जाको राखे साईंया, मार सके ना कोय, बाल ना बांका कर सके, जो जग बैरी
होय....पीढ़ियों से सुनी जा रही इस कहावत के अस्तित्व पर अब ग्रहण लगता नजर आ रहा
है...क्योंकि जिस साईं के बल पर बुराईयों पर जीत पाने का दम इन पक्तियों के जरिए
भरा जाता रहा है, अब उसके अस्तित्व को “धर्मसंसद” में धर्म विरुद्ध करार दे दिया गया है।
राजू सेठ (30 वर्ष) की पान की गुमटी है। धर्मसंसद के फैसले से बेखबर
राजू कहता है कि जिसको जो “भगवान” अच्छा लगे, वो उसे माने। वैसे भी इस विवाद में
पड़े कौन, हमें तो दो वक्त की रोटी कमाने से फुर्सत नहीं है। राजू सेठ की बात यहां
इसलिए मायने रखती है, क्योंकि उसकी पान की दुकान ठीक वहीं स्थित है, जहां धर्मसंसद
आयोजित कर साईं को प्रामाणिकता के सर्टिफिकेट देने का प्रपंच रचा गया। राजू सेठ को
धर्मसंसद देखने-सुनने की ना तो फुर्सत है, ना ही उत्सुकता क्योंकि भीड़ के कारण
उसकी अच्छी खासी कमाई हो रही है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 130 किलोमीटर दूर स्थित कबीरधाम
(कवर्धा) में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के चार्तुमास के कारण पिछले दो महीने
से बहुत गहमागहमी है। लेकिन इस सप्ताह के दो दिन 24 और 25 अगस्त कुछ ज्यादा की खास
रहे, खास इसलिए क्योंकि कबीरधाम में दो दिनों तक साधु संतों और उनके अनुयायियों का
मेला लगा रहा। मौका था शंकराचार्य द्वारा बुलाई गई 19वीं धर्मसंसद का। धर्मसंसद का
एंजेडा तो लंबा चौड़ा था, लेकिन मुख्य विषय था शिर्डी के साईं को भगवान होने या ना
होने का सर्टिफिकेट देने का। इसपर दो दिनों तक बहस चली, शास्त्रार्थ किया गया,
लेकिन दिलचस्प बात ये कि शास्त्रार्थ करने के लिए दूसरा पक्ष मौजूद ही नहीं था।
शिर्डी के साईं संस्थान से कोई प्रतिनिधि इस धर्मसंसद में नहीं आया। तीन साईं
भक्तों मनुष्यमित्र (मध्यप्रदेश), प्रेमकुमार और अशोक कुमार (दोनों दिल्ली) ने
साईं को पक्ष रखने की हिमाकत की तो उनकी बात को पूरा सुने बगैर उनके कपड़े फाड़कर
मंच से नीचे उतार दिया गया। दरअसल मनुष्यमित्र ने मंच पर पहुंचकर यह कह दिया कि
साधु संत गौ हत्या जैसे विषयों पर धर्म संसद क्यों नहीं बुलाते, धर्म से जुड़े
दूसरे मुद्दों पर अनशन क्यों नहीं करते, तब एक साधु ने साईं भक्त की चुनौती स्वीकार
करते हुए निर्जल अनशन का ऐलान कर दिया। इस पर कुछ अन्य साधुओं ने सांई भक्त के
कपड़े फाड़ दिए। पुलिस ने बीच बचाव करते हुए साईं भक्तों को सुरक्षित मंच से उतारकर
कार्यक्रम से बाहर निकालकर सीधे रायपुर पहुंचा दिया।
इसके बाद दो दिन तक चली धर्मसंसद में काशी विद्वत परिषद ने अपना फैसला
सुनाया कि साईं भगवान नहीं है। ना ही गुरु है, ना ही संत ना ही अवतार, इसलिए साईं
की पूजा बंद होनी चाहिए। धर्म संसद ने एक फैसला और लिया है कि देश में भविष्य में
कोई साईं मंदिर नहीं बनाया जाए। सनातन धर्म के मंदिरों में साईं की प्राण प्रतिष्ठा
नहीं की जाएगी। अपने फैसले के बारे में काशी विद्वत परिषद ने तर्क दिया कि दो दिन
के मंथन के बाद साईं किसी भी कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं, इसलिए उन्हें भगवान कहना
वेद सम्मत या धर्म सम्मत नहीं है।
जिन करोड़ों लोगों के लिए धर्मसंसद ये फैसला सुना रही थी, उन्हीं में
