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रविवार, 2 अक्टूबर 2016

जानिए ट्रांसजेंडर्स की पीड़ा

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मोदी के रूप में कर चुकी है। 16 मई को चुनाव परीणाम आने के बाद सरकार बनाने की स्थिति में मंत्रिमंडल का बाकी स्वरूप भी तय किया जाएगा। लेकिन उसके पहले ही मंत्रिमंडल में जगह पाने वालों की कसरत शुरु हो चुकी है। राज्यों में तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं और चुनाव नतीज़े आने के पहले ही मजबूत प्रोफाइल वाले उम्मीदवार मुंगेली लाल के हसीन सपनों में खो चुके हैं। लेकिन वास्तव में उनके सपने हकीकत में भी बदल सकते हैं, क्योंकि इनमें से कई नेताओं के पास पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से ज्यादा अनुभव तो है ही, साथ ही वे सालों-साल से अपने-अपने इलाके के अजेय क्षत्रप भी बने हुए हैं। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के क्षत्रपों में ये भावना इसलिए भी बलवती है क्योंकि जब भाजपा उत्तर भारत में कमजोर पड़ रही थी और दक्षिण में जमीन तलाश रही थी, तब मध्प्रदेश और छत्तीसगढ़ के क्षत्रपों ने पार्टी को निराश नहीं किया। यहां के मतदाताओं ने भी भाजपा पर विश्वास रखते हुए ना केवल राज्यों में उसकी सरकारें बनाईं, बल्कि लगातार लोकसभा में भी पार्टी के प्रत्याशियों को जीताकर भेजती रही। इसकी नतीजा ये रहा है कि चाहे मप्र हो या छग, दोनों ही प्रदेशों के भाजपा नेताओं का लोकसभा पहुंचने का सिलसिला जारी रहा। सुमित्रा महाजन (इंदौर सीट से लगातार 7 बार सासंद), रमेश बैस (रायपुर सीट लगातार 6 बार सासंद), सत्यानारायण जटिया (उज्जैन सीट लगातार 7 बार सासंद, फिलहाल राज्यसभा सदस्य), सुषमा स्वराज (तीन बार राज्यसभा और तीन बार लोकसभा सदस्य), नंदकुमार चौहान (खंडवा लोकसभा सीट से 4 बार सासंद), विष्णुदेव साय (रायगढ़ लोकसभा सीट से लगातार तीन बार सासंद), थावरचंद गेहलोत (चार बार सासंद, फिलहाल राज्यसभा सदस्य), पांच बार कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा पहुंच चुके और अब भाजपा नेता दिलीप सिंह भूरिया, सरोज पांडे (भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष) कुछ ऐसे ही नाम हैं। जिनका मोदी मंत्रिमंडल में जगह पाना तय माना जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयं संघ की चली तो भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और मध्यप्रदेश से राज्यसभा सासंद प्रभात झा भी मंत्रिमंडल को सुशोभित कर सकते हैं। आखिर क्या वजह है कि ये नेता अपने अच्छे दिनों के प्रति आश्वस्त नज़र आ रहे हैं। ये समझने के लिए इनके राजनीतिक करियर पर नज़र डालनी जरूरी है। 1989 से लगातार भाजपा को जीत दिला रही सुमित्रा महाजन “ताई” 8वीं बार फिर इंदौर लोकसभा सीट से किस्मत आजमा रही हैं। वे केवल दावा ही नहीं कर रहीं, बल्कि उन्हें पूरा यकीन हैं कि वे इस बार भी जरूर जीतेंगी। “ताई” के इस दावे के पीछे कभी होल्कर स्टेट कहलाने वाले इंदौर के वो साढ़े तीन लाख मराठी मतदाता हैं, जो हर चुनाव में केवल और केवल “ताई” के लिए वोट करते आए हैं। इंदौर लोकसभा सीट के कुल 21 लाख मतदाताओं में ये साढ़े तीन लाख मराठी मत जादुई असर दिखाते हैं, क्योंकि वो शत-प्रतिशत पड़ते हैं। यही सुमित्रा महाजन की जीत का मूलमंत्र भी है। यही कारण है कि सुमित्रा महाजन कभी अपने निकटतम प्रतिद्वंदी को 11 हजार 480 वोट (सत्यनारायण पटेल, वर्ष 2009) से हराती हैं तो कभीं 1 लाख 93 हजार 936 वोट (रामेश्वर पटेल, वर्ष 2004) से। 1989 तक इंदौर सीट कांग्रेस का सुरक्षित गढ़ हुआ करती थी। महाजन ने अपने पहले चुनाव में अपराजेय कहलाने वाले दिग्गज कांग्रेस नेता प्रकाशचंद्र सेठी को 1 लाख 11 हजार 614 मतों से हराया था। सेठी इंदिरा गांधी सरकार में देश के गृह मंत्री रह चुके थे। महाजन बाजपेयी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री मानव संसाधन विकास, संचार और सूचना प्रोद्योगिकी मंत्री रह चुकीं हैं। अब ताई यदि जीतती हैं तो हो सकता है कि देश की अगली लोकसभा अध्यक्ष फिर महिला ही हो। छत्तीसगढ़ की रायपुर लोकसभा सीट से 1989 में देश की नौंवी लोकसभा में पहुंचे रमेश बैस भी राजग सरकार में 1998 से 