शनिवार, 23 अगस्त 2014

आधुनिक भारत के अछूत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गंगा नदी से शुरु हुआ विजय अभियान अब नर्मदा पर आकर ठहर गया है। बनारस के तट से गंगा ने उत्तर प्रदेश में उनका पथ प्रशस्त किया। अब वे देश की पांचवी सबसे बड़ी नदी नर्मदा के सहारे अपने ही गढ़ गुजरात के हीरो तो बन ही रहे हैं, साथ ही साथ महाराष्ट्र और राजस्थान को साधने की भी कोशिश रहे हैं। लेकिन अबकी बार उन्हें अपने विजय अभियान की कीमत चुकानी होगी, और वो कीमत होगी मध्यप्रदेश की 20,882 हैक्टेयर उपजाऊ जमीन, 45000 हजार विस्थापित परिवार और अपूर्णीय पर्यावरणीय क्षति। सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने के मोदी के निर्णय ने चार राज्यों की सियासत गरमा दी है।
रूस की प्रेरणा से जब पंजाब का भाखड़ा नाखल बांध बना था, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बांधों को आधुनिक भारत का मंदिर कहा था। उसके बाद केंद्र सरकारों ने देश को समृद्ध और खुशहाल बनाने के लिए बड़े बांधों पर अरबों रुपए खर्च किए। इससे कुछ लाख घरों की खुशहाली तो बढ़ी,लेकिन दूसरी तरफ करोड़ों लोग अपनी ही जमीन से बेदखल हो गए। पुनर्स्थापन के नाम पर इन्हें अपने ही देश में शरणार्थी बना दिया गया। बड़े बांधों के विस्थापित ऐसे अछूत साबित हुए, जिनका आधुनिक भारत के मंदिरों से कोई वास्ता नहीं रहा, सिवाए अपने घर, अपनी जमीन, अपनी आजीविका के बलिदान के। बड़े बांध राजनीतिक बयानबाजी और गैर सरकारी संगठनों की बहस के केंद्रबिंदु भी बनने लगे। ऐसी ही नई बहस छिड़ी है, सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई को बढ़ाने को लेकर। क्या वाकई सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने की जरूरत है? इससे किन लोगों को फायदा पहुंचेगा और कौन इसकी कीमत चुकाएगा? सरदार सरोवर बांध किस राज्य के सौभाग्य के दरवाजे खोलेगा और किस राज्य के लिए बदहाली लाएगा? ये जानने के लिए सरदार सरोवर परियोजना, नर्मदा घाटी, राज्य सरकारों की मंशा और इससे जुड़े राजनीतिक नफा-नुकसान को समझना जरूरी है।
सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड की वेबसाइट के मुताबिक यह बांध अमेरिका के ग्रांड काउली के बाद दूसरा सबसे बड़ा कांक्रीट ग्रेविटी डैम है। वहीं दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा निर्वहन क्षमता वाला बांध है। इसकी जलसंग्रहण क्षमता 5860 mcm है, जो 4.75 लाख एकड़ फीट के बराबर है। नई दिल्ली में 12 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) की बैठक में गुजरात के केवड़िया स्थित सरदार सरोवर बांध में 17 मीटर ऊंचे गेट लगाकर बांध की ऊंचाई 121.92 से 138.38 मीटर करने की मंजूरी दे दी गई। ये मामला पिछले कई वर्षों से लंबित था। अब 2017 तक करीब 270 करोड़ की लागत से बांध पर 30 रेडियल गेट लगेंगे। गेट लगाने से 9 मिलियन पानी की संग्रहण क्षमता बढ़ेगी। बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने की अनुमति मिलते ही गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने ट्विट कर गुजरात की जनता की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई देते हुए कहा कि अच्छे दिन आ गए। लेकिन हकीकत ये है कि केवल गुजरात के अच्छे दिनों की शुरुआत है। मध्यप्रदेश के करीब ढाई लाख विस्थापितों, सैंकडों स्कूलो, मंदिरों-मस्जिदों, हजारों एकड़ उपजाऊ जमीन की कीमत पर गुजरात के अच्छे दिन लाए जा रहे हैं। इससे पहले कि हम ये जानें कि सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ने पर मध्यप्रदेश को क्या कीमत चुकानी पड़ेगी। उससे पहले ये जान लें इससे गुजरात