(ये मौलिक रचना है, कृपया बगैर अनुमति कॉपी-पेस्ट ना करें, सर्वाधिकार सुरक्षित)
आज सुबह से ही फोन की घंटिया घनघना
रही थी। मालती कभी मोबाइल पर तो कभी लैंडलाइन फोन पर मिल रही बधाईयां स्वीकार कर
रही थी। हर कोई खुश था, हो भी क्यों ना,
कंचन पहले ही प्रयास में आईपीएस बन गई
थी। मेहनत भी खूब की थी कंचन ने। पिछले पांच वर्षों में कोई त्यौहार ढंग से नहीं
मनाया। कभी किसी पिकनिक पर नहीं गई, कोई पार्टी, कोई मस्ती नहीं। बस
अपने लक्ष्य को पूरा करने की जिद,
अपने जीवन को ऊंचा उठाने का जुनून।
कंचन केे उस जुनून को मालती तो पिछले 25 सालों से जीती आई है।
मालती पुरानी यादों में डूब ही रही थी
कि फिर से फोन बजा। अरे ये तो किशन चाचा का फोन है।बहुत बधाई मालती बेटा..किशन
चाचा ने गला साफ करते हुए कहा। आपको भी बधाई चाचा जी, मालती ने कहा। आज
मैं बहुत खुश हूं कि तुम्हारा देखा हुआ सपना पूरा हो गया है। दुख भी है कि
तुम्हारे संघर्ष में हम लोगों ने कभी तुम्हारा साथ नहीं दिया। चाचाजी जी भर्राई
आवाज में कह रहे थे। इधर मालती ने जैसे सुना ही नहीं कि वे क्या कह रहे हैं, वो तो पुरानी यादों
में खो गई थी।
मालती को नौंवा महीना चल रहा था।
प्रसव का वक्त भी नजदीक आ गया। जच्चा और बच्चा दोनों ठीक हैं। डाक्टर ने मालती के
पति रमेश को बताया। लेकिन रमेश की उत्सुकता यह सुनकर भी शांत नहीं हुई, उसने पूछा क्या हुआ
है डाक्टर साहब। डाक्टर कुछ कहने की स्थिति में नहीं था, फिर भी बोला कि
दरअसल बच्चा थर्डजेंडर है। क्या...मैं कुछ समझा नहीं, आप क्या कहना चाह
रहे हैं। रमेश हकबकाया। डाक्टर ने फिर दोहराया कि बच्चा ना तो लड़का है, ना ही लड़की, वह तृतीय लिंंग है
यानि...। बस फिर क्या था, कोहराम सा मच गया। मालती तो मां थी, वह अपने बच्चे को सीने से लगाना चाहती
थी, जी भर उसे चूमना चाहती थी। बहुत सारा प्यार करना चाहती थी, लेकिन रमेश ने ऐलान
कर दिया कि बच्चे को कोई भी गोद में नहीं लेगा। यह हमारे खानदार पर धब्बा लगाने
आया है। रमेश ने मालती से कहा कि मेरी शबनम किन्नर से बात हो गई है, वह कल सुबह ही इसे
ले जाएगी। फिर चिंता की कोई बात नहीं, हम लोगों से कह देंगे कि हमें मरा हुआ
बच्चा हुआ है।
अब तक सब कुछ चुपचाप सुन रही मालती
चीखी, नहीं, यह मेरा बच्चा है,
इसे मैंने नौ माह तक अपने गर्भ में
रखा है,इससे बातें की हैं, इसे कोख की भीतर से ही प्यार देना
शुरु किया है। मैं इसे खुद पालूंगी। मैं इसे किसी को नहीं दूंगी।
रमेेश जैसेे मालती की बात सुनकर पागल सा
हो गया। यह भी भूल गया कि उसकी पत्नी प्रसूता है। उसने उसे चप्पल फेंककर मारी और
चीखा, क्या कहा तुमने। किसी को नहीं दोगी, इसे पालोगी। पागल हो क्या...नहीं
जानती कि यह समाज ऐसे बच्चों को स्वीकार नहीं करता। अरे ये किन्नर है, कौन स्वीकार करेगा
इसे। मैं करूंगी, मालती चीखी, मैं स्वीकार करूंगी और करूंगी क्या मैंने कर लिया। ईश्वर ने मुझे
जो बच्चा दिया है, वो मेरा है। मैं पालूंगी इसे, मैं प्यार करूंगी। ये मेरा बच्चा है, इसे मुझसे कोई नहीं
छीन सकता। थोड़ी देर के लिए कमरे में चुप्पी छा गई। मालती नेे रमेश को समझाना शुरु
किया, देखिए, इस बच्चे का क्या दोष कि ये ना पुरुष है ना ही स्त्री। ये तो ईश्वर
की मर्जी है। क्या केवल इस आधार पर इस बच्चे को अपने माता-पिता के पास रहने का हक
छीन लिया जाए कि ये तृतीय लिंग का है। इसे ध्यान से देखिए, कितनी प्यारी आंखें