से एक राजेश चौहान (36वर्ष) के विचार भी राजू सेठ से अलहदा नहीं हैं। धर्मसंसद के
आयोजन स्थल तक लोगों को पहुंचाने वाले पेशे से ड्रायवर चौहान को भी इस बात से कोई
फर्क नहीं पड़ता कि कौन किसको पूज रहा है, या किसको पूजा जाना चाहिए। उसे तो बस
अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाना है क्योंकि चौहान नहीं चाहता कि उसके
बच्चे भी उसकी तरह ड्रायवरी करें।
कबीरधाम की धर्म संसद में पहुंचे 13 अखाड़ा प्रमुखों को शंकराचार्य
स्वरूपानंद सरस्वती का समर्थन करते हुए शिर्डी के साईंबाबा को भगवान मानने से
इंकार कर दिया है। अखाड़ा प्रमुखों ने एक स्वर में कहा कि साईं का कोई ऐतिहासिक व
धार्मिक प्रमाण नहीं है। निरंजनी अखाड़ा के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी का कहना है कि “जब धर्म पर संकट आता
है, तब धर्मसंसद का आयोजन किया जाता है। यह 19 वां धर्मसंसद है। धार्मिक मुद्दों
का निपटारा कोर्ट नहीं कर सकती, इसे धर्मसंसद में ही निपटाया जाता है। फकीर को
भगवान मानना पूरी तरह से गलत है। शंकराचार्य इसी बात का तो विरोध कर रहे हैं”।
पंचायती जूना अखाड़ा हरिद्वार के प्रमुख संत हरिगिरि का कहना है कि “हिंदू सनातन धर्म की
सुदृढ़ धार्मिक परंपराओं से कुछ लोग अंजान हैं। वेदों और शास्त्रों में सप्रमाण
वर्णित व्यक्ति ही भगवान है। इसी प्रामाणिकता के आधार पर हिंदू धर्म में पूजा करने
की पंरपरा है। लाखों हिंदू भटकर साईं की पूजा करने लगे हैं। उन्हीं समझा बुझाकर
सही राह पर लाया जाएगा। साईं ट्रस्ट का नाम लिए बगैर स्वामी हरिगिरि ने कहा कि
आपको व्यवसाय करना है, तो करिए। लेकिन हिंदूओं को भ्रमित मत करिए। लोगों को समझाने
का काम शंकराचार्य और संतों का है। हमने अपना काम कर दिया है, धीरे-धीरे लोग भी
इसे मानेंगे”।
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने धर्म संसद के दौरान साईं को असत्य,
अचेतन और अयोग्य करार दिया। उन्होंने कहा कि “साईं का कोई अस्तित्व ही नहीं है। साईं
संस्थान से किसी भी प्रतिनिधि के धर्म संसद में नहीं पहुंचने के सवाल पर
शंकराचार्य ने कहा कि वे लोग विज्ञापन जारी करते हैं, लेकिन धर्म संसद में पहुंचकर
विमर्श करने को तैयार नहीं है। जब वे जवाब देने को तैयार नहीं है तो उनको
जिम्मेदारी लेनी होगी कि धर्म संसद में जो निर्णय हो, उसे वे मानेंगे”। शंकराचार्य ने
साईं के अवतार के बारे में प्रमाण मांगते हुए कहा कि सनातन धर्म में शिव, गणेश,
विष्णु और सूर्य या उनके अवतारों की पूजा होती है। साईंभक्त ये स्पष्ट करें कि
साईं किनके अवतार हैं।
धर्मसंसद पर भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व विश्व हिंदू परिषद पर
भी निशाना साधा गया। धर्मसंसद में शामिल होने आए भारत साधु समाज के उपाध्यक्ष एवं
महामंडेश्वर स्वामी डॉ प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि भाजपा हिंदुओं की रक्षा करने
वाली पार्टी होने का दावा करती है। लेकिन धर्म संसद में भाजपा, संघ या विहिप की
तरफ से कोई प्रतिनिधि नहीं आया।
दूसरी तरफ धर्म संसद से दूरी बनाते हुए साईं ट्रस्ट शिर्डी के जनसपंर्क
अधिकारी मोहन यादव का कहना है कि “हम धर्म संसद के फैसले पर कोई टिप्पणी या
प्रतिक्रिया नहीं देना चाहते”।
