्ष उदाहरण बिलासपुर के कार्वो फार्मा को दिया गया गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेस (जीएमपी) प्रमाणपत्र है। कार्वो
फार्मा की दवाएं अमानक पाई गईं थी। इसकी टेबलेट कोलकाता की लैब में फेल हो गई थी। इसके बाद भी तत्कालीन
(अब निलंबित) सहायक औषधि नियंत्रक हेमंत श्रीवास्तव ने इसे गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेस (जीएमपी) प्रमाणपत्र
जारी किया। कार्वो फार्मा की दवाओं के अमानक होने का मामला कोर्ट में भी चल रहा है। स्वास्थ्य विभाग से मिली
जानकारी के अनुसार, महावर फार्मा से बिलासपुर की कविता फार्मा ने डेढ़ लाख सेप्रोसिन की खरीदी की और स्वास्थ्य
विभाग में तीन लाख सेप्रोसिन की सप्लाई कर दी। इसकी जांच विभाग की ओर से नहीं की जा रही है। इस पूरी दवा
की खरीदी सीएमओ रहे अमर ठाकुर के कार्यकाल में हुई थी। श्री ठाकुर ने स्थानीय खरीदी में कविता फार्मा से दवा की
खरीदी की। अब जबकि नकली दवाओं और छत्तीसगढ़ खाद्य एवं औषधि विभाग का गठजोड़ खुलकर सामने आ गया है
तो विभाग के अफसर किसी भी तरह की बात करने से बच रहे हैं। ड्रग कंट्रोलर रविकांत गुप्ता कहते हैं ‘मैं मीडिया के
सवालों का जवाब दूंगा, तो जांच कब करूंगा’।
अब तो प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने भी दवाइयों में जहर होने की पुष्टि की है। साथ ही उन्होंने माना कि
दवाइयां 'सब स्टैंटर्ड' और 'पॉइजनस' थी। उन्होंने सिप्रोसिन 500एमजी में चूहामार दवा मिलने की पुष्टि की है।
इन सबके बीच नकली दवाओं के मामले में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाईकोर्ट ने नसबंदी मामले में प्रतिबंधित दवाइयों
को वापस मंगाने का निर्देश दिया है। अधिवक्ता अधिवक्ता सतीश वर्मा ने तहलका को बताया कि हाईकोर्ट की खंडपीठ ने
राज्य सरकार को स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा कि सरकार ऐसे लोगों को चिन्हित करे जिन्होंने प्रतिबंधित
दवाओं का पहले या बाद में, कभी सेवन किया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को ऐसे प्रभावित लोगों की सम्पूर्ण और
नियमित जांच कराने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि गांव-गांव में जहां कहीं भी प्रतिबंधित दवाओं
का वितरण किया गया है वहां से इन दवाइयों को तत्काल वापस मंगाया जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य विधिक
सहायता प्राधिकरण को भी निर्देश दिया है कि गांवों में शिविर लगाकर और दूसरे प्रचार-प्रसार माध्यमों से आमजनों में
जागरूकता फैलाई जाए ताकि लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें। नसबंदी मामले में कांग्रेस नेता मणिशंकर पाण्डेय
ने बिलासपुर हाईकोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर की थी। हालांकि राज्य सरकार ने विस्तृत जवाब के लिए समय मांग
लिया है। इसी तरह केंद्र सरकार ने भी जवाब के लिए समय की मांग की है जबकि एम सी आई ने कहा है कि उनकी
आचरण समिति बिलासपुर पहुंचकर मामले की जांच-पड़ताल करेगी। हाईकोर्ट में जस्टिस टी पी शर्मा और जस्टिस इन्दर
सिंह ओबेवेजा की पीठ ने मामले को सुनने के बाद राज्य सरकार को निर्देश दिया कि प्राथमिक तौर पर सरकार ऐसे
लोगों को चिन्हित करे जिन्होंने जाने-अनजाने प्रतिबंधित दवाओं का पहले या बाद में, कभी सेवन कर लिया है। कोर्ट
ने ऐसे लोगों की सम्पूर्ण और नियमित जांच के लिए भी सरकार को निर्देश दिया है। युगल पीठ ने यह भी कहा है कि
जिस किसी भी गांव में, जहां कहीं भी प्रतिबंधित दवाओं का वितरण किया गया है वहां से उन्हें वापस मंगा लिया
जाए। मामले में अगली सुनवाई आगामी 22 दिसंबर को होनी है।
नसबंदी कांड या यूं कहें कि जहरीली दवा कांड के बाद बिलासपुर पहुंचे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी आरोप
लगाया कि महिलाओं की मौत के लिए नकली दवा जिम्मेदार है। राहुल ने कहा कि 'सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं ले
रही है। जबकि सीधे तौर पर सरकार, स्वास्थ्य मंत्री और नकली दवा जिम्मेदार है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह
स्वास्थ्य सेवा दें और अस्पतालों को बेहतर ढंग से चलाए, लेकिन सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं ले रही है। भागने की
