एक तरफ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकारी तंत्र में शुचिता और अनुशासन लाने की कोशिश कर
रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ आम लोगो का न्याय सुनिश्चित करने वाले उनकी सरकार के
सामाजिक न्याय मंत्रालय में तैनात भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अफसर पर उसकी ही
पत्नी शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगा रही है।
मध्यप्रदेश
के चर्चित पूर्व कलेक्टर और वर्तमान में केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री के पीएस एक
आईएएस अफसर से कथित तौर पर प्रताड़ित पत्नी न्याय पाने के लिए दर-दर भटकने को
मजबूर है। दो बेटियों को जन्म देने वाली पत्नी का गुनाह केवल इतना है कि उसने बेटे
को जन्म नहीं दिया। अब प्रताड़ित पत्नी पिछले एक साल से अपनी बात हर फोरम में रख
रही है और पति के भ्रष्टाचार के काले कारनामों का चिट्ठा भी खोल रही है। लेकिन
पत्नी को तो अब तक उसका हक नहीं मिला, उलटे पतिदेव वजीफ़ा पाते हुए 10 जून 2014 को
सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गेहलोत के पीएस (प्राइवेट सेकेट्ररी) बन गए। जिन
आईएएस अफसर की बात की जा रही है, वे 1999 बैच के मध्यप्रदेश कैडर के अफसर डॉ. ई
रमेश कुमार हैं। चिकित्सक से भारतीय प्रशासनिक अफसर बने ई रमेश की पत्नी कुरंगति स्वप्ना
कुमार (35 वर्ष) पिछले एक साल से न्याय के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं, लेकिन
उनकी सुनवाई कहीं नहीं हो पा रही है।
स्वप्ना
ने साल भर पहले यानि मई 2013 को मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव आर. परशुराम को
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पेज की एक चिठ्ठी भेजकर रमेश की काली कमाई का कच्चा चिठ्ठा खोलते
हुए कार्रवाई की मांग की थी। स्वप्ना ने पत्र के जरिए आरोप लगाया था कि उनके पति ई
रमेश मप्र के सबसे भ्रष्ट आईएएस अफसरों में से एक हैं। उन्होंने अपनी काली कमाई से
मप्र और आन्ध्रप्रदेश में रियल इस्टेट, एजुकेशनल इंस्टीटयूट
और डायग्नोस्टिक सेंटर जैसी संस्थाओं में निवेश किया है। सपना ने पत्र में ये भी
कहा है कि वह साढे़ ग्यारह सालों से मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना केवल इसलिए झेल
रही है, क्योंकि उसने बेटे के बजाए दो बेटियों को जन्म दिया है। जब पति की
प्रताड़ना सहनशीलता की सीमा पार कर गई, तो उन्होंने उनके
असली चेहरे को सबके सामने लाने का फैसला किया।
तहलका
ने जब इस बारे में तत्कालीन मुख्य सचिव आर परशुराम (जो कि अब मध्यप्रदेश के राज्य
निर्वाचन आयुक्त हैं) से बात की, तो उन्होंने इस विषय पर कुछ भी बोलने में अपनी
असमर्थता जताई। उनका कहना था कि “इस बारे में वर्तमान मुख्य सचिव
एंटोनी डिसा ही कुछ बता पाएंगे। परशुराम ये भी बताने को तैयार नहीं हुए कि
उन्होंने स्वप्ना कुमार की चिट्ठी को लेकर कोई जांच बैठाई थी या नहीं। उनका कहना
था कि वे संवैधानिक पद पर हैं, इसलिए इस विषय पर बात करना उनके लिए संभव नहीं है”।
ई.
