मध्य भारत में कांग्रेस में ऐन मौके पर खुद
उम्मीदवार द्वारा पार्टी की लानत मलानत करने की एक नई परिपाटी बनती जा रही है। ऐसा
इसलिए लगता है क्योंकि ये केवल एक बार नहीं बार बार हो रहा है। चाहे मध्यप्रदेश का
विदिशा का लोकसभा चुनाव हो या छत्तीसगढ़ की अंतागढ़ विधानसभा सीट का ताजातरीन
मामला हो..दोनों ही बार कांग्रेस को उसके ही प्रत्याशियों ने गहरे गड्ढे में
उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
छत्तीसगढ़ की धुर नक्सल प्रभावित अंतागढ़
विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने वाले हैं। विभिन्न दलों के दिग्गजों का राजनीतिक
अखाड़ा बनी इस सीट पर पहली बार मुख्य विपक्षी दल का कोई प्रत्याशी नहीं है। अंतागढ़
विधानसभा क्षेत्र के 202 मतदान में से 190 अतिसंवेदनशील है। इस बार यह सीट नक्सल प्रभावित होने के कारण नहीं बल्कि
राजनीतिक उठापटक का केंद्र बन जाने के कारण सुर्खियों में है। वर्ष 2013 में हुए विधानसभा के
चुनाव में भाजपा के विक्रम उसेंडी ने कांग्रेस के मंतूराम पवार को 5171 मतों से हराकर इस सीट
पर कब्जा बरकरार रखा था। लेकिन उसेंडी के सांसद बनने के बाद अंतागढ़ सीट रिक्त हुई
है। कांग्रेस ने इस सीट से एक बार फिर मंतूराम पवार को मौका देने का फैसला किया।
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने पवार को प्रत्याशी बनाए जाने का यह कहकर विरोध
किया था कि वह पहले भी कुछ चुनाव हारे है। वैसे पवार जोगी के करीबी माने जाते हैं
और पवार को टिकट देने में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भूपेश बघेल की मुख्य
भूमिका थी। पवार ने नामांकन दाखिल कर दिया और उनके नाम पर पर्चे, पोस्टर और अन्य चुनाव
सामाग्री भी छपकर तैयार हो गई। लेकिन पवार ने कांग्रेस को बड़ा झटका देते हुए चुनाव
से पहले ही उम्मीदवारी वापस ले ली। पवार के इस कदम से हड़बड़ाई प्रदेश कांग्रेस
कमेटी ने पवार से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन पवार ऐसे गायब हुए कि सीधे दूसरे
दिन एक होटल में संवाददाता सम्मेलन में ही सामने आए। इधर पवार के इस कदम के बाद
पार्टी में आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया जिसमें राज्य सरकार का नाम भी आ
गया। कांग्रेस के इस
फजीहत की स्थिति में आने के लिए जोगी का कहना था कि पवार ने पहले ही चुनाव लड़ने से
इंकार कर दिया था तब उन्हें टिकट क्यों दिया गया। उन्होंने कहा कि वर्तमान प्रदेश
अध्यक्ष को सभी को विश्वास में लेकर और सभी की सलाह से कार्य करना चाहिए। उधर पवार
ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी पर असहयोग का आरोप लगाते हुए कहा कि उनके मना करने के
बावजूद उन्हें उम्मीदवार बनाया गया।
पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल ने हालांकि आरोपों
को निराधार बताते हुए कहा कि “पवार का बयान सफेद झूठ के अलावा कुछ नहीं है। बघेल ने कहा कि पवार का फैसला कांग्रेस को नीचा दिखाने वाला था इसलिए
उन्हें तत्काल पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। लेकिन इस मामले में षड्यंत्र हुआ
है और इसका खुलासा जल्द हो जाएगा। उन्होंने इस मामले में राज्य सरकार पर भी निशाना
साधा और कहा कि देश में हुए उपचुनाव में भाजपा की हार हो रही है और इसलिए ही राज्य
में संभावित हार से डरी भाजपा ने इस तरह का हथकंडा अपनाया है”। बघेल ने आरोप लगाया कि “भाजपा ने अपने प्रत्याशी को निर्विरोध चुनने
की कोशिश की और इसके लिए अन्य उम्मीदवारों को डराया धमकाया गया जिसके चलते अंतागढ़
उपचुनाव में अन्य 10 उम्मीदवारों ने भी अपना नाम वापस ले लिया”। इस सीट पर अब
दो उम्मीदवारों के बीच ही मुकाबला हो रहा है। कांग्रेस के आरोप पर भाजपा की तरफ से
अंतागढ़ उप चुनाव के प्रभारी और उच्च शिक्षा मंत्री प्रेम प्रकाश पांडेय कहते हैं