कोशिश हो रही है। बात को दबाने की कोशिश हो रही है।''
जब राहुल गांधी बिलासपुर में यह बयान दे रहे थे, तभी राज्य के प्रमुख सचिव स्वास्थ्य डॉ आलोक शुक्ला आंशका
जता रहे थे कि नसबंदी के बाद महिलाओं को दी गई सिप्रोसिन 500 टेबलेट में जिंक फॉस्फेट मौजूद था, जो चूहे
मारने की दवा में इस्तेमाल होता है। शुक्ला ने सार्वजनिक रूप से कहा कि जिन दवाओं को जब्त किया गया है, उनकी
जांच बिलासपुर के साइंस कॉलेज में कराई गई। इसमें जिंक फॉस्फेट मिले होने की पुष्टि हो रही है। छापे के दौरान भी
फैक्ट्री मंन जिंक फॉस्फेट मिला है। इससे ऐसा लगता है कि सिप्रोसिन बनाते समय उसमें जिंक फास्फेट मिला दी गई
होगी।
डॉ. शुक्ला का कहना था कि यह प्रारंभिक जांच में तथ्य मिले हैं। अब उन्हीं दवाओं को दिल्ली और कोलकाता की लैब
में जांच के लिए भेजा गया है। वहां से रिपोर्ट आने के बाद यह बात प्रमाणित हो जाएगी। हालांकि कोलकाता लैब से
रिपोर्ट आने के बाद उसे अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव अपनी बात
पर अब तक कायम हैं। प्रमुख सचिव की स्वीकारोक्ति से यह बात भी स्पष्ट हो रही है कि मौतों के पीछे घटिया दवाई
ही मुख्य वजह है। ऑपरेशन से मौतों का कोई सीधा वास्ता नहीं है। दवाइयों की सप्लाई में ही सारा खेल होने की बात
प्रमाणित होती दिख रही है। शुक्ला ने यह भी कहा कि 'दवा दुकानों में छापेमारी शुरू कर दी गई है, ताकि घटिया दवा
जब्त की जा सके। इन दवाओं में जो लक्षण मिले हैं, वे चूहामार की तरह ही है।'
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नेता अजित जोगी कहते हैं कि ‘राज्य के सरकारी अस्पताल नकली और
बेकार दवाओं से भरे पड़े हैं। जोगी ने आज जारी बयान में कहा कि इस वजह से सरकारी अस्पतालों में आए गरीबों के
सामने इन दवाओं के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता’।
राज्य सरकार की भद्द पिटने के बाद पुलिस ने सिप्रोसिन बनाने वाली महावार फार्मा के संचालक रमेश महावर और
उसके पुत्र को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। महावर अपनी दवाओं की जांच मुंबई के वी. केयर लैब से कराने
का दावा करता रहा है। कंपनी में मिले रैपर में सिप्रोसिन टेबलेट का प्रमोटर मुंबई की इसी लैब को बताया गया है।
लेकिन जांच के लिए मुंबई गई पुलिस टीम को वी केयर लैब नाम की कई लैबोरेटरी ही नहीं मिली।
एक तरफ पुलिस अपनी तहकीकात में लगी है, वहीं दूसरी तरफ महावर फार्मा के अधिकारी नकली दवाओं के सबूत
मिटाने में जुटे हुए हैं। यही कारण है कि कभी तालाबों से तो कभी जंगलों से नकली दवाएं जब्त की जा रही हैं।
बिलासपुर के सरोपी तालाब में महावर फार्मा की प्रतिबंधित दवा फेंकी हुई मिली हैं। जब कुछ लोग नहाने गए तो
उन्होंने देखा कि तालाब में बड़ी संख्या में दवाइयों के रैपर पड़े मिले। तालाब के तट पर भी जली हुई दवाओं की राख
पड़ी थी। इसके साथ ही सूचना मिली कि बनसांकरा के जंगल में भी भारी मात्रा में एक्सपायरी दवाएं पड़ी हैं। बता दें
कि यह वही महावर फार्मा है, जिसने नसबंदी शिविर में इस्तेमाल की गई दवा बनाई थी और इन दवाओं के इस्तेमाल
से नसबंदी कराने वाली 14 महिलाओं समेत अब तक कुल 19 लोगों की मौत हो चुकी है।
लोगों ने दवा मिलने की जानकारी बीएमओ डॉ. जीएस सोम को दी। उन्होंने तत्काल वहां पहुंचकर तालाब में तैर रही
दवाओं को बाहर निकलवाया। बीएमओ डॉ. सोम का कहना है कि सिमगा में बड़े पैमाने पर प्रतिबंधित दवाइयों का
मिलना गंभीर विषय है।
अधजले रैपर की जांच से यह पता चला कि ये महावर फार्मा की डाइक्लोवान प्लस है। साथ ही प्रतिबंधित दवा ब्रूफेन
और नींद की दवा टेग्रीटाल भी बरामद की गई। यहां बताते चलं कि बिलासपुर के तखतपुर ब्लॉक के पेंडारी के नेमीचंद
अस्पताल में 8 नवंबर को सरकारी नसबंदी ऑपरेशन शिविर लगा था। इसके दूसरे दिन से महिलाओं की मौत का
सिलसिला शुरू हो गया। नसबंदी करवाने वाली 14 महिलाओं की मौत हो गई। जांच में यह बात सामने आई थी कि
सिप्रोसिन-500 दवा में चूहामार जहर मिला था।
मुख्यमंत्री रमन सिंह ने खुद माना है कि "सिमगा के पास तालाब में और जंगलों में मिली नकली दवाओं के जखीरे
और पेंडारी नसबंदी कांड में उपयोग की गई दवाओं में समानता है। ये वही फर्जी दवाएं हैं। सरकार इसकी पूरी जांच
कराएगी।''

