शनिवार, 30 नवंबर 2019

छत्तीसगढ़ की सुमिता पंजवानी ने धान की पराली से बनाया सैनेटरी नेपकिन


हमारे देश में अब भी 70 फीसदी महिलाएं सेनेटरी पैड नहीं खरीद पातीं। वे आज भी पुराने तरीकों जैसे कपड़े, अखबारों या सूखी पत्तियों का प्रयोग करती हैं. इसका कारण ये है कि वे सेनेट्री नैपकिंस को खरीदने में सक्षम नहीं हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार गांवों-कस्‍बों के स्‍कूलों में कई बच्चियां, पीरियड्स के दौरान 5 दिन तक स्‍कूल मिस करती हैं. यही नहीं, 23 प्रतिशत बच्चियां, माहवारी शुरू होने के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं। 2011 में हुई एक रिचर्स के मुताबिक भारत में हर महीने 9000 टन मेंस्ट्रुअल वेस्ट उत्पन्न होता है, जो सबसे ज़्यादा सैनेटरी नैपकिन्स से आता है. इतना नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा हर महीने जमीनों के अंदर धसा जा रहा है जिससे पर्यावरण को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचता है. एक महिला द्वारा पूरे मेंस्ट्रुअल पीरियड के दौरान इस्तेमाल किए गए सैनेटरी नैपकिन्स से करीब 125 किलो नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा बनता है. 2011 में हुई एक रिचर्स के मुताबिक भारत में हर महीने 9000 टन मेंस्ट्रुअल वेस्ट उत्पन्न होता है, जो सबसे ज़्यादा सैनेटरी नैपकिन्स से आता है. इतना नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा हर महीने जमीनों के अंदर धसा जा रहा है जिससे पर्यावरण को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचता है. खैर ये तो बात हुई सैनेटरी नैपकिन की। अब एक और ज्वलंत विषय यानि पराली की भी बात कर लेते हैं। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का दोष पराली को ही दिया जा रहा है। ये शब्द आजकल किसी के लिए भी नया नहीं है। छ्त्तीसगढ़ में धान की पराली या पैरा को खेतों मे ही छोड़ दिया जाता है। या फिर जला दिया जाता है। लेकिन अब पराली का सबसे अच्छा उपयोग खोज निकाला गया है। जी हां पराली से सैनेटरी नैपकिन बनाकर दिखाया है छत्तीसगढ़ के एक जिले धमतरी में रहने वाली सुमीता पंजवानी ने।

सुमीता जी अध्यात्म से भी जुड़ी हुई हैं। वे जबलपुर के जवाहरलाल कृषि विश्वविद्यालय में जूनियर साइंटिस्ट रह चुकी हैं।  सुमिता बताती हैं कि पराली या पैरा जैसे वेस्ट में काफी सेल्यूलोज होता है, जिसे केमिकल की मदद से निकाला जाता है. ये एक तरह से कॉटन की तरह होता है, जो उपयोग के बाद डिकंपोज होकर मिट्टी में खाद की तरह मिल जाता है. बाजार में जो सेनिटरी नेपकिन उपलब्ध हैं, उनकी कीमतें सभी वर्ग की पहुंच में नहीं होती है, लेकिन पैरा से बना नेपकिन 2 से 3 रुपये में मिल सकेगा. तमाम ब्रांडेड नेपकीन में नायलोन होता है, जो डिकंपोज नहीं हो सकता और ये पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है. पैरा या पराली से बनी नेपकिन इन दोनों मामलो में बेहतर साबित होगी. सुमीता जैसी शक्तिस्वरूपा दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत तो हैं ही, साथ ही उन लाखों महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षक बनने की दिशा में भी सुमीता कदम बढ़ा चुकी हैं।  

शक्तिस्वरूपा। साहस की मिसाल संतोषी दुर्गा। पोस्टमार्टम करने वाली छत्तीसगढ़ की एकमात्र महिला।

संतोषी दुर्गा, जिसके नाम में ही शौर्य और साहस समाया हुआ है। संतोषी दुर्गा एक ऐसी महिला हैं, जिनके बारे में जानकार आप उनको सलाम किए बिना नहीं रह सकेंगे। नक्सल प्रभावित बस्तर के एक जिले कांकेर की रहने वाली संतोषी दुर्गा संभवतः देश की अकेली महिला हैं, जो शवों की चीरफाड़ यानि पोस्टमार्टम करती हैं। इसमें भी एक खास बात ये है कि वे बगैर किसी नशे को किए ये काम करती हैं। अमूमन पुरुषों के वर्चस्व वाले इस कार्य को करने वाले लोग शराब या अन्य नशा लेने के बाद ही पोस्टमार्टम कर पाते हैं। संतोषी के पिता भी शराब पीकर शवों की चीरफाड का कार्य किया करते थे। जब संतोषी ने उन्हें शराब छोड़ने के लिए कहा तो उन्होने जबाव दिया कि वे बगैर नशा किए पोस्टमार्टम जैसा अमानवीय कार्य नहीं कर पाएंगे। तब संतोषी ने कहा कि वे यदि बगैर शराब पिए ये कार्य करके दिखाएं तो उन्हें शराब छोड़नी होगी। बस यहीं से संतोषी का सफर शुरु हुआ। नरहरपुर ब्लॉक में रहने वाली संतोषी दुर्गा अब तक 600 शवों का पोस्टमार्टम कर चुकी हैं। छह बहनों में सबसे बड़ी संतोषी दुर्गा उन तमाम लोगों के लिए मिसाल हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में हार मान लेते हैं। कभी उनपर तंज कसने वाले लोग आज उनकी तारीफ करते थकते नहीं है।



https://janmantra.com/video-santosh-durga-an-example-of-courage-the-only-woman-from-chhattisgarh-to-do-post-mortem-santoshi-durga-the-only-woman-in-the-country-to-do-autopsy-of-dead-bodies/

