सोमवार, 23 मार्च 2020

विश्व के सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्रियों में से एक थे डॉ अंबेडकर


पिछले दिनों मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी #इंदौर में नेशनल #ब्लॉगर्स समिट में भाग लेने का मौका मिला। शिखर सम्मेलन का विषय था 'डॉ अंबेडकर के आर्थिक विचार'। 14 अप्रैल को उनकी जयंती भी नजदीक आ रही है। इसी बहाने आईये अंबेडकर को सही मायनों में समग्र रूप में जाने।
देश में बहुत कम लोग जानते हैं कि बाबा साहब डॉ भीमराव #अंबेडकर विश्व के एक सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्री थे। समाजिक व राजनीतिक नेता वे बाद में थे, पहले एक अर्थशास्त्र के विद्यार्थी, फिर अध्यापक और फिर महान शोधार्थी थे।
समस्या ये हुई कि उन्हें केवल दलित नेता, संविधान निर्माता और बाद में राजनेता की फ्रेम में कैद कर दिया गया। उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को देश जान ही नहीं पाया। उन्होंने अर्थशास्त्र के विषयों पर एक नहीं वरन दो पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। पहली लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से..दूसरी कोलंबिया विश्वविद्यालय से। उनकी अनुशंसाओं के आधार पर #भारतीय #रिजर्व #बैंक का गठन हुआ। देश में सरकारी वित्त में भ्रष्टाचार रोकने के लिए #महालेखाकार की स्थापना हुई।
अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आंबेडकर के योगदान और उनकी प्रतिष्ठा/विश्वसनीयता को जानने के लिए ये घटना सबसे महत्वपूर्ण है। वर्ष 1930 का दशक पूरे विश्व बाजार में भीषण मंदी लेकर आया था। ब्रिटिश सरकार के सामने भी गंभीर चुनौतियां थीं। अगस्त 1925 में ब्रिटिश सरकार ने भारत की मुद्रा प्रणाली का अध्ययन करने के लिए ‘रॉयल कमीशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फाइनेंस’ का गठन किया था। इस आयोग की बैठक में हिस्सा लेने के लिए जिन 40 विद्वानों को आमंत्रित किया गया था, उनमें आंबेडकर भी थे। वे जब आयोग के समक्ष उपस्थित हुए तो वहां मौजूद प्रत्येक सदस्य के हाथों में उनकी लिखी पुस्तक ‘इवोल्यूशन ऑफ पब्लिक फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया’ की प्रतियां थीं। बात यहीं खत्म नहीं होती, उस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1926 में प्रकाशित की थी। उसकी अनुशंसाओं के आधार पर कुछ वर्षों बाद ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ की स्थापना हुई। इस बैंक की अभिकल्पना नियमानुदेश, कार्यशैली और रूपरेखा आंबेडकर की शोध पुस्तक ‘प्राब्लम ऑफ रुपया’ पर आधारित है।
उन्होंने उस वक़्त ये सिद्धान्त प्रतिपादित किया था कि महत्वपूर्ण उद्योगों पर सरकारी नियंत्रण होने चाहिए। साथ ही उन्होंने कृषि को सरकार के अधीन रखने की सलाह दी थी ताकि लघु व मध्यम किसानों की खेती के नुकसान से कमर ना टूटे। आज कृषि को लेकर उनका सिद्धान्त माना जाता तो देश में हजारों लाखों किसान आत्महत्या नहीं करते।
डॉ भीमराव अंबेडकर 1912 में बम्बई के प्रख्यात एलीफेंसटन कॉलेज से अर्थशास्त्र एवं राजनीतिशास्त्र में बी.ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद बड़ौदा के महाराजा द्वारा अध्ययन हेतु छात्रवृत्ति दिए जाने के बाद 1913 में अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। 1915 में उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. की पहली डिग्री प्राप्त की तथा 1916 में उन्होंने भारत का राष्ट्रीय लाभांश का विश्लेषणात्मक अध्ययन विषय पर थीसिस लिखकर दूसरी एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। कोलंबिया विश्वविद्यिालय से डबल एम.ए. करने के बाद उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रख्यात अर्थशास्त्री आर्थर सेलिगमेन के अंतर्गत 1917 में पी.एच.डी. का पंजीयन कराया। बाद में भीमराव अंबेडकर इंग्लैंड चले गए। जहां 1921 में लन्दन स्कूल ऑफ इकानॉमिक्स अर्थशास्त्र में एम.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की। उनकी थीसिस का विषय प्रोविंशियल डिसेंट्रलाइजेशन आफ इम्पीरियल फायनेंस इन ब्रिटिश इंडिया था। 1922 में जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया। भीमराव अंबेडकर ने 1923 में लन्दन स्कूल ऑफ इकानॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डाक्टर आफ साइंस की डिग्री प्राप्त की। डॉक्टरेट की इस डिग्री के लिए- भारतीय रुपये की समस्या-कारण एवं समाधान विषय था। 1925 में उनकी थीसिस पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई। 1925 में रॉयल कमीशन आफ करेंसी एंड फायनेंस से उन्होंने अपनी थीसिस में प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर चर्चा की। 1927 में उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की दूसरी डिग्री प्राप्त की। केन्द्र एवं राज्य के वित्तीय संबंधों पर उनकी थीसिस की बहुत चर्चा हुई। उस समय उनकी गिनती दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्रियों में होने लगी। वे अपने आर्थिक विचारों के कारण फ्रेडरिक हेरिक की परम्परा में उदार पूंजीवादी अर्थशास्त्री माने जाने लगे थे।

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