सोमवार, 23 मार्च 2020

राज्यपाल अनुसुइया उइके ने कोण्डागांव जिले के ग्राम सल्फीपदर को गोद लेने की घोषणा


राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने आज जिला कोण्डागांव के ग्राम सल्फीपदर के आदिवासी समाज के प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की। इस दौरान राज्यपाल ने ग्राम सल्फीपदर को गोद लेने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि जल्द ही इस क्षेत्र का दौरा करेगी और वहां पर अन्य समस्याओं को निराकरण करने का प्रयास करेगी। उन्होंने कहा कि महिलाओं द्वारा ग्राम सल्फीपदर में वन संरक्षण का कार्य किया जा रहा है, जो वाकई सराहनीय है। वास्तव में जल जंगल जमीन पर आदिवासियों का अधिकार है। वे वनों के असली मालिक है। वे सदियों से वनों की रक्षा करते आएं है। उन्होंने कहा कि 5वीं अनुसूची के तहत ग्रामसभा को व्यापक अधिकार दिए गए है। उक्त किसानों की पानी के समस्या और काली मिर्च की खेती से संबंधित आवश्यकताओं का प्रस्ताव बनाकर ग्रामसभा के माध्यम से प्रशासन को प्रेषित करें। प्रशासन द्वारा उनकी अवश्य मदद की जाएगी।
सुश्री उइके ने कहा कि आदिवासी वनभूमियों का सदियों से उपयोग कर रहे है। प्रशासन द्वारा सामुदायिक वन अधिकार पट्टा प्रदान किया जा रहा है। जिनको पट्टा ना मिला हो उनका सूची बनाकर एक आवेदन शासन को दे। पट्टे मिलने के पश्चात उनकों मालिकाना हक मिल जाएगा और अन्य समस्याओं से भी राहत मिलेगी। राज्यपाल ने समितियों के पंजीयन के कार्यवाही पूर्ण करने को कहा। श्री हरिसिंह सिदार ने बताया कि ग्राम सल्फीपदर के महिलाओं का समूह वनों को ना किसी को काटने देते है और ना जलाने देते है और किसी को पशु चराने भी नहीं देते। इस समूह द्वारा वृक्षों के नीचे काली मिर्च की खेती की जाती है। यह शत प्रतिशत जनभागीदारी पर आधारित है। काली मिर्च की बाजार में अच्छी मांग है, एक बार काली मिर्च बोने के बाद लंबे समय तक अच्छी उपज ली जा सकती है साथ ही वनों की संरक्षण भी होता है। उन्होंने बताया कि कुछ समय से पानी की कमी से फसल का नुकसान हो जा रहा है। प्रतिनिधिमंडल में उपस्थित किसानों ने राज्यपाल के समक्ष अन्य मुद्दों को भी रखा। इस अवसर पर ग्राम सल्फीपदर के बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे।

बस्तर का सल्फीपदर गांव, जहां हो रही काली मिर्च की सामुदायिक खेती


आईये आज आपको मिलवाते हैं हरिसिंह #सिदार से। #कोंडागांव के लंजोड़ा में रहते हैं और आदिवासी इलाकों का सतत दौरा करते हैं। उम्र 70 वर्ष के पार है।
सिदार जी आजकल एक अभियान में लगे हैं, जिससे इनके क्षेत्र के आदिवासी आर्थिक रूप से समर्थ हो जाएंगे। इनके गांव के पास है सल्फी पदर नामक अन्य गाँव। #साल के ऊंचे-ऊंचे वृक्षों से भरा सल्फी पदर एक आर्थिक क्रांति का उदाहरण बनने जा रहा है। हरिसिंह सिदार इन साल के पेड़ों के साथ #कालीमिर्च का पौधा लगवा रहे हैं। हरेक पेड़ के साथ एक कालीमिर्च की बेल लगाई जा रही है। ये कार्य सामुदायिक सहयोग से हो रहा है। सल्फी पदर के निवासी और स्थानीय प्रशासन व वन विभाग इसमें सहयोग कर रहे हैं।
हरिसिंह सिदार बताते हैं कि काली मिर्च की बेल वर्षों तक पैदावार देती है। इसकी कीमत भी अच्छी है। इसकी फसल से #आदिवासियों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी। जंगल भी सुरक्षित हो जाएंगे। #नक्सलवाद#पलायन#मानव तस्करी जैसी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी।
कोंडागांव में उन्नत किसान राजाराम त्रिपाठी काली मिर्च की खेती कर रहे हैं। उनसे ही प्रेरणा लेकर सिदार जी आदिवासियों के लिए इसे व्यापक रूप देने का प्रयास कर रहे हैं। बस्तर का क्लाइमेट दक्षिण भारत जैसा है। यहां काली मिर्च, नारियल, कोको, कॉफी जैसी फसल बड़े पैमाने पर ली जा सकती है। अब जरूरत है कि राज्य सरकार और मुख्यमंत्री श्री Bhupesh Baghel जी इस और ध्यान दे, तो बस्तर की तस्वीर बदल सकती है।
#फोटो राजाराम त्रिपाठी के कालीमिर्च उत्पादन क्षेत्र की है। पीछे साल के पेड़ों पर काली मिर्च की बेल नज़र आ रही है। साथ में हैं हरिसिंह सिदार जी।