को क्या फायदा पहुंचेगा। असल में नर्मदा के दायरे में आने वाले गुजरात का 75 फीसदी इलाका संभावित सूखा प्रभावित माना जाता है। बांध की ऊंचाई बढ़ने से गुजरात में नर्मदा के जल की उपलब्धता बढ़ेगी, इससे ये इलाके संभावित सूखा प्रभावित की श्रेणी से बाहर निकल आएंगे। सिंचाई के मामले में भी सबसे ज्यादा फायदा गुजरात को ही होना है। नर्मदा बांध के जरिए गुजरात की 18.45 लाख हैक्टेयर भूमि को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो सकेगा। इससे गुजरात के 15 जिलों की 73 तहसीलों के 3112 गांवों को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा। ये बांध भरूच के 210 गांवों को बाढ़ के खतरे से मुक्ति दिलाएगा। वहीं इसका पानी सौराष्ट्र की तस्वीर बदल देगा। सरदार सरोवर बांध का पानी सौराष्ट्र के 115 छोटे बांधों और जलाशयों में पहुंचेगा। औसत से भी कम वर्षा वाले सौराष्ट्र में साल भर बनी रहने वाली पानी की समस्या खत्म हो जाएगी। गुजरात के 151 शहरी और 9633 गांवों (जो कि गुजरात के कुल 18144 गांवों का 53 प्रतिशत है) को पीने का पानी उपलब्ध होगा। बांध से पैदा होने वाली 1450 मेगावॉट बिजली में से 16 फीसदी बिजली भी गुजरात को मिलेगी। यानि गुजरात की चांदी ही चांदी। इसके ठीक उलट मध्यप्रदेश को सिवाए 877 मेगावॉट बिजली के कुछ नहीं मिलेगा। यह सही है कि मध्यप्रदेश बिजली संकट से जूझ रहा है। उसे अतिरिक्त बिजली की जरूरत है। लेकिन मध्यप्रदेश में सूखाग्रस्त इलाकों, सिंचाई के पानी की कमी, पेयजल समस्या भी विद्यमान है। लेकिन परियोजना में मध्यप्रदेश के सूखाग्रस्त इलाकों की पूरी तरह अनदेखी की गई है। सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड की वेबसाइट में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि मध्यप्रदेश को सिंचाई के लिए कितना पानी मिलेगा, क्योंकि परियोजना में मध्यप्रदेश के किसानों के हितों को पूरी तरह उपेक्षित कर दिया गया है। जबकि पूरी परियोजना ही मध्यप्रदेश के विस्थापितों की कीमत पर खड़ी हो रही है। अब जानते हैं कि सरदार सरोवर बांध परियोजना से मध्यप्रदेश को क्या नुकसान है। मध्यप्रदेश के एक कस्बे धरमपुरी (जिला धार) समेत 193 गांव जलमग्न होने की कगार पर हैं। सूबे की करीब 20,882 हैक्टेयर जमीन डूब क्षेत्र में आ रही है। 2001 की जनगणना के मुताबिक तीनों राज्यों के 51000 परिवारों को प्रभावित माना गया था, जिनकी संख्या 2011 की जनगणना में बढ़कर 63000 हजार हो गई है। इनमें अकेले मध्यप्रदेश से 45000 हजार परिवार हैं। इन परिवारों में अधिकांश आदिवासी, छोटे-मछोले किसान, दुकानदार, मछुआरे, कुम्हार हैं, जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं।
मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव कहते हैं कि बांध की ऊंचाई बढ़ने से मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र की उपजाऊ भूमि डूब में आ जाएगी। ढाई लाख लोग विस्थापित होंगे, सो अलग। यादव आरोप लगाते हैं कि पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के लिए कुछ नहीं किया गया है। विस्थापितों का पुनर्वास नहीं हो पाया है। पुनर्वास का काम भ्रष्टाचार और उसकी जांच के कारण रुका हुआ है। डूब क्षेत्र के परिवार, जिनमें किसान, मजदूर, मछुआरे, कुम्हार जैसे छोटी आजीविका वाले लोग शामिल है, वैकल्पिक जमीन, आजीवका, पुनर्वास और बसाहटों में भूखंड पाने से वंचित हैं। यादव एक आरोप और लगाते हैं कि सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने का फैसला सर्वोच्च न्यायालय और नर्मदा जल विवाद प्राधिकरण के आदेशों का उल्लंघन है। वे कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट और प्राधिकरण के फैसले में पहले पुनर्वास फिर निर्माण कार्य शुरु करने के निर्देश दिए गए हैं। लेकिन बांध की ऊंचाई बढ़ाने की जल्दबाजी में मध्यप्रदेश से खिलवाड़ किया जा रहा है। यादव का कहना है कि नर्मदा प्राधिकरण के दिंसबर 1979 के पारित निर्णय के मुताबिक वर्ष 2024 तक मध्यप्रदेश को 29 बडे, 135 मध्यम और तीन हजार छोटी सिंचाई परियोजनाएं पूरी करनी हैं। यदि मध्यप्रदश निर्धारित अवधि में अपने हिस्से के नर्मदा जल का उपयोग नहीं कर पाया तो हमें हमारे अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा। लेकिन मध्यप्रदेश सरकार नर्मदा सिंचाई परियोजनाओं को लेकर बिलकुल गंभीर नहीं है। अभी तक केवल 10 बड़ी परियोजनाएं पूरी हुई हैं। 2 पर काम चल रहा है, जबकि 17 पर काम शुरु ही नहीं हो पाया है।
जिस गुजरात को परियोजना से सबसे ज्यादा फायदा मिलने वाला है, उस गुजरात के केवल 19 गांव डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। कुल 9000 हैक्टेयर जमीन प्रभावित हो रही है। जबकि महाराष्ट्र के 22 गांव और करीब 9500 हैक्टेयर वन भूमि परियोजना से प्रभावित हो रही है। परियोजना का लंबे समय से विरोध कर रही नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं का आरोप है कि केवल 30 परिवारों को पुर्नवास के लिए जमीन मिल पाई है। जबकि करीब 3 हजार परिवारों को जमीन देने की प्रक्रिया भ्रष्टाचार में उलझ गई। इन परिवारों को हक से वंचित करने के लिए फर्जी रजिस्ट्रियों का सहारा लिया गया। नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं का ये भी आरोप है कि सरकारी अफसरों ने दलालों के साथ मिलकर हजारों फर्जी रजिस्ट्रियां कर डाली। इन आरोपों की जांच के लिए 2008 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जस्टिस एसएस झा आयोग का गठन किया, ताकि रजिस्ट्रियों के फर्जीवाड़े की सच्चाई सामने आ सके। झा कमीशन की जांच अभी जारी है। झा कमीशन जिन बिंदुओं पर जांच कर रहा है, उनमें फर्जी रजिस्ट्रियों की जांच की जा रही है। जिन परिवारों को अभी तक जमीन नहीं मिली है, उस पर भी तथ्य इकट्ठे कर रही है। साथ ही आजीविका शुरु करने के लिए दी गई राशि में भी हुए भ्रष्टाचार और पुनर्वास साइटों के स्तर हीन निर्माण कार्यों और अधिक खर्च कर दी गई राशि जैसे बिंदु भी जांच में शामिल हैं। कमीशन की रिपोर्ट अक्टूबर 2014 तक आने की संभावना है।
मध्यप्रदेश के पूर्व सिंचाई मंत्री डॉ रामचंद्र सिंहदेव कहते हैं कि सरदार सरोवर बांध समेत नर्मदा घाटी में जितनी भी परियोजनाओं पर काम हो रहा है, ये सभी गलत आंकड़ों पर आधारित है। जिस वक्त नर्मदा घाटी में नई परियोजनाओं की शुरुआत की गई, उस वक्त लिए गए आंकड़े अंग्रेजों द्वारा पुरानी पद्धति से संग्रहित किए गए थे। ब्रिटिश हुकुमत बारिश के पानी (रेन वॉटर गेज) के आधार पर नदियों में उपलब्ध जल के आंकड़े इकट्ठे करती थी। उनके मुताबिक नर्मदा में 27 एमएएफ (मिलियन एकड़ फीट) पानी था। जबकि बाद में नई पद्धति (रिवर गाजिंग स्टेशन) से आए आंकड़े बताते हैं कि नर्मदा में केवल 23.7 एमएएफ पानी है यानि जो भी परियोजनाएं बनाई गई, उनका आधार ही गलत था। मध्यप्रदेश सरकार ने कई बार नर्मदा के पानी की उपलब्धता को लेकर सवाल उठाए, लेकिन हमारी कभी नहीं सुनी गई। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि पूरी नर्मदा घाटी भूंकप प्रभावित है। बड़े बांध बनने से ये खतरा कई गुना बढ़ गया है। मध्यप्रदेश में जबलपुर शहर के करीब बने बरगी बांध के कारण रह-रहकर आसपास के इलाके में भूकंप के झटके आते रहते हैं। सिंहदेव कहते हैं कि सरदार सरोवर बांध भले ही भूकंपरोधी बांध हो, लेकिन कभी कभी भूकंप की तीव्रता इतनी अधिक होती है कि वो तबाही मचाने में सफल हो जाता है। नर्मदा घाटी में जितने भी बड़े बांध बनाए जा रहे हैं, इनकी उपयोगिता या यूं कहें इनका जीवन कुछ सालों का ही होता है। मसलन 100 से 250 साल तक। उसके बाद ये बांध कई तरह की समस्या खड़ी करने लगते हैं। बड़े बांधों की उम्र के बारे में कोई भी नहीं सोच रहा है।

