देश के सबसे बड़े एल्युमिनियम प्लांट कहे जाने वाले कोरबा स्थित भारत एल्युमिनियम
कंपनी (बालको) में श्रम कानूनों का धड़ल्ले से उल्लघंन हो रहा है। अपने हक से
वंचित होने पर 6000 ठेका श्रमिक बालको से नाराज़ होकर हड़ताल पर चल रहे हैं।
श्रमिकों का आरोप है कि कंपनी प्रबंधन कारखाना अधिनियम के तहत उनका रिकॉर्ड नहीं
रख रहा है।
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड यानि
बालको ने 2003 से 2008 के बीच नए संयंत्रों की स्थापना और पुराने के विस्तार की
अनुमति ली थी। नए संयंत्रों में 540 मेगावॉट का संयंत्र भी शामिल था। संयंत्र तो
तय सीमा में पूरा हो गया, लेकिन इसमें काम करने वाले श्रमिकों के हितों का
नियमानुसार ध्यान नहीं रखा जा रहा है। यही कारण है श्रमिक काम छोड़कर आंदोलन की
राह पर उतर आए हैं। दरअसल भारत सरकार ने कारखाना अधिनियम 1970 में संशोधन कर
श्रमिकों के हितों के लिए प्रावधान किया था। जिसके मुताबिक कंपनी प्रबंधन को ठेका
श्रमिकों का भी रिकॉर्ड रखना अनिवार्य है। जिस प्रारूप में श्रमिकों का रिकार्ड
रखा जाता है, उस प्रारूप को फार्म 14 कहा जाता है। लेकिन बालको के श्रमिकों का
आरोप है कि उनका फॉर्म 14 नहीं भरा जा रहा है। जबकि नियमानुसार बगैर फॉर्म 14 भरे
कंपनी प्रबंधन श्रमिकों को परिसर में प्रवेश नहीं दे सकती। श्रमिकों का आरोप है कि
ऐसा उन्हें उनके हक से वंचित करने के लिए किया जा रहा है। बालको के मजदूर इसलिए भी
डरे हुए हैं क्योंकि आज से ठीक साढ़े चार साल पहले 23 सिंतबर 2009 की शाम बालको
संयंत्र परिसर में चिमनी हादसा हुआ था। 12 सौ मेगावॉट पॉवर प्लांट की निर्माणाधीन
दो ऊंची चिमनियों में से एक 240 मीटर ऊंची चिमनी भरभरा कर गिर गई थी। इस घटना में
40 मजदूरों की मौत हुई थी। उस वक्त भी बालको प्रबंधन पर आरोप लगे थे कि मजदूरों की
मौत का आंकड़ा 40 से कहीं ज्यादा है। सरकार ने न्यायाधीश संदीप बख्शी की अध्यक्षता
में एकल जांच आयोग गठित किया था। जिसकी रिपोर्ट में माना गया था कि दुर्घटना में
बालको प्रबंधन की लापरवाही की वजह से हुई है।
छत्तीसगढ़ संविदा एवं ग्रामीण मजदूर संघ (इंटक) के महासचिव संतोष सिंह
का आरोप है कि “हम हड़ताल पर नहीं है, बल्कि बालको प्रबंधन ही हमें काम नहीं करने दे
रहा है। हमारी मांग केवल इतनी है कि हमें हमारा फॉर्म 14 दिखाया जाए। लेकिन जब प्रबंधन
ने उसे भरा ही नहीं है तो हमें दिखाएगा कहां से। यही कारण है कि जब सहायक
श्रमायुक्त ने बालको प्रबंधन को बुलाया तो वहां कोई अफसर नहीं पहुंचा”।
अपने अधिकारों को
लेकर 19 अप्रैल को छत्तीसगढ़ ग्रामीण
संविदा एवं मजदूर संघ (इंटक) ने प्रबंधन को पत्र लिखा और चेतावनी दी कि 7 दिनों के भीतर उनकी मांगे पूरी नहीं होने पर काम बंद आंदोलन किया जाएगा।
इसके बाद भी प्रबंधन के कान में जूं तक नहीं रेंगी। अंततः श्रमिकों ने हड़ताल का
रास्ता अपना लिया। प्रतिदिन पहली पाली में लगभग 5 हजार
श्रमिक कार्य पर पहुंचते थे, वे नहीं पहुंचे। इसके साथ ही
अन्य पालियों में आने वाले मजदूर भी काम पर नहीं आए। बालको संयंत्र में लगभग 6
हजार श्रमिकों के काम पर नहीं पहुंचने से संयंत्र के भीतर स्थिति
असामान्य हो गई। श्रमिकों की अनुपस्थिति से कामकाज प्रभावित न हो, इसे लेकर इंजीनियरों को सामने आना पड़ा। उन्होंने प्लांट 1, 2 के साथ-साथ 540 मेगावाट का कमान अपने हाथों में लेना
