मंगलवार, 2 जुलाई 2019

लघुकथा- भिक्षुक भोज

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यहां भिक्षुक भोज हो रहा है, आप सादर आमंत्रित हैं। बाबा रामदेव पीर मंदिर के बाहर लगे बैनर को पढकर सुधा चहक उठी। चलो यहीं खाना खा लेते हैं। मंदिर है, भगवान का दर है। सुधा की बात रमेश को बेतुकी लगी। हम यहाँ खाना खा लेंं, वह मुंह बिचका कर बोला। मेरे और तुम्हारे स्टेटस की जरा भी चिंता है तुम्हेंं। कुछ भी कहने के पहले सोच लिया करो। तुम केंंद्रीय विद्यालय की टीचर हो और मैं एक बैंक मैनेजर, और किसी मंदिर के भिक्षुक भोज मेंं खाना खाएँगे। इतना सुनकर सुधा बोल उठी कि क्यों कल ही तो आप भगवान से मांग रहे थे कि हमारा एक बंगला हो जाए। इतना होने के बाद भी हम सब भगवान के आगे भिक्षुक ही तो हैं। हर वक्त ईश्वर से कुछ ना कुछ मांगते रहते हैं, याचना करते रहते हैं। केवल इस बात को मानना नहीं चाहते। सुधा की बात सुनकर रमेश बिना कुछ बोले भिक्षुुक भोज के पंडाल की तरफ बढ गया।



प्रियंका कौशल
9303144657

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