नया नहीं है विवाद
नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध परियोजना की अधिकारिक घोषणा 1960 में हुई थी। 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसकी आधारशिला रखी थी। तभी से ये परियोजना विवादों में फंसी हुई है। शुरुआती कई सालों तक तो परियोजना से जुड़े हुए तीनों राज्यों (मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र) में जल बंटवारे को लेकर आपसी सहमति नहीं बन पाने से परियोजना अटकी रही। 1979 में ये मामला नर्मदा जल विवाद प्राधिकरण में पहुंचा। जहां तीनों राज्यों में सहमति बनी। 90 के दशक में विश्व बैंक ने परियोजना के लिए ऋण देने का फैसला लिया। लेकिन डूब प्रभावित लोगों ने नर्मदा बचाओ आंदोलन के तहत परियोजना का विरोध करना शुरु कर दिया। 1991-1994 में पहली बार विश्व बैंक ने किसी परियोजना की समीक्षा करने के लिए अपनी एक उच्च स्तरीय समिति बनाई। जिसने अपनी पड़ताल में ये पाया कि परियोजना से होने वाली पर्यावरणीय क्षति की पूर्ति नहीं की जा सकती। इसलिए विश्व बैंक ने परियोजना से हाथ खींच लिए। नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्थकों ने सुप्रीम कोर्ट में निर्माण रोकने के लिए जनहित याचिका लगाई। वर्ष 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला देते हुए कहा कि बांध उतना ही बनाया जाना चाहिए, जहां तक लोगों का पुर्नस्थापन और पुनर्वास हो चुका है। परियोजना का विरोध कर रहा नर्मदा बचाओ आंदोलन शुरु से ही आरोप लगा रहा है कि ना तो परियोजना में पर्यावरणीय क्षति का ध्यान रखा गया ना ही विस्थापितों को उचित पुनर्वास मिल पा रहा है। अब जबकि फिर बांध की ऊंचाई बढ़ाई जा रही है, एक बार फिर परियोजना विवादों में आ गई है। मध्यप्रदेश के धार, बडवानी, निमाड़ के कई इलाके और झाबुआ के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थानीय रहवासी सड़कों पर उतरकर बांध की ऊंचाई बढ़ाने का विरोध कर रहे हैं।
राजनीति का बांध
सरदार सरोवर बांध से कई राजनीतिक महत्वकांक्षाएं भी जुड़ी हुई हैं। बांध की ऊंचाई बढ़ने से जहां नरेंद्र मोदी और उनके गुजरात को कई लाभ हैं। वहीं मध्यप्रदेश की राजनीति के तीन सितारों (शिवराज सिंह, उमा भारती और थावरचंद गेहलोत) को इस बांध की ऊंचाई में डूबने का खतरा पैदा हो गया है। सबसे पहले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बात करें तो वे इस मुद्दे पर बोलने से बचते रहे हैं। जिस वक्त बांध की ऊंचाई बढ़ाने का फैसला हुआ, वे साउथ अफ्रीका में मध्यप्रदेश में नए उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नए निवेशक तलाश कर रहे थे। शिवराज ने साउथ अफ्रीका से ही ट्वीट कर मोदी के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने ये भी ट्वीट किया कि हमें शून्य लागत पर बिजली मिलेगी। लेकिन वे जैसे ही भोपाल पहुंचे तो मीडिया के सामने नए तेवर में नजर आए। पत्रकारों के सवालों का जबाव देते हुए शिवराज ने कहा कि विस्थापितों के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का ध्यान रखा जाएगा। यह बयान देते वक्त वे भूल गए कि पहले ही ट्विटर पर ये कह चुके हैं कि 2008 में ही विस्थापितों को मुआवजा बांट दिया गया। अब तत्काल कोई क्षेत्र डूब से प्रभावित नहीं होने