शनिवार, 23 अगस्त 2014

डीन की आत्म “हत्या”

जबलपुर के नेताजी सुभाष मेडिकल कॉलेज के प्रभारी डीन डॉ डीके साकल्ये की मौत को पुलिस आत्महत्या का रंग देने की कोशिश कर रही है। कहीं इसके तार मध्यप्रदेश के मप्र व्यापमं घोटाला से तो नहीं जुड़े हैं।
मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार के संकट कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। व्यवसायिक परीक्षा मंडल की भर्ती परीक्षाओं में हुई गड़बड़ियों के कारण पहले ही मुख्यमंत्री कांग्रेस के निशाने पर हैं। अब व्यापमं घोटाले की जांच कर रहे जबलपुर मेडिकल कॉलेज के प्रभारी डीन डॉ डीके साकल्ये की कथित आत्महत्या के मामले ने फिर सरकार की मुसीबतें बढ़ानी शुरु कर दी हैं। 4 जून को सुबह 7.30 बजे डॉ साकल्ये अपने घर के बरामदे में जले हुए पाए गए। पुलिस इसे आत्महत्या बता रही है, जबकि जबलपुर के चिकित्सक इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहे हैं कि कोई फोरेंसिक एक्सपर्ट आत्महत्या के लिए इतनी दर्दनाक मौत चुन सकता है। अब कांग्रेस, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, जूनियर डाक्टर्स एसोसिएशन समेत कई चिकित्सकों ने राज्य सरकार से मामले की सीबीआई जांच करवाने की मांग की है। राज्य सरकार की तरफ से गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने इस हफ्ते विधानसभा में मामले की सीबीआई जांच करवाने का ऐलान भी कर दिया है।
जबलपुर के नेताजी सुभाचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के प्रभारी डीन डॉ डी के साकल्ये ने 4 जून को सुबह लगभग 7.30 बजे खुद को आग लगाकर आत्महत्या कर ली। ये बात जबलपुर पुलिस कह रही है। जबकि डॉ साकल्ये की इस कथित आत्महत्या के बाद मप्र की राजनीति जबलपुर से लेकर भोपाल तक गरमा गई है। डीन साकल्ये जबलपुर मेडिकल कॉलेज के परिसर में बने क्वार्टर में ही रहते थे। घटना के दिन उनकी पत्नी भक्ति साकल्ये क्वाटर के बाहर मॉर्निंग वॉक कर रही थीं। कुछ देर बाद वे जब अंदर गई तो डॉ साकल्ये को जला हुआ पाया। पुलिस इसे आत्महत्या बता रही है, जबकि मौके से कोई सुसाइट नोट बरामद नहीं किया गया। पोस्टमार्टम के बाद बिसरा भी सुरक्षित नहीं रखा गया। पुलिस को छोड़कर कोई यह मानने को तैयार नहीं है कि ये आत्महत्या है। 
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. अरविंद जैन तहलका को बताते हैं कि पूरा मामला बेहद संदेहास्पद है। वे कई संदेह के कई कारण गिनाते हैं। डॉ जैन कहते हैं कि कोई भी फारेसिंक एक्सपर्ट आत्मदाह जैसी कठिन और दर्दनाक मौत नहीं चुन सकता, क्योंकि इसमें असहनीय पीड़ा तो होती ही है, साथ ही मौत की कोई निश्चित गारंटी भी नहीं होती। दूसरी बात ये कि केवल 20 मिनट के भीतर ही कोई 98 फीसदी जलकर मर नहीं जाता। (डॉ साकल्ये की पत्नी के मुताबिक घटना के 20 मिनट पहले तक अपने पति के साथ ही थीं)। डॉ कहते हैं कि उन्होंने देखा कि डॉ साकल्ये deep burn थे ही नहीं, उनकी पीठ तो जली ही नहीं थी। चमड़ी को देखकर भी नहीं लग रहा था कि वे 98 फीसदी जले हैं। इस बात पर यकीन ही नहीं हो रहा है। डॉ जैन कहते हैं कि घटनास्थल पर मौजूद साक्ष्य किसी और ही दिशा में इशारा कर रहे हैं। जहां डॉ साकल्ये जले, वहां फर्श पर कोई निशान नहीं पड़ा, ना तो मिट्टी के तेल का, ना ही जलने का। ऐसे कैसे हो सकता है। उनका बिसरा भी संरक्षित नहीं किया गया। पुलिस ने पूरे मामले को आनन फानन में निपटा दिया। मौके से फिंगर प्रिंट नहीं लिए गए। उनकी त्वचा को मांस के टुकड़े के साथ रखा जाना था, ताकि उसका रासायनिक विश्लेषण हो सके। लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया, ये तो अपनेआप में संदिग्ध बातें हैं। डॉ जैन आरोप भी लगाते हैं कि पुलिस खुले दिमाग से जांच नहीं कर रही है। कहीं कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है। मैने कई एक्सपर्ट से बात की है, 20 मिनट के भीतर कोई आग लगाकर मर भी जाता है, उसकी बॉडी ठंडी भी हो जाती है। ऐसा कैसे हो सकता है