पुरा वैभव को समेटे छत्तीसगढ़ का देवरानी-जेठानी मंदिर, रहस्यमीय रुद्र शिव की प्रतिमा



यदि आप छत्तीसगढ़ आ रहे हों तो आप रायपुर-बिलासपुर रोड़ पर स्थित देवरानी-जेठानी मंदिर जरूर जाएं। पांचवी शताब्दी में निर्मित ये मंदिर आपको भारत के पुरा वैभव की यात्रा पर ले जाएंगे। शिव के साधकों के लिए ये स्थान विशेष है। प्राचीन काल के दक्षिण कोसल के शरभपुरीय राजाओं ने गनियारी नदी के किनारे ताला नामक स्थल पर दो शिव मंदिरों का निर्माण करवाया था, जिन्हें देवरानी और जेठानी मंदिर के नाम से जाना जाता है। स्थानीय लोग इसे देवरानी-जेठानी का अर्थ कुंती-गांधारी बताते हैं।
प्रस्तर निर्मित अर्धभग्न देवरानी-जेठानी मंदिर दरअसल दो शिव मंदिर है। जो एक दूसरे के अगल-बगल में बने हुए हैं। देवरानी मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है। जबकि जेठानी मंदिर दक्षिणाभिमुखी है।
देवरानी मंदिर के पीछे की तरफ शिवनाथ की सहायक नदी मनियारी प्रवाहित हो रही है। इसका भू-विन्यास अनूठा है। इसमें गर्भगृह है। मंदिर की द्वारा शाखाओं पर नदी देवियों का अंकन है। सिरदल में गजलक्ष्मी का अंकित है। इसमें शिखर या छत नहीं है। इस मंदिर स्थलों में हिंदू मत के विभिन्न देवी देवताओं, अंतर देवता, पशु पौराणिक आकृतियां पुष्पाकंन विविध ज्यामितिक प्रतिमाएं व वास्तु खंड है।


रोमाचिंत करती रुद्र शिव की विलक्षण प्रतिमा
इसमें रुद्र शिव के नाम से पुकारी जाने वाली प्रतिमा महत्वपूर्ण है। यह विशाल प्रतिमा 2.70 मीटर ऊंची है। शास्त्र के लक्षणों की दृष्टि से विलक्षण प्रतिमा है। इसमें मानव अंग के रूप में अनेक पशु, मानव अथवा देवमुख व सिंहमुख बनाए गए हैं। इसके सर का जटा मुकुट (पगड़ी) सर्पों के जोड़े से बना हुआ है। रुद्रशिव का हाथ व उंगलियों को सर्प की भांति आकार दिया गया है। इसके अतिरिक्त प्रतिमा के ऊपरी भाग पर दोनों और सर्प फन छत्र कंधों के ऊपर प्रदर्शित है। इसी तरह बाएं पैर में लिपटे हुए फन युक्त सर्प का अंकन है। दूसरे जीव जंतुओं में मोर से कान का कुंडल, आंखों की भौंहे व नाक छिपकली से व लिंग कछुआ के मुंह से बना है। नेत्र में घोंघा है। मुख की ठुड्डी केकड़े से निर्मित है। भुजाएं मगर मुख से निकली हैं। सात मानव अथवा देवमुख शरीर के विभिन्न अंगो में निर्मित हैं। अद्वितीय होने के कारण इस प्रतिमा की सही पहचान को लेकर अभी भी विवाद बना हुआ है। शिव के किसी भी ज्ञात स्वरूप के शास्त्रोक्त प्रतिमा लक्षण पूर्ण रूप से नाम मिलने के कारण इसे शिव के किसी विशेष स्वरूप की मान्यता नहीं मिल पाई है। निर्माण शैली के आधार पर उस मंदिर व प्रतिमा को छटवी शताब्दी के पूर्वार्ध्द में रखा जा सकता है। स्थानीय लोग इसे पांचवी सदी में बनाया हुआ मानते हैं।


जेठानी मंदिर भी शिव का ही एक मंदिर है। जो छत या शिखिर विहीन है। लेकिन इसकी नक्काशी देखकर मन इसे बनाने वाले कलाकार के प्रति क्षद्धा से बरबस ही झुक जाता है। ये मंदिर भारतीय स्थापत्य शैली के अदभुत उदाहरण हैं। जो कई रहस्य समेटे हुए सदियों से मौन खड़ें हैं।
वर्ष 1976 में इन मंदिरों के अवशेष मलबे में दबे हुए नजर आए थे। इसके बाद भारतीय पुरातात्विक विभाग ने इसकी खुदाई और संरक्षण का काम शुरु किया। उसके बाद 1988 -89 में दोबारा इन मंदिरों में खुदाई हुई। स्थानीय निवासी इसे देवरानी जेठानी को कुंती-गांधारी से जोड़कर देखते हैं। वे इसे महाभारतकालीन मानते हैं।