वाला। सरदार सरोवर बांध पर विरोधाभासी बयान देने वाले शिवराज सिंह चौहान भूल गए कि आने वाले दिनों में यही मुद्दा उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं में सबसे बड़ा रोड़ा बनेगा। दूसरे नंबर पर केंद्रीय जलसंसाधन मंत्री उमा भारती का नाम आता है। मूलतः मध्यप्रदेश की रहने वाली उमा भारती अच्छी तरह जानती होंगी कि सूबे में पुर्नवास की स्थिति क्या है। ऐसे में भी उन्होंने बयान दिया कि विस्थापितों को ध्यान में रख कर दिए गए सुझावों के बाद सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की मंजूरी दी गई है। सामाजिक न्याय मंत्रालय विस्थापितों के लिए उठाए गए कदमों से संतुष्ट है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री रहते हुए उमा का बांध की ऊंचाई बढ़ाने का समर्थन करना उनकी स्थिति को आने वाले दिनों में कमजोर करेगा। जिस परियोजना से मध्यप्रदेश को सिवाए नुकसान के कुछ नहीं मिल रहा है, उसका समर्थन कर उमा ने अपने विरोधियों को एक नया मुद्दा दे दिया है। चूंकि सरदार सरोवर बांध की पूरी कहानी सामाजिक न्याय मंत्रालय का हवाला देकर लिखी जा रही है, ऐसे में मध्यप्रदेश की राजनीति से राज्यसभा सांसद के रूप में केंद्र में पहुंचे केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गेहलोत के भी ये अच्छे दिनों की शुरुआत तो कतई नहीं मानी जा सकती। गेहलोत भी मध्यप्रदेश से हैं, वे 1990-92 में प्रदेश के सिंचाई, नर्मदा घाटी विकास विभाग के मंत्री रह चुके हैं, यानि ये माना जा सकता है विस्थापितों के दर्द को उन्होंने करीब से भलीभांति देखा और समझा होगा। लेकिन उनके ही मंत्रालय को ढाल बनाकर सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाई जा रही है। ऐसे में मध्यप्रदेश के विस्थापितों के वे भी उतने ही दोषी माने जाएंगे, जितने कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती। आने वाले समय में मध्यप्रदेश में तीनों को ही बांध की ऊंचाई का समर्थन करना राजनीतिक रूप से बहुत मंहगा पड़ सकता है।
मोदी को फायदा ही फायदा
बांध की ऊंचाई बढ़ने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक फायदा तीन गुना हो जाएगा। पहला तो ये कि गुजरात में उन्होंने साबित कर दिया कि वे अपने प्रदेश के कितने बड़े हितैषी हैं। खुद नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए लंबे समय से बांध की ऊंचाई बढ़ाने की मांग कर रहे थे। 2006 में उन्होंने 51 घंटे का उपवास भी रखा था। प्रधानमंत्री बनते ही सबसे पहले उन्होंने गुजरात के हित में फैसला लेते हुए सरदार सरोवर बांध में 17 मीटर ऊंचे दरवाजे लगाने की अनुमति दे दी। इससे गुजरात में उनका कद और बढ़ गया। गुजरात में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही खुलकर उनके निर्णय का स्वागत कर रही हैं। सरदार सरोवर बांध के द्वारा उन्होंने महाराष्ट्र और राजस्थान को साधने की भी कोशिश की है। महाराष्ट्र में कुछ समय बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। सरदार सरोवर परियोजना से महाराष्ट्र को भी फायदा होना है। यहां पैदा होने वाली 1450 मेगावॉट बिजली में से 27 फीसदी बिजली महाराष्ट्र को मिलेगी। महाराष्ट्र के पहाड़ी इलाकों की 37 हजार पांच सौ हैक्टेयर भूमि को सिंचाई के लिए जल उपलब्ध हो जाएगा। बांध की ऊंचाई बढ़ने से राजस्थान को अच्छे दबाव से पानी मिल सकेगा, इससे वहां के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर और जालौर की दो लाख 46 हजार हैक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी। इसके अलावा राजस्थान के तीन शहरों और 1336 गांवों के 4 करोड़ लोगों को पेयजल भी उपलब्ध हो सकेगा। अपने इस फैसले मोदी गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में हीरो के रूप में उभरेंगे।
