बुधवार, 4 जून 2014

बहुत कठिन है डगर पनघट की...

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के कंधो पर दिल्ली के बूते राज्य की कई पुरानी मांगों को पूरा करने का भार आ गया है, जिनसे छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा जुड़ी हुई हैं। हो सकता है कि देश की अगली खनिज, खाद्य और कृषि नीतियां छत्तीसगढ़ को केंद्र में रखकर बनाई जाए। लेकिन इसका दारोमदार भी मुख्यमंत्री रमन सिंह पर ही है कि वे ना केवल केंद्र में भाजपा सरकार का फायदा उठाते हुए प्रदेश की लंबित मांगों को पूरा करवाएं बल्कि केंद्रीय नीतियों पर अपनी छाप भी छोड़ें।
छत्तीसगढ़ कोयला, डोलोमाइट और टिन अयस्क के उत्पादन में देश में पहले नंबर पर है। वहीं लौह अयस्क में दूसरे, बॉक्साइट में पांचवे और लाइमस्टोन में सातवें नंबर पर है। छत्तीसगढ़ सरकार पिछले कई सालों से केंद्र से कोयला, लौह अयस्क और बॉक्साइट जैसे मुख्य खनिजों की रायल्टी की दरें बढ़ाने की मांग कर रही है। 2013-14 में मुख्य खनिजों से राज्य को 3036 करोड़ रुपए और गौण खनिजों से 180 करोड़ रुपए की रायल्टी मिली है। यदि केंद्र सरकार मुख्य खनिजों की रायल्टी दरें बढ़ाती हैं तो राज्य के साथ-साथ दूसरे खनिज उत्पादक राज्यों के भी राजस्व में वृद्धि होगी। साथ ही इसका श्रेय भी छत्तीसगढ़ को मिलेगा। मुख्यमंत्री रमन सिंह खनिज रायल्टी बढ़ाने के साथ ही लंबे समय से एनएमडीसी से स्थानीय उद्योगों को लौह अयस्क की आपूर्ति के लिए स्पष्ट नीति बनाने की मांग भी करते रहे हैं। छत्तीसगढ़ में 90 से ज्यादा स्पंज आयरन उद्योग संचालित हो रहे हैं। राज्य सरकार की मांग रही है कि एनएमडीसी बैलाडीला से निकाले जा रहे लौह अयस्क की आपूर्ति में राज्य के उद्योगों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। लेकिन केंद्र ने कभी इस मांग पर गौर नहीं किया है। इसका कारण है कि सूबे के मिनी स्टील प्लांट बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं। अब मुख्यमंत्री को केंद्र में सत्तासीन अपनी ही पार्टी की सरकार की नीतियों में बदलाव लाने के सफल प्रयास करने होंगे, नहीं तो उनकी आलोचना होते देर नहीं लगेगी।
प्रदेश के खनिज सचिव सुबोध सिंह इन मुद्दों पर सकारात्मक परिणाम मिलने की आशा जता रहे हैं। वे कहते हैं कि हम लंबे समय से खनिजों की रायल्टी बढ़ाने की मांग कर रहे थे। अब लगता है कि राज्य की मांग पूरी हो जाएगी। अगर ऐसा होता है तो ये हमारी बड़ी उपलब्धि होगी। एनएमडीसी से स्थानीय उद्योगों को कच्चे माल की सही आपूर्ति हो सके, इसपर भी अब अच्छे परिणाम मिलने की उम्मीद है। केंद्रीय कैबिनेट में राज्य के सासंद विष्णुदेव साय केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री बनाए गए हैं। उनकी भी मदद हमें जरूर मिलेगी
राज्य बनने के बाद ये पहला मौका है, जब केंद्र और राज्य में एक साथ भाजपा की सरकार बनी है। जब वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बना था, तब केंद्र में भाजपा थी, लेकिन प्रदेश में कांग्रेस सत्तासीन थी। जब 2003 में प्रदेश में भाजपा का शासन आया तो 2004 के लोकसभा चुनाव में केंद्र में यूपीए-1 सत्ता में आ गई। 2008 में भी प्रदेश में भाजपा तो केंद्र में यूपीए-2 ने सरकार बनाई। कहने का मतलब पिछले 14 सालों में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच कभी सकारात्मक संतुलन बन ही नहीं पाया। इसका खामियाजा सूबे की जनता ने उठाया। कभी धान की कम कीमत तो कभी मौसम की मनमानी झेलते किसान अपने अच्छे दिनों की बाट जोहते रहे। अब मौका आया है कि धान की पैदावार करने वाले किसानों के दिन फिरें और उन्हें अपनी मेहनत का सही मुनाफा मिल सके। खुद प्रदेश भाजपा भी यही चाहती है। तभी तो 2013 विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भाजपा ने वादा किया था कि वो केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर धान का समर्थन मूल्य 2100 करवाएगी। जब रमन सिंह ने बतौर मुख्यमंत्री सत्ता की पारी तीसरी बार संभाली तो