इन कंपनियों की दवा अमानक
कार्वो फार्मा, महावर फार्मा, हिंदुस्तान फार्मास्यूटिकल्स, राठी लबॉरटरीज, संकेत फार्मा, मार्टिन एंड ग्राउन
फार्मास्यूटिकल्स, सुप्रा ड्रग्स, जेनरिक फार्मास्यूटिकल्स, एस रोस रोबिन्ज, रिडली लाईफा साइंसेज, ओजोन
फार्मास्यूटिकल्स, चिफमेड फार्मास्यूटिकल्स, अल्मेट हेल्थ केयर, ब्लीट्ज फार्मास्यूटिकल्स, एकुम ड्रग्स एंड
फार्मास्यूटिकल्स, एरियोन हेल्थ केयर, काबरा ड्रग्स, आपटिमा हेल्थ केयर, वनगार्ड लबॉरटरीज, निकेम ड्रग्स, जय
केमिकल, गुजरात फार्मास्यूटिकल, पी एंड पी फार्मास्यूटिकल्स, नोडिसिस फार्मा, मेडिमर्क ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स,
एलीकेम फार्मास्यूटिकल्स और डॉक्ट फार्मास्यूटिकल्स हैं।

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भारत में बिकने वाली हर पांचवीं दवा नकली
भारत में नकली दवाओं का कारोबार काफी पुराना है। केंद्र सरकार ने इसके खतरे को देखते हुए नकली दवाओं के बारे
में बताने पर इनाम का ऐलान किया है। 'विसल ब्लोअर' पॉलिसी के तहत सरकार नकली दवाओं का कंसाइनमंट
पकड़वाने वालों को कंसाइनमंट की कीमत का 20 फीसदी इनाम के तौर पर देगी। इनाम की रकम 25 लाख रुपये तक
हो सकती है।
- भारत में फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री 85 हजार करोड़ रुपये की है। इसमें 35 हजार करोड़ रुपये के फार्मा प्रडक्ट्स को
एक्सपोर्ट किया जाता है।
- हेल्थ मिनिस्ट्री का अनुमान है कि भारत में बेचे जाने वाली करीब 5 फीसदी दवाएं नकली और 3 फीसदी मिलावटी
होती हैं । देशभर में नकली दवा उद्योग के सही-सही साइज का पता लगाने के लिए करीब 5 करोड़ रुपये खर्च कर एक
सर्वे भी कराया जा रहा है।
- साउथ ईस्ट एशिया की बात करें तो 30 फीसदी से अधिक दवाएं नकली होती हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के 2001
के आंकड़ों के मुताबिक भारत में बनने वाली 35 पर्सेन्ट दवाएं नकली होती हैं। इसके पांचवें हिस्से में गलत या
नुकसानदायक तत्व मिलाए जाते हैं।
- एक्सपर्ट्स के मुताबिक भारत में बिकने वाली हर पांचवीं दवा नकली होती है।