सरदार सरोवर नर्मदा बांध निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक जेएन सिंह का कहना है कि रेडियल गेट लगाने की मंजूरी मिलते ही मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने पूजन कर बांध के कार्य को युद्धस्तर पर शुरु करवा दिया है। मानसून के बाद ये कार्य तेजी पकडेगा
नर्मदा बचाओ आंदोलन के आरोप
नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर तहलका से कहती हैं कि सरदार सरोवर परियोजना में विस्थापितों की पूरी तरह अनदेखी की गई है। गुजरात सरकार ने अभी तक नहरों का काम ही पूरा नहीं किया है, फिर उसे और केंद्र सरकार को सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की जल्दी क्यों है। ये समझ नहीं आता। पिछले 30 सालों में नहरों का काम 30 फीसदी भी पूरा नहीं हो पाया है। बांध की ऊंचाई बढ़ने से गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र को इसका तत्काल कोई लाभ नहीं मिलेगा। इन इलाकों में सिंचाई के लिए पानी तब ही मिल पाएगा, जब नहरों का काम पूरा होगा। पाटकर आगे बताती हैं कि सबसे गौर करने वाली बात ये भी है कि किसान गुजरात सरकार को अपनी जमीन तक नहीं देना चाहते, तो फिर नहरें बनेंगी कहां पर। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि जहां तक पुर्नवास हुआ हो, वहीं तक काम को आगे बढ़ाया जाना है, लेकिन किसी भी प्रभावित प्रदेश में पुनर्वास हुआ ही नहीं है तो फिर बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाना न्यायालय की अवमानना के तहत आता है। आप सोचिए कि योजना आयोग ने 2012 में परियोजना की अनुमानित लागत 70 हजार करोड़ बताई थी। पाटकर कहती हैं कि 63 हजार करोड़ इसपर खर्च हो चुके हैं और ये खर्च 90 हजार करोड़ तक जाएगा। हमनें परियोजना से जुड़े तथ्यों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भी लिखा है। ये लाखों लोगों के जीवन का प्रश्न है। इस पर सरकार को जवाब देना ही होगा। जैसे ही गेट लगाने की कार्रवाई शुरु होगी, वैसे वैसे बैक वॉटर के कारण पानी का स्तर बढ़ेगा। इसके परिणामस्वरूप अभी तक जो बस्तियां डूब क्षेत्र में चिन्हित हुई हैं। वहां पानी भर जाएगा। बारिश में ये स्थिति और भी ज्यादा चिंताजनक होगी।
दिग्विजय सिंह के आरोप
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह तहलका से कहते हैं कि सरदार सरोवर की ऊंचाई बढ़ाने का निर्णय चौंकाने वाला है। मध्यप्रदेश के लाखों लोग डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। उनका पुनर्वास अभी तक नहीं हो पाया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि जब तक पुनर्वास ना हो, हाईट ना बढ़ाई जाए। दूसरी बात ये भी है कि सामाजिक न्याय मंत्रालय का जिम्मा पुनर्वास की मॉनिटरिंग का है। उसे बयान जारी कर बताना चाहिए कि कहां कितना पुनर्वास कर दिया गया है। सवाल केवल विस्थापितों को मुआवजा देने भर का नहीं है। उन्हें जमीन के बदले जमीन दी जानी है। यदि मध्यप्रदेश सरकार के पास इतनी जमीन नहीं है कि विस्थापितों को दी जा सके, तो उन्हें जमीन खरीदने के लिए अतिरिक्त धन दिया जाना चाहिए। बांध की ऊंचाई बढ़ने की खबर आने के साथ ही दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी ट्विट कर जबाव मांगा था। दिग्विजय ने ट्विटर पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि इस मुद्दे पर मध्यप्रदेश सरकार की चुप्पी ज्यादा चौंकाती है। क्या मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री इस पर प्रतिक्रिया जाहिर करेंगे?