शपथ ग्रहण के मंच पर ही उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे अपने पत्र पर हस्ताक्षर किए। धान का समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए पीएम को लिखा गया रमन सिंह का ये पत्र उसी दिन दिल्ली रवाना किया गया। बाद में जब बार-बार उनसे समर्थन मूल्य की वृद्धि पर सवाल किए जाने लगे, तो वे केंद्र के पाले में गेंद डालकर खुद को बचाते रहे। अब जबकि केंद्र में भी भाजपा की सरकार बन गई है, तब मुख्यमंत्री रमन सिंह को हरसंभव कोशिश कर धान का समर्थन मूल्य बढ़वाना होगा क्योंकि अब वे केंद्र की उपेक्षा का राग नहीं अलाप पांएगे। छत्तीसगढ़ में धान ऐसा मुद्दा है, जिससे प्रदेश की 80 फीसदी जनता सीधा सरोकार रखती है।
छत्तीसगढ़ के पूर्व कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू तहलका को बताते हैं कि जब केंद्र की नई सरकार नीति निर्धारण के लिए बैठेगी, तब हम अपनी बात रखेंगे। हम तो चाहते हैं कि देश के 8 धान उत्पादक राज्यों, जिनमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है, सभी के किसानों को लाभकारी कीमतें मिले। ये सही है कि हमारी सरकार ने किसानों को प्रति क्विंटल धान पर 2100 रुपए न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने की पहल की थी। अब लाभकारी कीमतें 2100 प्रति क्विटंल से ज्यादा भी हो सकती हैं
राज्य के सामने दूसरी बड़ी चुनौती नक्सलवाद है। इस मुद्दे पर भी केंद्र और राज्य सरकार में हमेशा तलवार खिंची रही हैं। हर हमले के बाद सरकारें अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने से बचती रही हैं, लेकिन अब केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार को गंभीरता के साथ मिल बैठकर इसका हल निकालना होगा। खुद देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह का गृह जिला चंदौली (उत्तर प्रदेश) नक्सल प्रभावित क्षेत्र घोषित है। ग्राम भभौरा (यूपी) में जहां राजनाथ सिंह का बचपन बीता है, वो भी नक्सल प्रभावित इलाके में आता है। मुख्यमंत्री रमन सिंह राजनाथ सिंह के करीबी भी माने जाते हैं। इसका राजनाथ सिंह से नजदीकी का फायदा उन्हें मिल सकता है। छत्तीसगढ़ के सामने आंध्रप्रदेश सबसे अच्छे उदाहरण के तौर पर मौजूद है। जब केंद्र और आंध्रप्रदेश, दोनों स्थानों पर कांग्रेस की सरकार काबिज थी, तब आंध्रप्रदेश ने नक्सलवाद को कुचल कर रख दिया था। नक्सलवाद को जड़ से मिटाने के लिए छत्तीसगढ़ में 2006 में जिस तरह के प्रयास किए गए थे, अब वैसे ही प्रयास दोबारा शुरु करने का वक्त है। छत्तीसगढ़ ने पंजाब में आतंकवाद खत्म करने वाले डीजीपी केपीएस गिल को 2006 में छत्तीसगढ़ सरकार का एडवाइजर बनाकर लाया गया था। हालांकि उस वक्त राज्य सरकार कोई विशेष परिणाम हासिल नहीं कर पाई थी। अब खुद केंद्र ने नक्सलवाद पर कड़ा रुख अख्तियार करने का संकेत दे दिया है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने के तीन दिन पहले ही नई दिल्ली में नक्सलवाद को लेकर गृहमंत्रालय के आला अफसरों की बैठक बुलाई गई। इस बैठक में नक्सल प्रभावित राज्यों के पुलिस अफसरों को भी बुलाया गया था। बैठक में शामिल होने के बाद छत्तीसगढ़ लौटे एक अफसर ने नाम ना छापने की शर्त पर तहलका को बताया कि नक्सलवाद को लेकर केंद्रीय गृहमंत्रालय ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है। लेकिन इतनी जल्दबाजी में सख्ती लागू करना ठीक नहीं है। नक्सलवादियों से आतंकवदियों की तरह व्यवहार नहीं किया जा सकता। पहले नक्सलियों की रणनीति समझने की जरूरत है। वे केवल जंगलों में नहीं, बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सक्रिय हैं। ऐसे में उनपर आक्रमण कर किसी नतीजें पर नहीं पहुंचा जा सकता। पुलिस मुख्यालय के अफसरों के मुताबिक केंद्र अब केवल कार्रवाई नहीं बल्कि परिणाम चाहता है। रमन सिंह के ये अच्छा मौका हो सकता है, जब केंद्र सरकार खुद आगे होकर नक्सलवाद के सफाए को लेकर उत्सुक है। ऐसे में राज्य सरकार एक ब्ल्यू प्रिंट तैयार कर केंद्र की हरसंभव मदद ले सकती है।
एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा प्रदेश की लंबित रेल परियोजनाओं का भी है। देश को विश्वस्तरीय लौह अयस्क की आपूर्ति करने वाला बस्तर तो रेल सुविधाओं के लिहाज़ से सबसे बदतर हालत में है। 2012-13 के रेल बजट में रेल मंत्रालय ने दक्षिण बस्तर इलाक में नई रेल लाईन बिछाने के लिए सर्वे कराने का प्रस्ताव रखा था। सर्वे में किंरदुल-सुकमा-मलकानगिरी-बीजापुर लाईन और महाराष्ट्र सीमा से भोपालपट्टनम लाईन शामिल है। लेकिन इस पर काम शुरु नहीं हो पाया। जबकि किरंदुल बैलाडीला प्रक्षेत्र में एनएमडीसी की लौह अयस्क की खदानें है। कंपनी यहा से सालाना 3 करोड़ 20 लाख टन लौह अयस्क का खनन करती है। किंरदुल विशाखापट्टम से रेल लाईन के जरिए जुड़ा हुआ है। इस इलाके में नए रेल मार्ग बनने से एनएमडीसी समेत अन्य कंपनियों को खनिज पदार्थों के परिवहन की सुविधा मिल सकेगी। साथ ही यात्री रेल सुविधाओं का भी विस्तार होगा। बरसों से छत्तीसगढ़ को कोई नई रेल लाइन भी नहीं मिली है। उसपर दल्लीराजहरा-जगदलपुर रेललाइन की मांग पिछले 3 दशक से हर चुनाव में होती रही है। पूरे बस्तर में दंतेवाड़ा से बीजापुर होकर महाराष्ट्र, सुकमा-कोंटा के रास्ते आंध्रप्रदेश जैसे मार्गों पर नई रेल लाइन बिछाने की मांग भी बरसों पुरानी है। मेट्रो और मोनो रेल का वादा भी राज्य सरकार को याद रखना पड़ेगा, जो भाजपा पूरे चुनाव के दौरान अलापती रही है।
इस बारे में प्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अफसर सुबोध सिंह, जो कि मुख्यमंत्री के सचिव भी हैं, तहलका से कहते हैं कि हम जल्द ही प्रधानमंत्री और रेल मंत्री से मिलकर अपनी मांगो रखेंगे। आगामी रेल बजट में भी राज्य सरकार अपनी मांगे मनवाने की पूरी कोशिश करेगी। हमने अभी से इसके लिए प्रयास शुरु कर दिए हैं
मुख्यमंत्री रमन सिंह की चुनौतियां यहीं खत्म नहीं हो जाती। उन्हें अपने उस वादे को भी याद रखना होगा, जो उनकी पार्टी के घोषणा पत्र में था छत्तीसगढ़ को भारत की कृषि राजधानी बनाने के लिए 12वीं पंचवर्षीय योजना में विशेष पहल की जाएगी। साथ ही उनकी पार्टी ने चुनावी वादों में छत्तीसगढ़ को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने का संकल्प लिया था। इसमें भी राज्य सरकार को पूरी ईमानदारी से पहल करनी होगी। आंध्र प्रदेश और ओडीसा सरकार से जल रहे पोलावरम बांध के विवाद में भी अब राज्य सरकार को केंद्र सरकार से पूरी मदद लेने की कोशिश करनी होगी। पोलावरम बांध के निर्माण से इंद्रावती नदी के किनारे कई गांवों के डूब जाने का खतरा मंडरा रहा है। खाद्य सुरक्षा कानून के मामले में पूरे देश की प्रशंसा बटोर चुके रमन सिंह को अब मोदी सरकार के साथ मिलकर बेहतर प्रदर्शन करना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात करें तो वे सस्ता अनाज मुहैया करवाने को बड़ी उपलब्धि नहीं मानते, लेकिन रमन सिंह ने सस्ता चावल देकर ही जनता का मन जीता है। उन्हें केंद्र सरकार को भरोसे में रखकर अपनी इस योजना निरंतर चलाए रखना होगा।
भाजपा पर चुटकी लेते हुए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल कहते हैं कि अब तो राज्य सरकार के पास कोई बहाना नहीं है। उसे अपना हर वादा पूरा करना चाहिए। रमन सिंह जिन मुद्दों पर केंद्र की यूपीए सरकार पर मांग कर रहे थे, उन्हें अब भाजपा सरकार से उन मसलों को पूरा करवाना ही चाहिए। हम इन मुद्दों पर विस्तृत आंदोलन की भूमिका बना रहे हैं
छत्तीसगढ़ सरकार के सामने ऐसे कार्यों की फेहरिस्त तो बहुत लंबी है, जो केंद्र की मदद से राज्य की तस्वीर बदल सकते हैं। लेकिन कुछ मसले ऐसे हैं, जिन पर तात्कालिक प्रयास करने की जरूरत है। दरअसल यही वे मुद्दे हैं, जिनके सहारे भाजपा अब तक छत्तीसगढ़ के सिंहासन पर सत्तारूढ़ होती रही है। राज्य सरकार को एक और बात ध्यान में रखनी होगी कि अब चाल कोई भी चले, लेकिन पासा केवल और केवल उसी के पाले में रहने वाला है।



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