2004 में केंद्रीय राज्य मंत्री बने। उनके पास सूचना और प्रसारण, खनन, वन एवं पर्यावरण, steel and mines, जैसे महत्वपूर्ण विभाग रहे। बैस सातवीं बार चुनाव मैदान में हैं और अपनी जीत तय मानकर चल रहे हैं। भाजपा सूत्रों पर यकीन करें तो लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक की भूमिका निभा चुके रमेश बैस का वरिष्ठता के आधार पर कैबिनेट मंत्री बनना लगभग तय है। रमेश बैस तहलका से कहते हैं कि “मेरी जीत तो 101 फीसदी तय है। लेकिन एनडीए सरकार में मंत्री पद मिलेगा या नहीं, ये तो मोदी जी तय करेंगे। लेकिन इतना जरूर कहना चाहता हूं कि देश की जनता बदलाव चाहती है”। पंद्रहवीं लोकसभा की नेता प्रतिपक्ष रही सुषमा स्वराज विदिशा सीट से दूसरी बार और लोकसभा चुनाव में चौथी बार किस्मत आजमा रही हैं। सुषमा मध्यप्रदेश कोटे से ही केंद्रीय मंत्रिमंडल को सुशोभित करेंगी। वरिष्ठता के आधार पर सुषमा स्वराज को मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिलना तय है। उनके सामने कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को मैदान में उतारा है। भाजपा सुषमा की जीत के लिए पूरी जोर फूंक चुकी है। खुद सुषमा का दावा है कि वे इस बार चार लाख से ज्यादा मतों से चुनाव जीतेंगी। भाजपा के लिए सुरक्षित सीट का दर्जा पा चुकी विदिशा सीट इस लिए भी चर्चित है क्योंकि यहां से 1991 में अटलबिहारी बाजपेयी भी चुनाव लड़ चुके हैं। खुद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी यहां से चार बार लोकसभा सासंद रह चुके हैं। वर्ष 1996 में पहली बार लोकसभा पहुंचने वाले नंदकुमार चौहान चार बार खंडवा सीट जीत चुके हैं। कभी निमाड़ अंचल में आने वाली खरगौन और खंडवा सीटों पर कांग्रेस नेता सुभाष यादव का अच्छा खासा प्रभाव हुआ करता था। यादव के इस प्रभाव को खत्म कर चौहान ने खंडवा सीट भाजपा की झोली में डाली। 2009 में कांग्रेस की टिकट पर अरुण यादव ने नंदकुमार चौहान को पराजित कर दिया था। अब एक बार फिर नंदकुमार चौहान को सुभाष यादव के बेटे और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव चुनौती दे रहे हैं। यदि चौहान उन्हें हराकर अपनी गंवाई हुई सीट जीत लेते हैं तो उनके नंबर बढ़ने की पूरी संभावना है। छत्तीसगढ़ भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष विष्णुदेव साय भी मोदी मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ा सकते हैं। वे छत्तीसगढ़ में पार्टी का आदिवासी चेहरा हैं। इसी आदिवासी कोटे की बदौलत उनके मंत्रिमंडल में शामिल होने की संभावना जताई जा रही है। वे लगातार तीन बार से रायगढ़ सीट से सांसद हैं। 2008 में इन्हीं के नेतृत्व में राज्य में भाजपा की दूसरी बार सरकार बनने का श्रेय भी दिया जाता है। जिस रायगढ़ लोकसभा सीट से 1999 विष्णुदेव साय जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचे। यहीं से 1998 में अजीत जोगी ने अपने राजनीतिक जीवन का पहला चुनाव लड़ा था, जिसमें भाजपा के दिग्गज नेता नंदकुमार साय को हार का सामना करना पड़ा था। तहलका से बात करते हुए विष्णुदेव साय कहते हैं कि “1999 के पहले रायगढ़ सीट कांग्रेसियों की पहली पसंद हुआ करती थी। लेकिन हमने यहां से कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। इतना तो तय है कि मोदी जी की सरकार बनेगी। लेकिन उनके मंत्रिमंडल की शोभा कौन बढ़ाएगा, ये तो वे ही तय करेंगे”। मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नरेंद्र तोमर भी इस दौड़ में शामिल हैं। 2009 में ग्वालियर सीट से लोकसभा पहुंचने वाले तोमर दोबारा अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। पार्टी तोमर को 2009 में राज्यसभा भेजकर भी नवाज चुकी है। लेकिन कुछ महीनों बाद ही उन्हें ग्वालियर सीट से लोकसभा का टिकट दे दिया गया। सिंधिया राजघराने के सदस्यों ने इस सीट पर सात बार जीत दर्ज की है। भाजपा नेता राजमाता विजियाराजे सिंधिया ने एक बार, उनके बेटे और कांग्रेस नेता रहे माधवराव सिंधिया ने चार बार और उनकी बहन भाजपा नेता यशोधरा राजे सिंधिया ने दो बार इस सीट से लोकसभा चुनाव जीता है। इससे साबित होता है कि ग्वालियर सीट पर सिंधिया परिवार का जबर्दस्त प्रभाव रहा है। इसी सीट से अटल बिहारी