सरकार की तैयारी
- नकली दवाओं का कारोबार रोकने के लिए सरकार ने 23 स्टेट और 6 सेंट्रल टेस्टिंग लैबोरेटरियों के मॉडर्नाइजेशन का
काम शुरू कर दिया है।
- लैब के स्टाफ और ड्रग्स इंस्पेक्टरों को री-ओरिएंटेशन ट्रेनिंग भी दी जा रही है। इसके लिए वर्ल्ड बैंक कैपेसिटी
बिल्डिंग इन फूड ऐंड ड्रग्स रेग्युलेशन प्रोग्राम के तहत 400 करोड़ रुपये दे रहा है।

सजा का डर नहीं
- नकली दवाओं के कारोबार पर लगाम लगाने के लिए हाल ही में ड्रग्स और कॉस्मेटिक्स ऐक्ट में सुधार किया गया
है। इसमें शामिल होने वाले लोगों के लिए अधिकतम सजा बढ़ाकर उम्रकैद कर दी गई है।
- इसके अलावा जुर्माने की रकम को बढ़ाकर दस लाख रुपये कर दिया गया है। इससे जुड़े कुछ अपराधों को
गैरजमानती कैटिगरी में रखा गया है।

क्यों ना हो डेथ पेनल्टी का प्रपोजल?
- 2003 में आर. ए. मशालकर कमिटी ने नकली दवाओं के कारोबार से जुड़े लोगों के लिए डेथ पेनल्टी की सिफारिश
की थी। दिसंबर 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी कैबिनेट ने इस पर सहमति भी दे दी थी, लेकिन यह प्रस्ताव संसद
में पास नहीं हो सका।

नकली दवाओं के कारोबार में सालाना 25 फीसदी वृद्धि
- एसोचैम ने अनुमान लगाया है कि नकली दवाओं के कारोबार में हर साल 25 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है।
-ऑर्गनाइजेशन फॉर इकॉनमिक को-ऑपरेशन ऐंड डिवेलपमेंट के ताजा आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में 75 फीसदी
नकली दवाओं का ओरिजिन भारत से ही होता है।

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अनिता झा करेंगी न्यायिक जांच
सरकार ने घटनाओं की न्यायिक जांच के लिए एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन कर दिया है। सेवा निवृत्त जिला
एवं सत्र न्यायाधीश अनिता झा जांच करेंगी। तीन महीने के भीतर रिपोर्ट देंगी। इस जांच आयोग पर भी कई सवाल
उठाए जा रहे हैं। जस्टिस अनिता झा को ही चार साल पहले हुए मीना खलको एनकाउंटर की जांच का जिम्मा सौंपा
गया था। जिसकी रिपोर्ट अब तक नहीं आई है। पुलिस पर आरोप है कि उसने मीना खलको नामक एक आदिवासी
युवती को नक्सली बताकर मार गिराया था। पुलिस पर यह भी आरोप लगा था कि मीना की मौत के पहले उसके साथ
बलात्कर किया गया था। अब तक इस मामले की रिपोर्ट पूरी नहीं हो पाई है। 

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