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सरदार पटेल की प्रतिमा से शुरु हो चुकी थी भूमिका
विशेषज्ञों की मानें तो लोकसभा चुनाव के ठीक पहले सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा की स्थापना को लेकर पूरे देश मे रन फॉर यूनिटी जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। तभी इसे मोदी की भविष्य की राजनीति से जोड़कर देखा जाने लगा था। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि प्रतिमा का एक उद्देश्य सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की अपनी पुरानी मांग को मजबूत करना भी था। सरदार सरोवर बांध को बल्लभ भाई पटेल का सपना बताकर पूरे देश में एक माहौल बनाया जा रहा था। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गठित सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट ने परियोजना के बारे में अपनी जो वेबसाइट पर जो अधिकारिक जानकारी मुहैया कराई है, उसके मुताबिक यह मूर्ति तकनीकी तौर पर एक 182 मीटर (597 फुट) ऊंची इमारत होगी। इसे स्थापित करने में 2500 करोड़ की अनुमानित लागत आएगी। जिसके अंदर से सरदार सरोवर का विस्तृत नजारा देखा जा सकेगा। अमेरिका की टर्नर कंस्ट्रक्शन कंपनी इसका निर्माण कर रही है। वहीं मीन हार्ट्ज और माइकल ग्रेव्ज एंड एसोसिएट्स डिजाइन व आर्किटेक्ट फर्म है। इस प्रतिमा को एकता की प्रतिमा कहा गया है। नरेंद्र मोदी स्टेच्यू ऑफ यूनिटी की स्थापना के साथ ही सरदार सरोवर बांध से भरूच के समुद्री तट तक नर्मदा के दोनों किनारों पर कैनाल टूरिज्म के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पर्यटन स्थल विकसित करना चाहते हैं।
मध्यप्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया कहते हैं कि असल में नरेंद्र मोदी सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने के लिए सरदार पटेल के व्यक्तित्व का दोहन कर रहे थे। उन्होंने एक तीर से दो निशाने साधे हैं, पहला तो गुजरात की मांग पूरी करने का, दूसरा वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक कद की भी छटांई करना चाहते हैं, ताकि वे अपने ही प्रदेश में कमजोर साबित हो जाएं

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260 से 455 फीट तक पहुंचने का सफर
-फरवरी 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने नर्मदा बांध की ऊंचाई 80 मीटर  (260 फीट) से 88 मीटर (289 फीट) करने की अनुमति दी।
-अक्टूबर 2000 में फिर से सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को ऊंचाई 90 मीटर (300) करने की अनुमति
-मई 2002 में नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने बांध की ऊंचाई 95 मीटर (312 फीट) करने के प्रस्ताव को अनुमोदित किया।
-मार्च 2004 में प्राधिकरण ने 110 मीटर (360 फीट) करने की अनुमति दी।
-मार्च 2006 में प्राधिकरण ने बांध की ऊंचाई 110.64 मीटर (363 फीट) से 121.92 (400 फीट) करने की अनुमति दी। प्राधिकरण द्वारा ये अनुमति वर्ष 2003 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बांध की ऊंचाई और बढ़ाने की अनुमति देने से इंकार करने के बाद दी गई थी।
-जून 2014 में प्राधिकरण ने ऊंचाई 455 फीट (138 मीटर) करने की अनुमति दी।

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नर्मदा घाटी से जुडे कुछ तथ्य
जुलाई 1993- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ ने सात वर्षों के अध्ययन के बाद नर्मदा घाटी में बनने वाले सबसे बड़े सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों के बारे में अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। इसमें कहा गया कि पुनर्वास एक गंभीर समस्या रही है। इस रिपोर्ट में ये सुझाव भी दिया गया कि बांध निर्माण का काम रोक दिया जाए और इस पर नए सिरे से विचार किया जाए।