वहीं साईं भक्त संजय साईं ने धर्म संसद को पाखंड बताते हुए इसका विरोध
किया है। संजय का आरोप है कि “साईं ट्रस्ट साधु संतों को शिर्डी बुलाकर साईंबाबा
की पूजा संबंधित सारी बातें स्पष्ट कर चुका है। लेकिन इसके बावजूद भी धर्म संसद का
आयोजन किया जाना पाखंड की पराकाष्ठा है। संजय ने कहा कि कवर्धा में धर्म संसद के
मंच पर जिस तरह एक साईं भक्त के साथ बदसलूकी की गई, हमें इसकी आशंका थी, इसलिए
शिर्डी साईं संस्थान से कोई प्रतिनिधि धर्म संसद में नहीं पहुंचा”।
इनका समर्थन
जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, अटल अखाड़ा, आनंद अखाड़ा,
पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गौरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, निर्मल
पंचयाती अखाड़ा, उदासीन अखाड़ा, रामनंदी गिंदवरी अखाड़ा समेत काशी विद्वतपीठ,
महामंडलेश्वरों के धर्माचार्यों ने साईं के मुद्दे पर शंकराचार्या का समर्थन किया
है।
धर्म की राजनीति या राजनीति का धर्म
शिर्डी के साईंबाबा के मामले में केंद्र की नई-नवेली सरकार, भाजपा,
कांग्रेस सब चुप हैं। शुरुआत में केंद्रीय जलसंसाधन मंत्री उमा भारती ने जरूर शंकराचार्य
की बात को काटते हुए टिप्पणी कर दी थी, लेकिन बात उनके इस्तीफे की मांग तक आ गई तो
उमा ने भी चुप्पी साध ली। उमा की बात काटते हुए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह
शंकराचार्य का दबी जुबान से समर्थन कर दिया था। लेकिन अब कहीं से कोई प्रतिक्रिया
नहीं आ रही है। दरअसल शिर्डी के साईंबाबा की प्रामाणिता पर सवाल उठाने वाले
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती को कांग्रेस समर्थक माना जाता रहा है। ये अलग बात
है कि शंकराचार्य ने धर्मसंसद के लिए भाजपा शासित प्रदेश छत्तीसगढ़ को चुना। शंकराचार्य
चातुर्मास के लिए कवर्धा आए थे। मुख्यमंत्री रमन सिंह का पैतृक निवास भी कवर्धा
में ही है। शंकराचार्य ने रमन सिंह के निवास से चंद कदमों दूर ही अपना डेरा डाला
हुआ है। उन्हें राज्य अतिथि का दर्जा दिया गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि धर्म
संसद में आने वाले 28 साधु संतों को भी राज्य अतिथि का दर्जा दिया गया यानि कहा जा
सकता है कि धर्म संसद राज्य सरकार के सरंक्षण में ही बुलाई गई। अब यहां गौर करने
वाली बात ये है कि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसमें कोई दो राय
नहीं कि शिर्डी महाराष्ट्र में धार्मिक आस्था का बड़ा केंद्र है। महाराष्ट्र में
स्थित तीन ज्यार्तिलिंग घृष्णेश्वर (औरंगाबाद), भीमाशंकर (पुणे) और त्र्यंबकेश्वर(नासिक)
कभी चढ़ावे को लेकर सुर्खियों में नहीं रहते, जबकि शिर्डी में चढ़ने वाले अकूत
चढ़ावे की आए दिन चर्चा होती है, जाहिर है कि भक्तों की आमद शिर्डी में ही ज्यादा
होती है। साईं से महाराष्ट्र का दलित समुदाय भी गहरा जुड़ा हुआ है। साईं के प्रचार
प्रसार में इस समुदाय का भी खासा योगदान रहा है। मतदाताओं का एक बड़ा समूह शिर्डी
में आस्था रखता है, ऐसे में ऐन चुनाव के वक्त ना तो भाजपा ना ही कांग्रेस इस
मुद्दे पर बैठे ठाले बवाल पैदा करना नहीं चाहते। शिवसेना और मनसे ने भी मौन धारण
कर रखा है। इसी पर पेंच यह है कि शंकराचार्य समेत धर्मसंसद में शामिल होने वाले