विश्व के सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्रियों में से एक थे डॉ अंबेडकर


पिछले दिनों मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी #इंदौर में नेशनल #ब्लॉगर्स समिट में भाग लेने का मौका मिला। शिखर सम्मेलन का विषय था 'डॉ अंबेडकर के आर्थिक विचार'। 14 अप्रैल को उनकी जयंती भी नजदीक आ रही है। इसी बहाने आईये अंबेडकर को सही मायनों में समग्र रूप में जाने।
देश में बहुत कम लोग जानते हैं कि बाबा साहब डॉ भीमराव #अंबेडकर विश्व के एक सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्री थे। समाजिक व राजनीतिक नेता वे बाद में थे, पहले एक अर्थशास्त्र के विद्यार्थी, फिर अध्यापक और फिर महान शोधार्थी थे।
समस्या ये हुई कि उन्हें केवल दलित नेता, संविधान निर्माता और बाद में राजनेता की फ्रेम में कैद कर दिया गया। उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को देश जान ही नहीं पाया। उन्होंने अर्थशास्त्र के विषयों पर एक नहीं वरन दो पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। पहली लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से..दूसरी कोलंबिया विश्वविद्यालय से। उनकी अनुशंसाओं के आधार पर #भारतीय #रिजर्व #बैंक का गठन हुआ। देश में सरकारी वित्त में भ्रष्टाचार रोकने के लिए #महालेखाकार की स्थापना हुई।
अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आंबेडकर के योगदान और उनकी प्रतिष्ठा/विश्वसनीयता को जानने के लिए ये घटना सबसे महत्वपूर्ण है। वर्ष 1930 का दशक पूरे विश्व बाजार में भीषण मंदी लेकर आया था। ब्रिटिश सरकार के सामने भी गंभीर चुनौतियां थीं। अगस्त 1925 में ब्रिटिश सरकार ने भारत की मुद्रा प्रणाली का अध्ययन करने के लिए ‘रॉयल कमीशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फाइनेंस’ का गठन किया था। इस आयोग की बैठक में हिस्सा लेने के लिए जिन 40 विद्वानों को आमंत्रित किया गया था, उनमें आंबेडकर भी थे। वे जब आयोग के समक्ष उपस्थित हुए तो वहां मौजूद प्रत्येक सदस्य के हाथों में उनकी लिखी पुस्तक ‘इवोल्यूशन ऑफ पब्लिक फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया’ की प्रतियां थीं। बात यहीं खत्म नहीं होती, उस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1926 में प्रकाशित की थी। उसकी अनुशंसाओं के आधार पर कुछ वर्षों बाद ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ की स्थापना हुई। इस बैंक की अभिकल्पना नियमानुदेश, कार्यशैली और रूपरेखा आंबेडकर की शोध पुस्तक ‘प्राब्लम ऑफ रुपया’ पर आधारित है।
उन्होंने उस वक़्त ये सिद्धान्त प्रतिपादित किया था कि महत्वपूर्ण उद्योगों पर सरकारी नियंत्रण होने चाहिए। साथ ही उन्होंने कृषि को सरकार के अधीन रखने की सलाह दी थी ताकि लघु व मध्यम किसानों की खेती के नुकसान से कमर ना टूटे। आज कृषि को लेकर उनका सिद्धान्त माना जाता तो देश में हजारों लाखों किसान आत्महत्या नहीं करते।
डॉ भीमराव अंबेडकर 1912 में बम्बई के प्रख्यात एलीफेंसटन कॉलेज से अर्थशास्त्र एवं राजनीतिशास्त्र में बी.ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद बड़ौदा के महाराजा द्वारा अध्ययन हेतु छात्रवृत्ति दिए जाने के बाद 1913 में अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। 1915 में उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. की पहली डिग्री प्राप्त की तथा 1916 में उन्होंने भारत का राष्ट्रीय लाभांश का विश्लेषणात्मक अध्ययन विषय पर थीसिस लिखकर दूसरी एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। कोलंबिया विश्वविद्यिालय से डबल एम.ए. करने के बाद उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रख्यात अर्थशास्त्री आर्थर सेलिगमेन के अंतर्गत 1917 में पी.एच.डी. का पंजीयन कराया। बाद में भीमराव अंबेडकर इंग्लैंड चले गए। जहां 1921 में लन्दन स्कूल ऑफ इकानॉमिक्स अर्थशास्त्र में एम.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की। उनकी थीसिस का विषय प्रोविंशियल डिसेंट्रलाइजेशन आफ इम्पीरियल फायनेंस इन ब्रिटिश इंडिया था। 1922 में जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया। भीमराव अंबेडकर ने 1923 में लन्दन स्कूल ऑफ इकानॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डाक्टर आफ साइंस की डिग्री प्राप्त की। डॉक्टरेट की इस डिग्री के लिए- भारतीय रुपये की समस्या-कारण एवं समाधान विषय था। 1925 में उनकी थीसिस पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई। 1925 में रॉयल कमीशन आफ करेंसी एंड फायनेंस से उन्होंने अपनी थीसिस में प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर चर्चा की। 1927 में उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की दूसरी डिग्री प्राप्त की। केन्द्र एवं राज्य के वित्तीय संबंधों पर उनकी थीसिस की बहुत चर्चा हुई। उस समय उनकी गिनती दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्रियों में होने लगी। वे अपने आर्थिक विचारों के कारण फ्रेडरिक हेरिक की परम्परा में उदार पूंजीवादी अर्थशास्त्री माने जाने लगे थे।

