प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस लोक निर्माण विभाग के बल पर
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़कों का जाल फैलाना चाहते हैं, उसी
पीडब्ल्यूडी विभाग को भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक ने कटघरे में खड़ा कर दिया
है। कैग की रिपोर्ट में विभाग पर नक्सल प्रभावित इलाकों में अधूरे कामों के एवज
में ठेकेदारों को करोड़ों का भुगतान कर उपकृत करने पर सवाल उठाए गए हैं।
बीते सप्ताह के शनिवार को रायपुर के लोग घरों से बाहर निकले
तो चौंक पड़े। शहर की सड़कों पर कुछ युवा सड़कों पर धान की रोपाई कर रहे थे। धान
के कटोरे के रूप में मशहूर इस प्रदेश में खेतों में धान की फसलें लहलहाती ही हैं,
लेकिन सड़कों पर धान की रोपाई लोगों के लिए कौतूहल का विषय था, लेकिन थोड़ी ही देर
में सारा सस्पैंस खत्म हो गया। जब लोगों ने जाना कि युवक कांग्रेस कैग की रिपोर्ट
में उजागर हुई लोक निर्माण विभाग के भ्रष्टाचार का विरोध करने के लिए सड़कों के
गड्ढों में धान की बुवाई करने निकली है। दरअसल भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक
ने विधानसभा में अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि प्रदेश के लोक निर्माण विभाग
अधूरे कामों के एवज में ठेकेदारों को करोड़ों रुपए का भुगतान कर दिया।
कैग ने लोक निर्माण विभाग की कई गड़बड़ियां पकड़ी हैं। नक्सल
प्रभावित जिले कोंडागांव में काम छह साल की देरी के बाद भी ठेकेदारों से 2.94
करोड़ का जुर्माना नहीं वसूला गया। बल्कि उन्हें मूल लागत में 49.02 लाख की मूल्य
वृद्धि कर भुगतान भी कर दिया गया। इसी तरह नांदघाट-चंद्रखुरी सड़क निर्माण में
ठेकेदार ने खुले मिलने वाले बल्क डामर का उपयोग किया, जबकि उसे पैक्ड डामर का
उपयोग करना था। विभाग को ठेकेदार से 10.66 लाख का डाम का अंतर वसूलना था, लेकिन
ऐसा नहीं किया गया। कैग के मुताबिक कवर्धा-रेगाखार सड़क निर्माण का भुगतान भी
संदिग्ध है। विभाग ने ठेकेदार को इसके लिए 18.07 लाख रुपए का भुगतान बगैर काम
करवाए ही कर दिया। विभाग उक्त स्थान पर काम पूर्ण दिखा रहा है, जबकि वहां कोई सड़क
बनाई ही नहीं गई। हद तो तब हो गई जब विभाग ने शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज को
स्टेडियम निर्माण के लिए कंसल्टेंट के रूप में नियुक्त किया। इस काम के लिए कॉलेज
को केवल पांच लाख 40 हजार रुपए का भुगतान किया जाना था, लेकिन अधिकारियों ने इसके
लिए 30 लाख का भुगतान किया, जबकि इसका कोई ठोस कारण नहीं बताया गया। सबसे ज्यादा
धांधली इंदिरा आवास योजना में की गई। राज्य सरकार ने आवासों पर एक प्रतीक चिन्ह
बनाने के लिए 30 रुपए की दर निर्धारित की थी। लेकिन जगदलपुर जिले में ठेकेदार को
इसके लिए प्रति प्रतीक चिन्ह 270 रुपए का भुगतान किया गया। कांकेर-भानुप्रतापुप-संबलपुर
सड़क को नियमानुसार 5.5 मीटर चौड़ा बनाना था, लेकिन इसे सात मीटर चौड़ा कर दिया
गया। इस पर 1.40 करोड़ रुपए गैर जरूरी खर्च किए गए।
महालेखाकार वीके मोहन्ती का कहना है कि “योजनाओं
का उचित क्रियान्वयन एवं प्रबंधन नहीं होने से सरकारी धन का दुरुपयोग हुआ है एवं
सरकार को करोड़ों रुपए की क्षति हुई है। कृषि क्षेत्र में राष्ट्रीय कृषि विकास
योजनाओं में निधियों को विलम्ब से जारी किया गया एवं उसका उपयोग कुशलता पूर्वक
नहीं किया गया, जिसके कारण प्रदेश सरकार को
केन्द्र ने आगामी निधियां जारी नहीं की गई। इंदिरा आवास योजना का लक्ष्य विभाग ने
प्राप्त कर लिया, लेकिन
हितग्राहियों के चयन एवं प्रतीक्षा सूची बनाने में अनियमितता हुई है। राष्ट्रीय
ई-गवर्नेन्स योजना के तहत सरकार आईटी जैसी प्रमुख आधारभूत ढांचा एवं परियोजना
परिचालन को स्थापित करने में विफल साबित हुई है। सेंट्रल रोड फण्ड के तहत सड़कों
की प्राथमिकता का निर्धारण नहीं होने के कारण स्वीकृतियों के दोहरीकरण में करोड़ों
रुपए की क्षति हुई”। मोहंती ये भी कहते हैं कि 9 अलग-अलग विभागों ने
हमे कई गड़बड़ियों पर जवाब ही नहीं दिए।