रमेश मूलत: आंध्रप्रदेश के हैं, लेकिन 1999 में
उन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा में मप्र कॉडर मिला था। श्रीमती स्वप्ना का आरोप है
कि ई रमेश अपनी काली कमाई को ठिकाने लगाने ही 2013 में अंतर्राज्यीय प्रतिनियुक्ति
यानि डेपुटेशन पर आंध्रप्रदेश चले गए थे। स्वप्ना के मुताबिक ई रमेश ने आंध्र में
उन्होंने ए रामाकृष्ण और डॉ. गिरधर सहित अन्य लोगों के साथ रियल इस्टेट सहित अन्य
संस्थाओं में पार्टनरशिप की है। ई रमेश ने विशाखापट्नम में एक पॉश एमवीपी कॉलोनी
में एमआईजी 1/46 सेक्टर-।। में एक प्लाट खरीदा है। इस भूखंड
पर उन्होंने करीब छह करोड़ की लागत से पांच मंजिला भवन का निर्माण शुरू किया है। इस
इमारत में लिफ्ट सहित सारी आधुनिकतम सुविधाएं हैं।
श्रीमती
स्वप्ना का आरोप है कि ई रमेश ने मध्यप्रदेश में पदस्थ रहते हुए लाखों रुपए की
हवाई यात्राएं की हैं। वह हमेशा भोपाल से मुंबई से अहमदाबाद और विशाखापट्टनम हवाई
मार्ग से ही जाते थे। यदि ब्यौरा निकाला जाए तो पता चलेगा कि एक साल में 10 लाख रुपए से भी ज्यादा हवाई उड़ाने उन्होंने भरी हैं। सबसे बड़ी बात तो यह
है कि उन्होंने एयर टिकट के लिए अपनी जेब से एक रुपया भी खर्च नहीं किया। यही नहीं,
उनके भाई ई. रतन कुमार ने भी अहमदाबाद से भोपाल दिल्ली, मुंबई और विशाखापट्नम की बेहिसाब हवाई यात्रा की हैं, जबकि वे मूलत: एक बैंक में प्रोबेशनर अफसर हैं।
स्वप्ना
के मुताबिक ई रमेश ने छतरपुर और सागर कलेक्टर रहते हुए उद्यानिकी और कृषि महकमे से
बुंदेलखंड पैकेज में जमकर कमीशन लिया। छतरपुर पदस्थापना के दौरान राजनगर खजुराहो
में एक जमीन की रजिस्ट्री पर रोक लगा दी थी। जब स्थानांतरण सागर हुआ, तो मोटी रकम लेकर पिछली तारीख में उस रोक को हटा दिया था। मप्र में
आंध्रप्रदेश के कई बडे़ ठेकेदार काम कर रहे हैं। ई. रमेश इन्हीं ठेकेदारों के
माध्यम से अपनी काली कमाई को आंध्रप्रदेश भिजवाते थे। ई रमेश ने अपनी काली कमाई का
अधिकांश हिस्सा जगन रेड्डी की पार्टी वायएसआर कांग्रेस को पार्टी फंड में दिया और
वे आंध्रप्रदेश से चुनाव लड़ना चाहते हैं। स्वप्ना पत्र में लिखती हैं कि “ई. रमेश पहले तो मेरे साथ मारपीट करते हैं, जब इस
संबंध में कोई उनसे कुछ पूछता है तो वे लोगों की सहानुभूति हासिल करने के लिए किसी
के भी सामने रोने लगते हैं और मुझे गलत ठहराकर अपनी गलतियों पर पर्दा डालते हैं”।
स्वप्ना
के आरोपों को लेकर जब तहलका ने मध्यप्रदेश आईएएस एसोसिएशन की अध्यक्ष अरुणा शर्मा
से बात की तो उन्होंने भी इसे ई रमेश और उनकी पत्नी का व्यक्तिगत मामला बताकर
पल्ला झाड़ लिया। शर्मा का कहना है कि “ये निहायत की व्यक्तिगत
मामला है, ऐसे में वे इस बारे में कोई भी बात नहीं कर सकतीं”।
मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव एंटोनी डिसा से लेकर सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद
गेहलोत तक से इस विषय पर बात करने की कोशिश की गई। थावरचंद गेहलोत के दोनों मोबाइल
नंबरों पर संदेश भी भेजा गया, लेकिन कोई जबाव नहीं आया। किसी ने भी ई रमेश के
प्रकरण में बात करने में रुचि नहीं दिखाई। जबकि स्वप्ना ने जो आरोप लगाए हैं, वे
केवल व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि उसमें भ्रष्टाचार से संबंधित आरोप भी हैं। जिसे
संज्ञान में लिया जाना चाहिए, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार का कोई भी अफसर इस विषय पर
बात करने से बच रहा है।
इसका
एक कारण शायद ये भी है कि ई रमेश भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही राजनीतिक दलों की
गुड बुक में रहे हैं। जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, तब भी वे तत्कालीन
मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के पंसदीदा अफसरों में गिने जाते थे। सूबे में भाजपा की
सरकार आने के बाद भी अपने दक्षिण भारतीय कनेक्शनों के सहारे वे मलाईदार ओहदों को पाते
रहे और तेजी से प्रमोशन पाते रहे। अपने करियर के शुरुआती दौर में वे रायगढ़ [अब छग
में] और मंदसौर में सहायक कलेक्टर रहे। बाद में नरसिंहगढ़ में एसडीओ बने। यहीं से