साधु संत भाजपा से जवाब चाहते हैं, आयोजन के दौरान केवल भाजपा को बार बार कोसा
गया, जबकि कांग्रेस पर किसी ने टीका टिप्पणी नहीं की। अब भाजपा संगठन या सरकार के
तौर पर यदि इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर करती है, तो लाखों साईंभक्तों की
आस्था पर चोट होगी, जिसका का खामियाजा भाजपा को महाराष्ट्र समेत दूसरे राज्यों में
होने वाले विधानसभा चुनाव में चुकाना पड़ सकता है। शंकराचार्य का यह चक्रव्यूह
भाजपा भी खूब समझ रही है, यही कारण है कि भाजपा शासित प्रदेश होने के बावजूद
पार्टी या सरकार का कोई जनप्रतिनिधि धर्मसंसद के आसपास भी नहीं फटका।
धर्मसंसद में पारित 8 प्रस्ताव
-साईं भगवान, गुरु, अवतार, संत नहीं। पूजा बंद हो।
-गंगा साफ हो।
-अध्योध्या में राम मंदिर बने।
-गौहत्या व कसाई खाने बंद हों।
-नकली साधुओं का बहिष्कार।
-स्कूलों में रामायण, महाभारत व वेदों की पढ़ाई।
-नारियों का सम्मान हो, हमें अपना आचरण सुधारने की जरूरत।
-धर्मांतरण रोकना होगा।
बॉक्स
न्यायिक लड़ाई के लिए भी तैयारी
साईं द्वारिकापुरी और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद
सरस्वती मंदिरों में साईं की फोटो अथवा मूर्ति लागने के खिलाफ न्यायिक लड़ाई भी
लड़ने को तैयार हैं। इसकी शुरुआत शंकराचार्य ने इस साल के शुरु होते ही नैनीताल
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लैटर पिटीशन भेजकर सनातन धर्म मंदिरों में साईं की
मूर्तियां हटाने का आग्रह करने के साथ कर दी थी। इस पिटीशन में कहा गया था कि
सनातन धर्म के मठ मंदिरों में देवी देवताओं के साथ साईं की मूर्ति अथवा फोटो लगाई
जा रही है। यहां तक की साईं से संबंधित साहित्य में वेद उपनिषद के मंत्र तक बदल
दिए गए हैं। इस बारे में शंकराचार्य के प्रवक्ता अजय गौतम कहते हैं कि जब बाइबिल,
कुरान आदि धर्मग्रंथों की शब्दावली को नहीं बदला जा सकता तो वेद उपनिषद के मंत्रों
में साईं को शामिल कर करोड़ों लोगों की आस्था से खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है। गौतम
आगे कहते हैं कि आंध्र प्रदेश व मद्रास हाईकोर्ट ने अलग अलग फैसलों में साफ किया
है कि साईं भगवान नहीं फिलॉस्फी हैं। इस वर्ष जून में हरिद्वारा में आयोजित धर्म
संसद में भी शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद साईं की मूर्तियां हटाने का प्रस्ताव
पारित करवा चुके हैं।
क्यों बढ़ रहा है साईं पर विवाद
शिर्डी के साईंबाबा को लेकर इस नए विवाद की जड़ में आखिर ऐसा क्या है,
जो इसे इतना तूल दे रहा है। क्या इसके पीछे शिर्डी में चढ़ने वाला चढ़ावा है, या
फिर कुछ और। लेकिन धर्मसंसद में हुई बहस ने कई ऐसी बातों की तरफ ध्यान खींचा, जिन
पर एक बार तो विचार होना ही चाहिए। आइए एक नज़र उन बिंदुओं पर भी-
साईं “बाबा” से “राम” तक
हिंदू साधु संतों ने इस बात पर भी घोर आपत्ति जताई कि करीब दशक भर
पहले तक साईं के आगे बाबा शब्द लगाया जाता था, लेकिन अब उन्हें साईंराम के रूप में
स्थापित किया जा रहा है। पहले लोग ॐ सीताराम का जाप
किया करते थे, अब उन्हें ॐ साईंराम सिखाया जा
रहा है। पहले लोग गुरुवार को भगवान विष्णु का व्रत रखते थे, लेकिन उस व्रत की जगह
साईं के व्रत ने ले ली है।
भक्त चढ़ाते हैं बेहिसाब चढ़ावा