वहीं जबलपुर पुलिस अधीक्षक हरिनारायणचारी मिश्र ने तहलका से कहते हैं कि पोस्टमार्टम के बाद ये स्पष्ट हो चुका है कि ये आत्महत्या का ही मामला है। हालांकि कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं किया गया है। आत्महत्या का कोई स्पष्ट कारण भी सामने नहीं आ पाया है। लेकिन पीएम के बाद ये तय है कि ये हत्या नहीं है।हम उनसे जुड़े लोगों से पूछताछ कर रहे हैं, ताकि आत्महत्या की वजह सामने आ सके। जहां तक विसरा सुरक्षित रखने का प्रश्न है तो पुलिस केवल अनुरोध ही कर सकती है। विसरा रखना है या नहीं, ये पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर और फोरेंसिक एक्सपर्ट ही तय करते हैं। हमने पांच अनुभवी और वरिष्ठ चिकित्सकों की टीम से पीएम करवाया है।
मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे का कहना है कि डॉ डीके साकल्ये व्यापमं के तहत हुए पीएमटी फर्जीवाड़े की जांच कर रहे थे। पिछले एक साल में उन्होंने कई फर्जी विद्यार्थियों को बाहर का रास्ता दिखाया था। वे व्यापमं फर्जीवाड़े के टेक्नीकल एवीडेंस थे, उनकी गवाही महत्वपूर्ण थी
डॉ डीके साकल्ये हरदा (मध्यप्रदेश का एक जिला) के रहने वाले थे। उनकी पत्नि भक्ति घरेलू महिला हैं और उनका एक पुत्र रंजन बंगलुरू में इंजीनियर है। रंजन का कहना है कि उसके पिता आत्महत्या का रास्ता चुनने वाले इंसान नहीं थे। वैसे भी वे आत्महत्या क्यों करेंगे, इसकी कोई वजह भी तो होनी चाहिए। उन्हें अक्टूबर 2013 में ही मेडिकल कॉलेज का प्रभारी डीन बनाया गया था।
डॉ साकल्ये की मौत की सीबीआई जांच की मांग कर रहे चिकित्सकों ने जबलपुर कमिश्नर दीपक खाण्डेकर को राज्य सरकार के नाम ज्ञापन सौंपकर चेतावनी दी है कि यदि शासन अगले 72 घंटे में सीबीआई जांच की घोषणा नहीं करता तो सांकेतिक हड़ताल और अन्य वैकल्पिक निर्णय लेने मजबूर हो जाएंगे। चिकित्सकों की चेतावनी के आगे झुकते हुए फिलहाल तो राज्य सरकार ने मामला सीबीआई को सौंपने का ऐलान कर दिया है। लेकिन डॉ साकल्ले की मौत की सच्चाई जानने का इंतजार सबको जरूर रहेगा, भले ही इसमें लंबा वक्त क्यों ना लग जाए।
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ये हैं अनसुलझे प्रश्न
-डॉ साकल्ये फोरंसिक साइंस के विभागाध्यक्ष भी थे। वे आराम से मौत को गले लगाने के कई तरीके जानते थे। फारेंसिंक साइंस लैब में ही सौ से अधिक प्रकार के जहर रखे होते हैं। उनमें आर्सेनिक भी होता है, जो किसी भी मनुष्य की जान केवल 30 सेकंड में ले सकता है। इसके बाद भी उन्होंने केरोसिन खुद पर डालकर दर्दनाक मौत क्यों चुनी?
-इस घटनाक्रम को कांग्रेस व्यापमं से जोड़कर देख रही है। वे व्यापमं घोटाले की जांच कमेटी के सदस्य भी थे। डॉ साकल्ये के प्रभारी डीन बनते ही अभी तक कुल 93 मुन्नाभाईयों को कॉलेज से बाहर निकाला गया। इस दौरान भी उन पर दबाव काफी था।
-उनकी पत्नि भक्ति के अनुसार वे 20 दिनों से छुट्टी पर चल रहे थे। किसी दबाव के कारण डिप्रेशन में थे।

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जबलपुर के चिकित्सकों ने कमिश्नर दीपक खांडेकर को जो पत्र सौंपा है, उसमें ये बिंदु उल्लेखित हैं।
-डीन का पद कमिश्नर रैंक का होता है। इसके बाद भी डॉ साकल्ले की अंत्येष्टि में कोई पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी क्यों नहीं पहुंचा?
-व्यापमं घोटाला और अन्य घोटाले शासन के ही हैं,ऐसे में डॉ साकल्ये की मौत की निष्पक्ष जांच की उम्मीद कैसे करें। इसलिए मामले की CBI जांच हो।

-डॉक्टरों का कहना है कि उन्होंने अपने चिकित्सकीय जीवन में इस तरह का जलने का केस पहली बार देखा है। घटना स्थल पर मौजूद साक्ष्यों को सुरक्षित क्यों नहीं किया गया?

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