गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

संकट में अन्नदाता

छत्तीसगढ़ सरकार यह बात गर्व से कहती आई है कि उनके यहां किसान कभी कर्जे में नहीं डूबता। यही कारण है कि महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा में आत्महत्या कर ईहलीला समाप्त करने वाले किसानों के आंकडे छ्त्तीसगढ़ में शून्य हैं। लेकिन क्या सरकार के यह दावे आने वाले दिनों में भी बरकरार रह पाएंगे, क्योंकि सरकार के एक फैसले ने अन्नदाता किसानों को संकट में डाल दिया है।

छत्तीसगढ़ और धान का रिश्ता सदियों पुराना है। सूबे की 80 फीसदी आबादी की जीविका खेती-किसानी पर निर्भर है, उसमें भी 70 फीसदी किसान केवल धान उपजाते हैं। समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी और उस पर मिलने वाला बोनस अब तक किसानों को खेती से जुड़े रहने के लिए प्रोत्साहित भी करता रहा है, लेकिन अब तक पूरा का पूरा धान समर्थन मूल्य पर खरीदने वाली सरकार के नए फैसले से अन्नदाता की कमर टूटती नजर आ रही है। किसानों पर आया यह संकट कहीं छत्तीसगढ़ को भी महाराष्ट्र बनने पर मजबूर ना कर दे। दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार अब किसानों से प्रति एकड़ केवल दस क्विंटल धान ही खरीदेगी। सहकारी समितियों के माध्यम से समर्थन मूल्य पर धान खरीदी एक दिसंबर से शुरू की जाएगी। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अध्यक्षता में हुई छत्तीसगढ़ मंत्रिपरिषद की बैठातक में लिए गए इस फैसले का ऐलान राज्य के खाद्य मंत्री पून्नूलाल मोहिले ने इसी पखवाड़े किया है। सरकार के इस फैसले का चारो तरफ विरोध हो रहा है।
अपने फैसले के पीछे सरकार का एक तर्क यह है कि छत्तीसगढ़ में 2001 से 2010-11 तक धान खरीद में 34 सौ करोड़ रूपयों का घाटा हो चुका है। इसके बाद 2011-12 और 12-13 तक करीब 1400 करोड़ की औसत हानि दर्ज की जा चुकी है। 2013-14 में अब तक की सबसे बड़ी खरीद 80 लाख मीट्रिक टन धान खरीद से हुए नुकसान का आंकलन किया जाना अभी बाकी है। एमएसपी पर धान खरीद घाटे का सौदा बनने की कई वजहें हैं। जब धान की खरीद होती है तो उसमें 17 फीसदी नमी होती है, यही धान जब सूखता है तो उसके वजन में कमी आ जाती है। खरीद केंद्रों और संग्रहण केंद्रों में रखरखाव की कमी से धान गीला होता है, सड़ता है, यही नहीं धान की अफरा-तफरी और परिवहन के दौरान चोरी से भी नुकसान होता है।
प्रदेश में प्रति एकड़ धान के औसत उत्पादन के आधार पर प्रति एकड़ दस क्विंटल धान खरीदने के निर्णय के पीछे सरकार का दूसरा तर्क यह है कि सभी इलाकों में धान का उत्पादन एक बराबर नहीं है। कहीं अधिक तो कहीं कम उत्पादन होता है। राज्य सरकार द्वारा उत्पादन के आधार पर अलग-अलग जिलों के लिए प्रति एकड़ धान खरीदी की मात्रा तय करने पर विचार किया गया, लेकिन इसमें एकरूपता न होने के कारण विवाद की स्थिति बन सकती थी, इसलिए पूरे प्रदेश में प्रति एकड़ दस क्विंटल धान खरीदने पर सहमति बनी। जबकि किसान नेताओं का कहना है कि छत्तीसगढ़ में प्रति एकड़ 25 से 30 क्विंटल धान पैदा होता है। इसमें केवल दस क्विंटल को समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने का फैसले से किसानों की कमर ही टूट जाएगी।