बुधवार, 29 जनवरी 2020

बस्तर में नक्सलवाद के अलावा नारियल, कोको, लीची, अन्नानास, कॉफ़ी, कालीमिर्च भी है...


जब भी बस्तर की बात होती है नक्सलवाद से शुरू होकर नक्सलवाद पर ही खत्म हो जाती है। कुछ गिने-चुने दर्शनीय/धार्मिक स्थलों पर भी चर्चा हो जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बस्तर सकारात्मक संभावनाओं वाला क्षेत्र है। यहां नित-नए प्रयोग हो रहे हैं। यहां के बाशिंदे बस्तर की तस्वीर बदलने के लिए नई इबारत लिख रहे हैं। यहां कई स्थान ऐसे भी हैं, जिन्हें देखने के लिए हम प्रदेश के तक बाहर जाते हैं।

आईये, आज आपको ऐसे स्थान के बारे में बताते हैं,जिसके बारे में जानने के बाद वहां जहां जाए बिना आप रह नहीं पाएंगे।
रायपुर से जगदलपुर तो आपमें से कई लोग कई बार गए होंगे। लेकिन क्या कभी आप जगदलपुर जाते वक़्त कोंडागांव में रुके हैं। नहीं रुके, तो इस बार जरूर रुकियेगा। अपने हस्तशिल्प के लिए विश्वभर में ख्यात कोंडागांव में नारियल विकास बोर्ड का एक फार्म भी है। जहां प्रतिवर्ष 2 लाख नारियल की पैदावार होती है। यहां आकर लगता है कि आप दक्षिण भारत के किसी इलाके में हैं, क्योंकि यहां का क्लाइमेट बिल्कुल वैसा ही है। फार्म के पास में ही नारंगी नदी बह रही है। इस फार्म में साढ़े छह हजार नारियल के पेड़ लगे हैं। जल्द ही यहां नारियल तेल निकालने की यूनिट भी लगने वाली है। इस फार्म में केवल नारियल ही नहीं। कोको, लीची, कॉफ़ी, सिंदूर, नींबू, अन्नानास, दालचीनी, कालीमिर्च की भी बड़ी पैदावार हो रही है।