हैं इसकी, दो हाथ हैं, दो पैर हैं, एक नाक है, वह सबकुछ इसके पास है, जो एक सामान्य इंसान में होता है।
मुझे पूरा विश्वास है कि इसकी बुद्धि, इसका विवेक और समझ भी सामान्य इंसानों
की तरह हो होगी। लेकिन क्या इसे अच्छा जीवन जीने का मौका मिलना चाहिए। क्यों हम
इसे शबनम किन्नर को सौंप दें,
क्यों हम इसे ताली बजाने पर मजबूर
करें, भीख मांगने, देह व्यापार करने या लोगों के घरों पर नाचने को मजबूर करने वाला
जीवन दें। आप खुद ही सोचिए। मालती चुप हुई तो रमेश फूटफूटकर रोने लगा।
खैर, किसी तरह रात बीती, सुबह तय समय पर
शबनम किन्नर बच्चे को लेने पहुंची। उस दिन पता नहीं कहां से मालती मेें मां दुर्गा
जैसी हिम्मत आ गई थी। वह जोर से चीखी और पता नहीं शबनम ने क्या सोचा, वह उलटे पैर वापस
हो गई। रमेश भी चुप ही था। बच्चे का नाम कंचन रखा गया। धीरे-धीरे रिश्तेदारों और फिर पूरे शहर
को पता चल गया कि कंचन थर्ड जेंडर है। स्कूल मेें उसने जिन दिक्कतों का सामना किया, उसका जिक्र करना
यहां मुश्किल है। किशोरावस्था में कदम रखते ही कंचन में लड़कियों वाले परिवर्तन
होने लगे थे। फिर कॉलेज में भी तानों और गंदी नजरों, गंदी बातों के बीच उसने अपनी पढ़ाई
पूरी की। दोस्त ना तो स्कूल में मिले, ना ही कॉलेज में। हां मां का भरपूर
प्यार मिला, इतना शायद आम बच्चों को भी नहीं मिलता। मालती ने दिल खोलकर कंचन पर
प्यार लुटाया। उसका हौंसला बढ़ाती रही। उसकी ताकत बनकर उसके साथ-साथ चलती रही।
कंचन ने भी ठान लिया था कि जिस मां ने उसकी परवरिश के लिए पूरे जमाने से लड़ाई
लड़ी। उसका सर गर्व से जरूर ऊंचा करेगी। मन ही मन ठान लिया कि आईपीएस बनेगी। दिन
रात बस लक्ष्य को पाने के लिए जुट गई। इस बीच रमेश का देहांत हो गया। पिता के
अचानक चले जाने से कंचन ने अपनी पढ़ाई में दुगुनी मेहनत शुरु कर दी। भले ही पिता
ने खुलकर कभी उससे प्यार नहीं जताया लेकिन मां के निर्णय में साथ देकर यह संकेत तो
दे ही दिया था कि वे उससे कितना प्यार करते हैं।
अंततः आज यूपीएससी केे रिजल्ट आने का
दिन था। कंचन को याद आ रहा था कि किस तरह रिटन एक्जाम में पास होने के बाद जब उससे
साक्षात्कार में पूछा गया कि आप कैसे संवेदनशीलता के साथ किसी भी मानवीय परिस्थिति
को हैंडल कर सकते हो? कंचन ने साक्षात्कारकर्ताओं को जबाव दिया कि संवेदनाओं उससे अच्छा
कोई महसूस नहीं कर सकता। जन्म लेते ही उसका पाला उसे संवेदनहीन समाज से पड़ा था, जो उससे उसके
मां-बाप का साया ही छीनना चाहता था। उसे आम बच्चे के जीवन का अधिकार भी नहीं देना
चाहता था। मेरी संंवेदनाओं का ज्वार तो हमेशा ही सबसे ज्यादा रहा है। जिसने दुख
भोगा हो, उससे ज्यादा अच्छे से दुख को कौन समझ सकता है। ठीक वैसेे ही जिस
संवेदनाओं का पाला दिन रात उससे पड़ा हो, उसे संवेदनहीन कैसे समझा जा सकता है।
बधाई हो... शब्द सुनकर कंचन का तंद्रा टूटी। उसकी मां उसे बधाई दे रही थी, यूपीएससी रिजल्ट आ
गया था, कंचन भारतीय पुलिस सेवा में चुन ली गई थी। दोनों एक दूसरे के गले
लगकर कितनी देर तक रोती रहीं,
पता ही नहीं चला। और अब मिल रही अनंत
बधाईयों से मालती खुश है, केवल इसलिए नहीं कि कंचन सर उठाकर जी सकेगी, बल्कि इसलिए कि
शायद उन्हें देखकर कंचन जैसे कितने ही बच्चों को जीनेे का अधिकार मिल जाए। उनके भी
जीवन में रोशनी भर जाए। मालती सोच रही थी कि मेरे घर तो सुबह होनी ही थी, बस रात थोड़ी लंबी
थी।
प्रियंका कौशल
9303144657
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