उन्हें 10 जून 2003 को ग्वालियर में नगर
निगम कमिश्नरी का तोहफा मिला। इसके बाद धार सीईओ का दायित्व मिला। दो साल बाद 2006
में डिंडोरी कलेक्टर बने। छह महीने बाद ही खरगोन कलेक्टर हो गए। सवा
दो साल बाद मंत्रालय आ गए। दस महीने बाद छतरपुर कलेक्टर बन गए और उसके बाद सागर
गए। नंवबर 2012 को ई रमेश कुमार प्रतिनियुक्ति पर
विशाखापट्नम (आंध्र प्रदेश) चले गए। हाल ही में यानि जून 2014 को उन्हें सामाजिक
न्याय मंत्री थावरचंद गेहलोत के निजी स्टाफ में शामिल किया गया है।
स्वप्ना
का समर्थन कर रहे ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमिन एसोसिएशन ने सिंतबर 2013 को ई रमेश
के आवास पर प्रदर्शन कर न्याय की मांग भी की थी। AIDWA की आंध्रप्रदेश
प्रभारी समीना बताती हैं कि “हमने भोपाल जाकर प्रदर्शन किया
था, लेकिन उस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। उलटा हमारे ही खिलाफ ई रमेश ने जबरिया
घर में घुसने, चोरी और बदनामी करने का आरोप लगाकर मुकदमा कर दिया। हमारी मांग थी
कि पुलिस की मौजूदगी में ई रमेश से हमें बात करने दी जाए, ताकि उनसे स्वप्ना कुमार
के हर आरोप पर सवाल किए जा सकें। यदि एक पढ़ा लिखा व्यक्ति बेटे की चाहत में पत्नी
को प्रताड़ित करे तो ये हमारे समाज के लिए शर्मनाक है”।
तहलका
ने ई रमेश से भी इस बारे में उनका पक्ष जानने के लिए कई बार संपर्क करने की कोशिश
की, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया।
अपने
पति पर कई तरह के आरोप लगाने वाली स्वप्ना ने जेएनटीयू से एमटेक किया है। स्वप्ना
के पिता प्रशांत बाबू आंध्रप्रदेश के खम्मम के रहने वाले हैं। वे कमर्शियल टैक्स
ऑफिसर के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं, जबकि स्वप्ना की मां मनस्विनी प्रोफेसर रही
हैं। ई रमेश कुमार से स्वप्ना की शादी 29 अक्टूबर 2001 में हुई थी। परेशानी की असल
शुरुआत 11 साल पहले हुई, जब सपना ने पहले बच्चे के रूप में एक बेटी (ई कामिनी 12
वर्ष) को जन्म दिया। पांच साल बाद दूसरे बच्चे के रूप में भी बेटी ( ई शानसिया 7
वर्ष) का जन्म होने पर ससुराल वालों की प्रताड़ना तो बढ़ ही गई, साथ ही साथ ई रमेश
पर दूसरी शादी का दबाव भी डाला जाने लगा। स्वप्ना कहती हैं कि उन्हें लगा कि उनके
पति का बर्ताव बच्चों के कारण बदल जाएगा, लेकिन उनके व्यवहार में कोई फर्क नहीं
आया और ई रमेश ने विशाखापट्टनम के कुटुम्ब न्यायालय में 12 मार्च 2013 को सेपरेशन
के लिए याचिका दायर कर दी। स्वप्ना आरोप लगाती हैं कि मैंने कई आएएस और आईपीएस
अफसरों गुहार लगाई कि मेरी समस्या पर गौर किया जाए, लेकिन किसी ने मेरे अनुरोध पर
ध्यान नहीं दिया। स्वप्ना का ये भी आरोप है कि कई बार रमेश ने उन्हें व उनके
बच्चों को भूखा रखा। अब वे अपने बच्चों के साथ खम्मम में अपने पिता के घर में रह
रही हैं। स्वप्ना के समर्थन में सिंतबर 2013 में ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमिन
एसोसिएशन भोपाल में प्रदर्शन भी कर चुका है। लेकिन नतीज़ा सिफर रहा है। ना तो अभी
तक स्वप्ना की शिकायत पर कोई कार्रवाई की गई, ना ही उसे न्याय दिलाने के लिए सरकार
ने कोई पहल की। जबकि जब स्वप्ना ने ई रमेश कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की
थी, तब कहा जा रहा था कि मामले को एंटी करप्शन ब्यूरो या लोकायोग को दिया जा सकता
है। लेकिन राज्य सरकार ने इस पूरे मामले में चुप्पी साध ली। अब सवाल ये उठता है कि
मध्यप्रदेश सरकार ने तो अपने अफसर पर लगे आरोपों की सच्चाई जानने की जहमत नहीं
उठाई, लेकिन देश के नव नवेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विषय को संज्ञान में
लेते हैं कि नहीं। क्योंकि खुद मोदी पूरे प्रशासनिक तंत्र को सुधारने में लगे हैं,
उनके ऑफिस आने-जाने के समय पर नज़र रखी जा रही है। उनसे सच्चचरित्र होकर काम करने
की उम्मीद कर रहे हैं, ऐसे में सामाजिक न्याय मंत्रालय में पदस्थ एक आईएएस अफसर पर
उनकी ही पत्नी द्वारा लगाए जा रहे आरोपों की जांच तो सरकार को करवानी ही चाहिए।
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