सरकार के फैसले के पीछे की असल कहानी यह है कि छत्तीसगढ़ में हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर होने वाली धान की खरीद साल दर साल घाटे का सौदा बनती जा रही है। 2001 से शुरू हुई इस प्रक्रिया से अब तक साढ़े तीन हजार करोड़ से अधिक नुकसान हो चुका है। इस घाटे की वजह यह है कि खरीदे गए धान के रखरखाव में आपराधिक लापरवाही, गुणवत्ता विहीन धान की खरीदी, परिवहन के दौरान चोरी तो है ही, इसके अलावा जानकारों का मानना है कि धान खरीद पर दिया जा रहा बोनस भी एक बड़ी वजह है।
सरकार इस साल भी 300 प्रति क्विंटल के हिसाब से 2400 करोड़ का बोनस बांटने जा रही है, लेकिन इस राशि का सबसे बड़ा हिस्सा वे बड़े किसान उठा रहे हैं, जो सबसे अधिक धान बेचते हैं। ऐसे किसानों की संख्या करीब 20 फीसदी है। इसी तरह 10 प्रतिशत मध्यम किसानों को बोनस का लाभ मिल रहा है, लेकिन करीब 70 फीसदी ऐसे किसान हैं, जो केवल अपनी जरूरत का ही धान उपजाते हैं और एमएसपी (मिनिमम सपोर्ट प्राइज़) पर नहीं बेचते हैं। इसलिए इन किसानों को बोनस का लाभ मिलने का सवाल ही नहीं है।
राज्य सरकार ने अब धान पर बोनस योजना से भी पीछा छुड़ाने की कवायद शुरू कर दी है। पिछले दिनों केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान जब खाद्य मंत्री के रूप में पहली बार छत्तीसगढ़ आए तो मुख्यमंत्री डॉ.रमनसिंह ने उनके समक्ष मांग रखी कि केंद्र सरकार सौ फीसदी धान का उपार्जन खुद करे।
केंद्र सरकार यह मांग कब मंजूर करेगी और कब से एमएसपी पर केंद्र द्वारा धान खरीद की व्यवस्था होगी, यह सवाल बेहद पेचीदा है, लेकिन इससे पहले छत्तीसगढ़ में धान खरीद का सौदा एक बड़े घाटे का सौदा बना हुआ है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद राज्य सरकार ने 2001 से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीद शुरू की थी। उस समय मात्र 4 लाख 63 हजार मीट्रिक टन धान खरीदा गया था। इस समय घाटा बहुत कम था, लेकिन साल-दर साल खरीद का यह आंकड़ा बढ़कर पिछले साल 2013-14 तक करीब 80 लाख मीट्रिक टन जा पहुंचा है। इसके साथ ही खरीद पर नुकसान के आंकड़े बढ़कर विशालकाय हो गए हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने फैसले को किसानों के साथ धोखा बताया है। बघेल का कहना है कि भाजपा ने घोषणा पत्र में किसानों के एक-एक दाने धान की खरीदी का वादा किया था। लेकिन सरकार बनते ही एक एकड़ में सिर्फ दस क्विंटल खरीदी का फैसला किया है। सरकार ने किसानों को कम बोनस देने के लिए कम धान की खरीदी का फैसला किया है।
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने किसानों को अपने निवास पर बुलाकर सरकार के फैसले का कड़ा विरोध करने की नसीहत दी है। साथ ही कांग्रेस से इतर आंदोलन चलाने की सलाह भी दी है।

खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहले कहते हैं कि, छत्तीसगढ़ सरकार के पास धान व चावल का पर्याप्त स्टॉक है। इन परिस्थितियों को देखते हुए सरकार को यह निर्णय लेना पड़ा है। किसानों को धान बोनस दिए जाने के सवाल पर खाद्य मंत्री ने कहा कि अभी तो खरीदी शुरू नहीं हुई है। इस पर बाद में विचार करेंगे और केंद्र सरकार से चर्चा की जाएगी।

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