बस्तर, अतुलनीय बस्तर। माओवाद का जिक्र
छोड़ दें तो छत्तीसगढ़ का एक खूबसूरत भू-भाग है बस्तर। जिसे प्रकृति ने हजारों
नेमतें बख्शीं हैं। सुंदर हरेभरे वन, कल-कल करती नदियां, मनमोहक झरने, वन्यजीव,
जड़ी-बूटियां, अद्भुत संस्कृति और उससे भी बढ़कर आडंबररहित भोले-भाले वनवासी। तेजी
से भागती दुनिया से जैसे बिलकुल अलग-थलग, शांत, मद्धम और सुकूनदायक। अपने पोर-पोर
में आदिवासी संस्कृति को लपेटे हुए बस्तर को छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी कहना
अतिश्योक्ति नहीं होगी। 39114 वर्ग किलोमीटर में फैला यह जिला किसी वक्त केरल
राज्य और इजराइल-बेल्जियम जैसे देशों से भी बड़ा था। अब यह इलाका “बस्तर” समेत कुल सात जिलों (बस्तर, कांकेर, कोंडागांव, जगदलपुर, नारायणपुर, सुकमा,
दंतेवाड़ा) में विभाजित हो चुका है। जगदलपुर को बस्तर का मुख्यालय माना
जाता है। यहां गौंड, मारिया, मुरिया, ध्रुव व हलबा जाति की बहुलता है। उड़ीसा के
उद्गम स्थल से शुरु होकर दंतेवाड़ा तक आने वाली करीब 240 किलोमीटर लंबी इंद्रावती
बस्तरवासियों की आस्था और संस्कृति की प्रतीक है। चित्रकोट, तीरथगढ़ जलप्रपात,
कुटुमर गुफा, बस्तर महल, बारसूर का गणेश मंदिर, दंतेवाड़ा की दंतेश्वरीमाई तो
पर्यटकों को यहां आकर्षित करते ही हैं, लेकिन बस्तर की अचभिंत कर देने वाली
परंपराएं, रीति-रिवाज भी यहां लोगों का स्वागत करते नजर आते हैं।
बस्तर की कुछ परम्पराएं तो आपको एक रहस्यमय
संसार में पंहुचा देती हैं। वह अचंभित किए बगैर नहीं छोड़ती। वनवासियों के तौर
तरीके हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि चांद पर पहुंच चुकी इस दुनिया में और भी
बहुत कुछ है, जो सदियों पुराना है, अपने उसी मौलिक रूप में जीवित है। मिस्त्र के
पिरामिड़ तो पूरी दुनिया का ध्यान खींचते हैं, दुनिया के आठ आश्चर्य में शामिल
हैं। लेकिन बस्तर में भी कुछ कम अजूबे नहीं है। यहां भी एक ऐसी ही अनोखी परंपरा है,
जिसमें परिजन के मरने के बाद उसका स्मारक बनाया जाता है। भले ही वह मिस्त्र जैसा
भव्य न हो, लेकिन अनोखा जरूर होता है। इतना ही नहीं, कुछ-कुछ स्थानों पर लंबे अरसे
तक शुद्ध पानी भी भरकर रखा जाता है।
इस परंपरा को मृतक स्तंभ के नाम से जाना
जाता है। दक्षिण बस्तर में मारिया और मुरिया जनजाति में मृतक स्तंभ बनाए बनाने की
प्रथा अधिक प्रचलित है। स्थानीय भाषा में इन्हें “गुड़ी” कहा जाता है। प्राचीन काल में जनजातियों में पूर्वजों को जहां दफनाया जाता था वहां 6 से 7 फीट ऊंचा एक चौड़ा
तथा नुकीला पत्थर रख दिया जाता था। पत्थर दूर पहाड़ी से लाए जाते थे और इन्हें
लाने में गांव के अन्य लोग मदद करते थे। लेकिन अब बदलते समय के साथ इस परंपरा में
भी बदलाव हुए हैं। अब दफनाए गए स्थान पर क्रांकीट से भी सुंदर-सुंदर कलाकृतियां
बनाई जाने लगी हैं। इन कलाकृतियों में पारंपरिक चित्रों के साथ साथ आधुनिक यंत्रों
की नकली कृतियां भी शामिल हैं। किन्हीं-किन्हीं मृतक स्तंभों में देवी-देवताओं के
चित्रों के साथ-साथ मोटरगाड़ी तक के चित्र बनाए जाते हैं।
गोंड जनजाति के लोग भी मृतक स्तंभ बनाते
हैं, लेकिन इनकी खासियत यह है कि यह शवों को दफनाते नहीं जलाते हैं। मृतक स्तंभों
पर मृतक के संपूर्ण जीवन का वर्णन चित्रों के माध्यम से किया जाता है, जैसे वह
क्या पसंद करता था, उसके पास कितने पशु थे, उनकी खान-पान की रूचियां क्या थीं।
इतना ही नहीं इन स्तंभों से उसकी आर्थिक स्थिति का भी पता चलता है।
रायपुर में रहने वाले वरिष्ठ प्रेस
फोटोग्राफर विनय शर्मा बताते हैं कि कई बार मृतक की अंतिम इच्छा के मुताबिक भी
कब्र पर आकृतियां उकेरी जाती हैं। इनमें वे वस्तुएं भी शामिल होती हैं, जिनकी मृतक
के जीवित रहते उपभोग करने की इच्छा रही हो।
बहरहाल, छत्तीसगढ़ पर्यटन विभाग का स्लोगन
है “फुल ऑफ सरप्राइसेस”, बस्तर पहुंचते ही
यह स्लोगन सार्थक लगने लगता है। जहां कई सारे आश्चर्य सैलानियों का स्वागत करने के
लिए तैयार खड़े रहते हैं। तो इस बार यदि रहस्य और रोमांच की दुनिया की सैर करने का
इरादा हो, तो एक बार बस्तर के बारे में जरूर सोचिएगा। अरे डरिए नहीं, क्योंकि
बस्तर उतना भी खौफनाक नहीं, जितनी मीडिया में उसकी तस्वीर खींची जाती है, आप बगैर
किसी डर के बस्तर के कई सारे इलाकों की सुरक्षित और यादगार यात्रा कर सकते हैं।
विश्वास तो कीजिए।
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