महालेखाकार ने अपने प्रतिवेदन में इस बात का उल्लेख किया है
कि उसने सरकारी विभागों में कई बड़ी गड़बडिय़ां पाईं हैं। हल्दीमुण्डा व्यपवर्तन
योजना के निर्माण में अधिक भुगतान और फर्जी तरीके से लाभ देने के मामले पाए गए
हैं। ठेकेदार की लागत पर क्षतिग्रस्त कार्य का सुधार न किए जाने के कारण सराकर का 1.12 करोड़ रुपया पानी में चला गया। बदले में ठेकेदार पर कोई
कार्रवाई भी नहीं की गई। वहीं विभाग की डीएनए जांच प्रयोगशाला के लिए विभिन्न
मशीनरी और उपकरण खरीदने के बाद प्रशिक्षित कर्मचारी ना होने के कारण भी 1.48 करोड़
की खरीदी बेकार साबित हुई। विभाग पर आरोप हैं कि कमीशनखोरी के चक्कर में बगैर
प्रशिक्षित कर्मियों के ही मशीनरी की खरीदी की जल्दबाजी की गई। इसी तरह एक अन्य
मामले में जल्दबाजी दिखाते हुए विभाग ने बगैर भूमि हासिल किए ही, सिंचाई को नियमित
करने के नाम 92.08 लाख रुपए
खर्च कर डाले, जिसका कोई परीणाम नहीं निकला।
सामाजिक कार्यकर्ता गौतम बंदोपाध्याय कहते हैं कि “सरकार की
इच्छाशक्ति ही नहीं है कि भ्रष्टाचार रोका जाए। राज्य सरकार हमेशा भ्रष्टाचार पर
जीरो टालरेंस की बात करती है, लेकिन कभी इसे अपने व्यवहार में नहीं लाती। कैग की
रिपोर्ट को छोडिए, प्रदेश के किसी भी कोने में चले जाइए, सड़के, पुल, पुलिया देखकर
ही सहज अंदाजा हो जाएगा कि विकास कागजों पर हो रहा है या जमीन पर”।
जब एक और नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में सड़कों का जाल बिछाने
की बात हो रही है, वहीं दूसरी ओर भारतीय निंयत्रक व महालेखा परीक्षक ने प्रदेश में
सड़क परियोजनाओं में भारी लापरवाही होने की बात कही है। कैग की मानें तो सड़कों के
चयन, नियोजन, कोष प्रबंधन और परियोजनाओं के क्रियान्वयन प्रभावी ढंग से किया ही
नहीं गया। रिपोर्ट के अनुसार यह पाया गया कि “अपर्याप्त नियोजन और सड़कों की प्राथमिकता तय नहीं किए जाने
के कारण ही सारे दिक्कतें पैदा हुईं। पीडब्ल्यूडी ने सड़क कार्यों के निर्माण के
पहले विस्तृत सर्वेक्षण व जांच का काम किया ही नहीं। हीला हवाली यहीं खत्म नहीं हो
जाती, पीडब्ल्यूडी ने केंद्रीय सड़क फंड (सीआरएफ) और न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (एमएनपी) कोष का
इस्तेमाल दूसरे कार्यों के लिए किया और सड़कों के निर्माण में कोई रूचि ही नहीं
दिखाई। गलत काम करन वाले ठेकेदारों से जुर्माने तक नहीं वसूल किया गया।”
इस विषय पर जब तहलका ने लोकनिर्माण विभाग के अफसरों से बात
करनी चाही तो उनका कोई जवाब नहीं आया। जबकि कैग की रिपोर्ट आने के एक सप्ताह पहले ही राज्य के मुख्य
सचिव विवेक ढांड ने सूबे के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में केन्द्र प्रवर्तित सड़क
निर्माण योजना के तहत स्वीकृत और निर्माणाधीन सड़कों तथा पुल-पुलियों से संबंधित
कार्यो की विस्तृत समीक्षा की थी। बैठक में मुख्य सचिव ने ये भी कहा था कि राज्य
के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़कों का बेहतर नेटवर्क तैयार कर इस समस्या पर
नियंत्रण किया जा सकता है। राज्य सरकार ने अपनी इसी रणनीति के तहत छत्तीसगढ़ में दो हजार 897 करोड़
रुपए की लागत से 53 सड़कें स्वीकृत की हैं, जिनकी लंबाई दो
हजार 21 किलोमीटर है। राजधानी रायपुर से जगदलपुर होते हुए कोंटा तक नेशनल हाइवे बनाने का काम भी
जल्द शुरु होना है। अब कैग की रिपोर्ट आने के बाद राज्य सरकार से लेकर मुख्य सचिव,
लोक निर्माण विभाग के अफसरों ने चुप्पी साध ली है। इससे यह संदेह गहरा गया है कि
क्या वाकई नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़कों का जाल बिछ पाएगा, या यह योजना केवल कागजी
खानापूर्ति कर पूरी कर ली जाएगी। मगर बड़ा सवाल ये है कि छत्तीसगढ़ का पीडब्ल्यूडी
अपने ढर्रे पर चलता रहा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस सपने का क्या होगा,
जिसमें उन्होंने विकास के बल पर नक्सलवाद का समूल सफाया करने का दृश्य देखा है।
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