सोमवार, 23 मार्च 2020

राज्यपाल अनुसुइया उइके ने कोण्डागांव जिले के ग्राम सल्फीपदर को गोद लेने की घोषणा


राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने आज जिला कोण्डागांव के ग्राम सल्फीपदर के आदिवासी समाज के प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की। इस दौरान राज्यपाल ने ग्राम सल्फीपदर को गोद लेने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि जल्द ही इस क्षेत्र का दौरा करेगी और वहां पर अन्य समस्याओं को निराकरण करने का प्रयास करेगी। उन्होंने कहा कि महिलाओं द्वारा ग्राम सल्फीपदर में वन संरक्षण का कार्य किया जा रहा है, जो वाकई सराहनीय है। वास्तव में जल जंगल जमीन पर आदिवासियों का अधिकार है। वे वनों के असली मालिक है। वे सदियों से वनों की रक्षा करते आएं है। उन्होंने कहा कि 5वीं अनुसूची के तहत ग्रामसभा को व्यापक अधिकार दिए गए है। उक्त किसानों की पानी के समस्या और काली मिर्च की खेती से संबंधित आवश्यकताओं का प्रस्ताव बनाकर ग्रामसभा के माध्यम से प्रशासन को प्रेषित करें। प्रशासन द्वारा उनकी अवश्य मदद की जाएगी।
सुश्री उइके ने कहा कि आदिवासी वनभूमियों का सदियों से उपयोग कर रहे है। प्रशासन द्वारा सामुदायिक वन अधिकार पट्टा प्रदान किया जा रहा है। जिनको पट्टा ना मिला हो उनका सूची बनाकर एक आवेदन शासन को दे। पट्टे मिलने के पश्चात उनकों मालिकाना हक मिल जाएगा और अन्य समस्याओं से भी राहत मिलेगी। राज्यपाल ने समितियों के पंजीयन के कार्यवाही पूर्ण करने को कहा। श्री हरिसिंह सिदार ने बताया कि ग्राम सल्फीपदर के महिलाओं का समूह वनों को ना किसी को काटने देते है और ना जलाने देते है और किसी को पशु चराने भी नहीं देते। इस समूह द्वारा वृक्षों के नीचे काली मिर्च की खेती की जाती है। यह शत प्रतिशत जनभागीदारी पर आधारित है। काली मिर्च की बाजार में अच्छी मांग है, एक बार काली मिर्च बोने के बाद लंबे समय तक अच्छी उपज ली जा सकती है साथ ही वनों की संरक्षण भी होता है। उन्होंने बताया कि कुछ समय से पानी की कमी से फसल का नुकसान हो जा रहा है। प्रतिनिधिमंडल में उपस्थित किसानों ने राज्यपाल के समक्ष अन्य मुद्दों को भी रखा। इस अवसर पर ग्राम सल्फीपदर के बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे।

बस्तर का सल्फीपदर गांव, जहां हो रही काली मिर्च की सामुदायिक खेती


आईये आज आपको मिलवाते हैं हरिसिंह #सिदार से। #कोंडागांव के लंजोड़ा में रहते हैं और आदिवासी इलाकों का सतत दौरा करते हैं। उम्र 70 वर्ष के पार है।
सिदार जी आजकल एक अभियान में लगे हैं, जिससे इनके क्षेत्र के आदिवासी आर्थिक रूप से समर्थ हो जाएंगे। इनके गांव के पास है सल्फी पदर नामक अन्य गाँव। #साल के ऊंचे-ऊंचे वृक्षों से भरा सल्फी पदर एक आर्थिक क्रांति का उदाहरण बनने जा रहा है। हरिसिंह सिदार इन साल के पेड़ों के साथ #कालीमिर्च का पौधा लगवा रहे हैं। हरेक पेड़ के साथ एक कालीमिर्च की बेल लगाई जा रही है। ये कार्य सामुदायिक सहयोग से हो रहा है। सल्फी पदर के निवासी और स्थानीय प्रशासन व वन विभाग इसमें सहयोग कर रहे हैं।
हरिसिंह सिदार बताते हैं कि काली मिर्च की बेल वर्षों तक पैदावार देती है। इसकी कीमत भी अच्छी है। इसकी फसल से #आदिवासियों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी। जंगल भी सुरक्षित हो जाएंगे। #नक्सलवाद#पलायन#मानव तस्करी जैसी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी।
कोंडागांव में उन्नत किसान राजाराम त्रिपाठी काली मिर्च की खेती कर रहे हैं। उनसे ही प्रेरणा लेकर सिदार जी आदिवासियों के लिए इसे व्यापक रूप देने का प्रयास कर रहे हैं। बस्तर का क्लाइमेट दक्षिण भारत जैसा है। यहां काली मिर्च, नारियल, कोको, कॉफी जैसी फसल बड़े पैमाने पर ली जा सकती है। अब जरूरत है कि राज्य सरकार और मुख्यमंत्री श्री Bhupesh Baghel जी इस और ध्यान दे, तो बस्तर की तस्वीर बदल सकती है।
#फोटो राजाराम त्रिपाठी के कालीमिर्च उत्पादन क्षेत्र की है। पीछे साल के पेड़ों पर काली मिर्च की बेल नज़र आ रही है। साथ में हैं हरिसिंह सिदार जी।

विश्व के सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्रियों में से एक थे डॉ अंबेडकर


पिछले दिनों मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी #इंदौर में नेशनल #ब्लॉगर्स समिट में भाग लेने का मौका मिला। शिखर सम्मेलन का विषय था 'डॉ अंबेडकर के आर्थिक विचार'। 14 अप्रैल को उनकी जयंती भी नजदीक आ रही है। इसी बहाने आईये अंबेडकर को सही मायनों में समग्र रूप में जाने।
देश में बहुत कम लोग जानते हैं कि बाबा साहब डॉ भीमराव #अंबेडकर विश्व के एक सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्री थे। समाजिक व राजनीतिक नेता वे बाद में थे, पहले एक अर्थशास्त्र के विद्यार्थी, फिर अध्यापक और फिर महान शोधार्थी थे।
समस्या ये हुई कि उन्हें केवल दलित नेता, संविधान निर्माता और बाद में राजनेता की फ्रेम में कैद कर दिया गया। उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को देश जान ही नहीं पाया। उन्होंने अर्थशास्त्र के विषयों पर एक नहीं वरन दो पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। पहली लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से..दूसरी कोलंबिया विश्वविद्यालय से। उनकी अनुशंसाओं के आधार पर #भारतीय #रिजर्व #बैंक का गठन हुआ। देश में सरकारी वित्त में भ्रष्टाचार रोकने के लिए #महालेखाकार की स्थापना हुई।
अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आंबेडकर के योगदान और उनकी प्रतिष्ठा/विश्वसनीयता को जानने के लिए ये घटना सबसे महत्वपूर्ण है। वर्ष 1930 का दशक पूरे विश्व बाजार में भीषण मंदी लेकर आया था। ब्रिटिश सरकार के सामने भी गंभीर चुनौतियां थीं। अगस्त 1925 में ब्रिटिश सरकार ने भारत की मुद्रा प्रणाली का अध्ययन करने के लिए ‘रॉयल कमीशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फाइनेंस’ का गठन किया था। इस आयोग की बैठक में हिस्सा लेने के लिए जिन 40 विद्वानों को आमंत्रित किया गया था, उनमें आंबेडकर भी थे। वे जब आयोग के समक्ष उपस्थित हुए तो वहां मौजूद प्रत्येक सदस्य के हाथों में उनकी लिखी पुस्तक ‘इवोल्यूशन ऑफ पब्लिक फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया’ की प्रतियां थीं। बात यहीं खत्म नहीं होती, उस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1926 में प्रकाशित की थी। उसकी अनुशंसाओं के आधार पर कुछ वर्षों बाद ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ की स्थापना हुई। इस बैंक की अभिकल्पना नियमानुदेश, कार्यशैली और रूपरेखा आंबेडकर की शोध पुस्तक ‘प्राब्लम ऑफ रुपया’ पर आधारित है।
उन्होंने उस वक़्त ये सिद्धान्त प्रतिपादित किया था कि महत्वपूर्ण उद्योगों पर सरकारी नियंत्रण होने चाहिए। साथ ही उन्होंने कृषि को सरकार के अधीन रखने की सलाह दी थी ताकि लघु व मध्यम किसानों की खेती के नुकसान से कमर ना टूटे। आज कृषि को लेकर उनका सिद्धान्त माना जाता तो देश में हजारों लाखों किसान आत्महत्या नहीं करते।
डॉ भीमराव अंबेडकर 1912 में बम्बई के प्रख्यात एलीफेंसटन कॉलेज से अर्थशास्त्र एवं राजनीतिशास्त्र में बी.ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद बड़ौदा के महाराजा द्वारा अध्ययन हेतु छात्रवृत्ति दिए जाने के बाद 1913 में अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। 1915 में उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. की पहली डिग्री प्राप्त की तथा 1916 में उन्होंने भारत का राष्ट्रीय लाभांश का विश्लेषणात्मक अध्ययन विषय पर थीसिस लिखकर दूसरी एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। कोलंबिया विश्वविद्यिालय से डबल एम.ए. करने के बाद उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रख्यात अर्थशास्त्री आर्थर सेलिगमेन के अंतर्गत 1917 में पी.एच.डी. का पंजीयन कराया। बाद में भीमराव अंबेडकर इंग्लैंड चले गए। जहां 1921 में लन्दन स्कूल ऑफ इकानॉमिक्स अर्थशास्त्र में एम.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की। उनकी थीसिस का विषय प्रोविंशियल डिसेंट्रलाइजेशन आफ इम्पीरियल फायनेंस इन ब्रिटिश इंडिया था। 1922 में जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया। भीमराव अंबेडकर ने 1923 में लन्दन स्कूल ऑफ इकानॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डाक्टर आफ साइंस की डिग्री प्राप्त की। डॉक्टरेट की इस डिग्री के लिए- भारतीय रुपये की समस्या-कारण एवं समाधान विषय था। 1925 में उनकी थीसिस पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई। 1925 में रॉयल कमीशन आफ करेंसी एंड फायनेंस से उन्होंने अपनी थीसिस में प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर चर्चा की। 1927 में उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की दूसरी डिग्री प्राप्त की। केन्द्र एवं राज्य के वित्तीय संबंधों पर उनकी थीसिस की बहुत चर्चा हुई। उस समय उनकी गिनती दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्रियों में होने लगी। वे अपने आर्थिक विचारों के कारण फ्रेडरिक हेरिक की परम्परा में उदार पूंजीवादी अर्थशास्त्री माने जाने लगे थे।