पड़ा है। जब तहलका ने बालको प्रबंधन से इसका कारण जानना चाहा तो कोई जबाव नहीं मिल
पाया। बालको के सीईओ रमेश नायर का कहना था कि मुझे तो इस बारे में कोई जानकारी
नहीं है। कारखाना प्रबंधक आर के धनचोलिया ने सवाल सुनते ही फोन काट दिया और फिर ना
तो फोन उठाया ना ही एसएमएस का जबाव दिया। जबकि बालको के जनसंपर्क अधिकारी विनोद
श्रीवास्तव का कहना था कि “बालको अपने श्रमिकों को सबसे
बेहतर सुविधाएं और मेहनताना दे रहा है”। श्रीवास्तव बेहद
गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाते हुए कहते हैं कि “छत्तीसगढ़ के
किसी भी संस्थान में फॉर्म 14 नहीं भरवाया जा रहा है। इसलिए हमने भी नहीं भरवाया”।
छत्तीसगढ़ संविदा एवं ग्रामीण मजदूर संघ (इंटक) के संजीव शर्मा तहलका
को बताते हैं कि “ ये कोई नई बात नहीं है। पिछले कई सालों से बालको प्रबंधन ने ऐसा ही
रवैया अपना रखा है। 1976 में कारखाना अधिनियम में एक संशोधन के जरिए श्रमिकों
को ये सहूलियत दी गई थी कि प्रबंधन प्रत्येक मजदूर का रिकार्ड रखे ताकि हादसा होने
की स्थिति में मजदूरों को मुआवजा मिलने में कोई परेशानी ना हो। वैसे भी कारखाने
में कौन काम कर रहा है, इसकी जानकारी तो प्रबंधन को रखनी ही चाहिए। कानून में भी
इसका प्रावधान है। लेकिन बालको प्रबंधन जानबूझकर श्रम कानूनों की अनदेखी कर रहा
है। शर्मा आरोप लगाते हैं कि बालको का 540 मेगावॉट का पूरा प्लांट ही ठेका श्रमिकों
के कारण चल रहा है। इसमें एक भी स्थाई कर्मचारी कार्यरत नहीं है”।
इस बारे में कोरबा के सहायक श्रम आयुक्त सत्यप्रकाश वर्मा तहलका से
कहते हैं, “मैने बालको प्रबंधन को बैठक के लिए बुलाया था। लेकिन बालको के अधिकारी
बैठक में उपस्थित नहीं हुए। श्रमिकों का आरोप है कि कारखाना अधिनियम की धारा 62 के
तहत उनका रिकॉर्ड नहीं रखा जा रहा है। यही जानने के लिए बालको प्रबंधन को बुलाया
गया था। इस धारा के तहत नियम है कि कारखाना प्रबंधन को फॉर्म 14 भरना होता है,
जिसमें कर्मचारी या श्रमिकों के नाम को रिकार्ड में रखना होता है। बगैर फॉर्म 14
में बगैर नाम भरे श्रमिकों कारखाने के भीतर नहीं जा सकता। यदि कंपनी प्रबंधन ऐसा
नहीं करता है तो कारखाना अधिनियम की धारा 92 के तहत ये दंडनीय अपराध है”।
बालको और विवाद का लंबा नाता रहा है। कभी सरकारी जमीन पर अतिक्रमण को
लेकर तो कभी हादसों के कारण बालको चर्चा में बना रहता है। अब एक बार फिर मजदूरों
के हितों से खिलवाड़ करने के कारण भारत एल्युमिनियम कंपनी ने सबका ध्यान खींचा है।
वो भी उस वक्त, जब बालको सैंकड़ों एकड़ वनभूमि पर अवैध कब्जे का आरोप झेल रहा है
और कांग्रेस लगातार हर विधानसभा सत्र में कंपनी पर कार्रवाई की मांग कर रही है।
बॉक्स
क्या है फार्म 14
संयंत्रों में काम करने
वाले श्रमिकों के लिए कारखाना अधिनियम 1970 की धारा 62 में विशेष
प्रावधान हैं। इसके तहत कारखाना प्रबंधन श्रमिकों का पूर्ण विवरण रजिस्टर में दर्ज
करेगा। कारखाना के भीतर काम करने वाले श्रमिक अपनी पूरी जानकारी इस रजिस्टर से
प्राप्त की जा सकेगी। इसे फार्म 14 के नाम से जाना जाता है।
इसके तहत श्रमिकों के लिए औद्योगिक एवं स्वास्थ्य सुरक्षा दिए जाने का प्रावधान है
। इसके लागू होने पर ठेका श्रमिकों को स्वास्थ्य संबंधी लाभ तो मिलेगा ही साथ ही
किसी अनहोनी की स्थिति में उनके परिजनों को भी नियम का लाभ मिल सकता है।
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