यहां पैदा हो रहा कोको आंध्रप्रदेश में बिकने जाता है। कोको से चॉकलेट बनाई जाती है। किसान यहां से 7 रुपये की दर से नारियल का पौधा खरीद भी सकते हैं। यहां होने वाला नारियल ऑक्शन के जरिये बेचा जाता है। आम लोग भी यहां से बेहद सस्ती दर से नारियल खरीद सकते हैं। केंद्र सरकार का ये उपक्रम राज्य प्रशासन की निगरानी में चलाया जा रहा है। यहां होने वाले नारियल और फ़ल उत्कृष्ट क्वालिटी के हैं और नज़ारे तो अनमोल हैं।

हमारे लिए भी कोई रजिस्टर बनाओ सरकार ताकि हमारी भी गिनती हो सके


बिना किसी अभिवादन के इस पत्र को शुरु करने की हमारी धृष्टता को क्षमा करते हुए हमारी भी सुनो सरकार।  माना कि हमारा नाम किसी रजिस्टर में दर्ज नहीं है। हम जिंदा भी हैं या नहीं, ये किसी को पता नहीं है। हमारा आधार कार्ड, मतदाता परिचय पत्र या किसी भी देश का नागरिक होने का कोई भी प्रमाण पत्र हमारे पास नहीं है। कहने को तो हम भी इंसान हैं, लेकिन हमारा कोई मानवाधिकार भी नहीं है। हम मानव तस्करी के शिकार लोग हैं। हमें तो ना हमारे परिजन, ना ही इस देश की पुलिस ढूंढ पाई है। हम आजाद तो होना चाहते हैं, लेकिन रिहाई की कोई उम्मीद हमें नज़र नहीं आती। हम इस देश के वो अदृश्य लोग हैं, जो जिंदा होते हुए भी दिखाई नहीं देते। इस देश के होते हुए भी अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सकते। हमारी बीच में कई छोटे अबोध बच्चे ऐसे भी हैं, जो जरूरत पड़ने पर अपने मां-बाप के बारे में भी कुछ नहीं बता पाएंगे। सरकार हम स्वतंत्र भारत के ऐसे गण हैं, जिनके लिए कोई तंत्र काम नहीं करता।

हमने सुना है कि अभी-अभी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आकंडे आए हैं। रिपोर्ट कहती है कि 2018 में मानव तस्करी के महज 2 हजार 367 मामले दर्ज हुए हैं। लेकिन साहब हम तो यहां अनगिनत हैं। रोज देश के कोने-कोने से लाकर खपाए जा रहे हैं।

हमने ये भी सुना है कि एनसीआरबी के मुताबिक देश में अपहरण की घटनाएं 10.3 फीसदी बढ़ी हैं। 2018 में अपहरण के 1,05,734 केस दर्ज हुए हैं, जबकि 2017 में इनकी संख्या 95, 893 थी। इसके एक वर्ष पहले यानि 2016 में यह आंकडा 88,008 था।

2018 में 24,665 पुरुषों और 80,871 महिलाओं के अपहरण के मामले दर्ज किए गए थे। इनमें 15,250 लड़के और 48,106 लडकियां थीं। जबकि व्यस्क लोगों का आंकड़ा 42,180 था।

वर्ष 2018 में अपह्त हुए लोगों में से 22,755 पुरुषों और 69,382 महिलाओं को सकुशल बरादम कर लिया गया था। यानि 91,709 लोगों को जिंदा बरामद किया गया था, जबकि 428 मरने के बाद मिले थे।

साहब, हम आपको बताना चाहते हैं कि अपहरण केवल फिरौती मांगने के लिए नहीं किये जाते। मानव तस्कर भी कई बार अपहरण के जरिये लोगों को अपना शिकार बनाते हैं।

केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देश में वर्ष 2014 से 2019 तक यानि की छह वर्षों में 3 लाख 18 हजार 748 बच्चे गुम हुए हैं। एनसीआरबी कहता है कि देश में हर आठवें मिनट में एक बच्चा गायब हो रहा है। तो इन तीन लाख 18 हजार 748 गुम बच्चों में अकेले मध्यप्रदेश के 52 हजार 272, छत्तीसगढ़ के 12 हजार 963 और राजस्थान के 6175 बच्चे लापता हैं। 

मध्यप्रदेश में जहां मंडला, डिंडोरी, खंडवा, सिवनी, हरदा, बालाघाट और बैतूल जैसे इलाकों से बच्चियां तेजी से गायब हो रही हैं। जनवरी से नवंबर 2019 में मध्यप्रदेश से 7891 बच्चियां गुमशुदा हुई हैं। वहीं छत्तीसगढ़ में भी रायगढ़, जशपुर, सरगुजा, बस्तर से तेजी से बच्चियां तस्करों का शिकार हो रही हैं। दोनों ही प्रदेशों के ये आदिवासी बहुल इलाके हैं। वैसे देश का कोई भी प्रदेश इससे बचा नहीं है। झारखंड, पं बंगाल, ओडिशा, उत्तर-पूर्व के राज्य, पंजाब, हरियाणा समेत सभी राज्यों में मानव तस्करों के नेटवर्क काम करता है।

सरकार, हम ये भी बताना चाहते हैं कि मानव तस्कर कभी हमें बंधुआ मजदूरी के लिए तो कभी भिक्षावृत्ति के लिए शिकार बनाते हैं। कभी हम वेश्यावृत्ति के धंधे में ढकेले जाते हैं तो कभी हमारे अंगों की तस्करी करने के लिए हमें फंसाया जाता है।

ये भी सच है कि कई बार हम गरीबी और बेरोजगारी के कारण मानव तस्करों के शिकार बन जाते हैं। लेकिन हममें से कई लोग, खासकर बच्चे और लड़कियां अगवा कर, चुराकर या बहला-फुसलाकर उठाए जाते हैं।

हमारे लिए यूं तो 1956 में ही कानून बन गया था, लेकिन वह इतना लचर और पुराना है कि उसमें मानव तस्करी की विस्तृत व्याख्या तक नहीं पाई जाती। फिर मानव तस्करों ने कई बार अपने पैंतरे भी बदले हैं। लेकिन पुलिसिंग उन्हीं पुराने तरीकों से ही हो रही है। फिर उसपर से पुलिस, प्रशासन और समाज भी इस दावानल से हमें निकालने के लिए कोई रुचि नहीं दिखाता। लेकिन हम यहां से निकलना चाहते हैं सरकार। अगर आप तक हमारी बात पहुंचे तो जरूर हमारी भी रिहाई के लिए कोशिश करना। हमारे लिए भी कोई रजिस्टर बनाना ताकि हमारी भी गिनती हो सके। 


प्रार्थी
मानव तस्करी के शिकार
अनगिनत अभागे लोग

शनिवार, 30 नवंबर 2019

छत्तीसगढ़ की सुमिता पंजवानी ने धान की पराली से बनाया सैनेटरी नेपकिन


हमारे देश में अब भी 70 फीसदी महिलाएं सेनेटरी पैड नहीं खरीद पातीं। वे आज भी पुराने तरीकों जैसे कपड़े, अखबारों या सूखी पत्तियों का प्रयोग करती हैं. इसका कारण ये है कि वे सेनेट्री नैपकिंस को खरीदने में सक्षम नहीं हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार गांवों-कस्‍बों के स्‍कूलों में कई बच्चियां, पीरियड्स के दौरान 5 दिन तक स्‍कूल मिस करती हैं. यही नहीं, 23 प्रतिशत बच्चियां, माहवारी शुरू होने के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं। 2011 में हुई एक रिचर्स के मुताबिक भारत में हर महीने 9000 टन मेंस्ट्रुअल वेस्ट उत्पन्न होता है, जो सबसे ज़्यादा सैनेटरी नैपकिन्स से आता है. इतना नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा हर महीने जमीनों के अंदर धसा जा रहा है जिससे पर्यावरण को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचता है. एक महिला द्वारा पूरे मेंस्ट्रुअल पीरियड के दौरान इस्तेमाल किए गए सैनेटरी नैपकिन्स से करीब 125 किलो नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा बनता है. 2011 में हुई एक रिचर्स के मुताबिक भारत में हर महीने 9000 टन मेंस्ट्रुअल वेस्ट उत्पन्न होता है, जो सबसे ज़्यादा सैनेटरी नैपकिन्स से आता है. इतना नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा हर महीने जमीनों के अंदर धसा जा रहा है जिससे पर्यावरण को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचता है. खैर ये तो बात हुई सैनेटरी नैपकिन की। अब एक और ज्वलंत विषय यानि पराली की भी बात कर लेते हैं। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का दोष पराली को ही दिया जा रहा है। ये शब्द आजकल किसी के लिए भी नया नहीं है। छ्त्तीसगढ़ में धान की पराली या पैरा को खेतों मे ही छोड़ दिया जाता है। या फिर जला दिया जाता है। लेकिन अब पराली का सबसे अच्छा उपयोग खोज निकाला गया है। जी हां पराली से सैनेटरी नैपकिन बनाकर दिखाया है छत्तीसगढ़ के एक जिले धमतरी में रहने वाली सुमीता पंजवानी ने।