अगस्त 1993- परियोजना के आकलन के लिए भारत सरकार ने योजना आयोग के सिंचाई मामलों के सलाहकार के नेतृत्व में एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया।
दिसंबर 1993- केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि सरदार सरोवर परियोजना ने पर्यावरण संबंधी नियमों का पालन नहीं किया है।
जनवरी 1994- भारी विरोध को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने परियोजना का काम रोकने की घोषणा की।
मार्च 1994- मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस पत्र में कहा कि राज्य सरकार के पास इतनी बड़ी संख्या में लोगों के पुनर्वास के साधन नहीं हैं।
अप्रैल 1994- विश्व बैंक ने अपनी परियोजनाओं की वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि सरदार सरोवर परियोजना में पुनर्वास का काम ठीक से नहीं हो रहा है।
जुलाई 1994- केंद्र सरकार की पांच सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी लेकिन अदालत के आदेश के कारण इसे जारी नहीं किया जा सका। इसी महीने में कई पुनर्वास केंद्रों में प्रदूषित पानी पीने से दस लोगों की मौत हुई।
नवंबर-दिसंबर 1994- बांध बनाने के काम दोबारा शुरू करने के विरोध में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भोपाल में धरना देना शुरू किया।
दिसंबर 1994- मध्य प्रदेश सरकार ने विधानसभा के सदस्यों की एक समिति बनाई जिसने पुनर्वास के काम का जायज़ा लेने के बाद कहा कि भारी गड़बड़ियां हुई हैं।
जनवरी 1995- सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि पांच सदस्यों वाली सरकारी समिति की रिपोर्ट को जारी किया जाए. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने बांध की उपयुक्त ऊंचाई तय करने के लिए अध्ययन के आदेश दिए।
मार्च 1995- विश्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में स्वीकार किया कि सरदार सरोवर परियोजना गंभीर समस्याओं में घिरी है।
जून 1995- गुजरात सरकार ने एक नर्मदा नदी पर एक नई विशाल परियोजना-कल्पसर शुरू करने की घोषणा की।
नवंबर 1995- सुप्रीम कोर्ट ने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की अनुमति दी।
1996- उचित पुनर्वास और ज़मीन देने की मांग को लेकर मेधा पाटकर के नेतृत्व में अलग-अलग बांध स्थलों पर धरना और प्रदर्शन जारी रहा।
अप्रैल 1997- महेश्वर परियोजना के विस्थापितों ने मंडलेश्वर में एक जुलूस निकाला जिसमें ढाई हज़ार लोग शामिल हुए। इन लोगों ने सरकार और बांध बनाने वाली कंपनी एस कुमार्स की पुनर्वास योजनाओं पर सवाल उठाए।
अक्तूबर 1997- बांध बनाने वालों ने अपना काम तेज़ किया जबकि विरोध जारी रहा।
जनवरी 1998- सरकार ने महेश्वर और उससे जुड़ी परियोजनाओं की समीक्षा की घोषणा की और काम रोका गया।
अप्रैल 1998- दोबारा बांध का काम शुरू हुआ, स्थानीय लोगों ने निषेधाज्ञा को तोड़कर बांधस्थल पर प्रदर्शन किया, पुलिस ने लाठियां चलाईं और आंसू गैस के गोले छोड़े।
मई-जुलाई 1998- लोगों ने जगह-जगह पर नाकाबंदी करके निर्माण सामग्री को बांधस्थल तक पहुंचने से रोका।
नवंबर 1998- बाबा आमटे के नेतृत्व में एक विशाल जनसभा हुई और अप्रैल 1999 तक ये सिलसिला जारी रहा।
दिसंबर 1999- दिल्ली में एक विशाल सभा हुई जिसमें नर्मदा घाटी के हज़ारों विस्थापितों ने हिस्सा लिया।
जून 2014-बांध की आखिरी ऊंचाई बढ़ाने की घोषणा होते ही मध्यप्रदेश के बडवानी, अंजड, कुक्षी, मनावर, धरमपुरी रैलियां निकालकर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है।


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