कि इस उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग की जीत तय है। कांग्रेस को अपनी
अंदरूनी कलह से पहले उबरना चाहिए बाद में दूसरों पर आरोप लगाना चाहिए। छत्तीसगढ़
में कई गुटों में बंटी कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही है और पिछले एक दशक से ज्यादा
समय से वह सत्ता से बाहर है।
पवार प्रकरण पर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी
चुटकी लेते हुए कहा कि कांग्रेस पहले अपना घर संभाले, फिर भाजपा से दो दो हाथ करने
की सोचे।
उधर, इस प्रकरण को लेकर भाजपा के भीतर भी कई
तरह की बातें हो रही हैं। नाम ना छापने की शर्त पर प्रदेश भाजपा के एक पदाधिकारी
ने तहलका को बताया कि भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग गौंड आदिवासी जरूर है, लेकिन
उनकी पृष्ठभूमि छत्तीसगढ़ नहीं बल्कि महाराष्ट्र से संबंधित है। वे महाराष्ट्र के
आदिवासी गौंड है, स्थानीय ना होने के कारण अंतागढ़ विधानसभा सीट पर उनके खिलाफ
अंदर ही अंदर विरोध हो रहा था। भाजपा कार्यकर्ता ही भोजराज नाग को उम्मीदवार बनाए
जाने से खुश नहीं थे। ऐसे में पार्टी के भीतर ये डर बैठ गया था कि नाग हार भी सकते
हैं। कांग्रेस भी इस बात को जानती थी, और यही कारण था कि कांग्रेस नेता इस उपचुनाव
में मंतूराम पवार की जीत तय मान कर चल रहे थे।
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करोड़ों की डील का आरोप
अब जब मंतूराम ने खुद ही नामांकन वापस ले
लिया है, तब कांग्रेस के ही नेता खुलेआम आरोप लगा रहे हैं कि मंतूराम ने भाजपा के
साथ मिलकर 5 करोड़ की डील की है। कांग्रेस पदाधिकारी बीआर खूंटे कहते हैं कि मंतू
ने नाम वापस लेने के लिए पांच करोड़ लिए हैं। कांग्रेस में चर्चा है कि मंतूराम ने
कथित कांग्रेस के एक दिग्गज नेता के साथ मिलकर भाजपा से 20 करोड़ रुपए लिए हैं। लेकिन
यह महज़ अफवाहें ही है, क्योंकि किसी के पास भी इस प्रकार की किसी डील का पुख्ता
सबूत नहीं है।
विदिशा लोकसभा चुनाव की याद ताजा
अंतागढ़ उपचुनाव का कांग्रेस द्वारा बिना
लड़े ही भाजपा को वॉक ओवर देने के मामले ने वर्ष 2009 के विदिशा (मध्यप्रदेश)
लोकसभा चुनाव की यादें ताजा कर दीं। इस चुनाव में भाजपा ने सुषमा स्वराज को मैदान
में उतारा था, वहीं कांग्रेस की तरफ से राजकुमार पटेल प्रत्याशी थे। लेकिन ऐन मौके
पर पटेल का नामांकन रद्द हो गया था, वह भी इस कारण से कि उन्होंने तय समय सीमा में
अपना बी फॉर्म जमा नहीं किया था। इसके बाद कांग्रेस ने राजकुमार पटेल को पार्टी से
निष्कासित कर दिया था। इस मामले ने इसलिए तूल पकड़ा था कि एक तो इस सीट पर स्वराज
भाजपा प्रत्याशी थीं, वहीं राजकुमार पटेल कांग्रेस के पुराने नेता थे, वे दिग्विजय
सरकार में मंत्री रह चुके थे, उनके द्वारा समय पर बी फार्म जमा नहीं करने वाली बात
को कई लोग नहीं पचा पा रहे थे। हालांकि मध्यप्रदेश में ये कोई इकलौता मामला नहीं
है, जिसमें भाजपा को वॉकओवर मिल गया हो। वर्ष 2013 में संपन्न विधानसभा चुनाव में
भी कांग्रेस प्रदेश की 230 सीटों में से केवल 229 पर ही चुनाव लड़ पाई थी। दरअसल
सिंगरौली के देवसर निर्वाचन क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी डॉ एचएल प्रजापति का
नामांकन भी खारिज हो गया था। कारण ये बताया गया था कि प्रजापति का सरकारी सेवा में
इस्तीफा मंजूर नहीं हो पाया था। इसलिए उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य साबित कर
दिया गया। इसी साल मध्यप्रदेश की अशोक नगर सीट पर भी कांग्रेस प्रत्याशी जसपाल
सिंह जज्जी का नामाकंन जाति संबंधी विवाद के चलते निरस्त कर दिया गया था, लेकिन
प्रत्याशी की पुनर्विचार याचिका के बाद उनका नामांकन मान्य कर लिया गया। गौर करने
वाली बात ये है कि कभी भाजपा प्रत्याशियों के साथ इस तरह के वाकये नहीं पेश आते।
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