सुमीता जी अध्यात्म से भी जुड़ी हुई हैं। वे जबलपुर के जवाहरलाल कृषि विश्वविद्यालय में जूनियर साइंटिस्ट रह चुकी हैं।  सुमिता बताती हैं कि पराली या पैरा जैसे वेस्ट में काफी सेल्यूलोज होता है, जिसे केमिकल की मदद से निकाला जाता है. ये एक तरह से कॉटन की तरह होता है, जो उपयोग के बाद डिकंपोज होकर मिट्टी में खाद की तरह मिल जाता है. बाजार में जो सेनिटरी नेपकिन उपलब्ध हैं, उनकी कीमतें सभी वर्ग की पहुंच में नहीं होती है, लेकिन पैरा से बना नेपकिन 2 से 3 रुपये में मिल सकेगा. तमाम ब्रांडेड नेपकीन में नायलोन होता है, जो डिकंपोज नहीं हो सकता और ये पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है. पैरा या पराली से बनी नेपकिन इन दोनों मामलो में बेहतर साबित होगी. सुमीता जैसी शक्तिस्वरूपा दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत तो हैं ही, साथ ही उन लाखों महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षक बनने की दिशा में भी सुमीता कदम बढ़ा चुकी हैं।  

शक्तिस्वरूपा। साहस की मिसाल संतोषी दुर्गा। पोस्टमार्टम करने वाली छत्तीसगढ़ की एकमात्र महिला।

संतोषी दुर्गा, जिसके नाम में ही शौर्य और साहस समाया हुआ है। संतोषी दुर्गा एक ऐसी महिला हैं, जिनके बारे में जानकार आप उनको सलाम किए बिना नहीं रह सकेंगे। नक्सल प्रभावित बस्तर के एक जिले कांकेर की रहने वाली संतोषी दुर्गा संभवतः देश की अकेली महिला हैं, जो शवों की चीरफाड़ यानि पोस्टमार्टम करती हैं। इसमें भी एक खास बात ये है कि वे बगैर किसी नशे को किए ये काम करती हैं। अमूमन पुरुषों के वर्चस्व वाले इस कार्य को करने वाले लोग शराब या अन्य नशा लेने के बाद ही पोस्टमार्टम कर पाते हैं। संतोषी के पिता भी शराब पीकर शवों की चीरफाड का कार्य किया करते थे। जब संतोषी ने उन्हें शराब छोड़ने के लिए कहा तो उन्होने जबाव दिया कि वे बगैर नशा किए पोस्टमार्टम जैसा अमानवीय कार्य नहीं कर पाएंगे। तब संतोषी ने कहा कि वे यदि बगैर शराब पिए ये कार्य करके दिखाएं तो उन्हें शराब छोड़नी होगी। बस यहीं से संतोषी का सफर शुरु हुआ। नरहरपुर ब्लॉक में रहने वाली संतोषी दुर्गा अब तक 600 शवों का पोस्टमार्टम कर चुकी हैं। छह बहनों में सबसे बड़ी संतोषी दुर्गा उन तमाम लोगों के लिए मिसाल हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में हार मान लेते हैं। कभी उनपर तंज कसने वाले लोग आज उनकी तारीफ करते थकते नहीं है।



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