बाजपेयी ने 1971 में जीत हासिल की तो 1984 में माधवराव सिंधिया से हार बैठे। यदि तोमर दूसरी बार इस हाईप्रोफाइल सीट को फतह करने में कामयाब होते हैं तो उन्हें इसका ईनाम मिल सकता है। इस बारे में नरेंद्र सिंह तोमर कहते हैं कि “मोदी लहर देश में परिवर्तन लाएगी। अपने बारे में मैं क्या कहूं। लेकिन हमारे प्रदेश से कई वरिष्ठ लोगों को प्रतिनिधित्व का मौका मिलेगा”। कभी मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस का परचम लहराने वाले दिलीप सिंह भूरिया अब भाजपा का झंडा बुलंद किए हुए हैं। प्रदेश की रतलाम-झाबुआ सीट से भाजपा के उम्मीदवार भूरिया यदि जीत हासिल करते हैं तो इन्हें भी आदिवासी कोटे से केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान मिल सकता है। कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर पिछले 15 सालों से पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया का कब्जा है। दिलीप सिंह को कांतिलाल भूरिया का राजनीतिक गुरु भी माना जाता है। लेकिन पिछले चुनाव में दिलीप सिंह ने कांतिलाल के हाथों ही 57668 वोटों से हार गए थे। बावजूद इसके भाजपा ने एक बार फिर उनपर दांव खेला है। एक ही समय में महापौर, विधायक और सासंद रहकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज करवाने वाली भाजपा नेत्री सरोज पांडे भी महिला कोटे से केंद्रीय सरकार मे भूमिका पा सकती हैं। सरोज पांडे अभी भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। 2009 में जब वे लोकसभा सांसद बनी, तब वे वैशालीनगर सीट से विधायक भी थीं और दुर्ग नगर निगम की महापौर भी। लगातार सफलताएं हासिल करने के कारण भाजपा के आला नेताओं की पंसद बनकर भी उभरी हैं। इसका फायदा उन्हें मिल सकता है। इसी तरह तीसरी बार सतना सीट से भाग्य आजमा रहे गणेश सिंह भी वरिष्ठता के आधार पर केंद्रीय मंत्री बन सकते हैं। गणेश सिंह 2004 और 2009 में सतना सीट से भाजपा की टिकट पर जीत दर्ज कर चुके हैं। ऐसा नहीं है कि केवल लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार ही मोदी से आशा लगाए हुए हैं। बल्कि मध्यप्रदेश से आने वाले तीन राज्यसभा सांसदों को भी नरेंद्र दामोदर भाई मोदी से बहुत उम्मीदे हैं। इनमें सबसे पहले नाम आता है प्रभात झा का। झा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पहली पसंद के रूप में मंत्रियों की फेहरिस्त में सबसे ऊपर रखे जाएंगे। 2008 और 2014 में मध्यप्रदेश से राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं। मध्यप्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा चुके झा फिलहाल भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित उज्जैन सीट को भाजपा का अभेद गढ़ बनाने वाले सत्यनारायण जटिया फिलहाल राज्यसभा सदस्य हैं। 1980 में पहली बार लोकसभा पहुंचने वाले जटिया सात बार उज्जैन सीट से जीतकर सांसद बन चुके हैं। ऐसे में वरिष्ठता के आधार पर वे सबसे मजबूत दावेदार हैं। जटिया बाजपेयी सरकार में 1998 से 2004 तक केंद्रीय श्रम, शहरी विकास और गरीबी उन्मूलन, सामाजिक न्याय मंत्री रह चुके हैं। इसके बाद नंबर आता है थावरचंद गेहलोत का। 1996 में लोकसभा सासंद बनने के पहले वे तीन बार मध्यप्रदेश में विधायक और कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। चार बार शाजापुर सीट से जीत हासिल कर चुके गेहलोत की चली तो उन्हें भी एक बार केंद्रीय राजनीति में चमकने का मौका मिल सकता है। हालांकि 2004 में सत्ता में आई यूपीए सरकार ने मंत्रियों के मामले में मप्र और छत्तीसगढ़ को निराश ही किया। इसके पहले कार्यकाल में जहां मध्यप्रदेश को कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के रूप में दो मंत्री मिले। वहीं दूसरे कार्यकाल में कुछ समय के लिए अरुण यादव को केंद्रीय राज्य मंत्री बनाकर इस संख्या को तीन कर दिया गया था। जबकि UPA के पहले कार्यकाल में छत्तीसगढ़ की झोली खाली रखी गई, वहीं दूसरे कार्यकाल में चरणदास मंहत के रूप में एक केंद्रीय राज्य मंत्री दिया गया। लेकिन अब अगर एनडीए सरकार आती है, तो दोनों सूबों को मिलने वाले मंत्रियों की संख्या दुगुनी या तिगुनी हो सकती है।
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