शिर्डी के साईं बाबा को लेकर अक्सर कुछ इस तरह की खबरें पढ़ने को
मिलती रही हैं। मसलन साईं बाबा को स्वर्ण मुकुट भेंट। साईं भक्त ने दान किए दो
करोड़ के हीरे। साईंबाबा को 40 लाख की स्वर्ण माला भेंट। वर्ष 2014 की शुरुआत में
ही यानि क्रिसमत और न्यू ईयर के मौके पर 10 लाख से ज्यादा भक्तों ने साईं के दर्शन
कर लिए थे। नए साल के एक हफ्ते बाद जब साईं मंदिर ट्रस्ट ने नोटों के बंडल बनाकर
गिनती की तो पता चला कि मंदिर के खजाने में 15 करोड़ 13 लाख नकद और बड़ी मात्रा
में सोने-चांदी के जेवरात आए हैं। वर्ष 2012 में शिर्डी के साईंबाबा मंदिर में
श्रद्धालुओं ने 274 करोड़ रुपए नकद चढ़ावा चढ़ाया था। जो 2011 की तुलना में 20
फीसदी अधिक थी। नकद रुपयों के अलावा भक्तों ने 36 किलो सोना और 373 किलो चांदी भी
चढ़ाई थी। साईं संस्थान के कार्यकारी अधिकारी किशोर मोरे की मानें तो साईं बाबा के
ट्रस्ट का वित्तीय वर्ष जनवरी से शुरु होकर जनव री को ही समाप्त होता है। मोरे के
मुताबिक साईं संस्थान ट्रस्ट की कुल संपत्ति लगभग 800 करोड़ की है।
चढ़ावे के घपले का आरोप
साल 2012 में एक आरटीआई कार्यकर्ता संजय काले ने तत्कालीन मुख्यमंत्री
पृथ्वीराज चव्हाण को पत्र लिखकर शिर्डी में चढ़ाए गए चढ़ावे में घपले का आरोप
लगाया था। सूचना के अधिकार में प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर संजय काले ने आरोप
लगाया था कि साल 2008 में 19 किलो सोना गलाने के लिए भेजा गया, जब सोना गलकर आया
तो उसमें 8 फीसदी की कमी दिखाई गई थी। वहीं 2009 में 53 किलो सोना गलाने के लिए
भेजा गया, तब उसमें 12 फीसदी और 2012 में 37 किलो सोना गलाने के बाद 13.5 फीसदी की
कमी दिखाई गई थी। सोने के अलावा साल 2008 में 270 किलो चांदी, साल 2009 में 430
किलो चांदी और 2012 में 513 किलो चांदी गलवाई गई और तीनों ही बार उसमें 24 फीसदी
की कमी दर्शाई गई। काले ने चह्वाण को पत्र लिखर उच्च स्तरीय जांच करवाने की मांग
भी की थी। हालांकि बाद में मामले को रफा दफा कर दिया गया।
साईं के प्रचार के तरीकों पर भी आपत्ति
जानकारों की मानें तो 1970 के बाद शिर्डी के साईंबाबा की लोकप्रियता
तेजी से बढ़ी। मनोज कुमार की साईंबाबा आधारित फिल्म ने शिर्डी के मंदिर को जनमानस
के दिलों में स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई। बॉलीवुड सेलीब्रिटीज़ ने भी
साईंबाबा की लोकप्रियता बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। नाम ना छापने की शर्त
पर एक पुजारी कहते हैं कि आपको याद होगा कि करीब 20 से 25 साल पहले पर्चे बंटवाकर
साईंबाबा की मार्केटिंग की जाती थी। उनपर लिखा होता था कि इन पर्चों को पढ़ने के
बाद इसे फलानी संख्या में छपवाकर बाटेंगे तो दस दिन के भीतर आपको फलां चमत्कार
देखने को मिलेंगे, अगर नहीं बांटेगे तो आपका फलां नुकसान हो जाएगा। फलां ने पर्चा
बांटा तो उसकी शादी हो गई, उसकी नौकरी लग गई वगैरह-वगैरह। 1987 से 1994 तक यह
पर्चा वितरण बहुत चला था। जनता धर्मभीरू है, कभी उसे डरा धमकाकर उसके मानस में नया
अवतार, भगवान या संत बैठाया जाता है, तो कभी फिर धर्म के नाम पर डराकर उसके आस्था
के प्रतीक बदलने की कोशिश की जाती है। हिंदुस्तान में ये सदियों से चला आ रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें