यदि आप छत्तीसगढ़ आ रहे हों तो आप रायपुर-बिलासपुर रोड़ पर स्थित
देवरानी-जेठानी मंदिर जरूर जाएं। पांचवी शताब्दी में निर्मित ये मंदिर आपको भारत
के पुरा वैभव की यात्रा पर ले जाएंगे। शिव के साधकों के लिए ये स्थान विशेष है। प्राचीन
काल के दक्षिण कोसल के शरभपुरीय राजाओं ने गनियारी नदी के किनारे ताला नामक स्थल
पर दो शिव मंदिरों का निर्माण करवाया था, जिन्हें देवरानी और जेठानी मंदिर के नाम
से जाना जाता है। स्थानीय लोग इसे देवरानी-जेठानी का अर्थ कुंती-गांधारी बताते
हैं।
प्रस्तर निर्मित अर्धभग्न ‘देवरानी-जेठानी
मंदिर’ दरअसल दो
शिव मंदिर है। जो एक दूसरे के अगल-बगल में बने हुए हैं। देवरानी मंदिर का मुख
पूर्व दिशा की ओर है। जबकि जेठानी मंदिर दक्षिणाभिमुखी है।
देवरानी मंदिर के पीछे की तरफ शिवनाथ की सहायक नदी मनियारी प्रवाहित
हो रही है। इसका भू-विन्यास अनूठा है। इसमें गर्भगृह है। मंदिर की द्वारा शाखाओं पर नदी
देवियों का अंकन है। सिरदल में गजलक्ष्मी का अंकित है। इसमें शिखर या छत नहीं है।
इस मंदिर स्थलों में हिंदू मत के विभिन्न देवी देवताओं, अंतर देवता, पशु पौराणिक
आकृतियां पुष्पाकंन विविध ज्यामितिक प्रतिमाएं व वास्तु खंड है।
रोमाचिंत करती रुद्र शिव की विलक्षण प्रतिमा
इसमें रुद्र शिव के नाम से पुकारी जाने वाली प्रतिमा महत्वपूर्ण है।
यह विशाल प्रतिमा 2.70 मीटर ऊंची है। शास्त्र के लक्षणों की दृष्टि से विलक्षण
प्रतिमा है। इसमें मानव अंग के रूप में अनेक पशु, मानव अथवा देवमुख व सिंहमुख बनाए
गए हैं। इसके सर का जटा मुकुट (पगड़ी) सर्पों के जोड़े से बना हुआ है। रुद्रशिव का
हाथ व उंगलियों को सर्प की भांति आकार दिया गया है। इसके अतिरिक्त प्रतिमा के ऊपरी
भाग पर दोनों और सर्प फन छत्र कंधों के ऊपर प्रदर्शित है। इसी तरह बाएं पैर में
लिपटे हुए फन युक्त सर्प का अंकन है। दूसरे जीव जंतुओं में मोर से कान का कुंडल, आंखों
की भौंहे व नाक छिपकली से व लिंग कछुआ के मुंह से बना है। नेत्र में घोंघा है। मुख
की ठुड्डी केकड़े से निर्मित है। भुजाएं मगर मुख से निकली हैं। सात मानव अथवा
देवमुख शरीर के विभिन्न अंगो में निर्मित हैं। अद्वितीय होने के कारण इस प्रतिमा
की सही पहचान को लेकर अभी भी विवाद बना हुआ है। शिव के किसी भी ज्ञात स्वरूप के
शास्त्रोक्त प्रतिमा लक्षण पूर्ण रूप से नाम मिलने के कारण इसे शिव के किसी विशेष
स्वरूप की मान्यता नहीं मिल पाई है। निर्माण शैली के आधार पर उस मंदिर व प्रतिमा
को छटवी शताब्दी के पूर्वार्ध्द में रखा जा सकता है। स्थानीय लोग इसे पांचवी सदी
में बनाया हुआ मानते हैं।
जेठानी मंदिर भी शिव का ही एक मंदिर है। जो छत या शिखिर विहीन है। लेकिन
इसकी नक्काशी देखकर मन इसे बनाने वाले कलाकार के प्रति क्षद्धा से बरबस ही झुक
जाता है। ये मंदिर भारतीय स्थापत्य शैली के अदभुत उदाहरण हैं। जो कई रहस्य समेटे
हुए सदियों से मौन खड़ें हैं।
वर्ष 1976 में इन मंदिरों के अवशेष मलबे में दबे हुए नजर आए थे। इसके
बाद भारतीय पुरातात्विक विभाग ने इसकी खुदाई और संरक्षण का काम शुरु किया। उसके
बाद 1988 -89 में दोबारा इन मंदिरों में खुदाई हुई। स्थानीय निवासी इसे देवरानी
जेठानी को कुंती-गांधारी से जोड़कर देखते हैं। वे इसे महाभारतकालीन मानते हैं।
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